सय्यद मुहम्मद जौनपुरी के बारे मे मशहूर है कि इन्होने खुद को इमाम मेहदी होने का दावा कर दिया था जो इतिहास के आईने मे पुरी तरह सत्य नही है ।
सय्यद मुहम्मद जौनपुरी का जन्म १४४३ इ में जौनपुर के एक मोहल्ले पानदरीबा में हुआ और उनके घर को आज भी मीरघर के नाम से जाना जाता है । आप शेख दानियाल खिजरी के शिष्य थे और ज्ञानी इतने थे की उस समय के उलेमा ने उन्हें आसहुल उलेमा की पदवी से सम्मानित किया । उनके उपदेश सुनने के लिए दूर दूर से बादशाह और ऋषि आते और उनके ज्ञान से लाभान्वित हुआ करते हुआ करते थे ।
सय्यद मुहम्मद जौनपुरी मखदूम दानियाल खिजरी के शिष्य थे । शेख मखदूम दानियाल खिजरी बलख देश के रहने वाले थे और बहुत बड़े ज्ञानी थे । इतिहास कारो ने अनुसार ये हामिद शाह के उत्तराधिकारी भी थे और ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के शागिर्द भी थे जिनका ताल्लुक़ हज़रत उमर की नस्ल से भी बताया जाता है ।
इनका जौनपुर में आगमन हुसैन शाह शार्की ने समय में हुआ और यह महान संत और महा ज्ञानी और चमत्कारी व्यक्ति थे । इन्होने अपनी मृत्यु के पहले ही यह बता दिया था की इनकी मृत्यु १३ रबी उल अवव्ल को होगी और इसकी वसीयत के अनुसार इन्हे इनके उपासना गृह के आँगन में ही दफन किया गया ।
लेखको का कथन है की इनकी मृत्यु के बाद इनकी क़ब्र से वर्षों खुशबू आया करती थी ।
सैयद परिवार के दो लोग सय्यद अहमद और सय्यद मुहम्मद इनके शिष्य हुए और इनके उत्तराधिकारी बने ।
इतिहासकारो के अनुसार आपकी समाधि इमामबाड़ा हकीम बाक़र ,पान दरीबा के क़रीब मौजूद है लेकिन जब मैंने उसे तलाशना चाहा तो मुझे वहाँ पे क़ब्रिस्तान तो मिला जहाँ कुछ क़ब्रें मौजूद हैं जिसे पे मशहूर सूफी शेख उस्मान शीराज़ी का नाम लिखा है और उसके पास एक और क़ब्र है जिसे यह कहाँ जा सकता है की शेख मखदूम दानियाल खिजरी के शागिर्दों सय्यद अहमद और उस्मान शिराजी की क़ब्रें है ।
मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी के पिता उस्मान शीराज़ी थे जो एक मशहूर ज्ञानी थे और उन्ही की शान में खालिस मुख्लिस मस्जिद बनवायी गयी जो आज पानदरीबा में स्थित है ।
मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी एक दिन मक्का की तरफ हज करने गए तो वहीँ के हो के रह गए और सन १४६५ में जब इनकी उम्र ५२ की हुयी तो इनहोने मक्का में महदवी वर्ग की घोषणा कर दी । बहुत विरोध के बावजूद इनके चाहने वालो की तादात बढ़ती है और इनहोने गुजरात को अपना केंद्र बनाया ।
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का कहना है की ।
सत्य प्रेम और हृदय की परिपक्वता के कारण मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी ने थोड़े ही समय में बहुत से मुरीद बना लिए और यहां तक की बादशाहों को भी बना लिया । मौलाना का मानना था की इनका महदवी समूह सत्य पे आधारित था । मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी और उनके सहयोगी ईश्वर भक्त और सदा जीवन व्यतीत किया करते थे ।
जब इनकी मृत्यु के बाद गुजरात महदियत का गढ़ हुआ और मिया के मुस्तफा ने इस समूह को आगे बढ़ाया और जब इसकी खबर बादशाह अकबर को १५७३ में मिली तो उसने मियाँ मुस्तफा को बुलवा भेजा इस ख्याल से की इनकी गर्दै उड़वा दी जाएगी लेकिन जब मिया मुसतफ़ा से बात हुयी तो वो इनका मुरीद हो गया ।
सय्यद मुहम्मद जौनपुरी की विचारधारा यह थी की जो भी गुण हज़रत मुहम्मद में थे वो प्रत्यछ रूप से इश्वेर की दें थे और वही सभी गुण सय्यद मोहम्मद जौनपुरी में भी हैं लेकिन हज़रत मुहम्मद के अनुसरण के कारन है । इनकी इस विचारधारा के कारण लोगो को ऐसा लगा की इन्होने इमाम मेहदी होने का दावा कर दिया है जिनमे मतभेद है ।
शेख अली मुनतक़ी जो उनके विरोधी थे उन्होंने भी इस बात को स्वीकार किया की मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी ने खुद को इमाम मेहदी कभी घोषित नहीं किया बल्कि यह कहते थे की वो इमाम महदी का अनुसरण करने वाले हैं और उनके जैसे ही हो गए है ।
उन मानने वालो ने इसे गलत समझा और यह मान लिया की मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी इमाम महदी होने का दावा कर दिया है ।
