एक साल में दो बार स्थानांतरण उससे पहले अपनी नौकरी की व्यस्तता के चलते दो वर्ष बाद गाँव जाने का मौका तलाश कर पाई। हमेशा की तरह गाँव की सभी वरिष्ठ व कनिष्ठ महिलाये मुझसे मिलने आई मुझे उनसे मिलना हमेशा अच्छा लगता है। पर इस बार भी मैं उनसे मिलके उदास हूँ क्योंकि उनकी आर्थिक दशा साल दर साल बद से बदतर होती जा रही है।
आम अमरुद और आंवले के बगीचों से घिरा है मेरा छोटा सा गाँव जिला जौनपुर में पड़ता है। मुंगरा बादशाहपुर से जरा आगे बढ़ते ही हमारा गाँव आ जाता है । राष्टीय स्वतंत्रता आंदोलन में पुरे जौनपुर की ही तरह हमारे गाँव ने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था १९४२ के आंदोलन में यहां थाने को फूंक कर साथी कैदियों को छुड़ाने में हमारे ताऊजी भी शामिल थे। प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी पंडित राम शिरोमणि दूबे ताउजी के गहरे मित्र थे। स्वतंत्रता सेनानियों के संस्मरण यहाँ बिखरे पड़े है।
जौनपुर की धरती राम जी की धरती है। आपस में मिलने पर जै राम जी की कहा जाता है। राम के जीवनदर्शन को अंतरमन में समाये संयमित जीवन जीते इन लोगो को जब में देखती हूँ तो मन मैं विचार आता है सारे देश को खाना खिलाने वाले ये किसान खुद अपने लिए दो जून के खाने का इंतजाम क्यों नहीं कर पा रहे है। कर्ज से दबे ये किसान मृतक के समान जीवन क्यों जी रहे है। इन किसानो को शहरों की और पलायन ना सिर्फ इन्हे परम्पराओ से दूर करता है बल्कि शहरों की चकाचौंध में फस कर अनेको प्रकार की बुराईयो और अनेको लाइलाज बीमारियों से जकड जाता है। ये समस्या ना सिर्फ मेरे गाँव की है बल्कि पूरे देश की है। सवाल ये उठता है की इसके लिए सरकार की नीतिया क्या होनी चाहिए जवाब बहुत से हो सकते है परन्तु अब नीतियों और जवाब से काम नहीं चलेगा सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे। कुछ सुझाव मैं दे रही हूँ
१. छोटे किसानो के लिए खेती के समान्तर रोजगार की व्यवस्था होनी चाहिए
२. लघुउद्योगो को प्रोहत्सान वा कच्चे माल के लिए बिना ब्याज के रकम
३. गाँव में कृषि वा कृषि सम्बन्धी उधोगधंधो की स्थापना
ये उपाय और भी हो सकते है इनसे कृषि का विकास तो होगा ही परम्परायें भी जीवित रहेगी और शहरों की तरफ पलायन भी रुकेगा जो शहर के बोझ को कम करेगा कुल मिलाकर सरकार को बहुस्तरीय रोजगार किसानो को उपलब्ध करना ही चाहिए। ऐसा ना हो कि भारत से कृषि का वा कृषक दोनों ही ख़त्म हो इतिहास में समा जाए।