माना जाता है की ख़ास हौज में इब्राहिम शाह शर्की ने 1402-1444 में अपने महल के निकट राजियों के स्नान हेतु कृतिम झील का निर्माण कराया था। झील के मध्य में टीले पर शहंशाह बाबा का मजार है। सर्वप्रथम चितरसारी निवासी बांके लाल गुप्त और बुद्धू साव बाबा के उपासक थे। वर्ष 1977 से 1997 तक प्रत्येक वर्ष मजार पर चादरपोशी रस्म किया करते थे जिनके देहांत के बाद उनके भतीजे राजकुमार तब से अब तक चादरपोशी की रस्म अदा करते आ रहे हैं। टीले पर शाहम बेग जो अकबर बादशाह का खास सैनिक था, की कब्र उसी टीले पर है। टूटा हुआ कुत्बा आज भी मौजूद है जिस पर 969 हिजरी अंकित है।
