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लाल दरवाज़ा हो या झंझरी मस्जिद जौनपुर में आपको हर जगह सुलेख कला के नमूने मिल जायेंगे |

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झंझरी  मस्जिद पे लिखी इबारत सुलेख की बेहतरीन मिसाल 

अकबर बादशाह के समय में सुलेख कला का प्रचलन सबसे अधिक था जो अंग्रेज़ों की हुकूमत के आते आते ख़त्म सा होने लगा । जौनपुर में शर्क़ी समय या मुग़ल समय की इमारतों में इस कला की सुंदरता आज भी देखने को मिल जाय करती है ।

लाल दरवाज़ा हो या झंझरी मस्जिद या  इमारतें  आपको हर जगह इस सुलेख कला के नमूने मिल जायेंगे ।

जौनपुर के आस पास जिन इलाक़ो में इस सुलेख कला पदार्पण हुआ वो जगहे थी कजगाओ और माहुल और इसका श्रेय जाता है कजगाँव के मौलाना गुलशन अली जो दीवान काशी नरेश भी थे और राजा इदारत जहाँ को जो जौनपुर की आज़ादी की लड़ाई जो १८५७ में हुयी उसके पहले शहीद थे । 
लाल दरवाज़े पे लिखी आयतल कुर्सी



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