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शाही पुल पर विराजमान गज-सिंह मूर्ति का रहस्य |

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बचपन से सुना करता था कि कभी यह गज-सिंह मूर्ति ,पास ही मैं बने किले मैं हुआ करती थी और बाद मैं इसको शाही पुल के पहले एक चबूतरे पे बिठा दिया गया
नगर को दो भागों में विभाजित करने वाला ,गोमती नदी पे बने   ऐतिहासिक शाही पुल , का र्नि‍माण अकबर के शासनकाल में उनके आदेशानुसार सन् 1564 ई0 में मुनइन खानखाना ने करवाया था। यह भारत में अपने ढंग का अनूठा पुल है और इसकी मुख्‍य सड़क पृथ्‍वी तल पर र्नि‍मित है। पुल की चौड़ाई 26 फीट है जि‍सके दोनो तरफ 2 फीट 3 इंच चौड़ी मुंडेर है। दो ताखों के संधि‍ स्‍थल पर गुमटि‍यां र्नि‍मित है। पहले इन गुमटि‍यों में दुकाने लगा करती थी। पुल के मध्‍य में चतुर्भुजाकार चबूतरे पर एक वि‍शाल सि‍ह की मूति है जो अपने अगले दोनो पंजो पर हाथी के पीठ पर सवार है|






गज-सिंह मूर्ति
गज सिंह मूर्ति
“मनोज मिश्रा जी का इसके बारे मैं कुछ ऐसा कहना है कि "जौनपुर के शाही पुल पर सम्प्रति में विराजमान गज-सिंह मूर्ति का तादात्म्य इश्वरवर्मन या ईशानवर्मा के आंध्रों पर विजय से स्थापित किया जा सकता है ,क्योंकि हरहा लेख में वर्णित है कि ईशानवर्मा नें आंध्रों की सहस्त्रों हस्तियों की विशाल सेना को चूर्ण -विचूर्ण कर डाला था .इतिहासकारों में इस मत पर आम राय है कि ईशानवर्मा नें उत्तरी भारत में अपनी स्वतंत्र संप्रभुता कायम कर ली थी .संभव है कि इस मुर्ति का अंकन आंध्रों पर विजय के प्रतीक के रूप में हुआ रहा हो तथा मध्यकालीन भारत में शाही पुल के निर्माण के समय में स्थानीय कलाकारों ने आकर्षन पैदा करनें के उद्देश्य से आस-पास से ही उसको स्थानांतरित कर शाही पुल के मध्य में स्थापित कर दिया हो .यह तो मेरे द्वारा स्थापित विचार है ,लेकिन यहाँ बुद्धिजीवियों की एक राय और है वह यह है कि यह मुर्ति बौध्ध धर्मं के विकास का प्रतीक है ,उन लोंगों का कहना है कि गज-सिंह मूर्ति वैदिक धर्मं पर , बौध्ध धर्मं के विजय का सूचक है

Shahi Pull.कुछ वर्ष पूर्व मैं और मेरे बड़े भ्राता डॉ अरविन्द मिश्र जी साथ -साथ एक कार्यक्रम के दौरान खजुराहो में थे ,वहाँ पर भी खजुराहो के मंदिरों पर कई जगह सिंह मूर्ति का अंकन दिखाई पडा .मेरे भाई साहब ने कहा कि यह चंदेलों का राज चिह्न है ,इस सम्भावना के कारण हो सकता है कि चन्देल राजाओं का कोई सम्बन्ध जौनपुर से रहा हो .मैंने इस पर अब तक गहन पड़ताल की परन्तु इस बारे में मुझे अब तक कोई संकेतक साक्ष्य नहीं मिला संभव है कि आगे मिल जाये और किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके .जौनपुर में चंदेल क्षत्रिय तो हैं ,वहाँ के नरेशों का इस जनपद के संभंध के बारे में कोई महत्त्वपूर्ण साक्ष्य अभी तक मेरे हाथ नहीं लग सका है .एक और शंका मन में उपजती है कि खजुराहो के मंदिरों पर अंकित सिंह मूर्ति और शाही -पुल जौनपुर पर स्थापित गज-सिंह मूर्ति की भाव-भंगिमा में काफी असमानता दिखती है."  ..मा पलायनम !  “







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