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पुरानी बाजार का व पूर्वांचल का प्रसिद्ध व ऐतिहासिक ऐतिहासिक भरत मिलाप

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  जौनपुर। पुरानी बाजार का ऐतिहासिक भरत मिलाप धूमधाम से बुधवार को मनाया गया जिसमें लगभग डेढ़ दर्जन लागे षामिल हुई। कोतवाली चैराहे से आकर्षक लाग व झाकियां प्रमुख रास्तों से होती हुई पुरानी बाजार पहुंची। जिसमें युवक बैंड बाजे की धुन पर भक्ति गीतों के बीच थिरकते नजर आ रहे थे। इसके अलावा लाग में घोड़ा, हाथी, ऊंट सहित भरत षत्रुघ्न की झांकी षामिल रही। जिले का यह ऐतिहासिक भरत मिलाप आपसी सौहार्द का प्रतीक भी है। भरत मिलाप में हिन्दू भाइयों के साथ-साथ मुस्लिम वर्ग भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते है। जिससे शिराजे हिन्द की गंगा जमुनी तहजीब की डोर मजबूत होती है। भैय्या राम के आने में देर होने पर भरत के सब्र का बांध टूट जाता है। भरत विलाप करना शुरू कर देते हैं भरत के मार्मिक विलाप को देखकर दर्शको की आंखें नम हो जाती है। भरत मिलाप समिति के अध्यक्ष उमेश चन्द्र गुप्ता एवं महामंत्री पूर्व सभासद डा. रामसूरत मौर्या ने भगवान श्री राम का आरती उतारा। अध्यक्षता विमल सेठ तथा संचालन सुशील वर्मा एडवोकेट एवं राजदेव यादव ने किया। कार्यक्रम के अंत में लाग, झांकी व अखाड़ा में अव्वल आयी समितियों को पुरस्कृत किया गया। जिसमें वाराणसी की लाग को प्रथम एवं द्वितीय तथा जौनपुर की लाग को तृतीय पुरस्कार दिया गया।
मुंगराबादशाहपुर। श्री रामलीला कमेटी पुरानी सब्जी मण्डी के परिसर में पूर्वांचल का प्रसिद्ध व ऐतिहासिक भरत मिलाप हर्षोल्लास व धूम धाम से मनाया गया। राजा दशरथ के चारों लालों में प्रभू श्रीराम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न का प्रेम मिलन देखकर सजल नेत्रों से भाव भक्ति के आंसू टपक पड़े। श्रद्धालुओं द्वारा भीगी पलकों से प्रभु श्रीराम के उद्घोष से समूचा रामलीला परिसर गूंज उठा। एस0 डी0 एम विजय बहादुर सिंह सी0 ओ0 राम प्रसाद सिंह , चेयरमैन कपिल मुनि, पूर्व प्रधानाचार्य विनय कुमार गुप्त सहित रामलीला कमेटी के पदाधिकारियों ने विधिवत पूजन-अर्चन कर पुष्प अर्पित कर चारों भाइयों की आरती उतारी। राम दल, हनुमान दल, भरत दल, लवकुश दल व शंकर दल द्वारा समूचा नगर गगन चुम्बी द्वार व विद्युत सजावट से सच गया था। डेढ़ दर्जन से अधिक चैकी समितियों ने मनमोहक झांकी निकाली। जिसमें राॅयल क्लब, अमर ज्योति क्लब, नव उत्साहित, फाइव स्टार क्लब, वेलकम क्लब दुर्गा क्लब, न्यू लाॅयन्स क्लब, आजाद क्लब, जय माँ वैष्णो व अनुराग क्लब आदि थे। चैकियों पर दक्ष कलाकारों द्वारा रामायण व गीता ग्रन्थों पर आधारित नृत्य-गीत, राधाकृष्ण नृत्य, काली ताण्डव असुरों का वध, होली नृत्य, शिव पार्वती नृत्य व देश भक्तों की झांकी आदि देख दर्शकों ने सराहा। खराब मौसम में भी भोर तक दर्शक झांकी देखने के लिए डटे रहे। विधायक सीमा द्विवेदी व  ने विभिन्न दलों का उद्घाटन किया। स्पेक्ट्रम के डाॅयरेक्टर शेखर आनन्द पाण्डेय ने कई चैकियों का उद्घाटन किया। उद्घाटन के दौरान विधायक सीमा द्विवेदी ने कहा कि भगवान राम व भाई भरत का चरित्र आत्मसात करना ही अच्छे समाज की रचना में शुभ लक्षण है। रामलीला कमेटी के अध्यक्ष पशुपति नाथ मुन्ना का जगह-जगह मुख्य अतिथि के रूप में स्वागत किया गया। रामलीला कमेटी के पदाधिकारियों मेें प्रभाकर गुप्त, विवेक सोनी, चन्दन  राजेन्द्र गुप्त, बाबा, अजय कुमार गुप्त आदि की देख-रेख में चारों भाइयों का मिलाप कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

UP के कई मंत्री बर्खास्त और कईयो के विभाग बदले गए

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उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री राम नाईक ने आज मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव के प्रस्ताव पर (1) श्री राजा महेन्द्र अरिदमन सिंह मंत्री स्टाम्प तथा न्यायशुल्क पंजीयन व नागरिक सुरक्षा, (2) श्री अम्बिका चैधरी मंत्री पिछड़ा वर्ग कल्याण एवं विकलांग कल्याण,   (3) श्री शिव कुमार बेरिया मंत्री वस्त्र उद्योग एवं रेशम उद्योग, (4) श्री नारद राय मंत्री खादी एवं ग्रामोद्योग, (5) श्री शिवाकान्त ओझा मंत्री प्राविधिक शिक्षा, (6) श्री आलोक कुमार शाक्य राज्यमंत्री प्राविधिक शिक्षा, (7) श्री योगेश प्रताप सिंह 'योगेश भइया'राज्यमंत्री बेसिक शिक्षा, (8) श्री भगवत शरण गंगवार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम एवं निर्यात प्रोत्साहन विभाग को मंत्री पद से पदमुक्त कर दिया है। राज्यपाल ने पदमुक्त किये गये मंत्रियों के विभागों का कार्य अतिरिक्त कार्य प्रभार के रूप में मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव को आवंटित कर दिया है।





