मेरे अपने शहर में बड़े लोग : डॉ दिलीप सिंह

१९८०-१९८१ में यह किला काफी ठीक हालत में था |तब यहाँ कि भूल भुलैया खुली थी | वंही से एक सुरंग अंडे कि और जाती है जिसके बारे में कथाएँ हैं कि यह गोमती पार निकलती है और कुछ तो इसे दिल्ली के लालकिले से जुडा मानते हैं| १९८० में जब मुझे किला घूमने का अवसर प्राप्त हुआ तब से लेकर अब तक इस किले में एक से बढ़ कर एक नेता ,कलाकार,साहित्यकार, आमजन, नमाज़ी, चित्र विचित्र लोगों को देखते २२ वर्ष गुज़र गए |
सुबह एक साथ आप यहाँ आज भी दो कुंतल से आधा कुंतल तक के लोगों को भागते दौड़ते ,हांफते ,गिरते पड़ते ,कसरत व्यायाम करते ,प्राणायाम करते ,योग से लेकर भोग करते अपनी आँखों से यथार्थ में देख सकते हैं |जाकी रही भावना जैसी हरी मूरत देखि तिन तैसी “ यहाँ चरितार्थ होता है| प्रेमी युगल से वृद्ध युगल ,योगी से भोगी सभी इस विशाल दुर्ग में विधमान हैं| यहाँ के सभी कर्मचारी प्रातः घुमक्कड (मार्निंग वाकर्स) के अभ्यस्त हैं | यहाँ आप अशोक सिंह से लेखर संजय अस्थाना, के. एस. परिहार से मोहम्मद अब्बास जैसों को मोर्निंगवाल्क करते देख सकते हैं |सबसे पुराने घुमक्कड़ से लेकर १ दिन वाले घुमक्कडो को भी यहाँ देखा जा सकता है |
मुख्य बात तो अभी बाकी है और वो यह कि नगर के विख्यात तमाम व्यक्तियों की कथनी और करनी का अंतर भी यही इसी किले में देखने को मिलता है |पहले पूर्ण स्वच्छ समीर भरा यह किला अब दिनों दिन कूड़ा कचरा और गंदगी से पटता जा रहा है और हमारे नगर के प्रसिद्ध लोग ही इसके जनक हैं |प्रेमी युगलों कि सक्रियता दिनों दिन यहाँ रोज वेलंटाइन डे या मधुयामिनी का भास् कराती है यदि आप ७ बजे के बाद तलाहने जाएँ | किले में भवनों के भीतर ही मलमूत्र त्याग कर हमारे शहरी लोग अनार ,नीबू , संतरा ,से मिश्रित जो सुगंध बिखेरते हैं उस से किले में लाल हरे नीले पीले सतरंगी चंपा, बेला चमेली कनेर गुडहल आदि कि खुशबु वैसे ही खो जाती है जैसे ब्रहमास्त्र में सरे अस्त्र खो जाते हैं | जम्दाग्निपुर,जवनपुर से जौनपुर कि गाथा देखने वाली गोमती नदी अब प्रदूषण से पटी सहमी सी दिखती है | इमामबाड़े के पास बड़े पेड़ के नीचे एक नाग रोज बैठा मिलता है जो मूकदर्शक है इसका|

Dr. Dileep Kumar Singh Juri Judge, Member Lok Adalat,DLSA, Astrologist,Astronomist,Jurist,Vastu and Gem Kundli Expert. Cell:९४१५६२३५८३