आपका देहांत १४६९ इ में या १५०४ इ में फराह में हुआ जहां आज भी वो दफन है । जौनपुर के उनके घर पानदरीबा मीर घर और उसके पास मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी के पिता की क़ब्र पे आज भी मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी के चाहने वाले गुजरात से आया करते है ।
सय्यद मुहम्मद जौनपुरी का जन्म १४४३ इ में जौनपुर के एक मोहल्ले पानदरीबा में हुआ और उनके घर को आज भी मीरघर के नाम से जाना जाता है । आप शेख दानियाल खिजरी के शिष्य थे और ज्ञानी इतने थे की उस समय के उलेमा ने उन्हें आसहुल उलेमा की पदवी से सम्मानित किया । उनके उपदेश सुनने के लिए दूर दूर से बादशाह और ऋषि आते और उनके ज्ञान से लाभान्वित हुआ करते हुआ करते थे ।
मखदूम दानियाल खिजरी |
इनका जौनपुर में आगमन हुसैन शाह शार्की ने समय में हुआ और यह महान संत और महा ज्ञानी और चमत्कारी व्यक्ति थे । इन्होने अपनी मृत्यु के पहले ही यह बता दिया था की इनकी मृत्यु १३ रबी उल अवव्ल को होगी और इसकी वसीयत के अनुसार इन्हे इनके उपासना गृह के आँगन में ही दफन किया गया ।
लेखको का कथन है की इनकी मृत्यु के बाद इनकी क़ब्र से वर्षों खुशबू आया करती थी ।
मखदूम दानियाल खिजरी |
इतिहासकारो के अनुसार आपकी समाधि इमामबाड़ा हकीम बाक़र ,पान दरीबा के क़रीब मौजूद है लेकिन जब मैंने उसे तलाशना चाहा तो मुझे वहाँ पे क़ब्रिस्तान तो मिला जहाँ कुछ क़ब्रें मौजूद हैं जिसे पे मशहूर सूफी शेख उस्मान शीराज़ी का नाम लिखा है और उसके पास एक और क़ब्र है जिसे यह कहाँ जा सकता है की शेख मखदूम दानियाल खिजरी के शागिर्दों सय्यद अहमद और उस्मान शिराजी की क़ब्रें है ।
उस्मान शीराज़ी जो मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी के पिता थे । |
मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी के पिता उस्मान शीराज़ी थे जो एक मशहूर ज्ञानी थे और उन्ही की शान में खालिस मुख्लिस मस्जिद बनवायी गयी जो आज पानदरीबा में स्थित है ।
मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी एक दिन मक्का की तरफ हज करने गए तो वहीँ के हो के रह गए और सन १४६५ में जब इनकी उम्र ५२ की हुयी तो इनहोने मक्का में महदवी वर्ग की घोषणा कर दी । बहुत विरोध के बावजूद इनके चाहने वालो की तादात बढ़ती है और इनहोने गुजरात को अपना केंद्र बनाया ।
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का कहना है की ।
सत्य प्रेम और हृदय की परिपक्वता के कारण मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी ने थोड़े ही समय में बहुत से मुरीद बना लिए और यहां तक की बादशाहों को भी बना लिया । मौलाना का मानना था की इनका महदवी समूह सत्य पे आधारित था । मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी और उनके सहयोगी ईश्वर भक्त और सदा जीवन व्यतीत किया करते थे ।
जब इनकी मृत्यु के बाद गुजरात महदियत का गढ़ हुआ और मिया के मुस्तफा ने इस समूह को आगे बढ़ाया और जब इसकी खबर बादशाह अकबर को १५७३ में मिली तो उसने मियाँ मुस्तफा को बुलवा भेजा इस ख्याल से की इनकी गर्दै उड़वा दी जाएगी लेकिन जब मिया मुसतफ़ा से बात हुयी तो वो इनका मुरीद हो गया ।
सय्यद मुहम्मद जौनपुरी की विचारधारा यह थी की जो भी गुण हज़रत मुहम्मद में थे वो प्रत्यछ रूप से इश्वेर की दें थे और वही सभी गुण सय्यद मोहम्मद जौनपुरी में भी हैं लेकिन हज़रत मुहम्मद के अनुसरण के कारन है । इनकी इस विचारधारा के कारण लोगो को ऐसा लगा की इन्होने इमाम मेहदी होने का दावा कर दिया है जिनमे मतभेद है ।
शेख अली मुनतक़ी जो उनके विरोधी थे उन्होंने भी इस बात को स्वीकार किया की मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी ने खुद को इमाम मेहदी कभी घोषित नहीं किया बल्कि यह कहते थे की वो इमाम महदी का अनुसरण करने वाले हैं और उनके जैसे ही हो गए है ।
उन मानने वालो ने इसे गलत समझा और यह मान लिया की मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी इमाम महदी होने का दावा कर दिया है ।
आपका देहांत १४६९ इ में या १५०४ इ में फराह में हुआ जहां आज भी वो दफन है । जौनपुर के उनके घर पानदरीबा मीर घर और उसके पास मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी के पिता की क़ब्र पे आज भी मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी के चाहने वाले गुजरात से आया करते है ।