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जौनपुर आस पास में आशूरा के दिन शिया सुन्नी ने ऐसे नजराना ऐ अकीदत पेश की |

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शब् ऐ  आशूर जौनपुर  ज़िले के कलापुर गाँव में शोहदाए कर्बला के शैदाइयों ने हजरते इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की शहादत वाली रात पूरी शिद्दत से मनाई।
रात भर इबादत और दुआ में गुजारी। वही दूसरी तरफ अंगारे के मातम के दौरान कलापुर के ही निवासी उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के चेयरमैन पूर्व एम् एल सी सिराज मेहदी ने  तबल बजा कर पूरा माहौल ग़मगीन कर दिया । जिसके बाद दहकते अंगारे का मातम किया। इमामबाड़ों में मजलिसें हुईं ।


श्री सिराज मेहदी ने बताया कि नौंवी मोहर्रम की रात ही मैदाने कर्बला (इराक) में हक की हिफाजत के लिए इमाम हुसैन और उनके साथियों ने तत्कालीन बादशाह यजीद की फौज से मोर्चा लिया था। 10 मोहर्रम को इमाम हुसैन कर्बला के तपते हुए जंगल में शहीद हुए । इसी अज़ीम शहादत की याद में आज लोग इमाम हुसैन के परिजनों को पुरसा दे रहे है ।
कुन्टलो लकड़ी से तैयार हुए दहकते अंगारे पर कलापुर गांव में आग का मातम हुआ। जिसके बाद लोगो ने गांव के सभी इमाम बरगाहो में जाकर ज़ियारत की । कई स्थानों पर चाय आदि के लंगर हुए।

 आज रोज़े आशुरा है,आज ही के दिन कर्बला के मैदान में  हज़रत इमाम हुसैन व उनके 72 साथियों ने हक व मानवता की रक्षा के लिए आपना सर कटा दिया था ,पर ,यजीदी हुकूमत के आगे सर नहीं झुकाया,उन्ही की याद में जौनपुर में आज़दारो ने पूरी रात नौहा मातम करने के बाद जुलूस निकाल  कर ताजीयो को नगर के बेगमगंज स्थित सदर इमामबाड़ा कि कर्बला में  ले जा कर सुपुर्दे खाक कर नजराने अकीदत पेश किया ,हर तरफ बस या हुसैन या हुसैन की सदा सुनायी दे रही थी
vo 1-  हाथो में अलम लिए हुवे ये अज़ादार आज उस मजलूम इमाम हुसैन का गम मानाने के लिए निकले है जिन्हें 1400 साल पहले यज़ीदी हुकूमत ने तीन दिन का भूखा प्यासा शहीद कर दिया था यहाँ तक की 6 माह के बच्चे अली असगर को भी ज़लीमो ने प्यासा ही शहीद कर दिया था ,अज़ादार या हुसैन या हुसैन की सदा लगते हुवे ताजियों को कंधो व सर पर रख कर सदर इमामबाड़े ले गए जहा पूरी अकीदत के साथ सुपुर्दे खाक केर दिया गया ,बच्चे हो या फिर महिलाये सभी इमाम हुसैन के गम में डूबे नज़र आए यहाँ लोग ज़ंजीर व छुरियो से मातम कर अपना लहू बहा रहे थे ,हिन्दू अज़ादार भी यहाँ मोजूद थे

अहले सुन्नत वाल जमात ने आशूरा कुछ ऐसे मनाया |

अंजुमन फैजान ऐ इस्लाम कलीचाबाद के सौजन्य से जामा मस्जिद कलीचाबाद में हजरत हुसैन रजी ० के शहदात के दिन के अवसर पे एक अजीमुशान जलसे का आयोजन किया गया जिसमे हजरत मौलाना वसीम अहमद शेरवानी लाल दरवाज़ा जौनपुर ने कर्बला के शहीदों और हुसैन रजी ० की शहादत पे रौशनी डाली और कैसे हुसैन रजी ० ने अपनी जान दे के नमाज़ को बचाया |

आरिफ पेश इमाम मस्जिद बलुवाघाट  ,और  हजरत मौलाना कासमी हरदोई ने तक़रीर पेश की और शोरा  इकराम ने  हुसैन रजी ० की शान में कलाम पेश किये |
कारी जिया साहब से बेहतरीन अंदाज़ में अपने कलाम हुसैन रजी ० की शान पे पेश किये |


कड़ी सुरक्षा के बीच निकला खेता  सराय में यौम-ए-आशूरा का  जुलूस,,,सुरेश कुमार 

खेतासराय (जौनपुर) 12 अक्टूबर      कस्बा में मोहर्म की दसवीं को सुन्नी समुदाय द्वारा ताजिये के साथ यौम-ए-आशूरा का जुलूस निकाला गया।जिसमें एक दर्जन ताजियेदार शामिल रहे।देर शाम ताजिये को कर्बला में दफन किया गया।


दोपहर में विभिन्न चौक से ताजियेदार ताजिये के साथ तबल बजाते फातिमान गेट पर पहुंचे।जहां फातिहा पढ़ने के बाद जूलुस एक साथ कर्बला के लिये प्रस्थान किया।जुलूस में शामिल अखाड़ा रौनके इस्लाम और अखाड़ा भुलई शाह के फनकार करतब दिखाते चल रहे थे।देर शाम जुलूस कर्बला पहुंचा।ताजियों को ठंडा करने के बाद ताजियेदार अपने चौक पर वापस गये।जिसमें पूरब मोहल्ला, सराय, कासिमपुर, बरतल, बारा,निराला चौक,अजानशहीद, डोभी कासिमपुर, शाहापुर आदि चौक के ताजियेदार शामिल रहे।जुलूस खत्म होने तक एडीएम उमाकांत त्रिपाठी, एएसपी सिटी रामजी सिंह यादव, एसडीएम रामसकल मौर्य, सीओ महेन्द्र सिंह देव भारी पुलिस बल के साथ मौजूद रहे।जुलूस में पूर्व चेयरमैन वसीम अहमद, मो.असलम खान, मजहरुल इस्लाम, शमीम अहमद, तबरेज, शकील आतिश , इंतज़ार आतिश,  मोहम्मद रज़ा, अलीमुद्दीन, सेराज, गयास अहमद आदि रहे।






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जौनपुर में विसर्जित की गयीं आदि शक्ति की प्रतिमाएं |

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  जौनपुर। जय माता दी की जयघोष के साथ भक्तों ने आदिशक्ति मां जगतजननी की प्रतिमाओं को विसर्जित कर दिया। इस दौरान जहां भक्तों ने अबीर-गुलाल उड़ाकर ढोल, ताशा, नगाड़े पर नृत्य किया, वहीं पूरे रास्ते भर भर लोग मकानों से माता रानी पर पुष्पवर्षा किये। इसके पहले श्री दुर्गा पूजा महासमिति के नेतृत्व में अहियापुर मोड़ पर खड़ी शोभायात्रा का शुभारम्भ जिलाधिकारी भानु चन्द्र गोस्वामी व आरक्षी अधीक्षक अतुल सक्सेना ने किया। इस दौरान अधिकारियों ने माता रानी की आरती उतारी एवं नारियल फोड़कर विधि-विधान से पूजा की। यहां से निकली शोभायात्रा के लिये तमाम स्वयंसेवी संगठनों द्वारा जगह-जगह स्टाल लगाकर हलुआ, चना, बताशा, काफी, चाय, पानी सहित चिकित्सा की समुचित व्यवस्था की गयी थी। कोतवाली चैराहे पर बने नियंत्रण कक्ष से पूरे मेले का संचालन सुशील वर्मा एडवोकेट कर रहे थे। नगर के प्रमुख मार्गों से होते हुये शोभायात्रा नखास स्थित विसर्जन घाट पहुंची जहां गोमती नदी के बगल में बनाये गये शक्ति कुण्ड में एक-एक करके सभी प्रतिमाएं विसर्जित की गयीं। जनपद ही नहीं, बल्कि पूर्वांचल के इस ऐतिहासिक पर्व को सम्पन्न कराने में जहां श्री दुर्गा पूजा महासमिति की भूमिका सराहनीय रही, वहीं सुरक्षा व्यवस्था की दृष्टिकोण से प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी भारी लाव-लश्कर के साथ मौजूद रहे जबकि स्वयं जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक मेले का चक्रमण करते नजर आये। कार्यक्रम को सम्पन्न कराने में महासमिति के संरक्षक सूर्य प्रकाश जायसवाल, विनोद जायसवाल, इन्द्रभान सिंह, शोभनाथ आर्य, विंध्याचल सिंह, श्रीकांत माहेश्वरी, पूर्व अध्यक्ष निखिलेश सिंह, महासचिव मनीषदेव, चन्द्र प्रताप सोनी, महेन्द्रदेव विक्रम, अनिल साहू, राजदेव यादव, मोती लाल यादव, विजय सिंह बागी, पुनीत पंकज, आनन्द अग्रहरि, लालचन्द्र निषाद, महेश जायसवाल, दीपक जायसवाल, मनीष गुप्ता, धीरज जायसवाल, निशाकांत द्विवेदी, विजय गुप्ता, राजन अग्रहरि, विष्णु गुप्ता सहित अन्य का सहयोग सराहनीय रहा। अन्त में अध्यक्ष शशांक सिंह रानू ने समस्त सहयोगियों के प्रति आभार व्यक्त किया। सुरक्षा व व्यवस्था की दृष्टिकोण से अपर आरक्षी अधीक्षक नगर रामजी सिंह यादव, क्षेत्राधिकारी नगर अमित राय, नगर मजिस्टेªट रत्नाकर मिश्र, उपजिलाधिकारी सदर आरके पटेल, नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी संजय शुक्ल सहित अन्य उपस्थित रहे। विसर्जन घाट के प्रभारी बनाये गये थानाध्यक्ष जलालपुर विजय गुप्ता के नेतृत्व में उपनिरीक्षक विनोद यादव, सरायपोख्ता चौकी प्रभारी हरि प्रकाश यादव सहित तमाम आरक्षी लगाये गये थे।

खेतासराय (जौनपुर)  12 अक्टूबर   मानीकला में मंगलवार की रात दुर्गा मूर्ति विसर्जन के दौरान पानी में शीशा धंसने से दो दर्जन से अधिक युवक घायल हो गये। तालाब की सफाई न होने से मूर्ति विसर्जन करने गये युवक आक्रोशित हो गये। पुलिस व प्रधान के समझाने बुझाने के बाद लोग शांत हुए।मानीकला में दस स्थानों पर स्थापित की गयी दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन रात्रि आठ बजे एक साथ की जा रही थी। दुर्गा प्रतिमाओं के साथ सैकड़ों युवक जयकारा लगाते और नाचते गाते गांव के पूरब पक्का पोखरे पर पहुंचे।मूर्ति विसर्जन के लिये युवक जब पानी में उतरे तो उनके पैरों में शीशे के टुकड़े धंस गये।जिससे रंजन, सुबास चन्द्र, किशन, सुन्दर, मुकेश, राजा जायसवाल, सुशील, सिकन्दर, सचिन बिन्द, प्रदीप, कल्लू समेत दो दर्जन से अधिक युवक घायल हो गये।युवकों ने पानी के अन्दर सफाई की।सफाई के दौरान भारी मात्रा में टूटी बोतलें व उसके टुकड़े पोखरे से निकले।



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कौन कहता है जौनपुर में बिजली नहीं आती ?

