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जौनपुर का शाही पुल पूरी दुनिया में मशहूर है।

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 जौनपुर का शाही पुल पूरी दुनिया में मशहूर है।

 


 आदि गंगा गोमती के पावन तट पर बसा जौनपुर भारत के इतिहास में अपना विशेष स्थान रखता है। यह शहर कभी बौध धर्म का केन्द्र रहा था और जब उजड़ा तो एक बार फिर से शर्कीकाल में समृध्दशाली राजवंश ने इसे सजाया और जौनपुर को अपनी राजधानी बनाकर इसकी सीमा दूर दूर तक फैलाया। ऋषि-मुनियो ने तपस्या द्वारा इस भूमि को तपस्थली बनाया, बुध्दिष्टो ने इसे बौध धर्म का केन्द्र बनाया। हिन्दू-मुस्लिम गंगा-जमुनी संस्कृति गतिशील हुई। इसे भारतवर्ष का मध्युगीन पेरिस तक कहा गया है और शिराज-ए-हिन्द होने का गौरव भी प्राप्त हैं।
नगर को दो भागों में विभाजित करने वाला ,गोमती नदी पे बने ऐतिहासिक शाही पुल का र्नि‍माण अकबर के शासनकाल में उनके आदेशानुसार सन् 1564 ई० में मुइन खानखाना ने करवाया था। यह भारत में अपने ढंग का अनूठा पुल है और इसकी मुख्‍य सड़क पृथ्‍वी तल पर र्नि‍मित है। पुल की चौड़ाई 26 फीट है जि‍सके दोनो तरफ दो  फीट तीन इंच चौड़ी मुंडेर है। दो ताखों के संधि‍ स्‍थल पर गुमटि‍यां र्नि‍मित है। पहले इन गुमटि‍यों में दुकाने लगा करती थी। पुल के मध्‍य में चतुर्भुजाकार चबूतरे पर एक वि‍शाल सि‍ह की मूति है जो अपने अगले दोनो पंजो पर हाथी के पीठ पर सवार है|

कहा जाता है की एक बार अकबर बादशाह जौनपुर आया तो शाही किले में निवास के दौरान वो गोमती  नदी में नौका विहार को गया जहां उसने देखा की एक औरत चादर में मुह छुपे रो रही है | जब उस से उसके रोने का कारण पूछा गया तो उसने बताया की वो गोमती के उस पार से सूत बेचने आई थी लेकिन शाम को देर हो जाने के कारण नाव वाला चला गया | वो अपने दो छोटे बच्चों को छोड़ के आई थी जो अब अकेले हैं अब वो किस हाल में होंगे यही सोंच के रो रही हूँ | बादशाह अकबर ने तुरंत उसे नाव पे बिठा के गोमती उस पार पहुंचा दिया और आदेश दिया की दीं दुखियों और विधवाओं के लिए नाव का प्रबंध  किया जाय और मुनीन खान खाना को आदेश दिया की यहाँ गोमती पे एक पुल बनाया जाय जो जौनपुर इस पार को उस पार से जोड़े और पुल ऐसा मज़बूत बने की क़यामत तक टिका रहे | शाही किले के पास पुल का निर्माण आसान नहीं था क्यूँ की उस समाज के जानकारों का कहना था की यहाँ पे गोमती में पानी भी अधिक रहता है और यहाँ पे एक ऐसा कुंड भी है जिसकी गहराई किसी को मालूम नहीं | लेकिन बादशाह का आदेश था

इसलिए यह तय किया गया की गोमती का रुख मोड़ना होगा और सबसे पहले पांच ताख का दछिणी पुल बना के गोमती का रुख मोड़ दिया गया | इस पुल के निर्माण पे पथ्थर सीसा और लोगे की शहतीरों का इस्तेमाल अधिक किया गया है | इस पांच ताख के दछिणी पुल पे एक पथ्थर लगवा दिया जिसके अनुसार इसका निर्माण १५६४ इ० पे हुआ | यह पथ्थर आज भी लगा हुआ है जिसमे पर्शियन भाषा में इबारत लिखी है जिसे मुश्किल से पढ़ा जा सकता है | इस पांच ताख के पुल की हालत मजबूती की नज़र से तो बढ़िया है लेकिन देख रेख की कमियाँ महसूस की जा सकती हैं | जगह जगह पीपल इत्यादि के पेड़ निकल आये हैं और सड़क के खम्बों को लगाते समय इसकी सुन्दरता खराब न हो इस बात का ध्यान नहीं रखा जा रहा है | इस पांच पुल के नीचे अब नदी नहीं बहती इसलिए वहाँ जंगल जैसा रूप उभर के आ गया है जहां सफाई और सुन्दरता का ध्यान बिलकुल भी नहीं दिया जा रहा है जबकि इस स्थान पे भी बढ़िया घाट बना के पर्यटकों और जौनपुर वासियों को इस पुल को करीब से देखने योग्य बनाया जा सकता है |

