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जौनपुर के इतिहास को सोशल मीडिया पे मनमाने अंदाज़ से पेश करना चिंता का विषय है |

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जौनपुर एक ऐतिहासिक शहर है जिसकी जड़ें बहुत हो गहरी है लेकिन अक्सर जब जौनपुर का इतिहास लिखा जाता है तो तुग़लक़ के समय से लोग लिखना शुरू करते हैं क्यों की ऐतिहासिक स्थलों के रूप में उसकी निशानियां आज भी मौजूद हैं | 

मैंने जब ध्यान से देखा तो मुझे दिखा की राजा रामचंद्र और गौतम बुध के समय की निशानियां भी इस जौनपुर में मौजूद हैं जिसपे इतिहासकारों ने बहुत अधिक शोध नहीं किया | आप कह सकते हैं की जौनपुर में इक्षवाकु वश के दौर का इतिहास भी मिलता है जिसके अंतर्गत राजा रामचंद्र और गौतम बुध दोनों  आते हैं | 
जमैथा जौनपुर में परशुराम जी की माता रेणुका देवी या आखडो देवी का मंदिर | 

जौनपुर के इतिहास को लिखते समय इतिहासकार को दो मुख्य बातों का ध्यान देना होता है जिसमे पहला है तथ्यों , निशानियों और पुराने शोध के आधार पे दुसरे जहाँ धार्मिक आस्थाओं का मेल हो जाय वहां किंवदंतियों को भी ध्यान में रखना होता है | जैसे जौनपुर में रामचंद्र जी के ५-६ बार आगमन की कथाएं मशहूर हैं और शाहगंज का चूड़ी मेला करारबीर का मंदिर , जमैथा में परशुराम की माता रेणुका का मंदिर आदि निशानियां भी बताई जाती हैं लेकिन सही दिशा में शोध के अभाव में इस पर  प्रमाणिकता की मुहर इतिहासकार नहीं लगा सके जबकि इसकी सत्यता से इंकार नहीं किया जा सकता | 

जिन स्थानों पे शोध की कमी है या आस्था के अनुसार इतिहास बताया जा रहा है वहां तो इतिहासकार मान्यताओं और किंवदंतियों को दर्ज कर सकता और उस आधार पे अपने ज्ञान के अनुसार इतिहास बयान  कर सकता है लेकिन जहाँ पहले शोध हो चुके हैं और निशानियां मौजूद हैं वहां इतिहास लिखते समय आपने तो नतीजा निकला है या इतिहास बयान कर रहे हैं उसका आधार बताना ज़रूरी हुआ करता है | 

पहले इतिहासकारों के पास एक माध्यम होता था किताब लिखने का जिसमे लेखक ने जो लिखा उसकी ज़िम्मेदारी हो जाती थी और आने वाले इतिहासकार उनकी प्रमाणिकता की जांच करके उसमे सुधार किया करते थे जो एक सही तरीक़ा हुआ करता था | 

आज सोशल मीडिया का दौर है जहाँ हर इंसान आज़ाद है जैसे चाहे वैसे इतिहास बयान करे | वैसे तो इतिहास के विषय में आम आदमी की रूचि बहुत अधिक नहीं रही इसलिए इस पर लिखता भी नहीं था कोई लेकिन आज सोशल मीडिया पे कुछ पैसे कमाने की लालच में लोगों ने इतिहास जैसे गंभीर विषय पे भी बिना प्रमाणिकता या सही जानकारी के लिखना और बोलना शरू कर दिया है जो की एक चांटा का विषय है की लोगों को यह भ्रमित कर सकता है | 

जैसे अभी एक दिन मैं यूट्यूब पे एक स्थापित चैनल का वीडियो देख रहा था किस्मे बतया जा रहा था की जौनपुर के क़िले के गेट के पास एक खम्बा है जिसमे आयतल कुर्सी लिखी है फ़ारसी में जो की सत्य नहीं है और निराधार है क्यों की फ़ारसी कोई ऐसी बोली नहीं जिसे पढ़ा ना जा सके और यह जाना ना जा सके की उसपे क्या लिखा है | चैनल ने मेहनत की आवश्यकता नहीं समझी और बस कुछ धन कमाने के लिए लेख लिख डाला और डॉक्यूमेंट्री बना दी जिसे पूरे विश्व में लोगों ने देखा और एक गलत इतिहास लोगों तक पहुंचा दिया | 

यक़ीनन जौनपुर के इतिहास को सोशल मीडिया पे मनमाने अंदाज़ से पेश करना चिंता का विषय है और मेरी कोशिश रहेगी की इस तरह के भ्रमित करने वाले इतिहास की जगह सत्य और प्रामाणिक तौर पे जौनपुर के इतिहास को पेश किया जाय | 

पिछले दस वर्षों से जौनपुर के इतिहास से शोध करता रहा हूँ और बहुत से लेख लिखे उन्हें दुनिया तक पहुँचाया लेकिन अब इस बात की आवश्यकता महसूस कर रहा हूँ की एक किताब लिखी जाय जौनपुर के सही इतिहास पे जिस से लोगों  भ्रमित करने वाले इतिहास से बचाया जा सके | 

लेखक एस एम्  मासूम 

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