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लाल दरवाज़ा का निर्माण बीबीराजे ने एक सैयद संत की शान में करवाया|

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लाल दरवाज़ा १४४७  लाला दरवाज़ा मस्जिद का निर्माण १४४७ में सुलतान महमूद शार्की के दौर में उनकी पत्नी बीबी राजे ने करवाया और उसे उस दौर के एक सैय्यद आलिम जनाब सयेद अली दाउद कुतुब्बुद्दीन को समर्पित कर दिया | लाला दरवाज़ा इस इलाके का नाम बीबी राजे के महल के गगनचुम्बी दरवाज़े के कारण पड़ा जो सिंदूरी रंग की नक्काशी से संवारा गया था | यह महल आज के लाल दरवाज़ा मस्जिद के उत्तर पश्चिम की तरफ बेगम गंज में पड़ता था जिसका निशाँ आज केवल कुछ खंडहरों के सिवाए कुछ बाकी नहीं है |

 सय्यद अली दाऊद एक मसहूर संत थे लाल दरवाज़ा मस्जिद के मदरसे में पढ़ाते थे और उनको बीबी राजे ने चित्रसारी के पास रहने को घर और कुछ गाँव दिए थे | आज यह इलाका जहां सय्यद अली दाऊद रहा करते थे मुहम्मद हसन कॉलेज पे पीछे पड़ता है जिसका नाम आज बी सदल्ली पुर (सय्यद अली पुर) है और यंही पे सय्यद अली दौड़ क़ुतुबुद्दीन साहब की कब्र भी मौजूद है जिसपे कुछ हिन्दू घर चादर और फूल आज भी अकीदत से चढाते हैं |REF: Tajalli e Noor  and Ibid


जनाब सय्यद अली दाऊद  साहब हजरत मुहम्मद (स.अ.व) की 21 वीं नस्ल थे और बहुत ज्ञानी थे | इनको लाल दरवाज़ा के सामने मुहल्लाह सिपाह गाह में भी रहने का एक घर दिया गया था जिसके निशाँ आज भी मौजूद हैं | जनाब सय्यद अली दौड़ के घराने वाले इब्राहिम लोधी द्वारा उस इलाके को नष्ट करने के बाद वहाँ नहीं रहे और लाल दरवाज़ा से अलग हमाम दरवाज़ा पे आ गए फिर कटघरे से होते हुए आज पान दरीबा में रहते हैं | उनके घराने का एक घर जिसे आज मदरसा नासरियाके नाम से जाना जाता है आज भी मौजूद है जिसे उन लोगों ने वहाँ से पानदरीबा जाते वक़्त वक्फ कर दिया था|

 यह घराना जौनपुर में ७०० साल पुराना है जिसे आज लोग अपने समय के मशहूर सय्यद ज़मींदार खान बहादुर ज़ुल्क़द्र के घराने के नाम से जानते हैं | इनके रिश्तेदार पानदरीबा,सिपाह और कजगांव में फैले हुए हैं |  लाल दरवाज़े के पास एक मुहल्लाह सिपाह गाह है जिसे बीबी राजे ने बसाया था और वहाँ पे एक विहार और महिलाओ का कॉलेज १४४१ में बनवाया और उसके बाद यह लाल दरवाज़ा मस्जिद बनवाई | वो मदरसा तो आज मौजूद नहीं लेकिन लाल दरवाज़ा मस्जिद और  मदरसा ऐ हुसैनिया आज भी मौजूद है | इस लाल दरवाज़े के तीन गेट हैं जिसमे से पूर्व वाला गेट सबसे बड़ा है | जनाब सय्यद अली दाऊद की २१स्वीन नस्ल आज पान दरीबा जौनपुर में रहती है | इनका नस्ल नाम बहुत सी इतिहास की किताबों में देखा जा सकता है |जिसमे से ख़ास हैं इबिद और शजरा जो १९६५ में कजगांव से इंजिनियर सय्यद मोहम्मद जाफ़र साहब ने छपवाया था | वैसे यह शजरा (Race Chart) पकिस्तान और इंग्लैंड से भी छपा है जो इस खानदान के पास देखा जा सकता है |

 

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