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जौनपुर में बिजली आपूर्ति सही तरीके से ना होना यहां की तरक़्क़ी में एक बड़ी रुकावट है। आज कल तो त्योहारों के दिन है और बिजली व्यवस्था काफी हद तक दुरुस्त है। कभी कभी तो दिन में भी स्ट्रीट लाइट जलते हुए देखी जा सकती है।
अगर ऐसी ही बिजली की आपूर्ति होती रहे तो जौनपुर की तरक़्क़ी को कोई नहीं रोक सकता।

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जौनपुर का पिलखिनी गाँव शिक्षा के क्षेत्र बना एक मिसाल |

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जौनपुर  शिक्षा के क्षेत्र में शर्की शासनकाल से ही अग्रणी रहा है और आज भी आप यहाँ के पिलखिनी गांव में इस बात को महसूस कर सकते हैं ।  यहां के करीब दो किलोमीटर दूरी के परिधि वाले पिलखिनी गांव में प्राथमिक विद्यालय से लेकर डिग्री कालेज तक के 18 शिक्षण संस्थाए स्थापित। यह गांव जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और मेन रोड से तीन किलोमीटर अंदर है। यहां पर जहां नन्हे मुन्ने बच्चो को ककहरा सिखाया जाता है वही शिक्षक बनने की टेªनिगं भी दी जाती है। दूसरी तरफ युवाओ को रोजगार परख शिक्षा भी दी रही है।

 जौनपुर जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित पिलखिनी गांव इन दिनों एजुकेशन का हब बन गया है। इस गांव में चार प्राथमिक विद्यालय, 3 जूनियर हाईस्कूल, दो डिग्री कालेज, 3 बीटीसी प्रशिक्षण संस्थान, दो बीएड कालेज, दो आईटीआई कालेज, और एक कान्वेंट स्कूल स्थापित है। इन विद्यालय में हजारो छात्र-छात्राएं शिक्षा लेकर अपना भविष्य सवार रहे है। इस गांव के निवासी एवं माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेशीय मंत्री रमेश सिंह ने शिराज़ ए हिन्द डॉट कॉम को बताया कि सन् दो हजार तक मात्र एक प्राथमिक विद्यालय ही था। जिसके कारण इस इलाके के छात्र-छात्राओं को पढ़ाई करने के लिए दूर दराज जाना पड़ता था। सन् दो हजार में यहां पर पहले एक डिग्री कालेज की स्थापना हुआ। उसके बाद एक एक करके कालेज स्थापित होना शुरू हुआ। आज यहां पर कुल 18 शिक्षण संस्थाए स्थापित है। सबसे खास बात यह कि जिस जमीनो पर यह शिक्षा का मंदिर स्थापित है यह पूरी तरह से उसर थी। इस जमीनो पर केवल धान की खेती होती थी। उसर बंजर जमीन पर आज शिक्षा की खेती हो रही है। शिक्षक ग्रामीण क्षेत्रो की प्रतिभाओ को तरासने का काम कर रहे है।
 15 वर्ष पूर्व तक इस इलाके के छात्र-छात्राएं दूर दराज जाकर तालिम लेने को मजबूर थे। आज इस गांव में जौनपुर के अलावा आजमगढ़ मऊ गाजीपुर समेत पूर्वाचंल के कई जनपदो युवा पढ़ने के लिए आते है। जिसमें छात्राओ की संख्या अधिक है। छात्रो का कहना है कि यहां पढ़ाई लिखाई गुणवक्ता युक्त होती है। और अनुशासन का पूरा ध्यान रखा जाता है।

यहां के शिक्षको का दावा है कि हम लोगो की पूरी कोशिश होती है कि छात्रो को गुणवक्ता युक्त शिक्षा दिया जिसके कारण मेरे दो बैच के सभी छात्र-छात्राएं प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक बन गये है।





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जौनपुर के मुहल्लों के नाम और उनका इतिहास |

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जौनपुर के मुहल्लों के नए और पुराने नाम और उनका इतिहास
 जौनपुर शहर के मुहल्ले तो लगभग ७६ है जिनका जिक्र  पुराने इतिहासकारो ने अपनी किताबो में किया है लेकिन बहुत से मुहल्ले अब आपस मे मिल गये है और कुछ का नाम बिगड गया है | जैसे फतेहपुर अब फत्तुपूर हो गया है और राजघाट अब झंझेरी मस्जिद के इलाक़े मे मिल गया है |

मुहल्ला सिपाह :-इब्राहीम शाह शार्क़ी शासन काल मे इसे काजी अब्दुल मुक़्तदिर ने आबाद किया था | इस मुहल्ले मे शार्क़ी सेना के रिसालदार यहां आबाद थे |इतिहासकारो ने लिखा कि इब्राहीम शाह शार्क़ी ने इसका नाम सिपाह खुद रखा और सेनापातियो, उलमा ने अपना अपना निवास स्थान इसे बनाया |आज आस पास के १० मुहल्ले मिला के सिपाह मुहल्ला बना है |

मुहल्ला शेख्वाडा :-इस मुहल्ले मे इब्राहीम शाह शार्क़ी के समय मे शेख रहा करते थे इसलिये इसका नाम शेख वाडा पड गया लेकिन आज यहा सभी धर्म के लोग रहा करते है |

मुहल्ला शाह चूप या बल्लोच टोला :-यहा प्राचीन काल मे एक महान महात्मा रहते थे जो अधिकतर चूप रहा करते थे और यहा दस बल्लोची रहा करते थे जिंके कारण इसका नाम मुहल्ला शाह चूप या बल्लोच टोला पड गया |

बाग ए हाशिम या दाढी यांना टोला :- ये आज के पुरानी बाजार इलाक़े मे मौजूद है | सिकंदर लोधी के समय मे ये एक मशहूर मुहल्ला था |

ख्वाजा दोस्त ;- अकबर बादशाह के जमाने मे ख्वाजा दोस्त प्रख्यातविध्वान थे जिंके नाम पे ये नाम पडा |

नंद मुहल्ला ;- नंद लाल हुसैन शाह शार्क़ी के समय के दिवानके पद पे असीन थे जिंके नाम पे नंद मुहल्ला नाम पडा |

मुहल्ला सोनी टोला;- इस मुहल्ले मे सोने चांदी के दलाल रहा करते थे इसलिये इसका नाम सोनी टोला पड गया |

मुहल्ला रास मंडळ :- रास मंडळ वास्तव मे एक बडे चबुतरे को कहते थे जहां ब्रह्मणो के लडके दशहर के अवसर पे राम लीला किया करते थे |

मुहल्ला फत्तुपुरा:- ये मुहल्ला रोज जमाल खान के पास है जो अब खेत मे बदल गया है |

मानिक चोक :-इस चौक को बादशाह अकबर के शासन काल मे मानिक चंद दिवाण खान खाना ने ९७२ हिजरी मे बनवाया | पुराने समय मे यहा जौहरी  और अत्तार की दुकाने थी |

ढाल घर टोला :-यहा के कारीगर तलवार और ढाल बनाया करते थे |

खान खाना मुहल्ला :- इसे अब नख्खास कहा जाता है यहा जानवरो का बाजार लगा करता था  |

खुसरो मुहल्ला या गुलर घाट :- यहा नौका से गल्ला लाया जाता था और यहा पठान रहा करते थे जो बहादुरी मे बहूत मशहूर थे |


मुंगेरी मुहल्ला या करार कोट ;-पुराने समय मे यहा स्नानग्रहो मे आने वालो को नहलाने वाले रहा करते थे |


बशीर गंज मुहल्ला :-बशीर खां कोतवाल ने नवाबो के समय मे इसे आबाद किया |

आदम खां मुहल्ला :- ये मुहल्ला फिरोज शाह तुग्लक के समय मे आदम खा ने आबाद किया |

मुहल्ला अर्जन :- ये मुहल्ला नैमुल्ला तथा अजीजुल्ला जो कक़्दूम ख्वाजा के पुत्र थे उनका आबाद किया हुआ है |

मुस्तफाबाद या भंडारी :-इसे काजी गुलाम मुहम्मद मुस्तफा उर्फ मझले मिया ने आबाद किया था | काजी गुलाम मुहम्मद मुस्तफा गरीबो को भंडारा देते थे इसलिये इसका नाम भंडारी पड गया |

बाजार अलफ खा या अबीर गढ टोला या काजीयांना :-अलफ खा जाति के पठान थे और उनकी हवेली भी यही पे थी जिनके नाम पे इसका नाम मुहल्ला अलफ खा पड गया |

निजाम टोला या मीर मस्त :- ये मुहल्ला सुलतान अशरफ काआबाद किया हुआ है |

मुहल्ला रिजवी खा :- मिर्झा मिरक रिजवी ने इसे आबाद किया जो अकबर के समय मे प्रबंधक के पद पे आसीन थे |

मुहल्ला अटाला :-ये मुहल्ला रिजवी खा  मे ही आता है लेकिन इस स्थान पे फौज इब्राहीम शाह के समय मे रहती थी इसलिये इसका नाम अटाला पड गया और बाद मे इसी के पास मस्जिद बनी जिसे अटाला मस्जिद कहां गया |

अल्फीस्तन गंज :-ये अंग्रेजो के एक जज अल्फीस्तान के नाम पे पडा है |

वेलंद गंज या ओलंद गंज  :-ये भी एक जज थे जिनके  नाम पे इसका नाम पडा |

मियां पूर :- यह पुराना मुहल्ला है जिसका नाम मिया मुहम्मद नूह के नाम पे पडा है |

जोगिया पूर :-शर्क़ी काल मे जेल और आसपास का इलाक़ मुहल्ला अल्लानपूर मे आता था | ये मुहल्ला कुतुब बीनाय दिल का आबाद किया हुआ है |

दीवान  शाह कबीर या ताड तला :- ये मुहल्ला दिवाण शाह कबीर का आबाद किया हुआ है और सन ९९२ से पहले का मुहल्ला है |


तूतीपूर :-काजी मुहम्मदयुसुफ के एक गुलाम ने इस मुहल्ले को आबाद किया उसका नाम तूती था |

मुफ्ती मुहल्ला :-ये मुहल्ला सैयद अबुल बक़ा का आबाद किया हुआ है जिंका देहान्त सन १०४० मे हुआ |

खाआलीस पूर :- इस मुहल्ले को खालिस मुखलीस ने आबाद किया जो शर्क़ी समय मे सूबेदार के पद पे असीन थे |

पान दरीबा :-नसीर खा फिरोज शाह तुग्लक़ के पुत्र शाह इस्माईल ने इसे आबाद किया |

मुहाल गाजी :-अकबर के जमाने के एक प्रतिष्ठित व्यक्ती गाजी खा ने इसे आबाद किया था |

शेख यहिया या बाजार भूआ :- अकबरी दरबार के एक कवि शेख यहिया थे उन्ही के नाम पे ये मुहल्ला आबाद हुआ | बाजार भूआं इलाक़े मे पहले भूप तिवारी रहते थे जिनके  नाम पे बजार भूआ नाम पडा |

अबीर गड टोला :-यहा अबीर बनती थी |

रुहत्ता अजमेरी :- शर्क़ी काल मे यहा एक अजमेरी शाह रहते थे |

हम्माम दरवाजा :-यहा एक स्नानगृह  था जिसे तुर्क़ी क़ौम ने बनवाया था इसी वजह से इसे हम्माम दरवाजा कहा गया |

कोठीया बीर :-यहा पहले एक मठ था जिसके कारण इसे कोठीयाबीर कहा गया |कोठीयाबीर एक रिशी ऋषि थे |

