कुलपति प्रो .सुंदर लाल जी से बात चीत के कुछ अविस्मरणीय अंश
May 2012
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्विद्यालय का स्तर ऊंचा उठाने में कुलपति प्रो. सुंदर लाल जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. "बापू बाज़ार"कि शुरूआत “पूरब बानी ब्लॉग” , “स्वम सेवा प्रकल्प “ का गठन, वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्विद्यालय को ऑनलाइन फार्म की सुविधा इत्यादि जैसे उनके योगदान को कभी बुलाया नहीं जा सकता. कुलपति प्रो . सुंदर लाल जी की दीर्घायु कि दुआओं के साथ आप सभी के सामने हाज़िर है जौनपुर सिटी डाट इन के संचालक एस. एम. मासूम और कुलपति जी से बात चीत के कुछ अविस्मरणीय अंश .
एस एम मासूम: आप अपने बारे मैं कुछ बताएं?
कुलपति प्रो. सुंदर लाल:मैं मूलरूप से मेरठ का रहने वाला हूं. मेरी शिक्षा भी वहीं से हुई | ग़रीब परिवार मैं जन्मा, नगरपालिका के स्कूलों से शिक्षा ग्रहण करता हुआ मेरठ विश्वविद्यालय से पी एच डी की और वंही प्रवक्ता के रूप में नौकरी शुरू की | उसके बाद आगरा विश्वविद्यालय से जुड़ा , प्रोफ़ेसर हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट से होता हुआ कुलपति के पद तक पहुंचा | २०१० में वहां से अवकाश ग्रहण किया और एक प्राइवेट संस्था में सीनिअर प्रोफ़ेसर के पद पे काम करने लगा | २१ दिसम्बर २०११ से वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्विद्यालय मैं कुलपति के पद पे काम कर रहा हूं |
एस एम मासूम: इन १५ महीनो के छोटे से कार्यकाल मैं आपने जो भी सुधार करने कि कोशिश कि उसमें आपको कहाँ तक सफलता मिली?
कुलपति प्रो. सुंदर लाल:हमारी मौजूदा शिक्षा प्रणाली में बहुत सारी कमियां भी हैं और उनको दूर करने के लिए आप डंडा नहीं चला सकते | इस प्रणाली मैं पारदर्शिता से ही कुछ हद तक सुधार संभव नज़र आता है और इसके लिए मैं प्रयासरत हूं | इन्टरनेट से विश्वविध्यालय को जोड़ने , वेबसाईट पे परीक्षा फार्म और दूसरी जानकारियां उपलब्ध करवाने जैसी शुरूआत हो चुकी है | विश्विध्यालयों पे कुछ सरकार के बंधन होते हैं और यूं. डी. सी. गाइड लाइन होती है उनको सामने रखते हुए जितना सुधार संभव हो सकता है करने कि कोशिश किया करता हूं |
एस एम मासूम: आप ने बापू बाज़ार कि शिरुआत क़ी, इस बारे मैं कुछ जानकारी हम सभी को दें.|
कुलपति प्रो. सुंदर लाल:शिक्षा संस्थानों को समाज के साथ जोड़ने क़ी यह एक कोशिश है | जब मैं जौनपुर आया तो मैंने यहाँ पे ग़रीबी अधिक देखी, बूढ़े लोगों को नंगे पैर सड़कों पे चलते देखा ,बच्चों को फटे पुराने कपड़ों में देखा | वहीं दूसरी और ऐसी भी लोग मिले जिनके पास ५०-५० जोड़ी जूते हैं, इतने कपडे हैं क़ी एक दो बार से अधिक पहन भी नहीं पाते ऐसे मैं एक विचार आया क्यों ना उनसे मांग के जिनके पास अधिक हैं गरीबों को दिया जाए और वो भी ऐसे क़ी उनके सम्मान को ठेस भी ना पहुंचे | और बस ऐसे ही बापू बाज़ार क़ी शुरुआत हो गयी | जब राष्ट्रीय सेवा योजना के कैडेट घर - घर जाकर इन सामानों को जुटाते तो उनके मन में समाज के निर्बल लोगों के प्रति प्रेम और सम्मान आता है जो जीवनपर्यंत बना रहता है | एक तरफ छात्रों को समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी समझ आती है वही दूसरी तरफ गरीबों की सम्मान सहित सहायता हो जाती हैं | इसलिए बाज़ार में वस्तुओं का प्रतीकात्मक दाम रखा जाता है | हमें जीवन में वस्तुओं का मूल्य समझना चाहिए | बहुत सारी वस्तुएं जो हमारे लिए उपयोगी नहीं होती हैं, वो दुसरे के लिए बहुमूल्य हो सकती हैं| इसलिए