इसके अतिरिक्त श्री नाईक ने मुख्यमंत्री के दूसरे प्रस्ताव पर (1) श्री अहमद हसन मंत्री चिकित्सा एवं स्वास्थ्य परिवार कल्याण मातृ एवं शिशु कल्याण, (2) श्री अवधेश प्रसाद मंत्री समाज कल्याण अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण सैनिक कल्याण, (3) श्री पारस नाथ यादव मंत्री उद्यान खाद्य प्रसंस्करण, (4) श्री राम गोविन्द चैधरी मंत्री बेसिक शिक्षा,   (5) श्री दुर्गा प्रसाद यादव मंत्री परिवहन, (6) श्री ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी मंत्री होमगार्डस् प्रांतीय रक्षक दल, (7) श्री रघुराज प्रताप सिंह राजा भइया मंत्री, खाद्य एवं रसद, (8) श्री इकलाब महमूद मंत्री मत्स्य सार्वजनिक उद्यम, (9) श्री महबूब अली मंत्री माध्यमिक शिक्षा को आवंटित विभाग हटाकर उनके विभागों का कार्य मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव को अतिरिक्त प्रभाग के रूप में आवंटित कर दिया है। जबकि उक्त मंत्री बिना विभाग के अपने पद पर बने रहेंगे।

राज्यपाल श्री राम नाईक नए मंत्रियों को 31 अक्टूबर, 2015 शनिवार सुबह 10.30 पर राजभवन में आयोजित एक समारोह में पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलायेंगे।


सिकंदर लोधी कौन था और उसने जौनपुर को क्यू बरबाद किया ?

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प्रेमराज पूर का वो इलाक़ा जहा बदीय मंझिल बनी थी । 

जौनपुर को शार्क़ी बाद्शाहो ने बसाया और सुंदर बनाया लेकिन सिकंदर लोधी ने बरबाद कर  दिया । चलिये आज इस बात पे प्रकाश डालते है की सिकंदर लोधी कौन था और उसने जौनपुर को क्यू बरबाद किया ? बहलोल लोधी ने १४८६ ई ० मे अपने पुत्र बारबक शाह को जौनपुर का शासक बना दिया और खुद काल्पी चला गया उस समय तक बहलोल लोधी ने पूरे शार्क़ी राज्य पे क़ब्जा कर लिया था । बहलोल लोधी की मृत्यू १४८८ ई ० मी हो गयी और एक वर्ष बाद सिकंदर लोधी दिल्ली का बादशाह हो गया ।

इधर शार्क़ी राज्य मे हुसैन शाह की बहलोल लोधी से हार के बाद बडी उधल  पुथल मची थी और हुसैन शाह अभी भी अपनी खोई हुई शक्ति को हासिल करने की कोशिश कर रहा था । एक दिन सिकंदर लोधी को खबर मिली की जौनपुर मे बगावत हो गयी है और बारबक शाह भाग के बहराइच मे शरण ली है सिकंदर लोधी ने जैसे ही यह सुना तुरंत जौनपुर की तरफ चाल पडा और गुस्सा इतना था की निकलते समय नाश्ता भी नही किया और दिल्ली से दस दिन के भीतर ही जा पहुचा ।

उसने जगह जगह तलाश के हुसैन शाह को पराजित किया और जौनपुर का शासक फिर से बर्बक शाह को बना दिया लेकिन इस बार वो जौनपुर मे ६ महीने ठहरा और अपना सारा गुस्सा जो हुसैन शाह के कारण था शार्क़ी समय के बने सुंदर महलो और मस्जिद पे निकाला दिया । और यही से शुरू हुई जौनपुर की बरबादी की कहानी । सिकंदर लोधी ने जिन भवनो को नष्ट किया या नुक़्सान पहुचाया उन्मे से मुख्य है । लाल दरवाजा,राजे बीबी का महल ,प्रेमराज पूर की बदीय मंजिल, रोशन महल,और बहुत से शाही महलो को खतम कर दिया लेकिन उसके बाद उसने यहा की शार्क़ी समय की बनी मस्जिद को हाथ लगाया और खालीस मुखलीस मस्जिद को तोडा, झान्झरी मस्जिद तोडी लेकिन जैसे ही बडी मस्जिद पे हाथ लगाया तब तक मुसलमानो ने विद्रोह कर दिया और सिकंदर लोधी के खिलाफ फतवा जारी कर दिया गया जिसके बाद उसने तोड फोड बंद की और वापस दिल्ली चला गया

जौनपुर को एक पहचान मिली थी शार्क़ी समय मे और यह शार्क़ी राज्य की राजधानी एक शतक तक रहा लेकिन सिकंदर लोधी ने इसे जो बरबाद किया तो फिर यह आज तक नही बस सका । ।



मस्जिद हकीम मुहम्मद कोहॉल -- आज की शिया जामा मस्जिद

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मस्जिद हकीम मुहम्मद कोहॉल  -- आज की शिया जामा मस्जिद 



यह मस्जिद शाही पुल के उत्तरी किनारे पे नवाब वजीर के बाग के भीतर स्थित है  हकीम मुहम्मद कोहाल अकबर बादशाह के जमाने मे नेत्र चिकित्सक नियुक्त किये गये थे क्यू की आप उस समय के उच्च कोटी के हकीमो मे से एक थे । हकीम साहब इसी मस्जिद  के बाहर बैठा करते थे फिर एक दिन आमदनी काम होने के कारण वो आगरा चले गये और फिर कभी वापस जौनपुर नही आये ।



१५६५ ई ० मे मुनीम खानखाना की देख रेख मे इस मस्जिद का निर्माण हुआ  ।  इस मस्जिद से लागा हुआ एक घर और एक हमाम भी था जिसे मिर्जा शेखा ने अब्दुल मन्सूर खा से खरीद लिया जिसकी हालत खराब होने के कारण उसे तुडवा के वहा एक बगीचा लागवा दिया और चहारदिवारी खिचवा दी । बाद मे नवाब सआदत ली खा बुर्हानुल मुल्क ने इसे और मरम्मत करवाया ।

इसके उत्तरी मेहराब पे लिखा है|

फैजे किजे ला इलाह अस्त अज फजले मुहम्मदूर  रसूलिल्लाह अस्त
इ मस्जिद आली बिना करद हकीम ,असारे जमा अकबर शाह अस्त

अनुवाद :-
यह मस्जिद अल्लाह और मुहम्मद की कृपा से बनी ह और इसका निर्माण हकीम मुहम्मद कोहाल ने किया जाब अकबर बादशाह का दौर था

बीच के भीतरी मेहराब पे आय्तल कुर्सी लिखी है और दख्खिन  की तरफ लिखा है

शुद बा अहदे अकबर ए गाजी शहे मालिक रेक़ाब  ....