बाग हाशीम :-शेख बुरहानुद्दीन एक सुफी थे सन ९४७ हिजरी मे इनका देहांत हो गया |

सदल्ली पूर :-मुहम्मद हसन कालेज के पीछे और चित्रसारी  के क़ब्रिस्तान के पहले एक मुहल्ला है सदल्ली पूर जिसका सही नाम सैयेद अली पूर है | जिनकी शान मे लाल दरवाजा बीबी राजे ने बनवाय था |

लाल दरवाज़ा हो या झंझरी मस्जिद जौनपुर में आपको हर जगह सुलेख कला के नमूने मिल जायेंगे |

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झंझरी  मस्जिद पे लिखी इबारत सुलेख की बेहतरीन मिसाल 

अकबर बादशाह के समय में सुलेख कला का प्रचलन सबसे अधिक था जो अंग्रेज़ों की हुकूमत के आते आते ख़त्म सा होने लगा । जौनपुर में शर्क़ी समय या मुग़ल समय की इमारतों में इस कला की सुंदरता आज भी देखने को मिल जाय करती है ।

लाल दरवाज़ा हो या झंझरी मस्जिद या  इमारतें  आपको हर जगह इस सुलेख कला के नमूने मिल जायेंगे ।

जौनपुर के आस पास जिन इलाक़ो में इस सुलेख कला पदार्पण हुआ वो जगहे थी कजगाओ और माहुल और इसका श्रेय जाता है कजगाँव के मौलाना गुलशन अली जो दीवान काशी नरेश भी थे और राजा इदारत जहाँ को जो जौनपुर की आज़ादी की लड़ाई जो १८५७ में हुयी उसके पहले शहीद थे । 
लाल दरवाज़े पे लिखी आयतल कुर्सी

यह है उस घराने का इतिहास जिसका मैं हिस्सा हूँ और यहघराना जौनपुर में पिछले ७३४ सालों से रह रहा है|  एस एम् मासूम

जौनपुर के ज़ुल्क़दर बहादुर सय्यद नासिर अली का घराना इतिहास के पन्नो से |

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सय्यद नासिर अली ज़ुल्क़द्र बहादुर जौनपुर के मशहूर ज्ञानी संत सय्यद अली दाऊद की नस्ल से थे जो आज से ७३२ वर्ष पहले जौनपुर पे बस गए थे | जनाब सय्यद अली दाऊद  साहब हजरत मुहम्मद (स.अ.व) की 21 वीं नस्ल थे और बहुत ज्ञानी थे | इनकी कब्र आज  भी  मुहम्मद  हसन कॉलेज के पीछे सदल्लिपुर (सयेद अली पूर ) में देखी जा  सकती  है  जिसकी देख रेख वहाँ पे बसे हिन्दू परिवार के लोग करते हैं|

शार्की  समय में हुआ जौनपुर में महान संतो का आगमन जिनकी नस्ले आज भी यहां रहती है ।  जौनपुर में इब्राहिम शार्की का नाम ,उसका इन्साफ और नेकदिली की बातें सुन के तैमूर के आक्रमण के कारण बहुत से अमीर ,विद्वान, प्रतिष्ठित व्यक्ति ,कलाकार जौनपुर में शरण लेने आने लगे । इब्राहिम शाह ने हर महान संतो, विद्वानो और कलाकारों को इज़्ज़त दी और पद,जागीर इत्यादि दे के सम्मानित किया और जौनपुर में बसाया ।

बहुत मशहूर है कि इब्राहिम शाह के दौर में ईद और बकरईद पे नौ सौ चौरासी विद्वानो की पालकियां निकला करती थी जिनमे से एक सय्यद अली दाऊद भी थे जिनकी नस्ल से सय्यद नासिर अली ज़ुल्क़द्र बहादुर का सम्बन्ध था |

सय्यद अली दाऊद एक मशहूर  संत थे लाल दरवाज़ा मस्जिद के मदरसे हुसैनिया में पढ़ाते थे और उनको शार्की  महारानी बीबी राजे ने चित्रसारी के पास रहने को घर और कुछ गाँव दिए थे | आज यह इलाका जहां सय्यद अली दाऊद रहा करते थे मुहम्मद हसन कॉलेज पे पीछे पड़ता है जिसका नाम आज भी सदल्ली पुर (सय्यद अली पुर) है और यंही पे सय्यद अली दाऊद  क़ुतुबुद्दीन साहब की कब्र भी मौजूद है जिसपे कुछ हिन्दू घर चादर और फूल आज भी अकीदत से चढाते हैं | REF: Tajalli e Noor  and Ibid

सय्यद अली दाऊद को लाल दरवाज़ा के सामने मुहल्लाह सिपाह गाह में भी रहने का एक घर दिया गया था जिसके निशाँ आज भी मौजूद हैं | इनके  घराने वाले इब्राहिम लोधी द्वारा उस इलाके को नष्ट करने के बाद वहाँ नहीं रहे और लाल दरवाज़ा से अलग हमाम दरवाज़ा पे आ गए फिर कटघरे से होते हुए आज पान दरीबा में बस गए जहां आज भी उनका खानदान रहता है  |

सय्यद नासिर अली ज़ुल्क़द्र बहादुर  ने  दीवान काशी नरेश मौलवी गुलशन अली कजगाँवी से  शिक्षा प्राप्त की और बाद में अंग्रेज़ी सरकार में उच्च पद पे नौकरी  कर ली । अपनी योग्यता और कुशलता के चलते उस समय इन्हे डिप्टी कलक्टर का पद प्राप्त हुआ जहाँ इनकी तख्वाह ७०० रुपये महीना थी । इनको बाद में ज़ुल्क़द्र बहादुर और खान बहादुर का खिताब भी मिला | अपने अंतिम समय में  १८६६ पे जिलाधीश की पदवी पे रहते इनका देहांत इलाहबाद में हो गया । 

उनके घराने का एक घर जिसे आज मदरसा नासरिया के नाम से जाना जाता है आज भी मौजूद है जिसे उन लोगों ने वहाँ से पानदरीबा जाते वक़्त कौम  के नाम वक्फ कर दिया था|  यह घराना जौनपुर में ७३२ साल पुराना है जिसे आज लोग अपने समय के मशहूर सय्यद ज़मींदार खान बहादुर ज़ुल्क़द्र के घराने के नाम से जानते हैं | इनके रिश्तेदार पानदरीबा,सिपाह और कजगांव में फैले हुए हैं |

लाल दरवाज़े के पास एक मुहल्लाह सिपाह गाह है जिसे बीबी राजे ने इसी  खानदान  के  पूर्वज सैयेद अली  दाऊद की  शान  में बसाया था और वहाँ पे एक विहार और महिलाओ का कॉलेज १४४१ में बनवाया और उसके बाद यह लाल दरवाज़ा मस्जिद बनवाई और सैयेद अली  दाऊद  को वहीँ बसा  के  उनकी निगरानी में दे दिया |

जौनपुर के इस ७३२ साल पुराने घराने का ज़िक्र इतिहास की किताबो में मिलता है जिनमे से "IBID"जौनपुर नामा कुछ ख़ास किताबें  है | १९६५ में एक शजरा (Race Chart} कजगांव  में सय्यद मुहम्मद जाफ़र साहब ने छपवाया और ऐसा ही एक शजरा इंग्लैण्ड से भी छपा है जो इस खानदान वालों के पास देखा जा सकता है |

यह है उस घराने का इतिहास जिसका मैं हिस्सा हूँ और यह घराना जौनपुर में पिछले ७३२ सालों से रह रहा है|  एस एम् मासूम 



जौनपुर के लगभग ३०० वर्ष पुराने बाबा बारी नाथ का मंदिर का इतिहास |

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मुख्या द्वार मंदिर बाबा बारी नाथ |

 बाबा बारिनाथ का मंदिर इतिहासकारों के अनुसार लगभग ३०० वर्ष पुराना है | यह मंदिर उर्दू बाज़ार में स्थित है और इस दायरा कई बीघे में है | बाहर से देखने में आज यह उतना बड़ा मंदिर नहीं दीखता लेकिन प्रवेश द्वार से अन्दर जाने पे पता लगता है की यह कितना विशाल रहा होगा |

अंदरूनी भाग  बाबा बारिनाथ का मंदिर 
भीतर प्रवेश करने पे बायें हाथ पे पेड़ के नीचे बाबा बारिनाथ की संगमरमर की समाधी दर्शन करने वालों के लिए बनायी  गयी है जो देखने में बहुत ही सुंदर है लेकिन मूल समाधि अन्दर बनी एक कोठरी के अन्दर है |

बाबा बारी नाथ की संगमरमर की समाधी 

यहाँ शिव मंदिर, हनुमान मंदिर,काली मंदिर  और भैरव जी का मंदिर भी है | बाबा वर्षा नाथ की कुतिया एक तरफ है जिन्होंने ४३ वर्ष यहाँ समय गुज़ारा | यह मंदिर कन फटे बाबाओं की कड़ी समाधि के लिए भी मशहूर है जहां इनकी म्रत्यु के बाद इन्हें खड़े खड़े समाधी दे दी जाती थी |
शिव मंदिर 


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उत्तर प्रदेश से प्रशासनिक सेवाओं में सबसे ज्यादा लोग जौनपुर जनपद से हैं|

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जौनपुर जो “शिराज़-ए-हिंद“ के नाम से भी मशहूर हैं, भारत के उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर एवं लोकसभा क्षेत्र है। जौनपुर एक शतक तक मध्यकाल में शर्की शासकों की राजधानी रह चुका है |यह शहर गोमती नदी के दोनों तरफ़ फैला हुआ है। गुप्तकालीन मंदिर ,और अक्सर मुद्राओं का यहाँ पे पाया जाना इस ओर भी इशारा करता है कि गुप्तकाल में यह नगर व्यापार का केंद्र रहा होगा|
Lal darwaza Jaunpur


1394 के आसपास मलिक सरवर ने जौनपुर को शर्की साम्राज्य के रूप में स्थापित किया और इसे अपने स्वतंत्र राज्य की राजधानी(1394-1479) बनाया | जौनपुर इब्राहिमशाह शर्की के समय में जौनपुर शिक्षा का बहुत बडा केंद्र बना दिया था जहां पुरे विश्व से लोग ज्ञान लेने आते थे इसी कारण जौनपुर को शिराज़े हिंद कहा गया| लाल दरवाज़ा बेगम गंज  में  बीबी राजे (शार्की  क्वीन ) ने जनाब  सयेद अली  दाऊद की शान में मदरसा हुसैनिया  बनवाया जो  उस  समय  का दुनिया का  सबसे मशहूर  मदरसा था |


Fort Jaunpur
हमारे मित्र डॉ मनोज मिश्र जी का कहना है कि उत्तर प्रदेश से प्रशासनिक सेवाओं में सबसे ज्यादा लोग इसी जनपद से हैं और तो और यहाँ के जन्मे लोंगों ने विज्ञान और अनुसन्धान के क्षेत्र में पूरी दुनिया में नाम कमाया है|

यहाँ प्रतिभाओं और ऐतिहासिक स्थलों की कमी नहीं है बस आवश्यकता है की सरकार भी इस शहर की अहमियत को समझे और इसे पर्यटन छेत्र घोषित करे | जौनपुर को महर्षि यमदग्नि की तपोस्थली के जाम से भी जाना जाता है और इसका नाम पहले यमदग्निपुर और यवनपुर ,भी रहा है |पुरातत्व विभाग द्वारा जारी खोज में अब जौनपुर का इतिहास सुंग कुषाण काल तक पहुँच चुका है |गोमती नदी जौनपुर शहर को दो हिस्सों में बाँटती है और इसे सुंदर बनती है | यहाँ का इत्र ,मूली, चमेली का तेल ,इमरती इत्यादि बहुत मशहूर है |

