माना जाता रहा है की किसी शहर की जनता की मानसिकता को समझना हो तो उस शहर के इतिहास को अवश्य पढ़ें और यह बात जौनपुर के लिए सौ प्रतिशत सही साबित होती है |
जौनपुर शहर गोमती नदी के किनारे बसा एक सुंदर शहर है जो अपना एक विशिष्ट ऐतिहासिक, धार्मिक एवं राजनैतिक अस्तित्व रखता है| यहाँ पे गोमती नदी की सुन्दरता आज भी देखते ही बनती है और आज भी इसके शांतिमय तट लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं |कभी यह तट तपस्वी, ऋषियों एवं महाऋषियों के चिन्तन व मनन का एक प्रमुख स्थल हुआ करता था।
यहीं महर्षि यमदग्नि अपने पुत्र परशुराम के साथ रहा करते थे | बौध सभ्यता से ले कर रघुवंशी क्षत्रियों वत्सगोत्री, दुर्गवंशी तथा व्यास क्षत्रिय,भरो एवं सोइरियों का यहाँ राज रहा है | कन्नौज से राजा जयचंद जब यहाँ आया तो गोमती नदी की सुन्दरता से मोहित हो के उसने यहाँ अपना एक महल जाफराबाद जौनपुर में नदी किनारे बनाया जिसके खंडहर आज भी मौजूद हैं | उसके बाद आये यहाँ शार्की जिनके काल में हिन्दु - मुस्लिम साम्प्रदायिक सदभाव का अनूठा दिगदर्शन रहा और जो विरासत में आज भी विद्यमान है। बोद्ध सभ्यता के निशाँ तो अब यहाँ बाक़ी नहीं रहे लेकिन ऐतिहासिक मंदिरों और शार्की काल में बने भव्य भवनों, मस्जिदों व मकबरों के निशाँ आज भी इस शहर के वैभव की कहानी कह रहे हैं |
गंगा जमुनी तहजीब और साम्प्रदायिक सदभाव जौनपुर की पहचान है और इसका कारन यहाँ का वो इतिहास है जसे मैंने आपके सामने रखा | आज भी साम्प्रदायिक सदभाव और गंगा जमुनी तहजीब की पहचान है शाही किले के फाटक पे लगा यह खम्बा जिसपे एक क़सम लिखी हुयी है जो अपनी कहानी खुद कह रही है |
जौनपुर के भव्य शाही किले का निर्माण फिरोज शाह ने 1362 में कराया था और इसका इस्तेमाल केवल शाही फ़ौज के लिए किया जाता था | इसके सामने के शानदार फाटक को मुनीम खां ने सुरक्षा की दृष्टि से बनवाया था तथा इसे नीले एवं पीले पत्थरों से सजाया गया था।
सय्यद मुहम्मद बशीर खान ने यहा के शासक और कोतवाल ,फौजदार और निवासियो को चेतावनी दी कि "जौनपुर रियासत की आय मे सैय्यदो व बेवाओं तथा उनसे संबंधित और दीन की सहायता हेतू जो धन निश्चित है उसमे कोई कमी ना की जाय |
हिन्दुओ को राम गंगा और त्रिवेणी और मुसलमानो को खुदा व रसूल (स.अ व ) व पंजतन पाक ,सहाबा और चाहारदा मासूम और सुन्नी हजरात को चार यार की क़सम है कि यदि उन्होंने इसका पालन नहीं किया तो खुदा और रसूल की उसपे धिक्कार होगी और प्रलय के दिन मुख पे कालिमा लगी होगी तथा नर्क निवासियो की पंक्ती मे शामिल होगा | बारह रबिउल अव्वल ११८० हिजरी को इस शुभ कार्य का पत्थर सैयेद मुहम्मद बशीर खां क़िलेदार ने लगवाया |
सन ११८० हिजरी में लगे खम्बे पे यदि किसी क़सम में हिन्दू ,शिया और सुन्नी का ज़िक्र है तो यह इस बात का गवाह है की उस समय भी हिन्दू शिया और सुन्नी मुसलमान यहाँ अधिक थे और मिलजुल के रहा करते थे |

Admin and Owner
S.M.Masoom
Cont:9452060283