अनुवाद :-
अकबर बादशाह के शासनकाल तथा मुईन खान के समय मे ईश्वर की असीम अनुकंपा से इस मस्जिद का निर्माण हुआ ये खान खाना के समय मे मासूम खा का मकान था जो ईश्वर की कृपा से मस्जिद मे परिवर्तित हुआ । । यह मस्जिद सुलतान मुहम्मद ने बंवायी जो हकीम कोहाल के नाम से मशहूर थे । इसका १५६४ ई मे हुआ था ।


पिछले १२५ सालो से इस मस्जिद मी नमाज हो रही है और आज भी यह अच्छी हालत मे है । 

कजगाओ टेढ़वा का इतिहास

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यहां पे पहले ब्राह्मण रहा करते थे जिनके पुरखे आज भी  मौजूद है । सय्यद बड़े मीर जहा का सम्बन्ध मखदून आफताब ऐ हिन्द से मिलता है । सय्यद बड़े ने कजगाओ या सादात मसौन्दा सन  १३४९ में आबाद किया । यहां पे पहाड़ अली की एक बहुत प्रसिद्ध समाधी है जिनके कारण इसे आज कल लोग कजगाओ टेढ़वा के नाम से पुकारते हैं ।

इसी परिवार के सय्यद करमुल्ला खा नाम के एक व्यक्ति ने जागीर प्राप्त की थी । आगे चल के मौलवी  गुलशन अली बड़े ही मसहूर हुए । मौलवी  गुलशन अली राजा बनारस कर दीवान थे और उनके छोटे भाई सय्यद मुहम्मद मोहसिन उच्च कोटि के कलाकार और गणितज्ञ थे और ज्ञान हासिल करने के लिए उन्होंने पश्चिमी और इस्लामी मुल्को की यात्रा की । मौलवी गुलशन अली चार नस्लों तक राजा बनारस के दीवान रहे और अंतिम दीवान अली ज़ामिन हुयी ।

 कजगाओ में ही हदीस के मशहूर  विद्वान सय्यद रज़ीउद्दीन भी ही हुए जिनका खानदान आज भी मौजूद है ।


31 अक्टूबर 2015 को सभी राजकीय कार्यालय एवं शिक्षण संस्थान बन्द रहेगे।

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जौनपुर।  जिलाधिकारी भानुचन्द्र गोस्वामी ने बताया कि 31 अक्टूबर 2015 को सरदार बल्लभ भाई पटेल एवं आचार्य नरेन्द्रदेव के जन्म दिवस के अवसर पर शासन द्वारा राजकीय अवकाश घोषित किया गया है। सभी राजकीय कार्यालय एवं शिक्षण संस्थान बन्द रहेगे।

लोग इसे मस्जिद दारा शिकोह या मियांपुर की मस्जिद के नाम से जानते हैं ।

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यह मस्जिद जौनपुर के मिया पूर  इलाक़े में स्थित है जिसे दिल्ली के बादशाह शाहजहाँ के पुत्र दारा शिकोह की इजाज़त से उनके दरबारी मुहम्मद नूह ने शाहजहाँ के शासन काल में बनवाया । शाहजहाँ के शासन काल में दारा शिकोह जौनपुर के प्रबंधक के रूप में आया और जब उसने शार्की समय की बनी  मस्जिदों को देखा तो बड़ा प्रभावित हुआ और उसने भी एक मस्जिद निशानी के तौर पे गोमती नदी के तट पे मियांपुर इलाक़े में बनवाई । ये गोमती नदी से केवल ५० फुट की ऊंचाई पे स्थित है । ना जाने कितनी बाढ़ का मुक़ाबला करने के बाद यह आज भी अच्छी हालत में है और शिल्पकला का बेहतरीन नमूना है ।

इस मस्जिद के सामने एक कुंवा भी उसी ज़माने के मौजूद है जिसका पानी बड़ा मीठा है । आज भी यह मस्जिद अच्छी हालात में हैं और यहां मुसलमान नमाज़ पढ़ा करते हैं और लोग इसे मस्जिद दारा शिकोह या मियांपुर की मस्जिद के नाम से जानते हैं ।





आज इस मस्जिद पे जुमा के दिन मै पहुंचा और पाया की जैसा की इतिहास  की किताबो मे लिखा था यह मस्जिद बहुत ही खूबसूरत स्थान पे बनी है और यहा  से गोमती नदी का बेहद खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है ।
कुंवा मस्जिद के गेट पे 




मियांपुर इलाक़ा गोमती उस पार पड़ता है ।  पुल से दिखाई देती हरे रग की मस्जिद 

सस्ते दर पर मिल रही है अरहर दाल|

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जौनपुर। युवा उद्योग व्यापार मण्डल द्वारा सस्ते दर पर अरहर दाल हेतु शिविर का आयोजन कोतवाली चौराहे पर शुक्रवार को किया गया। जिसमें लोगों की भारी भीड़ उमड़ गयी । मुख्य अतिथि श्रवण जायसवाल ने कहा कि आज इस आर्थिक मंदी के दौर में जहां आमजन रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने में परेशान हैं वहीं दूसरी तरफ हम अपने खाने के महत्वपूर्ण व्यंजन अरहर की दाल जो आम आदमी की थाली का सामान्य आहार हुआ करता था, आज 200रूपये किलो होने के नाते आमजन की पहुंच से दूर होता जा रहा है। युवा उद्योग व्यापार मण्डल इस तरह के आयोजन करके बहुत ही पुनीत व पवित्र काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि जब-जब देश व प्रदेश पर इस तरह के संकट आये हैं तब-तब व्यापारी समाज आगे बढ़कर के इसी तरह के जन कल्याणकारी कार्यों को करने का काम किया है। कार्यक्रम के आयोजक युवा जिलाध्यक्ष विवेक सिंह ने कहा कि हम हमेशा यही कहते आये हैं कि युवा व्यापारी कहीं से भी इस तरह के जो कि जनकल्याण हेतु जो भी कार्य रहेगा उसे बढ़-चढ़ के करने का काम करेगा। नगर महामंत्री संजय केडिया व नगर युवा अध्यक्ष आलोक सेठ ने संयुक्त रूप से बताया कि अब तक इस शिविर से लगभग डेढ़ हजार लोग लाभान्वित हो चुके हैं और लगभग 25कुंतल दाल बांटी जा चुकी है। आगे भी हर संभव प्रयास करके इस तरह के कैम्पों का आयोजन कराया जायेगा। जिला युवा महामंत्री प्रदीप सिंह ने आये हुए सभी अतिथियों एवं व्यापार मण्डल के पदाधिकारियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। शिव कुमार साहू, हेम सिंह, निजामुद्दीन अंसारी, मो. दानिश, जावेद सिद्दीकीविजय केडिया, निर्भय चन्द्र केडिया, शेख नुरूद्दीन, पप्पू हरलालका, अमित जायसवाल, राजू जायसवाल, जावेद अज़ीम सहित तमाम लोग उपस्थित रहे।संचालन जिला महामंत्री अशोक साहू ने किया।


