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*शर्की सल्तनात के 85 वर्ष को जौनपुर का स्वर्णकाल कहा जाता है। एस एम मासूम*

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 *शर्की सल्तनात के 85 वर्ष को जौनपुर का स्वर्णकाल कहा जाता है। एस एम मासूम*

 

शर्की सल्तनत (1394) के 85 वर्ष को जौनपुर का स्वर्णकाल कहा जाता है और आज जो भी ऐतिहासिक धरोहरे आप देखते हैं उसमे से अधिकतर शर्की दौर की ही निशानियां है जबकि आज उस दौर के महलात, मस्जिदों ,बरहदारियों का 30% ही बचा है बाकी लोधी वंश के जौनपुर पे आक्रमण के दौरान तोड़ दिया गया था।

आज भी जौनपुर के समाज पे शर्की दौर की छाप दिखाई देती है । इसी दौर में जौनपुर में सूफी संतों का आगमन बड़े पैमाने पे हुआ और शर्की बादशाह उनकी बहुत इज्जत करते थे।इसका सबसे बड़ा सबूत यह है की जौनपुर की अधिकतर मस्जिदें किसी ना किसी सूफी संत की शान में  शर्की  बादशाहों ने बनवाई और जौनपुर के मुहल्लों के अधिकतर नाम इन्ही सूफियों के नाम पे रखे जाते थे जो आज भी प्रचलन में हैं।

 ऐसा ही एक मोहल्ला है सदल्लीपुर जिसका सही नाम है सय्यद अली पुर जो एक सय्यद संत सय्यद अली दाऊद के नाम पे पड़ा है जिनकी शान।में लालदारवाजा मस्जिद शर्की क्वीन बीबी राजे ने बनवाई थी ।

सय्यद अली दाऊद एक मसहूर संत थे लाल दरवाज़ा मस्जिद के मदरसे में पढ़ाते थे और उनको बीबी राजे ने चित्रसारी के पास रहने को घर और कुछ गाँव दिए थे | आज यह इलाका जहां सय्यद अली दाऊद रहा करते थे मुहम्मद हसन कॉलेज पे पीछे पड़ता है जिसका नाम आज भी  सदल्ली पुर (सय्यद अली पुर) है और यंही पे सय्यद अली दावूद  क़ुतुबुद्दीन साहब की कब्र भी मौजूद है जिसपे कुछ हिन्दू घर चादर और फूल आज भी अकीदत से चढाते हैं |REF: Tajalli e Noor  and Ibid

लाल दरवाज़ा 1441- 47 के नाम से मशहूर मस्जिद जो बेगम गंज के इलाके में पड़ती है और मल्हनी पड़ाव की तरफ आते जाते लोग उसे हर दिन देखते हैं लेकिन यह बहुत कम लोगों को  यह पता है की लाल दरवाज़ा के नाम से जो मस्जिद आज जानी जाती है यह हकीकत में इसका नाम नहीं बल्कि इसके पास बीबी राजे का एक महल था जिसका दरवाज़ा लाल याकूत पथ्थर का बना था और वो दरवाज़ा पूरे शार्की राज्य में मशहूर था | उसी लाल दरवाज़े के नाम से इसे लोग पहचानने लगे जबकि लाल दरवाज़ा और यह मदरसा और मस्जिद शार्की क्वीन बीबी राजे का बनवाया हुआ है |
इस मस्जिद का अस्ल नाम मस्जिद सिपाहगाह है |

लाल दरवाज़े के पास एक मुहल्लाह सिपाह गाह है जिसे बीबी राजे ने बसाया था और वहाँ पे एक विहार महल और महिलाओ का कॉलेज १४४१ में बनवाया और उसके बाद यह लाल दरवाज़ा मस्जिद बनवाई | वो मदरसा तो आज मौजूद नहीं लेकिन लाल दरवाज़े के नाम पे मशहूर उसी मस्जिद में एक मदरसा है जो उसी मदरसा ऐ हुसैनिया के नाम से चलता है | इस लाल दरवाज़े मस्जिद के तीन गेट हैं जिसमे से पूर्व वाला गेट सबसे बड़ा है |

शाही भवनो में लाल दरवाज़ा नामक भवन बहुत अधिक प्रसिद्ध था जिसका केंद्रीय द्वार प्रशस्त तथा बहुत ही ऊंचा था । इसमें लगे हुए फाटक को एक व्यक्ति खोल भी नहीं सकता था । लाल दरवाज़ा भवन में ऐसे बहुमूल्य और अनुपम लाल रंग के पत्थर जोड़े गए थे जो रात्रि में हलकी सी भी रौशनी पाते ही जगमगा उठते थे । यही कारण था इसका नाम इसका नाम लाल दरवाज़ा प्रसिद्ध हो गया । इसके दरवाज़े पे क़ुरआन की आयतें लिखी हुयी थी । इसे भी इब्राहिम लोधी ने पूरा तोड़ दिया ।
लाल दरवाज़ा भी अपनी सुलेख कला के लिए मशहूर था जो अब नहीं बचा लेकिन लाल दरवाज़ा मस्जिद में मेम्बर के पास आज भी आपको सुलेख कला के नमूने मिल जायेंगे | इस सुलेख कला का श्रेय कजगाँव के मौलाना गुलशन अली जो दीवान काशी नरेश भी थे और राजा इदारत जहाँ को जाता है |

सय्यद अली दाऊद की निगरानी में लालदारवाजा मस्जिद और मदरसा हुसैनिया चलता था। सय्यद अली दाऊद का पुराना घर सिपाहगाह में था जिसके निशाँ आज भी मौजूद है और उनकी कब्र सदल्ली पुर इलाके में मौजूद है | सय्यद अली दाऊद के घराने वाले आज भी पानदरीबा में रहते हैं और खानदान जुलकद्र बहादुर के नाम से मशहूर है
सय्यद अली दाऊद की क़ब्र है जो सदल्ली पूर  इलाक़े में  है और आस पास हिन्दू घर बसे है जो इन्हे सय्यद बाबा कहते हैं और चादरें चंढाते है ।



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