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जौनपुर के ज़ुल्क़दर बहादुर सय्यद नासिर अली का घराना इतिहास के पन्नो से |

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सय्यद नासिर अली ज़ुल्क़द्र बहादुर जौनपुर के मशहूर ज्ञानी संत सय्यद अली दाऊद की नस्ल से थे जो आज से ७३२ वर्ष पहले जौनपुर पे बस गए थे | जनाब सय्यद अली दाऊद  साहब हजरत मुहम्मद (स.अ.व) की 21 वीं नस्ल थे और बहुत ज्ञानी थे | इनकी कब्र आज  भी  मुहम्मद  हसन कॉलेज के पीछे सदल्लिपुर (सयेद अली पूर ) में देखी जा  सकती  है  जिसकी देख रेख वहाँ पे बसे हिन्दू परिवार के लोग करते हैं|

शार्की  समय में हुआ जौनपुर में महान संतो का आगमन जिनकी नस्ले आज भी यहां रहती है ।  जौनपुर में इब्राहिम शार्की का नाम ,उसका इन्साफ और नेकदिली की बातें सुन के तैमूर के आक्रमण के कारण बहुत से अमीर ,विद्वान, प्रतिष्ठित व्यक्ति ,कलाकार जौनपुर में शरण लेने आने लगे । इब्राहिम शाह ने हर महान संतो, विद्वानो और कलाकारों को इज़्ज़त दी और पद,जागीर इत्यादि दे के सम्मानित किया और जौनपुर में बसाया ।

बहुत मशहूर है कि इब्राहिम शाह के दौर में ईद और बकरईद पे नौ सौ चौरासी विद्वानो की पालकियां निकला करती थी जिनमे से एक सय्यद अली दाऊद भी थे जिनकी नस्ल से सय्यद नासिर अली ज़ुल्क़द्र बहादुर का सम्बन्ध था |

सय्यद अली दाऊद एक मशहूर  संत थे लाल दरवाज़ा मस्जिद के मदरसे हुसैनिया में पढ़ाते थे और उनको शार्की  महारानी बीबी राजे ने चित्रसारी के पास रहने को घर और कुछ गाँव दिए थे | आज यह इलाका जहां सय्यद अली दाऊद रहा करते थे मुहम्मद हसन कॉलेज पे पीछे पड़ता है जिसका नाम आज भी सदल्ली पुर (सय्यद अली पुर) है और यंही पे सय्यद अली दाऊद  क़ुतुबुद्दीन साहब की कब्र भी मौजूद है जिसपे कुछ हिन्दू घर चादर और फूल आज भी अकीदत से चढाते हैं | REF: Tajalli e Noor  and Ibid

सय्यद अली दाऊद को लाल दरवाज़ा के सामने मुहल्लाह सिपाह गाह में भी रहने का एक घर दिया गया था जिसके निशाँ आज भी मौजूद हैं | इनके  घराने वाले इब्राहिम लोधी द्वारा उस इलाके को नष्ट करने के बाद वहाँ नहीं रहे और लाल दरवाज़ा से अलग हमाम दरवाज़ा पे आ गए फिर कटघरे से होते हुए आज पान दरीबा में बस गए जहां आज भी उनका खानदान रहता है  |

सय्यद नासिर अली ज़ुल्क़द्र बहादुर  ने  दीवान काशी नरेश मौलवी गुलशन अली कजगाँवी से  शिक्षा प्राप्त की और बाद में अंग्रेज़ी सरकार में उच्च पद पे नौकरी  कर ली । अपनी योग्यता और कुशलता के चलते उस समय इन्हे डिप्टी कलक्टर का पद प्राप्त हुआ जहाँ इनकी तख्वाह ७०० रुपये महीना थी । इनको बाद में ज़ुल्क़द्र बहादुर और खान बहादुर का खिताब भी मिला | अपने अंतिम समय में  १८६६ पे जिलाधीश की पदवी पे रहते इनका देहांत इलाहबाद में हो गया । 

उनके घराने का एक घर जिसे आज मदरसा नासरिया के नाम से जाना जाता है आज भी मौजूद है जिसे उन लोगों ने वहाँ से पानदरीबा जाते वक़्त कौम  के नाम वक्फ कर दिया था|  यह घराना जौनपुर में ७३२ साल पुराना है जिसे आज लोग अपने समय के मशहूर सय्यद ज़मींदार खान बहादुर ज़ुल्क़द्र के घराने के नाम से जानते हैं | इनके रिश्तेदार पानदरीबा,सिपाह और कजगांव में फैले हुए हैं |

लाल दरवाज़े के पास एक मुहल्लाह सिपाह गाह है जिसे बीबी राजे ने इसी  खानदान  के  पूर्वज सैयेद अली  दाऊद की  शान  में बसाया था और वहाँ पे एक विहार और महिलाओ का कॉलेज १४४१ में बनवाया और उसके बाद यह लाल दरवाज़ा मस्जिद बनवाई और सैयेद अली  दाऊद  को वहीँ बसा  के  उनकी निगरानी में दे दिया |

जौनपुर के इस ७३२ साल पुराने घराने का ज़िक्र इतिहास की किताबो में मिलता है जिनमे से "IBID"जौनपुर नामा कुछ ख़ास किताबें  है | १९६५ में एक शजरा (Race Chart} कजगांव  में सय्यद मुहम्मद जाफ़र साहब ने छपवाया और ऐसा ही एक शजरा इंग्लैण्ड से भी छपा है जो इस खानदान वालों के पास देखा जा सकता है |

यह है उस घराने का इतिहास जिसका मैं हिस्सा हूँ और यह घराना जौनपुर में पिछले ७३२ सालों से रह रहा है|  एस एम् मासूम 




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