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एक अलग सा क़दम शरीफ मोहल्ला बाग ऐ हाशिम जौनपुर |

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पुराने जौनपुर में पुरानी बाज़ार और नकी  फाटक के बीच एक मोहल्ला पड़ता है मोहल्ला बाग़ ऐ हाशिम | वहाँ बने एक मकबरे ने मेरा ध्यान आकर्षित किया और मैं पहुँच गया देखने की आखिर  यह मकबरा है किसका ?

इतिहास की किताबों में जौनपुर में नौ से बारह  हजरत मुहम्मद (स.अ.व) के क़दम शरीफ का ज़िक्र मिलता है जिसमे से कुछ शाह का पंजा में हैं कुछ हमजापुर ,मुफ़्ती मुहल्लाह ,सिपाह ,सदर इमामबाडा इत्यादि जगहों पे आज भी देखे जा सकते हैं |




मोहल्ला बाग़ ऐ हाशिम के इस पुराने मकबरे के पास जब पहुंचा तो पाया की इस मकबरे के आस पास धुनिया मुसलमान रहते हैं जो आज भी रजाई, तकिया इत्यादि बनाने का काम किया करते हैं | उन्हीमे से एक ने मुझे उस मकबरे का ताला खोल के अंदर से देखने का अवसर दिया |

मकबरे के अंदर एक कब्र बनी है और उस कब्र पे लगा है हजरत मुहम्मद (स.अ.व) का क़दम शरीफ जिसे क़दम ऐ रसूल के नाम से भी जाना जाता है | इतिहास की किताबों में जब तलाशा तो इतना मिला की अकबर बादशाह के दौर में पटना के रहने वाले मोहम्मद हाशिम साहब जब हज को मक्का मदीने गए तो वहाँ से यह क़दम शरीफ ले आये जिसे उन्होंने अपने बड़े बेटे की कब्र पे लगा दिया जो आज मोहल्ला बाग़ ऐ हाशिम में मौजूद है |

यह क़दम शरीफ जौनपुर में पाए जाने वाले क़दम ऐ रसूल से थोडा सा अलग है | अधिकतर जो क़दम ऐ रसूल पाए जाते हैं वो पथ्थर पे पड़े क़दम के  निशान दीखते हैं लेकिन इस  क़दम ऐ रसूल पे उभरे हुए क़दम के निशान हैं जो अन्य क़दम ऐ रसूल में नहीं मिलते | इसलिए यह अलग सा दिखता है |




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