जौनपुर में मौजूद क़दम रसूल और इमामबाड़ा पंजे शरीफ का इतिहास|

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पंजे शरीफ 

 जौनपुर में इक़बाल अहमद इतिहासकार के अनुसार चार और कुछ लोगों के अनुसार नौ क़दम ऐ रसूल मौजूद हैं । एक क़दम ऐ रसूल ख्वाजा सदर जहां और हज़रत सोन बरीस के बीच में मौजूद है दूसरा मोहल्ला बाग़ ऐ हाशिम पुरानी बाजार में ,तीसरा मोहल्ला सिपाह में और चौथा पंजेशरीफ के पास मौजूद है । कुछ और क़दम ऐ रसूल है जो सदर इमाम बाड़ा , हमज़ापुर और छोटी लाइन रेलवे स्टेशन और बड़े इमाम सिपाह के पास है ।

तब मैंने तलाश किया तो मुझे नौ क़दम ऐ रसूल  (स  अ व ) मिले ।

पंजा शरीफ जौनपुर : शाहजहाँ के दौर में ख्वाजा मेरे के पुत्र सय्यद अली कुछ हज़रत मुहम्मद (स अ व ) के पद चिन्ह और हज़रत  अली के दस्त (हाथ) के चिन्ह सऊदी और इराक़ ने १६१५ सन में लाये थे । उन्होंने इसे नसब करने के लिये एक ऊंचा सा टीला उसी जगह बनवाया जहां आज पंजे शरीफ में हज़रत अली का रौज़ा है ।  उनका देहांत आस पास के भवन बनने के पहले ही हो गया और उनकी क़ब्र मुफ़्ती मोहल्ले में ख्वाजा मीर के मक़बरे के अंदर थी ।

पंजे शरीफ का शेष निर्माण एक मुसंभात चमन नामक महिला के बाद में करवाया और उसके विराट गेट पे फारसी में लिखवाया :-

रौज़ा ऐ शाह ऐ नजफ कर्द चमन चू तामीर
ताकि सरसबज़ अर्ज़ी हुस्न अम्लहां बाशद
साल ऐ तारिख चुनी वजहे खेरद मुफ्त भले
पंजा ऐ दस्त यदुल्लाह दर इज़ा बाशद

अनुवाद :  रौज़ा शाह ऐ नजफ़ का निर्माण चमन ने करवाया इसलिए की कर्म सदैव हरा भरा रहे यहां अल्लाह के शेर का हाथ है ।

हज़रत अब्बास अलमदार का रौज़ा 
इस पंजे शरीफ से उत्तर की तरफ १०० क़दम की दूरी पे चमन की पुत्री नौरतन ने हज़रत अब्बास अलमदार का रौज़ा और इमामबाड़ा बनवाया जो आज भी मौजूद है और यहां बड़ी मुरादें पूरी हुआ करती हैं ।

माता शीतला चैकिया का दर्शन पूर्वांचल के लोंगों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है।

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जौनपुर के माता शीतला चैकिया का दर्शन पूर्वांचल के लोंगों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। अगर किसी को माॅ विन्ध्यवासिनी का दर्शन करना है तो उसके पहले माॅ शीतला का दर्शन जरूरी है उसके बाद ही माॅ विन्ध्यवासिनी के दर्शन का महत्व है। लोगों की आस्था इस बात से भी देखी जा सकती है कि दिल्ली, मुम्बई जैसी जगहों से यहाॅ माॅ के दर्शन को खिंचे चले आते हैं।

यूॅ तो नवरात्र शुरू होते ही हर जगह माता के दर्शन को श्रद्धालूओं की भीड़  उमड़ पड़ी है लेकिन जौनपुर में नवरात्र के दिन का खास महत्व होता है क्योंकि माता शीतला का दर्शन माॅ विन्ध्यवासिनी से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। आज सुबह से ही भक्तों का सैलाब़ माॅ शीतला चैकिया के दर्शन को कतार लगाए खड़ा हो गया। माता की एक झलक पाने के लिए लोग ललायित दिखे। माॅ शीतला के भक्तों की श्रद्धा यहाॅ तक है कि वे अपने बच्चों के मुन्डन संस्कार के लिए मुम्बई तक से खिंचे चले आते हैंै। माता शीतला की महिमा से हर किसी को इतनी श्रद्धा  है कि यहाॅ खड़ा हर श्रद्धालू अपनी-अपनी मनोकामना की पूर्ती के लिए हाथ जोड़ घंटों बैठे प्रार्थना करता रहता है। माता के दर्शन को आने वालों का विश्वास इतना अटल है कि उनको पता है यहाॅ आने का मतलब हर मनाकामना की पूर्ति होना है।


ऐसी मान्यता है कि अगर आप को माॅ विन्ध्यवासिनी के दर्शन को जाना हो तो उससे पहलेे जौनपुर की माता शीतला चैकिया के दर्शन करने होंगे क्योेंकि माॅ शीतला का एक दूसरा नाम विस्फोटक देवी भी है। माता के दर्शन कर लेने के बाद श्रद्धालुओं की आगे की यात्रा के सफल होने की गारन्टी हो जाती है। इसीलिए वाराणसी, सोनभद्र, बलिया, आजमगढ़, गाजीपुर, गोरखपुर जैसे पूर्वांचल के जिले से श्रद्धालू जब माॅ विन्ध्यवासिनी के दर्शन को निकलते हैं तो पहले माता शीतला के दर्शन कर के ही अपनी यात्रा आगे बढ़ाते हैं।



नवरात्र के दिनों में तो पूजा-पाठ और व्रत का खास महत्व है ही लेकिन माॅ शीतला के दर्शन के बिना जौनपुर और दूर-दराज के जिलों के श्रद्धालू अपनी भक्ती को पूर्ण नहीं पाते। विशेषतया चेचक के दिनों में मार्च से जून तक प्रत्येक वर्ष जौनपुर और आस पास के लोग हज़ारो की तादात में यहाँ आते है ।

ये मंदिर जौनपुर से डेढ़ मील की दूरी पे ग्राम चौकीपुर और देवचंद पुर की सीमा पे स्थित है और  मान्यता है की यहां एक कमरे में शीतला जी की मूर्ती रखी है जिसका सम्बन्ध उस समय से है जब जौनपुर आबाद हो रहा था ।

जफराबाद का इतिहास और वहाँ के प्राचीन भवन वीडियो के साथ|

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जाड़े का मौसम और उसके बाद जफराबाद जैसे प्राचीन शहर को क़रीब से देखने का अवसर मिले तो पूछना ही  क्या है । बाइक से जफराबाद जाना अधिक सुविधाजनक रहता है यदि आपका इरादा वहाँ के प्राचीन इमारतों और स्थानो को देखने का ही तो ।

जाफराबाद पहुँचने  पे वहाँ के गांव वालो का सहयोग भी मिला और वो कहानिया किव्दंदियां भी सुनने को मिली जो इतिहास की किताबो में नहीं मिला करती ।

