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मर्सिया मीर अनीस का अंदाज़ और उनके जौनपुरी शागिर्द |

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 ज़ुल्क़दर बहादुर नासिर अली और शागिर्द मीर अनीस मोहममद मोहसिन|
एक समय था जब जौनपुर में ज्ञान का समंदर बहता  था और हर छेत्र के ज्ञानी यहाँ बसते थे जिनके बारे में आज बहुत कम लोग जानते हैं | मेरी कोशिश यही रहती है की उन छुपे हुए खजाने को सामने लाया जाय जिस से दुनिया यह जान सके की जौनपुर आखिर है क्या जिससे यहाँ की धरोहरों को मिटने से बचाया  जा सके | हमारा खानदान जो जौनपुर के मशहूर ज़मींदार ज़ुल्क़दर बहादुर का खानदान कहा जाता है यह  मीर अनीसी अंदाज़ में मर्सिया पढने के लिए भी जाना जाता  है |


मीर अनीस का नाम तो सबने सुना है और उनके मर्सिये का मुकाबला आज तक कोई नहीं कर सका | मर्सिया शब्द अरबी मूल शब्द 'रिसा'से बना है जिसका अर्थ होता है किसी की मृत्यु पर विलाप करना और विशिष्ट रूप में कर्बला के मैदान में हज़रत मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन की शहादत के विषय लिखा जाता  रहा है | है।  लखनऊ ,कानपूर ,फैजाबाद और हैदराबाद में मीर अनीस की यादें आज भी मौजूद हैं  और इन्ही यादों में एक घराना जौनपुर का भी है जिसे ज़ुल्क़दर बहादुर सय्यद नासिर अली का घराना कहा जाता है |


 जिस समय हमारे दादा के दादा ज़ुल्क़दर बहादुर सय्यद नासिर अली (१८६८ ) डिप्टी कलेक्टर कानपुर थे उस समय उनके बेटे मुहम्मद मोहसिन ने मीर अनीस की शागिर्दी कर ली और इतने मशहूर,  शागिर्द हुए की मीर अनीस जो भी लिखते थे उसे अपने शागिर्द मुहम्मद मोहसिन जौनपुरी के पास अवश्य भेजते थे | मुहम्मद मोहसिन ने ४८ मर्सिये भी लिखे और अंदाज़ पढने का मीर अनीस वाला अपनाया जो आज तक इस खानदान में देखा जा सकता है | फिर इसी खानदान से मर्सिये मीर अनीस के अंदाज़ को जिंदा रखते बहुत से लोग मर्सिये में माहिर हुए जिनमे कुछ ख़ास नाम हैं | मोहम्मद मोहसिन (अव्वल)  के पुत्र  मोहम्मद  अहसन(अव्वल)  , हामिद हसन ,सय्यद मोहम्मद नासिर अली (दोउम) ,मोहम्मद मोहसिन (दोउम)मुहम्मद अहसन (दोउम) इत्यादि नाम मशहूर हैं | इन सभी के मर्सिये पढने की ख़ास बात यही है की इनका पढने का अंदाज़ वही है जो मीर अनीस के पढने का नदाज़ हुआ करता था |


मैंने अपने जीवन में ज़ुल्क़द्र (दोउम) नासिर अली को १८ सफ़र के रोज़ जौनपुर के हमारे घर ज़ुल्क़द्र मंजिल में मर्सिये ख्वानी का एहतेमाम करते और पढ़ते देखा है जिसमे हमारे घराने का हर फर्द मर्सिया पढ़ा करता था | सबसे पहले सबसे छोटा बच्चा पढता , फिर उसे बड़ा और अंत में मोहम्मद मोहसिन के बाद ज़ुल्क़द्र (दोउम) नासिर अली खुद पढ़ते थे | ये सारे बच्चे अपने दादा ज़ुल्क़द्र (दोउम) नासिर अली की निगरानी में मर्सिया सीखा और पढ़ा करते थे इसलिए इस खानदान का हर शख्स इस हुनर को जानता है लेकिन इसे पूरी तरह से ज़ुल्क़द्र मंजिल में रहने वाले सय्यद मोहम्मद अहसन ने अपनाया जो आज भी दूर शहरों में पढने जाया करते हैं |


मुहम्मद अहसन

इस घराने की सबसे अलग बात यह है की इस घराने ने  कभी  मर्सिया पढने के अपने इस हुनर को अपनी शोहरत का ज़रिया नहीं बनाया क्यूंकि हज़रत मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन की शहादत पे विलाप करने के लिए लिखा जाता है और इसको शोहरत के लिए इस्तेमाल उचित नहीं |









लेखक : सय्यद मोहम्मद मासूमघराना ज़ुल्क़दर बहादुर नासिर अली |


  मीर अनीस के घराने वाले बता  रहे हैं मीर अनीस के शागिर्द ज़ुल्क़दर  बहादुर नासिर अली जौनपुरी के घराने के बारे में |
Marsiya Khwani ka Jaunpur ke ghraane zulqdar se talluq --By Mohammad Ahsan



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