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मुग़ल काल के सुंदर नवयुवक शाहमबेग और अली क़ुलीच की प्रेम कहानी |

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शामबेग मज़ार ख़ास हौज़ 
इतिहास कारों ने लिखा की अकबर बादशाह के ख़ास लोगों में से  एक नाम  शाहमबेग का था  और  शाहम बेग की खूबसूरती दूर दूर तक मशहूर थी  यहां तक की कुलीच खान ज़मा   जिन्हें शाहजहाँ के  समय में जौनपुर का शासक बना के भेजा गया था वो भी शाहम बेग के प्रेम में पड गए  की उनके काम काज पे असर पड़ने लगा | बादशाह को जब इसका पता चला तो उसने शाहमबेग को क़ुलीच खान से अलग करने का हुक्म दिया लेकिन क़ुलीच खान पे इस हुक्म का की असर नहीं हुआ | बादशाह ने सुलतान जलावर को भेज के समझाने की कोशिश की लेकिन क़ुलीच खान शाहमबेग के प्रेम में ऐसा फ़िदा था की नहीं माना | यहां तक की बादशाह को खुद आना पड़ा और बादशाह के आने पे क़ुलीच खान मजबूर हो गया और शाहमबेग को खुद से अलग कर दिया |  क़ुलीच खान जमा ने शाहबेग को अलग तो किया लेकिन शाहबेग को उसने इतनी आज़ादी दे दी थी की वो उसके एकांत के समय में भी साथ रहता था | उसकी आदत यह हो गयी थी वो उन सरदारों जिनके हवाले  क़ुलीच खान ने उसे किया था उनके भी एकांत के समय में साथ रहने की आज़ादी चाहता था और मौक़ा मिलते ही उनकी पत्नियों के साथ भी आज़ादी की मांग करता | 

एक जागीरदार अब्दुर्रहमान जो शाहमबेग से प्रेम करने लगा था और उसने वादा किया की वो उसको  वही आज़ादी देगा जो क़ुलीच खान ने दी थी लेकिन कुछ समय बाद उसे धोका दे दिया ने तो शाहम बेग से उसका एक युद्ध हुआ जिसमे शाहम बेग मारा गया |  शाहम बेग के शव को अली क़ुलीच खान जौनपुर ले आया और बड़े प्रेम से एक मक़बरा बनाया और ख़ास हौज़ के एक टीले पे दफन कर दया | मक़बरा तो आज टूट चुका है लेकिन समाधी आज भी मौजूद है |

जौनपुर के शासक कुळीच खान और एक सुंदर युवक शाहबेग के प्रेम की निशानी है यह खास हौज़ चित्रसारी पे बानी शाहबेग की मज़ार जिसपे उनकी शान पे फ़ारसी में लिखवाया गया है |



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