ये हमारी नैतिक रूप से जिम्मेदारी होती हैं कि हम इन वस्तुयों को जरूरतमंदों तक पहुचाएं |बापू बाज़ार के माध्यम से हम इसी काम को कर रहे हैं | जौनपुर,गाजीपुर,आज़मगढ़ और मऊ में लगे बापू बाज़ार में हजारों लोगों ने अब तक खरीदारी की हैं | मजेदार बात तो ये होती हैं कि कुछ ही घंटो में बाज़ार का सारा सामान बिक जाता हैं. इनको बेचने के लिए खुद विभिन्न महाविद्यालय के छात्र - छात्राएं दुकानदार बन जाते हैं | इस बापू बाज़ार को मैं इतना आगे बढ़ाना चाहता हूं क़ी बड़े बड़े शोपिंग माल क़ी तरह गरीब लोग अपने लोगों में गर्व से कहें क़ी वो यह सामान बापू बाज़ार से खरीद के लाये हैं | मानव और प्रकृति के संबंधों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि रोटी, कपड़ा और मकान तीनों की पूर्ति हमें प्रकृति से होती हैं |गाँधी जी ने कहा था प्रकृति से अपनी आवश्यकता भर ले और उसका तब तक प्रयोग करे जब तक उसका उपयोग हो सकता हैं | प्राकृतिक संसाधनों का पूरा प्रयोग हो इसलिए इस बाज़ार में इस्तेमालशुदा सामानों को लाया गया हैं |बापू बाजार के माध्यम से प्रकृति का सम्मान किया जा रहा |
एस एम मासूम:आपने वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय,जौनपुर का आधिकारिक ब्लॉग पूरब बानीशुरू किया, इसके बारे मैं हम सभी को कुछ बताएं |
कुलपति प्रो. सुंदर लाल:पत्रकारिता विभाग और छात्रों के सहयोग से पूरब बानी ब्लॉग का बनना संभव हो सका | इसके द्वारा विश्वविद्यालय से सबंधित खबरें, समय समय पे लोगों को दी जाती हैं | अब जल्द ही कम्युनिटी रेडियो भी शुरू करने जा रहे हैं | जिसके माध्यम से लोग एक दुसरे से जुडें और यहाँ के इतिहास, संस्कृति और कलाओं के बारे मैं एक दुसरे को बताएं. बुज़ुर्ग अपने अनुभव, इत्यादि दूसरों तक पहुंचा सकें |
एस एम मासूम: क्या शिक्षा के व्यवसायी कारण के बारे मैं आप कुछ कहना चाहेंगे?
कुलपति प्रो. सुंदर लाल:शिक्षा का आज जो स्वरुप हो चुका है जिसे व्यवसायीकरण भी कहा जा सकता है इसके दो पहलू हैं | पहला तो यह क़ी इससे एक फायदा हुआ है और वो यह क़ी पहले ५-६ किलोमीटर पे स्कूल हुआ करते थे बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए दूर दूर जाना होता था | आज यह स्कूल, कॉलेज जगह जगह मिल जाएंगे | इस से शिक्षा का प्रसार अवश्य हुआ है लेकिन इसका वो स्वरुप नहीं रहा जिसकी कल्पना कभी क़ी गयी थी | अब यह विध्यालय पढ़ने के लिए कम और धन अर्जित करने के लिए अधिक खोले जाते हैं जो क़ी एक चिंता का विषय है |
एस एम मासूम: आज क़ी शिक्षा प्रणाली, किताबों के बढ़ते बोझ और पढ़ाई के बाद बेरोजगारी के विषय पे कुछ अपने विचार हम सभी के सामने रखें|
कुलपति प्रो. सुंदर लाल: जैसा क़ी मैं पहले भी कह चुका हूं क़ी हमारी मौजूदा शिक्षा प्रणाली में बहुत सारी कमियां भी हैं और उनको दूर करने के लिए आप डंडा नहीं चला सकते | इस प्रणाली मैं पारदर्शिता से ही कुछ हद तक सुधार संभव नज़र आता है | गाँधी जी का काहना था क़ी शिक्षा को जीवनयापन से अवश्य जुड़ा होना चाहिए जो आज कल नहीं पाया जाता | आज क़ी पढ़ाई इतना पैसा और समय खर्च करने के बावजूद नतीजे मैं बहुत कुछ छात्रों को नहीं दे पा रही है | आज पहले के मुकाबले शिक्षित अधिक हैं लेकिन बेरोजगारी बढ़ती जा रही है | इसका हल यही है क़ी शिक्षा को जीवनयापन से जोड़ा जाए और विध्यालयों मैं ऐसे कोर्से शुरू किये जाएं जो क़ी छात्र को किसी भी स्तर पे पढ़ाई पूरा करके बाहर निकलने पे रोज़गार दिला सके |
एस एम मासूम:: आज क़ी शिक्षा नौकर बनाती है मालिक नहीं. क्या यह कहना सही हैं?