सबसे पहले तो जफराबाद  का तार्रुफ़ आपको इतिहास के आइने में करवाता हूँ ।

कन्नौज के राजाओं की राजधानी रहा जफराबाद का पुराना नाम मनहेच भी है ।  मनहेच संस्कृत का शब्द है और  इसका  का मतलब होता है ऐसा भू भाग  जहां से विद्या के स्त्रोत प्रस्फुटित होते है । जब यहां पे गयासुद्दीन तुगलक के पुत्र जफरशाह का अधिकार हो गया तो उसने इसका नाम जफराबाद रखा और इसे नए सिरे से आबाद करवाया ।  इतिहासकारो के अनुसार जफराबाद ७२१ हिजरी या १३२१ इ में आबाद हुआ ।  जफराबाद बहुत ही प्राचीन बस्ती है और यह जौनपुर शहर से ४-५ मील की दूरी पे स्थित है ।

आज जफराबाद उजड़ा हुआ लगता है जहां चारो ओर महलो के खंडहर और मक़बरे बने हुए है । किसी शायर ने भी क्या खूब कहा है की


उगे हैं सब्ज़े वहाँ जे जगह थी नर्गिस की 
खबर नहीं की इसे खा गयी नज़र किसकी 

जफराबाद जंक्शन रेलवे स्टेशन के बाहर जैसे ही आप आएंगे आपको शाहज़ादा ज़फर की बनवाई हुयी ईदगाह और उसी के पास सय्यद मुर्तज़ा का मक़बरा , मिलेगा और जब आप सीधे आबादी की तरफ जाने में शहज़ादा ज़फर की बनवाए जाम मस्जिद मिलेगी और उसी के बाए तरफ मुल्ला बहराम मैकि की बारादरी है ।  गोमती नदी के किनारे जाने में आपको मखदूम चिराग़ ए हिन्द का रौज़ा मिलेगा जहां आस पास उनके बहुत से शिष्यों की समाधियाँ भी मजूद है ।  

जामा मस्जिद ज़फर खा जफराबाद


इस मस्जिद को ज़फर खान तुग़लक़ ने अपने शासन काल में बनवाया । पृथ्वी के धरातल से २० फ़ीट की ऊंचाई पे बानी इस मस्जिद में चौरासी स्तम्भ है । बाद में शेख  बडन  जो शाह कबीर के शिष्य थे उन्होंने इस मस्जिद  की पूरी तरह से मरम्मत करवाई और तब से  नाम शेख  बडन  की मस्जिद पड़ गया । इस  मस्जिद का निर्माण ७२१ हिजरी या १३२१ इ में हुआ । 

मक़बरा सय्यद मुर्तज़ा 


या मक़बरा जाफराबाद के मोहल्ला रसूलाबाद में स्थित है । यह वही  पे कुतुब्बुद्दीन ऐबक और उदयपाल का युद्ध हुआ था और इसे सहन ऐ शहीद के नाम से भी जाना जाता है क्यों की यहां पे इस जंग में जो शहीद हुए उनकी क़ब्रें है । 


मक़बरा शेख सदरुद्दीन चिराग़ ऐ हिन्द 



क़दम इ रसूल स अ व 
कोट आसनी से उत्तर पश्चिम में स्थित ये रौज़ा बहुत ही मसहूर है और इसके आँगन में हज़रत मक़दूम के घराने वालो की समाधियाँ है ।  इन समाधीयों में  शहज़ादा ज़फर तुग़लक़ की भी  है जिसके सिरहाने संग  मूसा का एक पध्धर लगा हुआ है । 

यहां अंदर जाने पे एक मस्जिद है जहां बकरा ईद  के दिन नमाज़ ऐ सालतुततारीफ  पढ़ाई जाती है और यह नमाज़ पूरे भारतवर्ष में और कहीं नहीं पढ़ाई जाती । 
  
रौज़ा मक़दूम आफताब ऐ हिन्द 



आपका रौज़ा मस्जिद, खानकाह ,लंगर खाना तथा निकास स्थान  सय्येदवाड़ा में गोमती किनारे स्थित है । इसी से सत्ता हुयी एक मस्जिद है जहां  शेख सदरुद्दीन चिराग़ ऐ हिन्द  इबादत किया करते थे । यहां  उनके खानदान वालों की और बहुत से समाधियाँ भी है । 


कोट  असनी 

बाजार के मुख्या भाग के बाहर एक बड़ा सा तिल दखता है जो किसी समय में मशहूर कोट आसनी के नाम से जाना जाता था । जब जाफराबाद राजा जयचंद और विजयचन्द के अधीन हुआ तो यहां पे यह कोट बनवाए गयी जो कच्ची थी लेकिन  महत्वपूर्ण की शहबुद्दीन गौरी और कतुबुद्दीन  ऐबक ने इसी कोट में हमला किया था और इसी कोट में राजा साकेत सिंह के शासन काल में चिराग़ ऐ और आफताब ऐ हिन्द ने धार्मिक तर्क वितर्क के माध्यम से वियज  फहराई थी । 

रौज़ा मखदूम मुल्ला कयामुद्दीन 




 गोमती नदी के किनारे मोहल्ला  अहद में स्थित है और उसी रौज़े के अंदर  आपकी पत्नी की समाधी भी है । इस रौसे में एक मस्जिद और एक इमामबाड़ा है जिसमे मुहर्रम और चेहल्लुम में ताज़िया दफन किया जाता है । 

इसके अलावा राजा जयचंद में महलो के खंडहर  अनगिनत मक़बरे और गोमती किनारे सबसे  पुराने कागज़ की फैक्ट्री के भी  निशाँ है । जहां कागज़ की फैक्ट्री थी उस इलाक़े को काज़ियाना कहा जाता है । वही से वापस लौटते समय आपको पुराने टूटे शहर पे पुल्ल  भी मिलते हैं ।रास्ते में एक झझरी मस्जिद भी  मसहूर था  के समय रौशनी निकलती थी जो अब नहीं निकलती ।

जाफराबाद घुमते घूमते सुबह शाम हो चुकी थी  लेकिन कुछ महत्वूर्ण महत्वपूर्ण स्थान छूट भी गए जिन्हे  अगली बार तलाशने की कोशिश करूँगा

तब तक आप सभी जाफराबाद के इन वीडियो  देखें । 
  









 अंत में इस पूरी टीम का धन्यवाद 

मंदिर अचला देवी जौनपुर

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Achla Devi Mandir
यह मंदिर मोहल्ला रौज़ा जमाल खा में स्थित है जो मोहल्ला रासमण्डल से सत्ता हुआ है । यहां पे कई मंदिर है जैसे अचला  देवी के मंदिर और उस पश्चिम में हनुमान और शंकर जी का मंदिर है ।
काली जी का एक मंदिर और अचला देवी की मूर्ती भी यही पे है । भैरव जी, गणेश जी ,सरस्वती देवी और शंकर जी का लिंग भी यही पे है ।

