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तेरे खुशबू से भरे खत मैं जलाता कैसे ?

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ग्रीटिंग कार्ड वाला जमाना भी क्या ज़माना था।

 तेरे खुशबू से भरे खत मैं जलाता कैसे
मन किशन सरोज हुआ जा रहा.....
कर दिए लो आज गंगा में प्रवाहित
सब तुम्हारे पत्र, सारे चित्र, तुम निश्चिन्त रहना


धुंध डूबी घाटियों के इंद्रधनु तुम

छू गए नत भाल पर्वत हो गया मन
बूंद भर जल बन गया पूरा समंदर
पा तुम्हारा दुख तथागत हो गया मन
अश्रुजन्मा गीत कमलों से सुवासित
यह नदी होगी नहीं अपवित्र, तुम निश्चिन्त रहना


दूर हूँ तुमसे न अब बातें उठेंगी

मैं स्वयं रंगीन दर्पण तोड़ आया
वह नगर, वह राजपथ, वे चौंक-गलियाँ
हाथ अंतिम बार सबको जोड़ आया
थे हमारे प्यार से जो-जो सुपरिचित
छोड़ आया वे पुराने मित्र, तुम निश्चिंत रहना


लो विसर्जन आज बासंती छुअन का

साथ बीने सीप-शंखों का विसर्जन
गुँथ न पाए कनुप्रिया के कुंतलों में
उन अभागे मोरपंखों का विसर्जन
उस कथा का जो न हो पाई प्रकाशित
मर चुका है एक-एक चरित्र, तुम निश्चिंत रहना

.............पवन विजय 


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