शि‍क्षा, संस्‍क़ृति‍, संगीत, कला और साहि‍त्‍य के क्षेत्र में अपना महत्‍वपूर्ण स्‍थान रखने वाले जनपद जौनपुर में हि‍न्‍दू- मुस्‍लि‍म साम्‍प्रदायि‍क सद् भाव का जो अनूठा स्‍वरूप शर्कीकाल में वि‍द्यमान रहा है, उसकी गंध आज भी वि‍द्यमान है| आज भी इस जौनपुर में कभी धर्म के नाम पे झगडे नहीं हुआ करते |साम्‍प्रदायि‍क सद् भाव की ऐसी मिसाल शायद ही किसी और शहर में देखने को मिले |

हमारे  खानदान के लोग जौनपुर  में  पिछले ७३२ वर्षों से रह रहे हैं और इनमे से हमारे एक पूर्वज की कब्र सदल्लिपुर में मौजूद है जिसकी देख रेख वहाँ पे बसे हिन्दू भाई  किया करते हैं जो अपने आपमें  एक  मिसाल है और हिन्दू मुस्लिम भाई चारे की पहचान भी है |

एस एम् मासूम
संचालक
"हमारा जौनपुर "


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आज के परिवेश में सोशल मीडिया"

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शिराज ए हिन्द डाॅट काॅम द्वारा 23 अक्टुबर दिन रविवार को दिन में 11 बजे कलेक्ट्रेट परिसर स्थित पत्रकार भवन में "आज के परिवेश में सोशल मीडिया"विषय पर एक गोष्ठी आयोजित किया गया है। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिलाधिकारी भानुचंद्र गोस्वामी होगें विशिष्ट अतिथि अपर पुलिस अधीक्षक देहत अरूण श्रीवास्तव होगे।

मुख्य वक्ता के रूप में सोशल मीडिया एक्टिविस्ट एस एम मासूम होगे।

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आज खुल गए जौनपुर शाही क़िले से जुड़े सारे रहस्य|

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जौनपुर का शाही क़िला अपने मूल अकार में आज नहीं है ।

इस क़िले का निर्माण फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने जौनपुर आबाद करने के बाद १३६२ इ०  में किया । इसमें अलग अलग काल में परिवर्तन किये जाते रहे इसलिए इसका मूल अकार अब समझ में नहीं आता है । लेकिन आज भी ये क़िला बहुत ही भव्य और अच्छी हालत में है ।

शार्की बादशाहो ने क़िले के अंदर मिश्री ढंग की एक मस्जिद और तुर्की स्नानगृह का निर्माण करवाया । सिकंदर लोधी ने इस क़िले को बहुत नुकसान पहुंचाया लेकिन हुमांयू बादशाह ने इसकी मरम्मत बाबा जलयर बेग से करवाई । इस  क़िले में अकबर बादशाह अक्सर आया करता था और राजगद्दी पे भी बैठता था । जौनपुर के प्रबंधक मुनीम खानखाना ने नए सिरे से इसी बनवाया।

 शाही क़िले के गेट पे लगे खम्बे पे फारसी में क्या लिखा है । 

शाही क़िले के गेट पे ही एक खम्बा लगा है  जिसपे फारसी में कुछ लिखा है और बचपन से सुना जो उसपे लिखे वाक्यों को पढ़ लेगा खज़ाना पा जायगा ।


जौनपुर शाही किले का बाहरी हिस्सा जिसे मुइन खान खाना ने बाद में बनवाया था |

जौनपुर के भव्य शाही किले  का निर्माण  फि‍रोज शाह ने 1362 में कराया था और इसका इस्तेमाल केवल शाही फ़ौज के लिए किया जाता था |  इसके सामने के शानदार फाटक को मुनीम खां ने सुरक्षा की दृष्‍टि‍ से बनवाया था तथा इसे नीले एवं पीले पत्‍थरों से सजाया गया था।

इसी बाहरी फाटक में दाखिल होने के पहले एक 6 फीट लम्बा खम्बा है जो एक गोल से चबूतरे पे लगा हुआ है | बचपन से सुना करता था की इस खम्बे पे लिखी इबारत को जिसने पढ़ लिया उसे दुनिया का खजाना मिल जायेगा |

इस बार जब मैं जौनपुर पहुंचा और ऐसे ही एक दिन किले की तरफ से होता हुआ मित्र से मिलने जा रहा था तो नज़र उसी खम्बे पे पद गयी और बचपन की बात याद आ गयी | जब मैं खम्बे पे पहुंचा तो वहाँ फारसी में कुछ इबारत लिखी मिली | मेरे साथ मेरे मित्र जनाब कैसर साहब भी थे जो पर्शियन (फ़ारसी) के अच्छे जानकार भी हैं मैंने उन्ही से पुछा भाई आप क्या इसे पढ़ सकते हैं तो खजाना मिल जाएगा |

उन्होंने भी कोशिश की और बाद में ताज्जुब की इबारत साफ़ है और इसे पढना भी आसान फिल जहालत भरी बातें समाज में कैसे फैल गयीं की खजाने का पता लिखा है ?



इस 6 फीट के खम्बे पे 17 लाइन की इबारत लिखी हुयी है | ये  शिला लेख गोलाकार चबुतरे पे लगा हुआ है और उस पे फारसी मे कुछ लिखा हुआ  है | इस शिला लेख की लिखावट सन ११८० हिजरी की है | इसको सैयेद मुहम्मद बशीर खां क़िलेदार ने शाह आलम जलालुद्दीन बादशाह तथा नवाब वज़ीर के समय मे लगवाया था |


यदि आप फ़ारसी जानते हैं तो आप भी इसे आसानी से पढ़ सकते हैं |


सय्यद मुहम्मद बशीर खान ने यहा के शासक और कोतवाल ,फौजदार और निवासियो को चेतावनी दी कि जौनपुर की आय मे सैयदो  व बेवाओं  तथा उनसे संबंधित और दीन की सहायता हेतू जो धन निश्चित है उसमे कोई कमी ना की जाय | हिन्दुओ को राम गंगा और त्रिवेणी और मुसलमानो को खुदा व रसूल (स.अ व ) व पंजतन पाख ,सहाबा और चाहारदा मासूम और सुन्नी हजरात को चार यार की क़सम है कि यदि उन्होंने इसका पालन नहीं किया तो खुदा और रसूल की उसपे  धिक्कार होगी और प्रलय के दिन मुख पे कालिमा  लगी होगी तथा नर्क निवासियो की पंक्ती मे शामिल होगा | बारह रबिउल अव्वल  ११८० हिजरी को इस शुभ कार्य का पत्थर  सैयेद मुहम्मद बशीर खां क़िलेदार ने लगवाया  |


   

जौनपुर शाही क़िले की दो क़ब्रो का राज़ क्या है ?

१८५७ की आज़ादी की लड़ाई का जौनपुर से पहला क्रांतिकारी थे राजा इदारत जहा जो १८५७ में  जौनपुर ,आज़मगढ़ ,बनारस, बलिया, तथा मिर्ज़ापुर प्रबंधक थे ।  जब अंग्रेज़ों ने राजा इदारत जहां से मालग़ुज़ारी मांगी तो उन्हने इंकार कर दिया और कहा हमने दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह ज़फर को  बादशाह स्वीकार कर लिया है और  से मालग़ुज़ारीउन्ही को दी जाएगी ।

इस अस्वीक्रति पे अंग्रेज़ों ने जौनपुर के शाही क़िले पे जो राजा इदारत जहां की सत्ता का केंद्र था उसपे हमला कर दिया । राजा इदारत जहां उस समय चेहल्लुम के सिलसिले में मुबारकपुर गए हुए थे लेकिन दीवान महताब राय से अंग्रेजी फौज का सामना हो गया जो बहुत बहादुरी से लड़े लेकिन बाद में क़ैद कर लिए गए । इस झड़प में बहुत से लोग शहीद  हुए जिनकी क़ब्रें आज भी क़िले में मिलती हैं ।

आप जैसे ही क़िले में दाखिल होते हैं तो आप को बाए तरफ क़िले के ऊपर पथ्थरो के बीच बनी एक क़ब्र दिखाई देती है जिसपे हरे रंग की चादर चढ़ी रहती है । जब भी  आप किसी से पूछे तो वो आपको यही बताएगा की कोई बाबा या सूफी की मज़ार है । 

क़ब्र जिसे आज दरबार  ऐ  शहीद के नाम  से जाना जाता है  इनका नाम मेहदी जहाँ था और  इनका सम्बन्ध राजा इदारत जहां के परिवार से था जो इसी  क़िले की फ़ौज के कमांडर इन चीफ थे ।



इस बारे में जब मैंने  जनाब अंजुम साहब से  पूछा तो उन्होंने बताया की  ये क़ब्र जिसे आज दरबार  ऐ  शहीद के नाम  से जाना जाता है  इनका नाम मेहदी जहाँ था और  इनका सम्बन्ध राजा इदारत जहां के परिवार से था जो इसी  क़िले की फ़ौज के कमांडर इन चीफ थे ।
 राजा अंजुम साहब ने बताया कि अंग्रेज़ो के हमले में जब ये दोनों कमांडर शहीद हो गए तो लोगो ने इन्हे क़ब्रिस्तान में ले जाने की कोशिश की लेकिन इनको हटा नहीं सके और मजबूर हो के क़िले के उसी हिस्से में दफ़न किया जहाँ ये शहीद हुए थे । 
 
दूसरी क़ब्र  जो क़िले के अंदरूनी हिस्से में मस्जिद के दाई सामने की ओर बनी है सफ़दर जहा की है जिनका रिश्ता भी राजा राजा इदारत जहां के परिवार से था और वो भी फ़ौज के कमांडर थे । 



जनाब अंजुम साहब, जिन्हे जौनपुर राजा अंजुम  के नाम से जानता है और इनके छोटे भाई जिन्हे  प्रिंस तनवीर शास्त्री के नाम से जानता है राजा इदारत जहां के खानदान से सम्बन्ध रखते है और जौनपुर में ही अटाला मस्जिद के  पास रहते हैं ।  जनाब राजा अंजुम और प्रिंस तनवीर शास्त्री साहब राजा इदारत जहां की सातवी नस्ल है ।

वेब न्यूज़ पोर्टल चलाने वाले ख़बरों की प्रमाणिकता की जांच अवश्य कर ले | डी एम् जौनपुर

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जौनपुर। सोशल मीडिया पर खबरें पोस्ट करने से पहले जरूरी है उस न्यूज का सही प्रमाणिकता जांच लें। खबरों को कई बार जांचने के बाद ही वेब साइट और सोशल मीडिया पर पोस्ट करना चाहिए। उक्त बातें जिलाधिकारी भानुचंद्र गोस्वामी ने रविवार को जौनपुर पत्रकार संघ भवन में शिराज ए हिन्द डॉट काम द्वारा आयोजित ‘‘आज के परिवेश में सोशल मीडिया’’ विषयक संगोष्ठी में कही। डीएम ने कहा कि मीडिया को खासकर अंतरजाल मीडिया को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे खबरें न पोस्ट करें जिससे साम्प्रदायिक माहौल विगड़ जाय। उन्होंने कहा कि अक्सर देखने में आता हैं कि लोगों द्वारा दर्दनाक घटनाओं की विभत्स फोटो पोस्ट कर दी जाती है। साथ में यह देखने को मिलता है कि लोग अफवाह फैलाने वाली खबरें पोस्ट करते है। इससे उनके खुद की वेबसाइट की इमेज पर साख पर बट्टा लगता है।

