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मित्रता दिवस की हक़ीक़त क्या है |

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आज का दिन विश्व मित्रता दिवस के रूप में मनाया जा रहा है जिसकी शुरुआत १९५८ में हुयी | वैसे दुनिया में अलग अलग देशों में यह मित्रता दिवस अलग अलग तारीखों में भी मनाया जाता रहा है | जैसे ३० जुलाई, २७ अप्रैल , अगस्त का पहला सन्डे, ८ अप्रैल इत्यादि |

मित्रता दिवस का सबसे अधिक प्रचार  ग्रीटिंग कार्ड वाली कंपनियों ने किया जिसमे hallmark कार्ड के संस्थापक  जोयस हॉल का नाम सबसे ऊपर लिया  जाता  है |

इसलिए अहमियत मित्रता दिवस की नहीं बल्कि मित्र की होती है और हमको कुदरत ने सबसे पहला मित्र माता पिता के रूप में दिया जिसके बिना हमारा दुनिया में जी पाना संभव नहीं होता | धयाद दें और सोंचे दुनिया में कितने लोग हैं लेकिन बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो अपने सच्चे मित्र माता और पिता से भी मित्रता निभा नहीं पाते | मित्र बना लेना या पा लेना बहुत अहमियत नहीं रखता लेकिन मित्रता निभा लेना अवश्य अहमियत रखता है |


दोस्ती निभाने के बारे में और दोस्त किसे बनाया जाए इस बारे में लोगों के तजुर्बे के साथ साथ सभी धर्मों ने भी प्रकाश डाला है | जैसे इस्लाम में हज़रात अली (अस.) ने कहा  “दोस्त वह होता है जो ग़ैर मौजूदगी में भी दोस्ती निभाये और जो तुम्हारी परवाह न करे वह तुम्हारा दुश्मन है।   “दोस्त उस वक़्त तक दोस्त नही हो सकता जब तक तीन मौक़ों पर दोस्त के काम न आये, मुसीबत के मौक़े पर, ग़ैर मौजूदगी में और मरने के बाद|
रामचरित मानस की चौपाइयों के  भाव भी कुछ ऐसा कहते हैं कि सत्पुरुष की खोज कर उनसे मित्रता करनी चाहिए, ऐसा करने से व्यक्ति का अनेकों प्रकार से हित ही होता है। उनकी मित्रता से हानि नहीं होती और दुर्जन व्यक्ति के संपर्क में जाने से सभी प्रकार से अहित ही होता है, हित नहीं हो सकता।

संसार रूपी लंका में सज्जन पुरुष को बल बुद्धि के महासागर हनुमानजी ढूंढते रहे कि इस लंका में कोई तो सज्जन पुरुष मिल जाता जिससे प्रभु के कार्य में मुझे सहायता मिलती। जब उन्हें विभीषण की कुटिया दिखती है तो बोल उठे कि लंका निसिचर निकर निवास इहां कहां सज्जन कर बासा।व्यास जी ने कहा कि सज्जन से दृढ़ता से मित्रता करनी चाहिए, इससे सत्ज्ञान की ही प्राप्ति होती है। 



डॉ अरविन्द मिश्रा
जौनपुर निवासी डॉ अरविन्द मिश्रा जी ने मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायों के साथ मित्रता दिवस पे कुछ इस तरह से प्रकाश डाला जिसे आप भी अवश्य पढ़ें |

जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी
निज दुख गिरि सम रज करि जाना। मित्रक दुख रज मेरु समाना

जो लोग मित्र के दुःख से दुःखी नहीं होते, उन्हें देखने से ही बड़ा पाप लगता है। 
अपने पर्वत के समान दुःख को धूल के समान और मित्र के धूल के समान दुःख को सुमेरु (बड़े भारी पर्वत) के समान जाने


जिन्ह कें असि मति सहज न आई। ते सठ कत हठि करत मिताई॥
कुपथ निवारि सुपंथ चलावा। गुन प्रगटै अवगुनन्हि दुरावा॥

जिन्हें स्वभाव से ही ऐसी बुद्धि प्राप्त नहीं है, वे मूर्ख हठ करके क्यों किसी से मित्रता करते हैं?
मित्र का धर्म है कि वह मित्र को बुरे मार्ग से रोककर अच्छे मार्ग पर चलावे। उसके गुण प्रकट करे और अवगुणों को छिपावे|


देत लेत मन संक न धरई। बल अनुमान सदा हित करई॥

बिपति काल कर सतगुन नेहा। श्रुति कह संत मित्र गुन एहा

देने-लेने में मन में शंका न रखे। अपने बल के अनुसार सदा हित ही करता रहे।
विपत्ति के समय तो सदा सौगुना स्नेह करे। वेद कहते हैं कि संत (श्रेष्ठ) मित्र के गुण (लक्षण) ये हैं.


आगें कह मृदु बचन बनाई। पाछें अनहित मन कुटिलाई॥

जाकर ‍िचत अहि गति सम भाई। अस कुमित्र परिहरेहिं भलाई

जो सामने तो बना-बनाकर कोमल वचन कहता है और पीठ-पीछे बुराई करता है तथा मन में कुटिलता रखता है-
हे भाई! (इस तरह) जिसका मन साँप की चाल के समान टेढ़ा है, ऐसे कुमित्र को तो त्यागने में ही भलाई है.



सेवक सठ नृप कृपन कुनारी। कपटी मित्र सूल सम चारी॥
सखा सोच त्यागहु बल मोरें। सब बिधि घटब काज मैं तोरें॥

मूर्ख सेवक, कंजूस राजा, कुलटा स्त्री और कपटी मित्र- ये चारों शूल के समान पीड़ा देने वाले हैं। हे सखा! मेरे बल पर अब तुम चिंता छोड़ दो। मैं सब प्रकार से तुम्हारे काम आऊँगा (तुम्हारी सहायता करूँगा)


इसी प्रकार इस्लाम धर्म के खलीफ़ा  हजरत अली (अ.स ) से किसी ने  पूछा- दोस्त और भाई में क्या फ़र्क है ?
आपने जवाब दिया- भाई सोना है और दोस्त हीरा है !
उस आदमी ने कहा- आपने भाई की कम कीमत और दोस्त की कीमती चीज़ से क्यों तुलना की ?
तो आपने फ़रमाया- सोने में अगर दरार आ जाये तो उसको पिघला कर पहले जैसा बनाया जा सकता है जबकि हीरे में अगर दरार आ जाये तो वो कभी पहले जैसा नहीं बन सकता !

मेरे वतन जौनपुर ने मुझे बहुत से मित्र दिए जिनमे से कुछ ऐसे थे जो निभा नहीं पाए क्यूँ की शक ने उन्हें गुमराह करदिया | कुछ ऐसे थे जिन्होंने मित्रता अपने फायदे के लिए की थी और उनका मकसद हल होते ही वो दूर हो गए ,या मकसद हल ना होने के कारन दूर हो गए | लेकिन अधिक मित्र मुझे ऐसे मिले जिन्हें मित्रता निभाना आता है और उन्हे देख मुझे ऐसा लगता है की मैं किस्मत का धनी हूँ की मुझे मेरे वतन जौनपुर से ही अच्छे मित्र मिले जिन्होंने यह भी साबित कर दिखाया की मित्रता लिंग, रंग धर्म ,भेद में विशवास नहीं रखती |


मित्र दिवस पर सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएं! 

एस एम् मासूम 

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