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जमैथा के खरबूजे में अब वो मिठास क्यूँ नहीं मिलती ?

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गर्मियों के शुरू होते ही बाज़ारों मैं खुशबूदार खरबूजे दिखाई पड़ने लगते हैं. जौनपुर मैं जमैथा का खरबूजा बहुत ही मशहूर है जिसकी पहचान उसे झिल्के पे फैली हुई जाल हुआ करती हैं.यह फल विटामिन और मिनरल से भरपूर हुआ करता है ख़ास तौर पे विटामिन A और C. यह कब्ज़ को दूर करता है , चमड़े कि बीमारी का इलाज है, वज़न कम करने वालों के लिए वरदान है,नींद ना आने बीमारी जिसे हो उसको फायदा करता है और दिल के दौरे से बचाता है.


आज इस लाजवाब फल को प्रकृति की बुरी नजर लग गयी है। शायद यही वजह है कि अब न यहां के खरबूजे में वह पहले वाली मिठास रह गयी और न ही इसकी बआई के प्रति किसानों का कोई खास रुझान। पहले जहां एक दिन की पैदावार प्रति बीघा 8 मन हुआ करती थी, वहीं आज यह घटकर 3 मन के आस-पास पहुंच गयी है। बताते चलें कि वर्ष 1930 के आस-पास जब जनपद के सिरकोनी विकास खण्ड अंतर्गत जमैथा गांव के लोगों ने पहली बार खरबूजा की खेती की थी तो शायद यह सोचा भी नहीं रहा होगा कि उत्तर प्रदेश के पटल पर गांव की पहचान इसी फल से ही बनेगी। यह खरबूजा जनपद ही नहीं, बल्कि पूरे पूर्वांचल में निर्यात किया जाता है। इस फल के मिठास का असली राज का पता लगाने की कोशिश करें तो पायेंगे कि किसानों द्वारा बुआई में जैविक खादों का ज्यादातर इस्तेमाल करना है। गांव के बुजुर्ग किसानों का कहना है बोआई के पूर्व काश्तकार इन खाली पड़े खेतों में पशुओं के गोबर व मूत्र को जैविक खाद के रुप में इस्तेमाल करते हैं।

वहाँ के एक खरबूजे की खेती करने वाले किसान से पूछा की आज जमैथा के खरबूजे में वो मिठास क्यूँ नहीं आती तो जवाब था की पहले खेत में केवल एक फसल खरबूजे की पैदा की जाती थी आज लोग आलू और अन्य सब्जी भी बो लिया करते हैं और दुसरे जैविक खादों की जगह केमिकल वाली खाद इत्यादि के इस्तेमाल के कारन अब खरबूजों में वो मिठास नहीं मिला करती |

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