इससे पूर्व सोशल मीडिया एक्टविस्ट मो. मासूम ने विस्तार से नफे नुकसान की जानकारी दिया साथ में टेक्निकल जानकारी भी उपस्थित लोगों को दिया। उन्होंने साफ कहा कि वेब पत्रकारिता की जो ताकत वह बहुत कम लोगों को मालूम है। इस मीडिया के माध्यम से पल भर में पूरी दुनियां में खबरें पहुंच है लेकिन जौनपुर में अभी वेब पत्रारिता शैशवाकाल में है अभी किशोरा अवस्था में नहीं पहुंचा है।

पूर्वांचल विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के प्रोफेसर डा. मनोज मिश्र ने कहा कि आज सोशल मीडिया तेजी से अपना कदम बढ़ा रही है। आये दिन नया—नया परिर्वतन हो रहा है। हम लोग इससे जुड़े होने के कारण प्रतिदिन अपडेट होते रहते है। उन्होंने भी सोशल मीडिया की सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। इससे पूर्व दीवानी अधिवक्ता संघ के पूर्व महामंत्री जयप्रकाश सिंह कामरेड, राज्य कर्मचारी संघ के अध्यक्ष राकेश श्रीवास्तव, किशोर न्यायालय बोर्ड के चेयरमैन संजय उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार मधुकर तिवारी, संजय सेठ जेब्रा, कांग्रेसी नेता फैसल हसन तबरेज, पत्रकार रामजी जायसवाल, विजय प्रकाश मिश्रा, राजकुमार सिंह, हसनैन कमर दीपू, सुधाकर शुक्ला, प्राथमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष अरविन्द शुक्ला, गहना कोठी के अधिष्ठाता विनीत सेठ, जेडी सिंह, अंकित जायसवाल ने गोष्ठी में अपना विचार व्यक्त किया। अतिथियों का स्वागत राजेश श्रीवास्तव ने किया एवं आभार डा. ब्रजेश यदुवंशी ने किया। कार्यक्रम का संचालन मनोवैज्ञानिक डा. जाहन्वी श्रीवास्तव ने किया। स्वागत गीत अवनीश तिवारी ने प्रस्तुत किया। इस मौके पर बरिष्ठ पत्रकार विनोद तिवारी, मनोज वत्स, आईबी सिंह, दीपक श्रीवास्तव, शम्भू सिंह, अजीत सिंह, मो. अब्बास, आरिफ हुसैनी, इद्रजीत मौर्या, आनंद यादव, अखिलेश यादव, दीपक मिश्रा, विरेन्द्र पाण्डेय, बृजराज चौरसिया, अजय तिवारी, अखिलेश त्रिपाठी, डब्बू सिंह राजीव शर्मा, जीवन श्रीवास्तव, कुंवर नीतिश, अरूण श्रीवास्तव, मो. शोहराब, अभिषेक श्रीवास्तव, अभिषेक, अर्जुन यादव, पंकज प्रजापति समेत भारी संख्या में लोग उपस्थित रहे।



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स्वतंत्र न्यूज पोर्टल में वेब पत्रकार बनकर आप करियर बना सकते हैं|...एस .एम् .मासूम

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आज 23 अक्टुबर दिन रविवार को दिन में 11 बजे शिराज ए हिन्द डॉट कॉम द्वारा  कलेक्ट्रेट परिसर स्थित पत्रकार भवन में "आज के परिवेश में सोशल मीडिया"विषय पर एक गोष्ठी आयोजित किया गया जिसका मुख्या वक्ता मुझे बनाया गया । इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिलाधिकारी भानुचंद्र गोस्वामी रहे और  विशिष्ट अतिथि अपर पुलिस अधीक्षक देहात अरूण श्रीवास्तव थे ।

यहाँ बहुत  से  वरिष्ट पत्रकारों ने अपने विचार रखे जिससे मुझे उनको समझने का अवसर मिला | मुख्य अतिथि जिलाधिकारी भानुचंद्र गोस्वामी ने सोशल मीडिया के साथ साथ वेब पत्रकारिता पे भी अपने विचार रखे जिनसे मैं इतना प्रभावित  हुआ की  अपने अगले लेख में अलग से उसका ज़िक्र अवश्य करूँगा |


आज का दौर वेब पत्रकारिता का दौर कहा जा सकता है | आज पूरी दुनिया द्वारा अंतरजाल के बढ़ते इस्तेमाल को देखते हुए यह समझा जा रहा है की आने वाला समय वेब पत्रकारिता का ही होगा |इस वेब पत्रकारिता को हम  इंटरनेट पत्रकारिता, ऑनलाइन पत्रकारिता, सायबर पत्रकारिता भी कह सकते हैं|

वेब पत्रकारिता  कंप्यूटर और इंटरनेट के सहारे संचालित ऐसी पत्रकारिता है जिसकी पहुँच किसी एक पाठक, एक गाँव, एक प्रखंड, एक प्रदेश, एक देश तक नहीं बल्कि समूचा विश्व है |भारत में बढ़ते संचार साधनों से पत्रकारिता के क्षेत्र में भी करियर के अवसर उजले हुए हैं|

सबसे पहले चेन्‍नई स्थित हिंदू अखबार ने अपना पहला इंटरनेट संस्‍करण १९९५ में जारी किया लेकिन उसको पाठक उस समय अधिक ना मिलने के कारण उसपे अपडेट समय से और बहुत अधिक ख़बरों के साथ नहीं हो पाता था । लेकिन धीरे धीरे अब वो समय आ  जब समूची दुनिया में इंटरनेट उपभोक्‍ताओं की साल दर साल बढ़ती संख्‍या से वेब के माध्‍यम से समाचार और सूचनाएं जानने वालों की संख्‍या बढती जा रही  है।

भारत में वेब पत्रकारिता के इतिहास की बात करें तो यह लगभग तीस  वर्ष पुरानी है और यदि जौनपुर में इसकी बात करें तो २००९ से लगातार जागरूक करते रहने के बाद पहला वेबपोर्टल मैंने बनाया जिसे कामयाबी  के साथ राजेश श्रीवास्तव जी ने कामयाबी के साथ चलाया और आज कामयाबी के उस स्तर को छु रहे हैं जहां तक दूसरों का पहुँच  पाना  असम्भव तो नहीं लेकिन बहुत ही मुश्किल है | शिराज़ ऐ हिन्द वेब पोर्टल के बाद मैंने बहुत से वेब पोर्टल जौनपुर में बनाय जिसमे से जनाब आरिफ हुसैनी का वेब पोर्टल आजतक टाइम्स लगातार कामयाबी की तरफ बढ़ता जा रहा है | आज जौनपुर में अनगिनत वेब पोर्टल्स बन चुके हैं जिनमे से कुछ अपना स्थान बना लेंगे और कुछ समय के अँधेरे में खो जायेंगे |


वेब पत्रकारिता ने पत्रकारिता के छेत्र में में बड़ा परिवर्तन किया है। आज फ़ास्ट फ़ूड का ज़माना है जब लोग अभी बनाओ और अभी खाओ में विश्वास किया करते हैं । वेब पोर्टल्स एक न्‍यूज एजेंसी या चौबीस घंटे टीवी चैनल जैसी है। तकनीक में हो रहे परिवर्तन ने वेब पत्रकारिता को जोरदार गति दी है। एक वेब पत्रकार जब चाहे वेबसाइट को अपडेट कर सकता है। यहां एक व्‍यक्ति भी सारा काम कर सकता है। प्रिंट में अखबार चौबीस घंटे में एक बार प्रकाशित होगा और टीवी में न्‍यूज का एक रोल चलता रहता है जो अधिकतर रिकॉर्ड होता है जबकि वेब में आप हर सैंकेड नई और ताजा समाचार और सूचनाएं दे सकते हैं जो दूसरे किसी भी माध्‍यम में संभव नहीं है।

वेब पत्रकारिता रोज़गार के नए अवसर प्रदान करती है और छोटे शहरों के लिए तो यह वरदान साबित हो रही है जब आज प्रिंट  मीडिया के लिए छोटे शहरों को आधे पेज से अधिक जगह देना संभव नहीं ऐसे में छोटे शहरों के वेब पोर्टल अपने शहर को पूरी तरह से कवर कर सकने की  छमता रखते हैं |

देश में तेजी से बढ़ रहा कंप्‍यूटरीकरण और ब्राड बैंड सेवा वेब पत्रकारिता के विस्‍तार को बढ़ा रहा है। अब इसमें एक और परिवर्तन देखने को मिला है और वह है मोबाइल सेवाओं का विस्‍तार। डेस्‍क टॉप या लैपटॉप न होने की दिशा में मोबाइल पर वेबसाइट खोलकर समाचारों और सूचनाओं को जाना जा सकता है।

देश में बिजली की कमी, और ब्राड बैंड सेवा (इंटरनेट) उपयोग का महंगा शुल्‍क वेब पत्रकारिता की राह में मुख्‍य अड़चन है लेकिन मोबाइल सेवाओं के विस्तार ने इस  समस्या को भी काफी हद तक हल कर दिया है और अब आज छोटे गाँव में भी वेब् पोर्टल्स काफी मशहूर होते  जा रहे हैं | वेब पोर्टल्स के अधिक इस्तेमाल के कारण अब व्यापारीगन इस पे विज्ञापन दे के प्रिंट मीडिया की तुलना में अधिक लाभ सस्ते दर पे उठा सकते हैं | एक अखबार का दायरा सीमित हुआ करता है लेकिन इन वेब पोर्टल का दायरा असीमित होता है | जहां जहां इन्टरनेट वहाँ वहाँ इसकी पहुँच संभव है |

वेब पत्रकारिता और न्यू मीडिया के संगम ने वेब पोर्टल्स की मुश्किल आसान कर दी है जो वो पहले यह तय नहीं कर पाते थे की अपना नया वेबपोर्टल लोगों तक कैसे पहुंचाएं और उनके पास केवल इ मेल या एस एम् एस की साधन हुआ करता था | आज न्यू मीडिया जैसे फेसबुक , यू ट्यूब ,ट्विटर इत्यादि ने आज के युवाओं पे अपनी पकड़ मज़बूत बना ली है जो हर दिन नए नये तरीके से युवाओं को अपनी तरफ अकार्षित करने की कोशिश करते हैं | आज राजनैतिक उपयोग और दुरूपयोग दोनों इस न्यू मीडिया द्वारा देखा जा सकता है |

आज वेब पत्रकारिता में बहुत अधिक संभावनाएं हैं| इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए खबरों को समझकर उन्हें प्रस्तुत करने की कला, तकनीकी ज्ञान, भाषा पर अच्छी पकड़ होना आवश्यक है| न्यूज पोर्टल के रूप में स्वतंत्र रूप से कार्य करने वाली साइटों की संख्या भारत में कम हैं और ऐसी  साइटों की संख्या ज्यादा है जो अपने वेब के लिए सामग्री अपने चैनलों या अखबारों से लेती हैं|