अखिलेश सरकार के नए मंत्रिमण्डल में शामिल हुए नए चेहरे

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अखिलेश सरकार के नए मंत्रिमण्डल में शामिल हुए ये नए चेहरे  शादाब फातिमा राज्य मंत्री स्वतन्त्र प्रभार
पवन पाण्डेय राज्यमंत्री
लक्ष्मीकान्त उर्फ़ पप्पू निषाद
शैलेन्द्र यादव ललई राज्यमंत्री
राधेश्याम सिंह राज्यमंत्री
ओंकार सिंह यादव राज्यमंत्री
सुधीर कुमार रावत राज्यमंत्री
बंसीधर गोड राज्यमंत्री
हेमराज वर्मा राज्यमंत्री को सपथ लेना था लेकिन वह पहुंचे नही ।
मदन चौहान राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार
अरविन्द सिंह गोप कैबिनेट मंत्री
कमाल अख्तर कैबिनेट मंत्री
याशर शाह राज्यमंत्री स्वतन्त्र प्रभार
नितिन अग्रवाल राज्यमन्त्री स्वतंत्र प्रभार
फरीद महफूज किदवई राज्य मंत्री स्वतन्त्र प्रभार
रियाज अहमद राज्य मंत्री स्वतन्त्र प्रभार
विनोद कुमार सिंह उर्फ़ पंडित सिंह कैबिनेट मंत्री
बलवंत सिंह लालुवालिया कैबिनेट मंत्री
साहब सिंह सैनी कैबिनेट मंत्री
मूलचंद चौहान राज्य मंत्री स्वतन्त्र प्रभार
रामसकल गुजर राज्य मंत्री स्वतन्त्र प्रभार

शाहगंज विधायक शैलेन्द्र यादव "ललई"बने मंत्री

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खेतासराय (जौनपुर)।शाहगंज विधायक शैलेन्द्र यादव "ललई"को मंत्री बनाये जाने पर खेतासराय में  सपाईयों ने पटाखे फोड़कर जश्न मनाया।और एक दूसरे को मिठाई खिलाकर कर बधाई दी।सदर विधान सभा के छात्रसभा अध्यक्ष सतीश यादव ने कहा कि पूर्व मंत्री शैलेन्द्र यादव को दूसरी बार मंत्री बनाये जाने से यहां के पार्टी कार्यकर्ताओं को बल मिला है।इससे पार्टी को और मजबूती होगी।इस दौरान पिंकू यादव,गुड्डू यादव,हिमान्शू मोदनवाल, डब्लू सोनकर,रोहित यादव,जमाल ,दानिश,कृष्णमुरारी यादव,राकेश गुप्त,इन्द्रेश यादव, राकेश, अशोक, बच्चा यादव आदि सपा कार्यकर्ता रहै।

जिला निर्वाचन अधिकारी/जिला मजिस्टेªट भानुचन्द्र गोस्वामी, पुलिस अधीक्षक राजू बाबू सिंह ने मतगणना स्थलों का निरीक्षण किया

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जौनपुर । जिला निर्वाचन अधिकारी/जिला मजिस्टेªट भानुचन्द्र गोस्वामी, पुलिस अधीक्षक राजू बाबू सिंह के साथ विकास खण्ड बक्शा, बदलापुर, महराजगंज, सुजानगंज, मुगराबादशाहपुर, मछलीशहर, मडियाहूॅ आदि मतगणना स्थलों का निरीक्षण किया तथा सम्बन्धित अधिकारियों को आवश्यक दिशा निर्देश भी दिये। इस अवसर पर सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी उपजिलाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक एवं थानाध्यक्ष देख रहे थे। जिला मजिस्टेªट भानुचन्द्र गोस्वामी के निर्देश के बाद भी दर्जनों एजेंट मोबाइल लेकर मतगणना स्थल पर पहुचें थे। जिन्हें मौके पर जॉच में पाये जाने पर उन्हें थाने पर भेजा गया। जिले के 21 विकास खण्डों की मतगणना आज 8 बजे से ही की जा रही है।
जनपद में कुल 4693 बूथों में से 1982 बूथों की मतगणना सायं 8 बजे तक पूर्ण कर ली गयी है। जिसमें क्षेत्र पंचायत 805 वार्डो की परिणाम की घोषणा की जा चुकी है। इस अवसर पर मुख्य विकास अधिकारी पी0सी0 श्रीवास्तव, अपर जिलाधिकारी रजनीश चन्द्र, अपर पुलिस अधीक्षक रामजी सिंह यादव, अरूण कुमार श्रीवास्तव, सभी उपजिलाधिकारी, पुलिस क्षेत्राधिकारीगण क्षेत्र में चक्रमण करते रहे।

जौनपुर के प्रतिष्ठित परिवार और उनके पुरखे इतिहास के पन्नो से ।

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 जौनपुर के प्रतिष्ठित परिवार और उनके पुरखे । 

सैय्यद करामुल्लाह खा


सैय्यद करामुल्लाह खा का सम्बन्ध ज़ैदी परिवार से था जिनकी नस्ल हज़रत मुहम्मद ( स अ व ) ने नवासे इमाम हुसैन के पुत्र इमाम ज़ैनुल आबेदीन से निकली है । सय्यद करामुल्लाह खा दिल्ली आये और वहाँ के शाही दरबार  अच्छी पकड़ अपने इल्म के कारण बना ली । उसके बाद मुहम्मद शाह ने इनको खान की पदवी और शाही रुतबे के साथ दो लाख की जागीर प्रदाम् की जो बनारस ,जौनपुर, आज़मगढ़ तथा इलाहबाद में थी । 

अंतिम समय इनका काजगौन जौनपुर में बीता और वही अपने बाग़ में इनकी क़ब्र है । आगे चल के मौलवी  गुलशन अली बड़े ही मसहूर हुए । मौलवी  गुलशन अली राजा बनारस कर दीवान थे और उनके छोटे भाई सय्यद मुहम्मद मोहसिन उच्च कोटि के कलाकार और गणितज्ञ थे और ज्ञान हासिल करने के लिए उन्होंने पश्चिमी और इस्लामी मुल्को की यात्रा की । मौलवी गुलशन अली चार नस्लों तक राजा बनारस के दीवान रहे और अंतिम दीवान अली ज़ामिन हुयी ।

