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भारतीय सभ्यता और संस्कारों के खिलाफ मनाया जाने वाला यह पर्व अब जौनपुर में भी अपनी जडें जमाने लगा है |

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वेलेंटाइन दिवस या संत वेलेंटाइन दिवस को प्रेम दिवस के रूप में पश्चिमी देशों के ७०% लोग १४ फरवरी  को मनाते  हैं जिसमें प्रेमी एक दूसरे के प्रति अपने प्रेम का इजहार वेलेंटाइन कार्ड भेजकर, फूल देकर, या मिठाई आदि देकर करते हैं| ये और बात  है की ये दिन शुरुआत में संत वेलेंटाइन की शहादत के कारण मनाया  जाता था और इसे "प्रेम दिवस"की जगह "शहीद  दिवस का दर्जा प्राप्त था |

 इस संत वेलेंटाइन दिवस के प्रेम दिवस में बदले जाने के पीछे कोई ठोस दलील की जगह दंतकथाओं को आधुनिक समय में जोड़ दिया गया। इनमें वेलेंटाइन को एक ऐसे पादरी के रूप में दिखाया गया जिसने रोमन सम्राट क्लोडिअस II के एक कानून को मानाने से इंकार कर दिया था जिसके अनुसार जवान लड़कों को शादी न करने का हुक्म दिया गया था। सम्राट ने संभवतः ऐसा अपनी सेना बढ़ाने के लिए किया होगा, उसका ये विश्वास रहा होगा की शादीशुदा लड़के अच्छे सिपाही नहीं होते हैं। पादरी वेलेंटाइन इस बीच चुपके से जवान लोगों की शादियाँ करवाया करते थे। जब क्लोडिअस को इस बारे में पता चला, उसने वेलेंटाइन को गिरफ्तार करवाकर जेल में फेंक दिया.इस सुन्दर दंत कथा को और अलंकृत करने के लिए कुछ अन्य किस्से जोड़े गए। मारे जाने से एक शाम पहले, उन्होंने पहला "वेलेंटाइन"स्वयं लिखा, उस युवती के नाम जिसे उनकी प्रेमिका माना जाता था। ये युवती जेलर की पुत्री थी जिसे उन्होंने ठीक किया था और बाद में मित्रता हो गयी थी। ये एक नोट था जिसमें लिखा हुआ था "तुम्हारे वेलेंटाइन के द्वारा"|

जैसे जैसे पश्चिमी सभ्यता का असर भारतवर्ष में होता गया ये वेलेंटाइन दिवस भी नौजवानों में  अधिक पहचाना जाने लगा और धीरे धीरे ये भारत में  भारतीय सभ्यता और पश्चिमी सभ्यता के टकराव दिवस के रूप में भी उभर के आया | भारत वर्ष में जहां एक तरफ नौजवान इस दिन का पूरा लुत्फ़ उठाते दिखते है तो दूसरी तरफ उन्ही नौजवान प्रेमियों के माता पिता अपने को इस सब से अनजान ज़ाहिर करते नज़र आया करते है | महानगरों में जहां पश्चिमी सभ्यता को अब लोगों ने  तरक्की के नाम पे कुबूल करना शुरू कर दिया है वहाँ इस दिवस का जोश अधिक देखा जाता है | 

भारतीय सभ्यता ,संस्कारों और धार्मिक कानून के खिलाफ मनाया जाने वाला यह पर्व अब जौनपुर जैसे छोटे शहरों में भी अपनी जडें जमाने लगा है और नौजवान अपने माता पिता और परिवार वालों से छुप  के इसका आनंद लेते पार्को, और पर्यटन स्थलों इत्यादि जगहों पे देखे जा सकते है |


आशा तो यही है की आगे आने वाले दिनों में इसे माता पिता और बुज़ुर्ग ना चाहते हुए भी मान्यता देने को मजबूर होंगे | अब इसे जौनपुर की तरक्क़ी कहा जाय या नौजवानों की आजादी ?

अब ये आजादी हो या तरक्की  या भारतीय सभ्यता और पश्चिमी सभ्यता का टकराव लेकिन इस दिवस पे  राजनीति करने वालों के छद्म जाल से इसे बचाए रखने में ही समाज की भलाई है |

लेखक एस एम् मासूम 


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