कुलपति प्रो. सुंदर लाल:आज यह सच है क़ी इस शिक्षा प्रणाली मैं सुधार क़ी आवश्यकता महसूस क़ी जा रही है लेकिन आज क़ी इस प्रणाली मैं भी ऐसे कोर्से मौजूद हैं जिनके द्वारा कोई भी छात्र अपना व्यवसाय शुरू कर सकता है | एक किसान यदि अपने बच्चे को आज MBA, BBA, MCA क़ी जगह मsc(ag) phd (ag) करवाए तो देखिये वो कैसे अपनी ही ज़मीन पे काम करते हुई कितनी तरक्की कर सकता है | इन संभावनाओं क़ी आज प्रचार करने क़ी आवश्यकता है.
एस एम मासूम: कुछ विशाविध्यालयों का नाम अधिक होता है वहाँ से किये कोर्से क़ी अहमियत भी अधिक हुआ करती है और कुछ क़ी कम. ऐसा क्यों है?
कुलपति प्रो. सुंदर लाल:किसी भी विश्विद्यालय को सरकार क़ी तरफ से कितने सहूलियतें मिलती हैं ,कितना अनुदान मिलता है,. फक्लिटी कैसी है, कैसे संसाधन उपलब्ध हैं ,सरकार से सालाना कितना धन मिलता है इन सभी बातों पे किसी भी विश्विद्यालय के या वहाँ पढाये जाते वाले कोर्से का स्तर तय होता है |
एस एम मासूम: आपका प्रेरणा स्त्रोत ?
कुलपति प्रो. सुंदर लाल:यह मेरा सौभाग्य रहा क़ी मुझे बेहरतीन शिक्षक मिले और वही मेरे प्रेरणा स्त्रोत भी रहे हैं. यह दुःख क़ी बात है क़ी आज ऐसे शिक्षकों क़ी भी कमी है जो अपने छात्रों का सही मायने मैं मार्गदर्शन कर सकें |
एस एम मासूम: आप अपना खाली समय कैसे गुजारते हैं?
कुलपति प्रो. सुंदर लाल:कुछ ख़ास नहीं पढना लिखना और प्रकृति के बीच बाग मैं टहलना.
एस एम मासूम: छात्रों को कोई सन्देश जो आप देना चाहें ? या शिक्षक से कुछ कहना चाहें |
कुलपति प्रो. सुंदर लाल:मेहनत का कोई शार्टकट नहीं है | छात्रों को अपने विचारों में पवित्रता लानी चाहिए | अच्छा उद्देश्य पवित्र विचार और मेहनत ही आप को सही मायने मैं कामयाबी दिला सकता है | आज समय की पुकार है कि शिक्षक अपनें तप बल से विद्यार्थियों को प्रेरणा दें,ताकि विद्यार्थी उनका अनुसरण कर अपनी मंजिल पा सकें .गुरु -शिष्य परम्परा कलंकित न हो इसके लिए गुरुजनों को सक्रिय होना होगा .उन्होंने कहा कि जहाँ एक ओर विद्यार्थी ज्ञान प्राप्ति के लिए संकुचित दृष्टिकोण अपना रहे हैं वहीं गुरुजन भी विद्यार्थियों के साथ उस तरह नहीं जुड़ पा रहे जैसे वे पहले जुड़ते थे.शिक्षक का मतलब केवल किताबी ज्ञान देना भर नहीं है अपितु उसे विद्यार्थियों के चतुर्मुखी विकास के लिए सोचना होगा.उन्हें अपनें ज्ञान का स्तर इतना बढ़ाना होगा ताकि उसके पांडित्य का प्रभाव विद्यार्थियों पर निश्चित रूप से पड़ सके क्योंकि आज का विद्यार्थी भी अब सजग और जागरूक है..उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को भी अपना ज्ञानचक्षु खुला और भावनाओं को जिन्दा रखना होगा. आज इस पुनीत दिन हम सबको एक-दूसरे की बेहतरी और सम्मान के लिए संकल्पित होना होगा. इस ज्ञानवर्धक बात चीत को सुनें
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