प्रिंट मीडिया में आप केवल टेक्स्ट और तस्वीरों का ही इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन वेब  पत्रकारिता में मल्टीमीडिया का प्रयोग होता है जिसमें, टैक्स्ट, ग्राफिक्स, ध्वनि, संगीत, गतिमान वीडियो,  रेडियो और टीवी ब्रोडकास्टिंग इत्यादि  प्रमुख हैं  जो आपकी ख़बरों को और सशक्त और विश्वसनीय बनाती है | आज वेब पोर्टल की कामयाबी के लिए यह आवश्यक होता जा रहा है की आप प्रिंट मीडिया और  समाचार एजेंसियों पे केवल निर्भर ना रहे बल्कि अपने इंटरनेट संस्‍करण्  के लिए  नए समाचार, फीचर,फोटोग्राफ ,विडियो इत्यादि स्वाम तैयार करें |वेब पत्रकारिता को  पूरी तरह एक अलग तरह का उद्यम मानकर इसे पूरा समय देने पे ही आपकी कामयाबी  संभव है ।
लेखक
एस एम् मासूम
Chairman--"हमारा जौनपुर"सोशल वेलफेयर फाउंडेशन |
Admin --www.hamarajaunpur.com



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जौनपुर का इतिहास जानना ही तो हमारा जौनपुर डॉट कॉम पे अवश्य जाएँ | भानुचन्द्र गोस्वामी डी एम् जौनपुर

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आज 23 अक्टुबर दिन रविवार को दिन में 11 बजे शिराज ए हिन्द डॉट कॉम द्वारा  कलेक्ट्रेट परिसर स्थित पत्रकार भवन में "आज के परिवेश में सोशल मीडिया"विषय पर एक गोष्ठी आयोजित किया गया जिसका मुख्या वक्ता मुझे बनाया गया । इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिलाधिकारी भानुचंद्र गोस्वामी रहे और  विशिष्ट अतिथि अपर पुलिस अधीक्षक देहात अरूण श्रीवास्तव थे ।

मुख्या वक्ता होने के कारण मुझपे ज़िम्मेदारी अधिक थी|  मैंने इमानदारी से लोगों सामने अपने विचार रखे जिसे लोगों ने सराहा |डॉ मनोज मिश्र , राजेश श्रीवास्तव , और अन्य वरिष्ट पत्रकारों ने भी अपने विचार रखे और अंत में स्मृति चिन्ह के साथ शाल भेंट की गयी |

मुख्य अतिथि जिलाधिकारी भानुचंद्र गोस्वामी जी को सुनने  का अवसर  पहली बार मिला और सुन के अच्छा  लगा की जौनपुर  को एक ऐसा  डी एम् मिला है जो सोशल मीडिया , वेब पोर्टल की पूरी जानकारी ही नहीं रखता बल्कि जब बोलने का मौक़ा  मिलता है तप अपने विचार भी सभी के सामने बेबाकी  से रखता है |

जिलाधिकारी भानुचंद्र गोस्वामी सुझाव  दिया की  वो  वेबपोर्टल जो कुछ भी और कोई  भी खबर  कॉपी  पेस्ट करके डाल  देते हैं उन्हें एक बार  खबर  कॉपी  करने  के  पहले  खबर की सत्यता को परखना अवश्य चाहिये |
इसी के  साथ  साथ उन्हीने अपनी  वेबसाईट हमारा जौनपुर का भी ज़िक्र किया और लोगों  को  बताया की अगर  आपको जौनपुर के इतिहास और यहाँ के समाज  की जानकारी  लेना है तो एक बार हमारा जौनपुर डॉट कॉम पे अवश्य जाएँ |
हमारा जौनपुर टीम जिलाधिकारी भानुचंद्र गोस्वामी जी  की  आभारी  है की  उन्होंने इस  वेबसाइट को देखा और सराहा |

जिलाधिकारी भानुचंद्र गोस्वामी से बात चीत के दौरान ऐसा महसूस हुआ  की वो जौनपुर को पर्यटकों के आने के काबिल बनाना चाहते हैं  और आशा करते  हैं की इसे और सुन्दर बनाने में जनता का सहयोग उन्हें मिले | क्यूँ की किसी भी सड़क को या चौराहे को सुन्दर बना देना तो सरकार का काम है लेकिन उसे संभालना और उसको वैसी  ही  हालत  में रखना यह जनता का काम है |

हम जिलाधिकारी भानुचंद्र गोस्वामी जी  से आशा  करते हैं की वो अवश्य अपने कार्यकाल के दौरान हमारे जौनपुर को पर्यटकों के आने जाने के लायक अवश्य बनावा देंगे |
..............एस एम् मासूम



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जानिये कौन से न्यूज़ पोर्टल कामयाब होंगे और कौन से अंतरजाल में नाकाम ?

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कल मेरे कलेक्ट्रेट परिसर स्थित पत्रकार भवन में "आज के परिवेश में सोशल मीडिया"विषय पर एक गोष्ठी के दौरान दिए गए मशविरे पे कुछ लोगों ने आग्रह किया की आपने जो कहा कुछ वक़्त के अँधेरे में खो जायेंगे के विषय पे अधिक जानकारी दें |

तो भाइयों जानकारी आपके सामने है |

आज का दौर वेब पत्रकारिता का दौर कहा जा सकता है | आज पूरी दुनिया द्वारा अंतरजाल के बढ़ते इस्तेमाल को देखते हुए यह समझा जा रहा है की आने वाला समय वेब पत्रकारिता का ही होगा |इस वेब पत्रकारिता को हम  इंटरनेट पत्रकारिता, ऑनलाइन पत्रकारिता, सायबर पत्रकारिता भी कह सकते हैं|

वेब पत्रकारिता  कंप्यूटर और इंटरनेट के सहारे संचालित ऐसी पत्रकारिता है जिसकी पहुँच किसी एक पाठक, एक गाँव, एक प्रखंड, एक प्रदेश, एक देश तक नहीं बल्कि समूचा विश्व है |भारत में बढ़ते संचार साधनों से पत्रकारिता के क्षेत्र में भी करियर के अवसर उजले हुए हैं|

आज जौनपुर में अनगिनत वेब पोर्टल्स बन चुके हैं जिनमे से कुछ अपना स्थान बना लेंगे और कुछ समय के अँधेरे में खो जायेंगे |


जिसके मुख्य कारण होंगे :-

१. अंतरजाल  की सही तकनीकी को सही तरीके से या बिना समझे इस्तेमाल |

२. मीडिया सेंटर द्वारा दी गयी ख़बरों को कॉपी पेस्ट करते हुए वैसे ही पोस्ट कर देना जैसे वो मिली थी | अंतरजाल और प्रिंट मीडिया में यही अन्तर है की वहाँ एक ही खबर हजारों अखबार में दी जा सकती है उसका कोई नुकसान नहीं लेकिन वेबसाइट पे जो खबर सबसे पहले डाली गयी उसकी ही पहचान होगी बाकी वेबसाइट सर्च में नहीं गिनी जायेंगी और बहत बार उसे सर्च हटा देता है |
३.ओरिजिनल ख़बरों का न डाला जाना |
४. पाठको में ख़बरों के प्रति विश्वसनीयता का पैदा न कर पाना |
५. सही टेम्पलेट ,प्लेटफ़ॉर्म या डिजाईन का चुनाव न करना |
६ दिशाहीन पत्रकारिता :- उस बात का पता ना होना की किस प्रकार के पाठको तक आपको पहुंचना है |
७. न्यू मीडिया का सही तरीके से इस्तेमाल ना करना |
८. अन्य न्यूज़ वेबपोर्टल को प्रतिद्वंधि समझ के उनसे न जुड़ना |

इत्यादि

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कलांपुर गॉव तहसील शाहगंज ज़िला जौनपुर का भूला हुआ इतिहास |

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जैसा की जौनपुर का इतिहास की जानकारी रखने वाले जानते हैं की इस शहर की तरक्की शार्की समय में बहुत हुयी थी और आस आप का इलाका या तो शार्की समय में वजूद में आया या  कुछ तुग़लक के समय में आबाद हुआ | सूफियों का आगमन जौनपुर और आस पास के इलाकों में शार्की  समय से ही शुरू हो गया था जो अधिकतर इरान से आये थे और तैमूर लंग के ज़ुल्म से बचते हुए शार्की राज्य में इन्होने पनाह ली | आज भी इस सूफियों की यादें जौनपुर से बिहार तक क़ब्रों और मजारों के रूप में मौजूद हैं |

लेखक असद जफ़र 
यहाँ की कुछ मशहूर हस्तियों में सैयद मोहम्मद जाफ़र मरहूम जो गांधीवादी थे और जिन्हीने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के साथ फॉरवर्ड ब्लॉक को स्थापित किया था का नाम हमेशा याद किया जाता रहेगा | आज राजनीति में सक्रिय जनाब सिराज मेहदी भी इसी गाव से ताल्लुक रखते हैं | जनाब असद जाफर और उनके भाई जिया जाफर जो सैयद मोहम्मद जाफ़र मरहूम के भतीजे हैं आज दुनिया में नाम पैदा कर रहे हैं और अपने वतन जौनपुर को विश्वपटल पे लाने की कोशिश में लगे हुए हैं |



हमारे मित्र और कलांपुर निवासी जनाब असद जफ़र साहब ने मुझे कलांपुर का इतिहास भेजा जिसके लिए मैं दिल से उनका आभारी हूँ | आप भी जानिये कलांपुर का इतिहास असद जफ़र की ज़बानी |


उत्तर प्रदेश की राजधानी से २०० किलोमीटर की दुरी पर एक गांव जिसने हिंदुस्तान की आज़ादी में एक महत्पूर्ण योगदान किया तथा संविधान के लिखे जाने में भागीदारी सराहनीय है। यह मेरा गांव है उसका नाम कलानपुर है और वह ज़िला जौनपुर ब्लॉक - खेतासराय में स्थीत है। यह मुख्यता शिया मुस्लमान बहुल गांव है जहाँ सैकड़ो सालो से भैस/गाय नही काटी गयी, कोई शराब की दुकान नही है साक्षरता १००% है। मुस्लिम परिवार मुहर्रम के शुरुआती १० दिनों में दुनिया के तमाम मुल्को से एकत्रित होते है फिर अपनी नौकरी/कारोबार पर वापस हो जाते है और ११ महीने २० दिन उनके घरो और खेतो की देखभाल इस गांव में रहने वाले दलित और दुसरी गैर-मुस्लिम लोगो के ज़िम्मे होती है। गज़ब का भाईचारा बेमिसाल मुहब्बत जो आज के नफरत भरे राजनीतिक परिवेश में अपवाद लगता है।


कलांपुर तहसील शाहगंज ज़िला जौनपुर का एक गॉव जिसका इतिहास बहुत रोचक है मेरी बहन नाहीद वर्मा में सन १९७३ में जब गांव के बारे में एक शोध किया और इस सिलसिले में गांव के कुछ विद्वानों से बात की तो पता चला कि कलाँपुर का इतिहास मोहम्मद बिन तुग़लक़ के आगमन से जुड़ता है। कहते है तुग़लक़ के साथ एक महान सूफ़ी भी भारत आये थे और उस समय कलाँपुर पर राजभर का शासन था और राजभर के नौयते पर सूफ़ी कलाँ ने कलाँपुर में बसने का फैसला किया।


