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विद्यापति की कीर्तिलता में पुराने जौनपुर के रमणीक दृश्यों का वर्णन|

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विद्यापति का कीर्तिलता में जौनपुर कर रमणीक दृश्यों का वर्णन एक बार अवश्य पढ़ें ।चौदहवीं शताब्दी के जौनपुर को विद्यापति कुछ इस प्रकार देखते है ।


 "जूनापुर नामक यह नगर आँखों का प्यारा तथा धन दौलत का भण्डार था । देखने में सुन्दर तथा प्रत्येक दृष्टिकोण से सुसज्जित था । कुओं और तालाबों का बाहुल्य था । पथ्थरों का फर्श ,पानी निकलने की भीतरी नालिया ,कृषि , फल  फूल और पत्तों से हरी भरी लहलहाती हुयी आम और जामुन के पेड़ों की अवलियाँ ,भौंरो की गूँज मन को मोह लेती थीं । 

गगनचुम्बी और मज़बूत भवन थे । रास्ते में ऐसी ऐसी गालियां थीं की बड़े बड़े लोग रुक जाते थे । चमकदार लम्बे लम्बे स्वर्ण कलश मूर्तियों से सुसज्जित सैकड़ो शिवाले दिखते थे । कँवल के पत्तों जैसे बड़ी बड़ी आँखों वाली स्त्रियां जिन्हे पवन स्पर्श कर रहा था मौजूद थी ,जिनके लम्बे केश उत्तरी ध्रुव से बातें कर रहे थे । उनके नेत्रों में लगा हुआ काजल ऐसा दीख पड़ता था मानो चन्द्रमा के अंदर एक दाग़ है ।


पान का बाजार ,नान बाई की दूकान ,मछली बाजार ,और व्यवसाय में व्यस्त लोग ऐसा लगता था हर समय एक जान समूह उमड़ा रहता था । "……।  कीर्तिलता 

इस नगर की आबादी बहुत घनी थी । लाखों घोड़े और सहस्त्रो हाथी हर समाज मजूद रहते थे । दोनों ओर सोने ,चांदी की दुकाने थी । उस समय सम्पूर्ण आबादी सिपाह, चचकपुर ,पुरानी बाजार ,लाल दरवाज़ा,  पान दरीबा,
तथा प्रेमराज पूर आदि मुहल्लों में सिमटी हुयी थॆ। व्यावसायी लोग जौनपुर की ख्याति और इब्राहिम शाह के स्वागत से इतने अधिक प्रभावित  थे की अपना सामान यहां बेचने आया करते थे ।



अटाला मस्जिद से क़िला होते हुए सिपाह तक सेनाएं रहती थी । अटाला मस्जिद के क़रीब ढाल तथा तलवारें बनती थी जो दुनिया भर में प्रसिद्ध थी । इसी लिए यह मोहल्ला ढालघर टोले के नाम से प्रसिद्ध हो गया ।

कीर्तिलता में विद्यापति  ने बाजार और खरीददारी का वर्णन भी इस प्रकार   किया है ।

"दोपहर की भीड़ को देख कर यही ज्ञात होता था की यहां सम्पूर्ण दुनिया की वस्तुएं यहां बिकने के लिए आ गयीं हैं । मनुष्यों का सर परस्पर टकराता था और एक का तिलक छूट दुसरे के  लग जाता था । रास्ता चलने में महिलाओं की चूड़ियाँ टूट जाती थीं ।लोगों की भीड़   देख ऐसा आभास होता था जैसे समुन्दर उमड़  पड़ा हो । बेचने वाले जो  भी सामान लाते सेकंडो में बिक जाता था । 
ब्राह्मण , कायस्थ , राजपूत, तथा अन्य बहुत सी जातियां ठसा ठस भरी रहती और सभी सज्जन और धनी  थे । 

इब्राहिम शाह अपने महल के ऊपरी भाग में रहता था ।अपने घर आये हुए अथितियों के देख प्रसन्न होता था । "……।  कीर्तिलता


इसी  प्रकार बहुत  से बाजार थे । शाही महल, खास हौज़, के समीप अमीरो के विराट गगन चुम्बी भवन थे । उस काल में सभी प्रसन्न और संपन्न थे । इब्राहिम शाह के समय में यह सब देख के लोग सुख का आभास करते थे । जौनपुर में प्रत्येक स्थान  पे लोगो के ठहरने और खाने का इंतज़ाम था ।

 कीर्तिलता में विद्यापति इब्राहिम शाह की सेना का सुंदर चित्रण किया है । 

"सेना की संख्या कौन जाने । सैनिक पृथ्वी पे इस तरह बिखरे हुए थे जैसे कमल का फूल तालाब में बिखरा हुआ हो । सारांश ये की बादशाही फ़ौज ने प्रस्थान का नक्कारा बजा दिया । सुलतान इब्राहिम शाह की सेना बादशाह के साथ रवाना हुयी । भय के कारण पर्वत अपना स्थान छोड़ने लगे ,पृथ्वी में कम्पन होने लगा ,सूर्या धुल कणो  में चुप गया । प्रत्येक ओर से युद्ध के नगाड़े बजने लगे ,ऐसा लगता था मानो प्रलय आ गयी हो । सेना ने पैदल चल के नदी का पानी सुखा दितथा या । "……।  कीर्तिलता 

 शार्की सेना में   ब्राहम्मण और राजपूत बहुत थे और बादशाह के न्याय से सभी प्रसन्न थे । 

शार्की बादशाह ने संगीत का भी संरछण किया । उनका दरबार कवियों और कलाकारों से सदैव भरा रहता था । हुसैन शाह के समय में जौनपुर संगीत का केंद्र बन गया जिसका नायक स्वम बादशाह था । हुसैन शाह ने अनेक राग तथा ख्याल का आविष्कार किया । शर्क़ी काल में काव्य साहित्य ,संगीत तथा सुलेख कला में जौनपुर का अपना एक महत्व था । 

शाजहाँ इसे बड़े गौरव से शीराज़ ऐ हिन्द कहा करता था लेकिन आज इस जौनपुर का प्राचीन वैभव बिलकुल नष्ट को के रह गया है । इसमें कोई संदेह नहीं की जौनपुर अपने विद्या भंडारों को, अपनी धरोहरो को बचाने में नाकाम  रहा है । आज  आवश्यकता है इस  धरोहरों को संरछित करनी की और इसे प्रयटको के आने योग्य   बनाने की  । 

लेखक और  सर्वाधिकार सुरछित ---एस .एम मासूम


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