इसके घराने वाले आज भी कजगाव की नज्म मंजिल मे और पानदारीबा मे रहते है

सय्येद अली दाउद क़ुतुबुद्दैन 

जनाब सय्यद अली दाऊद  साहब हजरत मुहम्मद (स.अ.व) की 21 वीं नस्ल थे और बहुत ज्ञानी थे | इनको लाल दरवाज़ा के सामने मुहल्लाह सिपाह गाह में भी रहने का एक घर दिया गया था जिसके निशाँ आज भी मौजूद हैं | जनाब सय्यद अली दौड़ के घराने वाले इब्राहिम लोधी द्वारा उस इलाके को नष्ट करने के बाद वहाँ नहीं रहे और लाल दरवाज़ा से अलग हमाम दरवाज़ा पे आ गए फिर कटघरे से होते हुए आज पान दरीबा में रहते हैं | उनके घराने का एक घर जिसे आज मदरसा नासरिया के नाम से जाना जाता है आज भी मौजूद है जिसे उन लोगों ने वहाँ से पानदरीबा जाते वक़्त वक्फ कर दिया था| यह घराना जौनपुर में ७०० साल पुराना है जिसे आज लोग अपने समय के मशहूर सय्यद ज़मींदार खान बहादुर ज़ुल्क़द्र के घराने के नाम से जानते हैं | इनके रिश्तेदार पानदरीबा,सिपाह और कजगांव में फैले हुए हैं |  लाल दरवाज़े के पास एक मुहल्लाह सिपाह गाह है जिसे बीबी राजे ने बसाया था और वहाँ पे एक विहार और महिलाओ का कॉलेज १४४१ में बनवाया और उसके बाद यह लाल दरवाज़ा मस्जिद बनवाई | वो मदरसा तो आज मौजूद नहीं लेकिन लाल दरवाज़ा मस्जिद और  मदरसा ऐ हुसैनिया आज भी मौजूद है | इस लाल दरवाज़े के तीन गेट हैं जिसमे से पूर्व वाला गेट सबसे बड़ा है | जनाब सय्यद अली दाऊद की २१स्वीन नस्ल आज पान दरीबा जौनपुर में रहती है | इनका नस्ल नाम बहुत सी इतिहास की किताबों में देखा जा सकता है |जिसमे से ख़ास हैं इबिद और शजरा जो १९६५ में कजगांव से इंजिनियर सय्यद मोहम्मद जाफ़र साहब ने छपवाया था | वैसे यह शजरा (Race Chart) पकिस्तान और इंग्लैंड से भी छपा है जो इस खानदान के पास देखा जा सकता है | सैय्यद अली दाऊद कुतुबुद्दीन की शान मे बना था लाल दरवाजा


सय्यद नासिर अली ज़ुल्क़दर बहादुर 

सय्यद नासिर अली ज़ुल्क़दर बहादुर 

सय्यद नासिर अली ज़ुल्क़द्र बहादुर जौनपुर के मशहूर ज्ञानी संत की नस्ल से थे और जका ताल्लुक़ भी इमाम हुसैन (अ स ) की नस्ल से है । इन्होने दीवान काशी नरेश मौलवी गुलशन अली कजगाँवी से इन्होने शिक्षा प्राप्त की और बाद में अंग्रेज़ी सरकार में उच्च पद पे जौकरी कर ली । अपनी योग्यता और कुशलता के चलते उस समय इन्हे डिप्टी कलक्टर का पद प्राप्त हुआ जहाँ इनकी तख्वाह ७०० रुपये महीना थी । इनको बाद में ज़ुल्क़द्र बहादुर और खान बहादुर का खिताब और १५०० रुापये के शाही वस्त्र दे के इज़्ज़त अंग्रेजी सरकार ने दी और बाद पे १८६६६ पे जिलाधीश की पदवी पे रहते इनका देहांत इलाहबाद में हो गया ।

इनका  खानदान आज भी पान दारीबा मे जुल्क़दर मंजिल मे रहता है  

राजा जौनपुर राजा शिव लाल डूबे 

जौनपुर जनपद में सबसे बड़ी रियासत राजा जौनपुर की थी जिसके संस्थापत राजा शिव लाल डूबे थे । राजा राजा शिव लाल का देहांत १८३६ इ में हुआ लेकिन वो देहांत के समय बनारस , गोरखपुर, आज़मढ और मिर्ज़ापुर पे काफी जादाद छोड़ के गए । रामगुलाम जो शिव लाल के पौत्र थे उन्हें उत्तराधिकारी बनाया गया जबकि उनके पुत्र बाल दत्त जीवित थे । 

१८४१ में राजा रामगुलाम का देहांत हो गया और सत्ता राजा बालदत्त के हाथ में आ गयी और १८४४ में राजा बालदत्त के देहांत के बाद राजा लछमन गुलाम के हाथ सत्ता आई जिनका देहांत १८४५ में ही हो गया और राजा बालदत्त की विधवा रानी तिलक कुंवर ने तीन वर्षों  के काम काज को देखा ।  १८४८ में रानी साहिबा का भी देहांत हो गया और राजा रामगुलाम का लड़का लड़का जो वयस्क नहीं था राजा हुआ और यहीं से  गड़बड़ी पैदा होने लगी । उसके बाद राजा हरिहर डूबे से रियासत होती हुयी राजा शंकर दत्त डूबे तक पहुंची जो संतान वहीं थे । उसकै बाद राजा शिव लाल के बड़े भाई सदानंद के पुत्र श्री कृष्ण डूबे को राजा की गद्दे पे बिठाया और उनकी म्रत्यु के बाद राजा यादवेन्द्र डूबे के हाथ सत्ता आयी । १९५७ में राजा यादवेन्द्र डूबे आज़ादी के बाद राजनीति में आ गए और जनसंघ की टिकट से १९५७ और १९६२ में विधान सभा के सदस्य रहे ।

जौनपुर के कुछ अन्य महान संतो के नाम इस प्रकार है ।



शेख वजीहुद्दीन अशरफ ,उस्मान शीराज़ी ,,सदर जहा अजमल,क़ाज़ी नसीरुद्दीन अजमल, क़ाज़ी शहाबुद्दीन मलिकुल उलेमा क़ाज़ी निजामुद्दीन कैक्लानी, मालिक अमदुल मुल्क बख्त्यार खान, दबीरुल मुल्क कैटलॉग खान, मालिक शुजाउल मुल्क मखदू ईसा ताज,शेख शम्सुल हक़ ,मखदूम शेख रुक्नुद्दीन, सुहरवर्दी, शेख जहांगीर, शेख हसन ताहिर,मखदूम सैय्यद अली दाऊद कुतुबुद्दीन, मखदूम शेख मुहम्मद इस्माइल ,शाह अजमेरी,ख्वाजा क़ुतुबुद्दीन ,ख्वाजा शेख अबु सईद चिस्ती ,मखदूम सैयद सदरुद्दीन, शाह सैय्यद ज़ाहिदी, मखदूम बंदगी शाह,साबित मदारी।, शेख सुलतान महमूद इत्यादि