सूफी कलाँ पर्सिया के एक छोटे से गॉव के रहने वाले थे और शायद बानी-उम्मिया जो की शिया विरोधी था उससे अपनी जान को खतरा देख वो भारत आ गये थे। उस समय कलाँपुर जंगल हुआ करता था और राजभर के प्रेम ने उन्हें अपनी तमाम उम्र यही रहने के लिये विवश किया। शाह सयेद कलाँ के वंशज भी कलाँपुर में ही बस गये। कहते है उनके बेटे सयेद ताहा और सयेद मीर उम्मे जरी मशहुर सुलेखक थे जो कलाँपुर में आबाद हो गये। सयेद मीर जरी के पाँच बेटे थे १. मीर मोहम्मद अली २. मीर तसद्दुक अली ३. मीर अली नक़ी ४. मीर तुफैल अली ५. मीर अली हुसैन। इन पाचो बेटो की नस्ल कलाँपुर की शिया आबादी का मुख्य कारण रही और कलाँपुर की गैर-मुस्लिम आबादी में अक्सरियत दलित और भर (एक जाति जो कृषि प्रधान है) की रही। विकास और समय के साथ अन्य जातीय दूसरे गॉव से आकर यहाँ बस्ती गयी जैसे तेली, लुहार, कुम्हार और फूलो का काम करने वाले। इस तरह गांव अपने आप में स्व-निर्भर होता गया, यही सामाजिक संरचना आज भी देखी जा सकती है। कलाँपुर के मुख्य विशेषता यह रही की मिया लोगो ने अन्य जातियों का सदा की सम्मान किया और इतिहास में किसी भी प्रकार के उत्पीड़ण का कोई उद्धरण समान्यता नही मिलता। मोहर्रम यहाँ बड़ी श्रदा के साथ मनाया जाता है जो बिना गैर-मुस्लमान आबादी के सहयोग के मुमकिन नही हो सकता गांव की गैर-मुस्लिम आबादी को ईमाम साहेब (ईमाम हुसैन) से काफी उम्मीदे रहती है वो उनकी सारी मुरादे पुरी करते है। शिया मुसलमानो की अनदेखी और व्यवहार से गैर-मुस्लमान आबादी मोहर्रम से कुछ वर्ष दुर रही मगर ईमाम हुसैन से दुरी उन्हें वापस आने के लिये प्रेरणास्रोत बनी और आज भी उनकी बड़ी संख्या ईमाम हुसैन की आखरी विदाई को ग़मगीन बनाने में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करती है।


कलांपुर का मशहूर इमामबाड़ा 
कलाँपुर पहली बार चर्चा में १८५७ में आया जब अँगरेज़ हुकुमरानों ने ग़दर को कुचलने के लिये नागरा के तहसीलदार मीर सुब्हान अली, सब-इंस्पेक्टर हाजी मीर आबिद हुसैन शैख़ मोहम्मद मेहंदी को ग़दर कुचलने और अँगरेज़ हुकुमत को सहयोग करने के एवज़ में काफी ईनाम और ज़मीन दी। इसी के साथ गाँधीवाद जो व्याप्त था अदृष्‍ट प्रभाव भी दिखने लगा था उसकी अगुवाई स्वर्गीय सयेद मोहम्मद जाफ़र कर रहे थे जो इसी गॉव से सम्बन्ध रखते थे और मेरे बड़े अब्बा थे और परिवार के दबाव को दरकिनार कर वह स्वन्त्रता संग्राम में पुरी तरह सक्रीय भूमिका निभा रहे थे।

बाबा साहब  आंबेडकर 
यहाँ बताना आवश्यक होगा की स्वर्गीय सयैद मोहम्मद जाफ़र के पिता यानि मेरे दादा तहसीलदार थे और उनको यह घोषणा करनी पड़ी की उनका अपने पुत्र से कोई सम्बन्ध नही है कारण पारिवारिक ज़िम्मेदारिया खुल कर अपने पुत्र का समर्थन करने से रोकती रही। सन १९३०अन्तरिम सरकार का गठन होना था और खुटहन निर्वाचन-क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार स्वर्गीय केशव देव मालवीय मैदान में थे मुक़ामी ज़म्मीदार उनके विरोध में थे और क्षेत्र के लोगो पर उनका काफी प्रभाव था स्वर्गीय मोहम्मद जाफ़र ने अपने काम और गांधीवादी विचारधारा के प्रचार और प्रसार के बल पर स्वर्गीय श्री मालवीय को विजय दिलाई। इसी कलाँपुर के एक किसान जिसका नाम पालारू था यूनियन जैक को उतार कर हिन्दुस्तान के झण्डे को लहरा कर गॉव के लिये एक मिसाल बना। आगे चल कर स्वर्गीय सयैद मोहम्मद जाफ़र ने नेता सुभाष चन्द्र बोस के साथ मिल फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया।



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शाही किले पे लगा यह खम्बा जौनपुर के गंगा जमुनी तहजीब की पहचान है |

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माना जाता  रहा है की किसी शहर की जनता की मानसिकता को समझना हो तो उस शहर के इतिहास को अवश्य पढ़ें और यह बात जौनपुर के लिए सौ प्रतिशत सही साबित होती है |

जौनपुर शहर गोमती नदी के किनारे बसा एक सुंदर शहर है जो अपना एक वि‍शि‍ष्‍ट ऐति‍हासि‍क, धार्मिक  एवं राजनैति‍क अस्‍ति‍त्‍व रखता है| यहाँ पे गोमती नदी की सुन्दरता आज भी देखते ही बनती है और आज भी इसके शांतिमय  तट लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं |कभी यह तट तपस्‍वी, ऋषि‍यों एवं महाऋषि‍यों के चि‍न्‍तन व मनन का एक प्रमुख  स्‍थल हुआ करता  था। 

यहीं महर्षि‍ यमदग्‍नि‍ अपने पुत्र परशुराम के साथ रहा करते थे | बौध सभ्यता से ले कर रघुवंशी क्षत्रि‍यों वत्‍सगोत्री, दुर्गवंशी तथा व्‍यास क्षत्रि‍य,भरो एवं सोइरि‍यों का यहाँ राज रहा है | कन्नौज से राजा  जयचंद जब यहाँ आया तो गोमती नदी की सुन्दरता से मोहित हो के उसने यहाँ अपना एक महल जाफराबाद जौनपुर में नदी किनारे बनाया जिसके खंडहर आज भी मौजूद हैं | उसके बाद आये यहाँ शार्की जिनके काल में हि‍न्‍दु - मुस्‍लि‍म साम्‍प्रदायि‍क सदभाव का अनूठा दि‍गदर्शन रहा और जो वि‍रासत में आज भी वि‍द्यमान है। बोद्ध सभ्यता के निशाँ तो अब यहाँ बाक़ी नहीं रहे लेकिन ऐतिहासिक  मंदिरों और शार्की काल में बने भव्‍य भवनों, मस्‍जि‍दों व मकबरों के निशाँ आज भी इस शहर के वैभव की कहानी कह रहे हैं |

गंगा जमुनी तहजीब और साम्‍प्रदायि‍क सदभाव जौनपुर  की पहचान है और इसका कारन यहाँ का वो इतिहास है जसे मैंने आपके सामने रखा | आज  भी साम्‍प्रदायि‍क सदभाव और गंगा जमुनी तहजीब की पहचान है शाही किले के फाटक पे लगा यह खम्बा जिसपे एक क़सम लिखी हुयी है जो अपनी कहानी खुद कह रही है | 

जौनपुर के भव्य शाही किले  का निर्माण  फि‍रोज शाह ने 1362 में कराया था और इसका इस्तेमाल केवल शाही फ़ौज के लिए किया जाता था |  इसके सामने के शानदार फाटक को मुनीम खां ने सुरक्षा की दृष्‍टि‍ से बनवाया था तथा इसे नीले एवं पीले पत्‍थरों से सजाया गया था।

इसी बाहरी फाटक में दाखिल होने के पहले एक 6 फीट लम्बा खम्बा है जो एक गोल से चबूतरे पे लगा हुआ है | इस 6 फीट के खम्बे पे 17 लाइन की इबारत लिखी हुयी है | ये  शिला लेख गोलाकार चबुतरे पे लगा हुआ है और उस पे फारसी मे कुछ लिखा हुआ  है | इस शिला लेख की लिखावट सन ११८० हिजरी की है | इसको सैयेद मुहम्मद बशीर खां क़िलेदार ने शाह आलम जलालुद्दीन बादशाह तथा नवाब वज़ीर के समय मे लगवाया था |

सय्यद मुहम्मद बशीर खान ने यहा के शासक और कोतवाल ,फौजदार और निवासियो को चेतावनी दी कि "जौनपुर रियासत की आय मे सैय्यदो  व बेवाओं  तथा उनसे संबंधित और दीन की सहायता हेतू जो धन निश्चित है उसमे कोई कमी ना की जाय |

हिन्दुओ को राम गंगा और त्रिवेणी और मुसलमानो को खुदा व रसूल (स.अ व ) व पंजतन पाक ,सहाबा और चाहारदा मासूम और सुन्नी हजरात को चार यार की क़सम है कि यदि उन्होंने इसका पालन नहीं किया तो खुदा और रसूल की उसपे  धिक्कार होगी और प्रलय के दिन मुख पे कालिमा  लगी होगी तथा नर्क निवासियो की पंक्ती मे शामिल होगा | बारह रबिउल अव्वल  ११८० हिजरी को इस शुभ कार्य का पत्थर  सैयेद मुहम्मद बशीर खां क़िलेदार ने लगवाया  |

सन ११८० हिजरी में लगे खम्बे पे यदि किसी क़सम में हिन्दू ,शिया और सुन्नी का ज़िक्र है तो यह इस बात का गवाह है की उस समय भी हिन्दू शिया और सुन्नी मुसलमान यहाँ अधिक थे और मिलजुल के रहा करते थे |



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भूमंडलीकरण के अजगर ने बाजार के सहारे हमारी लोक संस्कृति को निगल लिया है: डॉ. पवन विजय

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अगहनी अरहर फूली है। पीली पंखुड़ियों की संगत नम खेतों में पके धान खूब दे रहे हैं।


अरहर के फूलो पे उतरी /कार्तिक की पियराई सांझ ।
लौटे वंशी के स्वर /बन की गंध समेटे /सिंदूरी बादल से /चम्पई हुयी दिशाएं
हलधर के हल पर उतरी /थकी हुयी मटमैली सांझ।

बजड़ी, तिल, पटसन और पेड़ी वाली ऊख के खेतों को देख कर करेजा जुड़ा जाता है। पोखर की तली में बुलबुले छोड़ते शैवालों जैसे हम बच्चों के मन में भी खुशियों के बुलबुले उठते है आखिर दीवाली का त्यौहार जो आने वाला है। बँसवारी के उस पार बड़े ताल में डूबता सूरज धीरे धीरे पूरे गाँव को सोने में सान देता है।

आलू की बुवाई की तैयारियां चल रही हैं। भईया मिट्टी और पसीने से सने हेंगा घेर्राते हुये बैलों के साथ आते दिखाई देते हैं। मैं दौड़ कर उनके हाथ से 'पिटना'ले लेता हूँ। कई दिनों से मेरा बल्ला सिरी लोहार के यहाँ बन रहा है तब तक क्रिकेट खेलने के लिए उस 'पिटने'से ही काम चला रहा हूँ। पीछे पीछे छटंका और झोन्नर कहार भी आ रहे है। झोन्नर हल चलाते हैं और छटंका हराई में दाना बोती जाती हैं। अम्मा जल्दी से उनके लिए मीठा पानी की व्यवस्था करती हैं।