इस पांच ताख के पुल के बाद दस ताख का वो पुल बनाया गया जिसके नीचे नए मार्ग से आज गोमती नदी बह रही हैं | इस पुल के निर्माण में इसकी सुन्दरता और मजबूती पे विशेष ध्यान दिया गया है जिससे यह बहुत ही सुंदरा और विराट  बन सका है | इस पुल की चौडाई २६ फीट है जिसके दोनों तरफ दो फीट तीन इंच चौड़ी मुंडेर बनी हुयी है और इस पुल के हलके स्थम्बो पे २८ गुमटियां बानी हुयी है जिनमे से २६ गुमटी का निर्माण ओमनी नामक  जिलाधीश ने करवाया था | इन गुमटियों से इस पुल की सुन्दरता और भी बढ़ जाती है |

पांच ताख के दछिणी पुल की लम्बाई १७६ फीट और उत्तरी तस ताख वाले पुल की लम्बाई ३५३ फीट है | यह दुनिया का पहला पुल है जिसकी सतह नगर की सड़क के धरातल के सामान है उसके बाद एक पुल १८१० में लन्दन में ऐसा बना जिसे वाटर लू के नाम से जाना जाता है | इस पुल को बनवाने में तीन से चार साल का समय और उस समय के लगभग तीस लाख रुपये लगे थे |

दोनों पुल के मध्य में एक गज  सिंह की मूर्ती रखी हुआ है और उत्तरी दस ताख के पुल के कसरी बाज़ार वाले छोर के अंत में पुल से सता एक शाही हमाम हुआ करता था जो अब बंद करवा दिया गया है | उसी शाही हमाम से सटे घाट पे प्राचीन हनुमान मंदिर और लाल मस्जिद है और कई  लगभग २०० वर्ष पुराने मंदिर मोजूद है | यह सबसे उचित स्थान है घाट बनाने के लिए जिस से मंदिरों के आस पास के घाट से गन्दगी दूर की जा सके क्यं की आज कल शाही हमाम के बंद दरवाए के आस पास  गन्दगी का अम्बार लगा हुआ है जिस से हनुमान मंदिर में दर्शन के लिए आने वालों को असुविधान होती है |

जिस प्रकार इस पुल के निर्माण के शुरू में जब पांच ताख का पुल बना तो एक पथ्थर उसकी तारिख का लगा उसी प्रकार से जब पुल बन के तैयार हो गया तो एक पथ्थर हमाम (पुल के अंत करेसी बाज़ार वाले छोर ) पे एक पथ्थर लगवाया गया जिसमे फारसी में इस के पूरे होने का वर्ष ( ९७५ हिजरी ) १५६८ ई ०लिखा है |

इस पुल के शाही हमाम वाले  दरवाज़े वाले छोर से चौथे  ताख के गोलाकार पे दो रहस्यमयी मछलिया और पांचवे ताख के गोलाकार पे दो रहस्यमयी घोड़े बने हुए हैं |

ये पुल इतना मज़बूत है की अब तक बहुत सी बाढ़ झेल चुका है लेकिन इसकी मजबूती पे  कोई असर नहीं पडा | इस पुल ने १७७४, १८७१ ,१८६४,१८७१,१९०३,१९३६, १८५५ ,१९८२,ई ० की बाढ़ को झेला है | हर दिन यातायात में वृद्धि हो रही है और पूरे शहर का यातायात इसी पुल पे निर्भर करता है लेकिन फिर भी इसकी मजबूती पे कोई फर्क नहीं पड़ा है |

आज केवल आवश्यकता है इस पुल पे उग आये पेड़ों को साफ़ करवाया जाय ,इसकी साफ़ सफाई पे घ्यान दिया जाय और इसके नीचे घाट का निर्माण करवाया जाय जिस से पर्यटक इस विश्व के अजूबे को देखें और इसकी सुन्दरता के किस्से बयान करें |

लेखक : एस एम् मासूम

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