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जो अज़ादारी करता है हुसैन पे रोता है वो ज़ुल्म का साथ कभी नहीं देता | एस. एम् .मासूम

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जौनपुर | इस वर्ष जौनपुर में मीडिया के जानकार एस एम् मासूम जी ने इमाम बाड़ा बड़े इमाम  गूलार घाट पे पांच मजलिसें इस वर्ष पढ़ी  जिसका विषय था अज़ादारी  मजलिस पैगाम ऐ इंसानियत देती है ज़ुल्म के खिलाफ एक बड़ी जंग है | 
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१० मुहर्रम आशूरा का रोज़  है जिस दिन इमाम हुसैन को ज़ालिम बादशाह  यजीद ने भूखा  प्यासा शहीद  किया था | इस दिन  मुसलमान जो ग़म ए हुसैन मनाते हैं, शाम से ही घरों  मैं चूल्हा नहीं जलाते, बिस्तर  पे आराम से नहीं सोते, दिन मैं भी शाम के पहले खाना नहीं खाते और पानी नहीं पीते.दिन भर  रोते हैं शोक सभाओं मैं बैठ के और्मतम करते हैं.  या यह कह लें की ऐसे रहते हैं जैसे अभी आज ही किसी का इन्तेकाल हुआ है. यह इतिहास की ऐसी शोकपूर्ण घटना है कि जिसकी यादें १३७३  वर्ष से सारी दुनिया में लोग  मनाते हैं|


कितनी जगहों पर ग़ैर मुस्लिम भी इसको अपने रंग में मनाते हैं. मुहर्रम  का  चाँद  देखते  ही , ना  सिर्फ  मुसलमानों  के  दिल  और  आँखें  ग़म  ऐ हुसैन  से  छलक  उठती  हैं , बल्कि हिन्दुओं  की  बड़ी   बड़ी   शख्सियतें  भी  बारगाहे  हुस्सैनी  में  ख़ेराज ए अक़ीदत पेश  किये  बग़ैर  नहीं  रहतीं|

एस एम् मासूम ने कहा  जो अज़ादारी करता है  हुसैन पे रोता है वो ज़ुल्म का साथ कभी नहीं देता |

यह इतिहास की ऐसी शोकपूर्ण घटना है कि जिसकी यादें साढ़े तेरह सौ वर्ष से मुसलमान और  ग़ैर  मुसलमान  सभी  मनाते हैं और मनाते  रहेंगे |

इस विडियो को अवश्य देखिएं जिसमे  अर्चना चावजी ने मेरे लेख को बड़े ही खूब्सूरत तरीके से पढ़ा है |







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