झोन्नर गुणा भाग करते है 'इस बार दिवाली में पीपल वाले बरम बाबा को सिद्ध करूँगा।'छटंका चुटकी काटती है 'उस बरम को मऊवाली तेली के दूकान में भेज देना बरम दूकान की रक्सा करेगा ई सारे बलॉक वाले उसका पईसा खा जाते हैं।'फिर दोनों हो हो हो कर हँसते है। तभी बड़के बाबू इनारा से आते हैं नऊछी से हाथ पोंछते बोले "का हो राजू सबेरे जल्दी उठि जाया अन्तरदेसी में भइकरा भोरहरे पहुंचे के लिखे रहेन।"भईया सिर हिला देते हैं।

कालि बाबू अईहै ना? हम अम्मा से पूछते हैं। अम्मा हमें कोरां में लेकर माथा चूम लेती हैं।
यह परदेसियों के घर वापस लौटने का बखत है।

फूटी मन में फुलझड़िया पूरण होगी आस,
परदेसी पिऊ आ गए गोरी छुए अकास।


मतोली कोहार खांचा भर दियली, कोसा, घंटी, खिलौना, गुल्लक लिए दरवाजे बइठे हैं। बच्चों की रूचि बार बार घंटी बजाने और मिटटी के खिलौनों को देखने और छूने में है। बीच बीच में मतोली डपट लगाते जा रहे हां हां गदेला लोगन खेलौना जादा छू छा जिनि करा टूटि जाये । आवा हे मलिकिनीया हाली हाली लेई देई ला लम्मे लम्मे बांटे के बा। अम्मा दियली वगैरह लेकर उसे सिराने चली जाती हैं। मतोली का नाती खेत में धान के बोझ गिनने गया है। ग्रेजुएशन के दौरान समाजशास्त्री वाईजर की 'जजमानी प्रथा'पढ़ने से पहले ही इस किसिम की परंपरा से परिचय हो गया था।

सड़क पर प्रत्येक मोटर रुक रही है कोई न कोई परदेसिया उतर रहा है। हमारे गांव से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या सात गुजरता है। सड़क से होकर एक शारदा सहायक नहर मेरे गांव समेत कई गांवों को जोड़ती है। जैसे ही किसी के यहाँ का कोई नहर पर आता दिखाई देता है घर के सारे बच्चे दौड़ लगा देते हैं।

बड़े बाबूजी बरधा बाँध रहे लेकिन आँख कान सड़क की ओर है। मन ही मन बुदबुदाते जा रहे 'आजुकालि बसिया के कौनो निस्चित समे नाई रहिग। भेनसारे से दस बजिग अबे आयेन नाई।'अचानक उत्तर प्रदेश परिवहन की एक बस रूकती है। भईया चिल्ला उठते हैं 'बाबू आई गयेन'। हम में जो जहाँ था जो काम कर रहा था सब छोड़ कर नहर की और अपनी पूरी ताकत के साथ भागा हर कोई जल्दी से पिताजी के पास पहुँच कर बैग और सामान लेना चाहता था।

पूरे घर में रौशनी फ़ैल गयी थी। सबके चेहरे जगमगाने लगे। गुड और घी के अग्निहोत्री सुगंध वातावरण में संतुष्टि और समृद्धि के भाव लिए मन में खुशियाँ भरने लगती है।


अग्निहोत्र के बाद दियलियों को प्रकाशित किया जाता है। बड़के बाबू सारा निर्वाह करते हैं और हम सब उनका अनुसरण। पूजा के पश्चात परसाध। बड़े भईया घूरे पर जमराज के यहाँ दिया जलाने जाते हैं फिर सारे खेतों में दिया रखा जाता है। गौरीशंकर और चौरा धाम को भी दिए गए हैं। सबका ख्याल। आज के दिन हर कोने उजाला भेजने की कोशिश है। बिना पड़ाके के कैसी दीवाली। बच्चालाल के बम्म का जवाब एटमबम से देना है। सरगबान सीसी में डाल खूब छुड़ाये जा रहे। बहन को चुटपुटिया और छुड़छुड़ी वाले पटाखे दिए हैं। कुछ कल दगाने के लिए बचा के रख लिए जाते हैं।

दसो दिशाओं में घुली भीनी-भीनी गंध,
कण-कण पुलकित हो उठे लूट रहे आनंद।

आज के दिन सबको सूरन (जमींकन्द) खाना है। जो नहीं खायेगा वो अगले जनम में छछूंदर बनता है ऐसा दादी कहती थी। खाना पीना के बाद हम बच्चे विद्या जगाने के लिए किताब कापी लेकर बैठ जाते। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किये गए कार्यों का असर पूरे साल बना रहता है। रात में कजरौटा से ताजा काजर आँख में अम्मा लगाती थीं। फिर दीवाली के उजाले आँखों में बसाये हम सूरज के उजाले में आँख खोलते।

दीवाली के अगले दिन पूरा आकाश एकदम नीला दिखाई देता। हम बच्चे दियली इकठ्ठा करते फिर उससे तराजू बनाते। क्या दिन थे जब हमारी परम्पराएँ हमें जीवन देती थीं। बाज़ार हमारी जरूरतों को पूरा करता था उन्हें बढ़ाता नहीं था। क्या दिन थे जब थोड़ी सी तनखाह में सबके पेट और मन भर जाते थे। क्या दिन थे जब परिवार माने ढेर सारे रिश्ते होते थे। क्या दिन थे जब मिठाईयां घर पर बनती थी। क्या दिन थे जब सब लोग अपने थे।

दीवाली ने कर दिया ज्योतिर्मय संसार,
सबके आँगन में खिले सुख समृद्धि अपार।

सच तो यह है कि दीवाली धन से ज्यादा आपसी प्रेम, स्वास्थ्य और पर्यावरण पर आधारित त्योहार है ।गोवर्धन पूजा गोरू बछेरू के पालन पोषण और पर्वतो के संरक्षण से सम्बन्धित है। दीपोत्सव के धार्मिक निहितार्थ सामाजिक व्यवस्था और अध्यात्मिक उन्नति मे अत्यंत सहायक है । सभी मित्रो से करबद्ध निवेदन है कि प्रतीको को इतना महत्व ना दे कि किरदार ही बौना हो जाय।

भूमंडलीकरण के अजगर ने बाजार के सहारे हमारी लोक संस्कृति को निगल लिया है।अघासुर के वध की जरुरत है।












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जिसने शिराज़ ऐ हिन्द बनाया उसे ही भुला दिया |

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जौनपुर शार्की राज्य में विद्या का महत्त्वपूर्ण केंद्र बना उस दौर में लोग "दार्रुस्सोरूर शिराज़ ऐ हिन्द" के नाम से जानते थे | लेकिन आज के जौनपुर को देखते हुए मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं की मिस्र और स्पेन की  तरह जौनपुर भी अपनी इस विद्या भण्डार को महफूज़ ना कर सका |

आज आपको जौनपुर आने पे चरों तरफ मजारें, कब्रें देखने को मिलेंगे जो उस समय के शाहजादों,बादशाहों,सेनापतियों,जर्नलों,सुलतान,सूफियों और ज्ञानियों की है | आज बहुत से मजारों पे उर्स भी लगता है और तरह तरह की किवदंतियां भी मशहूर है लेकिन उनके बारे में जानने वाले बहुत कम है और बहुत बार तो यह देखा गया है की वहाँ उर्स लगाने वाले भी नहीं जानते की इन मजारों का इतिहास क्या है | म्रत्यु के निर्मम हाथों ने इन्हें मिटटी का ढेर बना दिया जो हर दौर में होता है लेकिन जौनपुर इनके इतिहास को नहीं संभाल सका जबकि इनकी  बर्बादी का मुख्या कारण सिकंदर लोधी का आक्रमण है जिसने ८०% जौनपुर को तहस नहस कर दिया |

शार्की समय में मुख्य जौनपुर सिपाह ,चाचक्पुर ,बेगम गंज ,पानदरीबा,पुरानी बाज़ार लाल दरवाज़ा इलाके में फैला था जिनमे शार्की समय के सुन्दर महलात से ले के फ़ौज को छावनी तक मौजूद थी | मैंने अपने लेख में ऐसी बहुत से मजारों का ज़िक्र किया है  जिनके साथ ज्ञानियों और बादशाहों का नाम जुडा हुआ है |

इन विद्वानों की मजारों और क़ब्रों का यह हाल है की लोग यहाँ से इंटें चुरा के ले जाते हैं बहुत से जगहों पे घर बना लिए गए है और केवल इनके निशानात ही नहीं ख़त्म हुए बल्कि इन विद्वानों की लिखी किताबों को बड़ी बड़ी खान्खाहों में या तो दीमक चाट गए या गल गायों है | आज भी यदि तलाश की जाय तो जौनपुर में उस युग के विद्वानों की लिखी किताबें मिलेंगे जिन्हें या तो लोगों ने अनदेखा कर दिया है या फिर छुपा के रखा है यह समझे बिना की ज्ञान छुपाने से नहीं बताने से बढ़ता है |

ये एक ऐसा शहर है जहां रामचंद्र जी करार बीर दैत्य का अंत करने आये, तो यहाँ पे दुर्वास ऋषि ,यमदग्नि ऋषि ,कोठिया बीर ,परशुराम , जैसे लोग आके  बस गए और यहाँ के शांत गोमती घाट पे ताप करते समय गुज़ारा |

आज यहाँ की गोमती किनारे जहां सुंदर घाटों को होना चाहिए था वहाँ मल मूत्र और गन्दगी फैली मिला करती हैं या लावारिस खंडहर मिलते हैं |


जौनपुर तुगलक समय से राजनीति का गढ़ रहा है और शार्की समय इसका स्वर्ण युग कहा जाता है |यह और बात है की बोद्ध समय में भी इतिहासकारों के अनुसार जौनपुर व्यापार का मुख्या केंद्र  रहा है | जौनपुर अपनी धरोहरों को संभालने में नाकाम रहा है  और आज भी इस इंतज़ार में है की कोई तो आयगा जो इस विश्वपटल पे वो स्थान दिलायगा  जो इसे मिलना चाहिए था और यहाँ की धरोहरों को संरछित करेगा जीवित करेगा |

...एस एम् मासूम


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10 का सिक्का लेने से मना किया तो हो सकता है भारतीय मुद्रा के अपमान का मामला दर्ज |

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 10 रूपये के सिक्के को लेकर मुसीबत बढ़ती जा रही है। अनेक सिक्का लेने से इन्कार कर रहे है।  दुकानदार और ग्राहक में कई जगह सिक्के के लेन देन में विवाद हो रहा है। अगर समय रहते  अधिकारी नही चेते तो 10 रूपये के सिक्के पर से लोगो का  विश्वास समाप्त हो जायेगा । जो  भारतीय मुद्रा का यह उपहास होगा। नगर के  ओलंदगंज, चहारसू , कोतवाली सहित  आदि बाजारो में दुकानदार 10 रूपये का सिक्का लेने से हाथ खड़ा कर दे रहे है।

बैंक अधिकारी से बात की गई तो उन्होंने बताया कि न तो रिजर्व बैंक और न ही सरकार ने ऐसा कोई नोटिफिकेशन जारी किया है कि कौन सा सिक्का असली है और कौन सा नकली। अगर कोई 10 का सिक्का लेने से मना करता है तो इसके लिए उसे सजा भी भुगतनी पड़ सकती है। ऐसे लोगों के खिलाफ भारतीय मुद्रा के अपमान का मामला दर्ज किया जा सकता है।


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