![नदिया के पार की गुंजा]()
एक यादगार फिल आई थी १९८२ में "नदिया के पार "जो जौनपुर के लिए इलिए भी खास थी क्यूँ की इसकी शूटिंग जौनपुर के एक गाँव चौबेपुर में हुयी थी और यह वो दौर था जब शूटिंग देखने का अवसर जौनपुर वालों को नहीं मिल पाता था | यह फिल्म इस लिए भी ख़ास थी इस इस फिल्म की हेरोइन कानपूर निवासी साधना सिंह थी जिन्हें शूटिंग के दौरान गाँव वाले बहुत मानने लगे था और आज भी जो लोग वहाँ मौजूद हैं गूंजा को अवश्य याद करते है | इस गाँव वालों का प्रेम गूंजा से इतना गूंजा की उस गाँव को लोग गुंजा का गाँव कह के पुकारने लगे |
वक़्त गुज़रता गया और लोग गुंजा को भूलते गए और केवाल इतना ही नहीं साधना सिंह (गूंजा ) को उनकी मन माफिक फिल्म ना मिल पाने की वजह से उन्होंने भी फिल्म जगत को अलविदा कह दिया और अपना घर बसा लिया | प्रेम मिले जो जौनपुर के रहने वाले किसी को अपना बना लेते हैं इसकी मिसाल थी नदिया के पार की हेरोइन गुंजा | सुन्तेहैन की जब नदिया के पार की शूटिंग ख़त्म हुई थी और फिल्म वाले जाने लगे थे तो लोगों की आँखों में गुंजा के जाने से आंसूं निकल पड़े थे | उस दौर में जिनकी बेटियाँ पैदा हुयी थी लोगों ने उसका नाम गूंजा रखा शुरू कर दिया था | यह है जौनपुर वासियों का प्रेम |
'नदिया के पार'के बाद साधना सिंह 'पिया मिलन', 'दोस्त गरीबों का', 'ससुराल', 'तुलसी', 'औरत', 'पत्थर', 'फलक', 'पापी संसार'जैसी फिल्मों में काम किया लेकिन इसके बाद फिल्म जगत को अलविदा कह के घर बसा लिया और आज बिहार की बहु हैं भोजपुरी फिल्मों के पितामह विश्वनाथ शाहाबादी की बहू और फिल्म निर्माता राजकुमार शाहाबादी की पत्नी हैं और सुखी पारिवारिक जीवन बिता रही हैं |
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