महर्षि यमदग्नि की तपोस्थली व शर्की सल्तनत की एक शतक तक राजधानी रहने वाला प्राचीनकाल से शैक्षिक व ऐतिहासिक दृष्टि से समृद्धिशाली शिराजे हिन्द जौनपुर आज भी अपने ऐतिहासिक एवं नक्काशीदार इमारतों के कारण न केवल प्रदेश में बल्कि पूरे भारत वर्ष मेंअपना एक अलग वजूद रखता है। नगर में आज भी कई ऐसी महत्वपूर्णऐतिहासिक इमारतें है जो इस बात का पुख्ता सबूत प्रस्तुत करती है कि यह नगर आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व एक पूर्ण सुसज्जित नगर रहा होगा। शासन की नजरे यदि इनायत हो और इसे पर्यटक स्थल घोषित कर दिया जाय तो स्वर्ग होने के साथ बड़े पैमाने परदेशी-विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने का माद्दा इस शहर में आज भी है। नगर के ऐतिहासिक स्थलों मेंप्रमुख रूप से अटाला मस्जिद, शाहीकिला, शाही पुल, झंझरी मस्जिद, बड़ी मस्जिद, चार अंगुली मस्जिद, लाल दरवाजा, शीतला धाम चौकिया, महर्षि यमदग्नि तपोस्थल, जयचन्द्रके किले का भग्नावशेष आदि आज भी अपने ऐतिहासिक स्वरूप एवं सुन्दरता के साथ मौजूद है। इसकेअलावा चार दर्जन से अधिक ऐतिहासिक इमारते यहां मौजूद है जिनमें से कुछ रखरखाव के अभाव में जर्जर हो गये है।
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Atala Masjid Jaunpur |
कभी-कभी विदेशी पर्यटक यहां आकर ऐतिहासिक स्थलों का निरीक्षण कर यहां की संस्कृति की सराहना करने से नहीं चूकते लेकिन दूसरी तरफ शासन द्वारा पर्यटकों की सुविधा के मद्देनजर किसी भी प्रकार की स्तरीय व्यवस्था न किये जाने से उन्हे काफी परेशानी भी होती है।
हालांकि जनपद को पर्यटक स्थल के रूप में घोषित कराने का प्रजो भी प्रयास आज तक जो भी प्रयास किया गया वो नाकाफी रहा है|
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Mahal Raja Jaunpur |
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Maqbara Goolar Ghat |
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Shahi Pull Jaunpur |
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Jhanjhri Masjid |
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Shahi Fort |
प्राचीन काल के जो भवन इस समय उत्तर भारत में विद्यमान है उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं प्राचीन अटाला मस्जिद शर्की शासनकाल के सुनहले इतिहास का आईना है। इसकी शानदार मिस्र के मंदिरों जैसी अत्यधिक भव्य मेहराबें तो देखने वालों के दिल को छू लेती है। इसका निर्माण सन् 1408 ई. में इब्राहिम शाह शर्की ने कराया था। सौ फिट से अधिक ऊंची यह मस्जिद हिन्दू-मुस्लिम मिश्रित शैली द्वारा निर्मित की गयी है जो विशिष्ट जौनपुरी निर्माण शैली का आदि प्रारूप और शर्कीकालीन वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। शर्कीकाल के इस अप्रतिम उदाहरण को यदि जौनपुर में अवस्थित मस्जिदों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व खूबसूरत कहा जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
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Lal Darwaza Masjid |
इसी प्रकार जनपद की प्रमुख ऐतिहासिक इमारतों में से एक नगर में आदि गंगा गोमती के उत्तरावर्ती क्षेत्र में शाहगंज मार्ग पर अवस्थित बड़ीमस्जिद जो जामा मस्जिद के नाम से भी जानी जाती है, वह शर्की कालीन प्रमुख उपलब्धि के रूप में शुमार की जाती है। जिसकी ऊंचाई दो सौ फिट से भी ज्यादा बताई जाती है। इस मस्जिद की बुनियाद इब्राहिम शाह के जमाने में सन् 1438 ई. में उन्हीं के बनाये नक्शे के मुताबिक डाली गयी थी जो इस समय कतिपय कारणों से पूर्ण नहीं हो सकी। बाधाओं के बावजूद विभिन्न कालों और विभिन्न चरणों में इसका निर्माण कार्य चलता रहा तथा हुसेन शाह के शासनकाल में यह पूर्ण रूप से सन् 1478 में बनकर तैयार हो गया। इन ऐतिहासिक इमारतों के अनुरक्षण के साथ ही साथ बदलते समय के अनुसार आधुनिक सुविधा मुहैया कराकर इन्हे आकर्षक पर्यटक स्थल के रूप मेंतब्दील किया जा सकता है।