जानिये कजगांव तेढ़वान की दो भाइयों की टेढ़ी कब्र का रहस्य |

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सय्यिद नसीरुद्दीन ने जो चिराग़ ऐ दिल्ली के नाम से भी जाने जाते हैं एक ख्वाब देखा की हजरत मुहम्मद (स.अ.व) आये हैं और उनसे कह रहे है कि सय्यिद बरे नाम के शख्स को अपनी शागिर्दी में ले लो और उसे अपने ज्ञान से मालामाल करो |सय्यिद नसीरुद्दीन ने अपने दिल्ली में तलाशा तो उन्हें तीन व्यक्ति इस नाम के मिले और वो तय नहीं कर पाए की यह इशारा किसकी तरफ है |दुसरे दिन फिर उन्होंने ख्वाब देखा जिसमे इशारा किया गया था की स्येद बरे जिनके बारे में ख्वाब है वो एकहरा कपडा पहनते हैं |सय्यिद बरे हजरत मुहम्मद (स.अ.व) की ३२वीन नस्ल थे और ७७० हिजरी १३६८ इस्स्वी में वो दिल्ली से जाफराबाद के करीन एक इलाके सुसौन्दा (अब मसौन्दा) में आकर बस गए और एक तालाब के किनारे छप्पर डाल के रहने लगे | सय्यिद बरे ने वहाँ के गांवालों को गुमराही से बचाया और एक ऐसे संत जो हर अमावस्या को गाँव के लोगों से सोना चांदी ,धन दौलत की मांग करता था उसके ज़ुल्म से बचाया |

तालाब जहां सय्यिद बरे  आज के कजगांव में बसे थे |

गाँव वाले सय्यिद बरे को मानने लगे उसी समय इस गाँव सुसौन्दा का नाम बदल में सादात मसौन्दा किया गया | बरे मीर के दो बच्चे थे जिनका नाम सय्यिद हसन और सय्यिद हुसैन था जो आपस में एक दुसरे से बहुत प्रेम करते थे | जब एक भाई की म्रत्यु हो गयी तो उसे गाव के पाहनपुर कब्रिस्तान में दफन किया गया | दुसरे भाई की म्रत्यु के बाद उसे भी अपने भाई के पास ही दफन कर दिया गया | सुबह लोगों ने देखा की दोनों भाइयों की कब्र सर की तरफ से एक दुसरे से मिल गयी है | लोगों से सोंचा मिटटी गीली होने की वजह से ऐसा हुआ होगा और ठीक कर दिया | लेकिन दुसरी रात फिर से ऐसा ही हुआ तो लोगों को समझ में आ गया की यह कोई चमत्कार है |आज भी दो भाइयों की कब्रें वहाँ मौजूद हैं जिसके कारण सदात मसौंडा का को लोग कजगांव तेढ़वान के नाम से जाना जाने लगा |
दो भाइयों की टेढ़ी कब्र जो आज भी कजगांव में देखी  जा सकती है |
यह कहानी कजगांव बुजुर्गों ने सुनायी है जिसका ज़िक्र उन्होंने अपनी कुछ किताबों में भी किया है | इसमें कितनी सत्यता है यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन दो भाइयों की टेढ़ी कब्र आज भी मौजूद है और गवाही दे रही हैं किसी चमत्कार की |
हमारा जौनपुर

राज्यमंत्री जगदीश सोनकर के 6 लोगो को बीडीसी पद पर चुनाव में सफलता मिली |

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Rajender Sonkar
जौनपुर। पंचायत चुनाव में राज्यमंत्री जगदीश सोनकर ने अपने घर से पांच सदस्यो को बीडीसी पद पर चुनाव लड़ाया था जिसमें पांचो सीटो पर सफलता मिल गयी है।  अब जगदीश की निगाह करंजाकला ब्लाक प्रमुख पर है।

शहदाऊदपुर वार्ड न.85 से माला सोनकर 373 वोट से विजयी।
वार्ड न.83 हैदरपुर से राजेन्द्र सोनकर 152 वोट से विजयी।
 वार्ड न.18 सिद्दीकपुर से लता सोनकर 190 वोट से विजयी ।
वार्ड संख्या 59 से रवीन्द्र नाथ सिंह उर्फ पप्पू रघुवंशी निर्वाचित हुईं।
वार्ड संख्या 61 से शोभा गौतम निर्वाचित की गई।
वार्ड संख्या 62 से राजकुमारी गौतम निर्वाचित हुई ।
पदुमपुर वार्ड न.86 से दीपचंद सोनकर निर्वविरोध विजयी।

गाजीपूर की बेटी और जौनपुर की बहु शादाब फातिमा बनी राज्य मंत्री |

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ज़हूराबाद ग़ाज़ीपुर से विधायक शादाब फातमा के मंत्री होने पर ग़ाज़ीपुर के साथ-साथ जौनपुर जनपद वासियों को भी उनसे बड़ी उम्मीदें हैं की हमारे जनपद की बहु ज़रूर विकास में योगदान करेगी।

यू पी सरकार में राज्य मंत्री स्वतन्त्र प्रभार शादाब फातमा जनपद जौनपुर की बहु हैं। ज़िले की शाहगंज तहसील के मानीकला ग्राम में इनकी ससुराल है।ये अलग बात है की अब उनके परिवार के लोग मानीकला में नहीं रहते । लेकिन उनके चचेरे देवर मुनव्वर अली और ज़ैगम आज भी सपरिवार मानीकला में रहते हैं। 





जौनपुर के सुलेख कला के संस्थापक कौन थे ।

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झंझरी  मस्जिद पे लिखी इबारत सुलेख की बेहतरीन मिसाल 

अकबर बादशाह के समय में सुलेख कला का प्रचलन सबसे अधिक था जो अंग्रेज़ों की हुकूमत के आते आते ख़त्म सा होने लगा । जौनपुर में शर्क़ी समय या मुग़ल समय की इमारतों में इस कला की सुंदरता आज भी देखने को मिल जाय करती है । 

लाल दरवाज़ा हो या झंझरी मस्जिद या  इमारतें  आपको हर जगह इस सुलेख कला के नमूने मिल जायेंगे । जौनपुर के आस पास जिन इलाक़ो में इस सुलेख कला पदार्पण हुआ वो जगहे थी कजगाओ और माहुल और इसका श्रेया जाता है काज गाँव के मौलाना गुलशन अली जो दीवान काशी नरेश भी थे और राजा इदारत जहाँ को जो जौनपुर की आज़ादी की लड़ाई जो १८५७ में हुयी उसके पहले शहीद थे । 
लाल दरवाज़े पे लिखी आयतल कुर्सी 
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