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जमैथा गाँव परशुराम की जन्मस्थली जहां रामचंद्र जी दो बार आये थे |

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Paramhans jee ki samadhi aur mandir 

जौनपुर जनपद मुख्यालय से तीन किलोमीटर दूर गोमती नदी के किनारे बसा गाँव  जमैथा केवल खरबूजे के लिए ही नहीं मशहूर  है बल्कि इसका धार्मिक महत्व भी है |इस गांव में गोमती के किनारे परशुराम के पिता यमदग्नि ऋषि की तपोभूमि थी। नाराज परशुराम के पिता यमदग्नि ने अपने सभी पुत्रों से बारी-बारी अपनी मां रेणुका का सिर धड़ से अलग कर देने को कहा। जिसमें परशुराम ने पिता की आज्ञा का पालन किया और यहीं पर माता रेणुका का सिर काटकर हत्या कर दिया। आज्ञाकारी पुत्र परशुराम से खुश हो के पिता यमदग्नि ऋषि ने उन्हें वरदान देना चाहा तो उन्हीने अपनी माता रेणुका को पुनर्जीवित करने का वरदान माँगा जो पूर्ण हुआ | रशुराम ने अपनी मां के लिए पिता से अखंड का वरदान मांगा। जिससे माता रेणुका को अखंडो देवी कहा जाने लगा। अखड़ो देवी अर्थात अखंडी देवी मां रेणुका हैं। जिनकी पूजा आज भी जमैथा गांव में की जाती है।

जमैथा गांव जफराबाद (जौनपुर) की मिंट्टी पावन है क्योंकि यहां भगवान राम ने यमदग्नि की तपोभूमि पर दो बार अपना पांव रखा था। पहली बार अपने गुरु वशिष्ठ के साथ बचपन में राजा कीर्तिवीर जो यमदग्नि के तप को भंग करता था उसका वध करने और दूसरी बार 14 वर्ष का वनवास जाते समय यमदग्नि से मिलते हुए गए।

अखंडो देवी 

यही पे एक मदिर है जो बाबा परमहंस की समाधि है | गाँव के लोग बताते हैं की अठारहवीं शताब्दी में यमदग्नि की तपोभूमि जमैथा में बाबा परमहंस का आगमन हुआ। यहीं रहकर वह अपनी साधना करते रहे। सन् 1904 में  उन्होंने पद्मासन लगाकर अपनी नाभि से अग्नि पुंज प्रज्ज्वलित कर खुद को अग्नि में समाहित कर लिया। कालांतर में स्वप्न आने पर गांव निवासी वरिष्ठ चिकित्सक डा.विनोद कुमार सिंह के दादा चौहरजा सिंह ने यहां बाबा परमहंस की समाधि स्थल बनवाया। जहां लोग मुराद मांगते हैं। वर्तमान में यहां भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया है जो अत्यंत सुंदर है। इसमें राम, लक्ष्मण, हनुमान, शिव, मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा स्थापित की गई है।


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