नगर के बीचोबीच गोमती नदी के पूर्वी तट पर स्थित उत्थान-पतन का मूक गवाह 'शाही किला'आज भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुखकेन्द्र बिन्दु बना हुआ है। इस ऐतिहासिक किले का पुनर्निर्माण सन् 1362 ई. में फिरोजशाह तुगलक ने कराया। दिल्ली व बंगाल के मध्यस्थित होने के कारण यह किला प्रशासन संचालन की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण था। इस शाही पड़ाव पर सैनिक आते-जाते समय रुकते थे।किले के मुख्य द्वार का निर्माण सन् 1567 ई. में सम्राट अकबर ने कराया था। राजभरों, तुगलक, शर्की, मुगलकाल व अंग्रेजों के शासनकालके उत्थान पतन का मूक गवाह यह शाही किला वर्तमान में भारतीय पुरातत्व विभाग की देखरेख में है। इस किले के अन्दर की सुरंग का रहस्य वर्तमान समय में बन्द होने के बावजूद बरकरार है। शाही किले को देखने प्रतिवर्ष हजारों पर्यटक आते रहते है।
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Pancho Shivala, Pandaraiba, Jaunpur |
महाभारत काल में वर्णित महर्षि यमदग्नि की तपोस्थली जमैथा ग्राम जहां परशुराम ने धर्नुविद्या का प्रशिक्षण लिया था। गोमती नदी तट परस्थित वह स्थल आज भी क्षेत्रवासियों के आस्था का केन्द्र बिन्दु बना हुआ है। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि उक्त स्थल के समुचितविकास को कौन कहे वहां तक आने-जाने की सुगम व्यवस्था आज तक नहीं की जा सकी है। झंझरी मस्जिद, चार अंगुली मस्जिद जैसी तमाम ऐतिहासिक अद्वितीय इमारतें है जो अतीत में अपना परचम फहराने में सफल रहीं परन्तु वर्तमान में इतिहास में रुचि रखने वालों केजिज्ञासा का कारण होते हुए भी शासन द्वारा उपेक्षित है।
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Char ungli Masjid |
मार्कण्डेय पुराण में उल्लिखित 'शीतले तु जगन्माता, शीतले तु जगत्पिता, शीतले तु जगद्धात्री-शीतलाय नमो नम:'से शीतला देवी की ऐतिहासिकता का पता चलता है। जो स्थानीय व दूरदराज क्षेत्रों से प्रतिवर्ष आने वाले हजारों श्रद्घालु पर्यटकों के अटूट आस्था व विश्वास काकेन्द्र बिन्दु बना हुआ है। नवरात्र में तो यहां की भीड़ व गिनती का अनुमान ही नहीं लगाया जा सकता है।
शिराज-ए-हिन्द जौनपुर की आन-बान-शान में चार चांद लगाने वाला मध्यकालीन अभियंत्रण कला का उत्कृष्ट नमूना 'शाही पुल'पिछली कई सदियों से स्थानीय व दूरदराज क्षेत्रों के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। भारत वर्ष के ऐतिहासिक निर्माण कार्यो में अपना अलग रुतबा रखने वाला यह पुल अपने आप में अद्वितीय है। वही खुद पयर्टकों का मानना है कि दुनिया में कोई दूसरा सड़क के समानान्तरऐसा पुल देखने को नहीं मिलेगा।
शहर को उत्तरी व दक्षिणी दो भागों में बांटने वाले इस पुल का निर्माण मध्यकाल में मुगल सम्राट अकबर के आदेशानुसार मुनइम खानखानाने सन् 1564 ई. में आरम्भ कराया था जो 4 वर्ष बाद सन् 1568 ई. में बनकर तैयार हुआ। सम्पूर्ण शाही पुल 654 फिट लम्बा तथा 26 फिटचौड़ा है, जिसमें 15 मेहराबें है, जिनके संधिस्थल पर गुमटियां निर्मित है। बारावफात, दुर्गापूजा व दशहरा आदि अवसरों पर सजी-धजीगुमटियों वाले इस सम्पूर्ण शाही पुल की अनुपम छटा देखते ही बनती है।
इस ऐतिहासिक पुल में वैज्ञानिक कला का समावेश किया गया है। स्नानागृह से आसन्न दूसरे ताखे के वृत्त पर दो मछलियां बनी हुई है। यदिइन मछलियों को दाहिने से अवलोकन किया जाय तो बायीं ओर की मछली सेहरेदार कुछ सफेदी लिये हुए दृष्टिगोचर होती है किन्तु दाहिनेतरफ की बिल्कुल सपाट और हलकी गुलाबी रंग की दिखाई पड़ती है। यदि इन मछलियों को बायीं ओर से देखा जाय तो दाहिने ओर की मछली सेहरेदार तथा बाई ओर की सपाट दिखाई पड़ती है। इस पुल की महत्वपूर्ण वैज्ञानिक कला की यह विशेषता अत्यन्त दुर्लभ है।