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मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी

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उस्मान शीराज़ी जो मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी के पिता थे । 

आपका जन्म १४४३ इ में जौनपुर के एक मोहल्ले पानदरीबा में हुआ और उनके घर को आज भी मीरघर के नाम से जाना जाता है । आप शेख दानियाल खिजरी के शिष्य थे और ज्ञानी इतने थे की उस समय के उलेमा ने उन्हें आसहुल उलेमा की पदवी से सम्मानित किया । उनके उपदेश सुनने के लिए दूर दूर से बादशाह और ऋषि  आते और उनके ज्ञान से लाभान्वित हुआ करते हुआ करते थे ।

मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी  के पिता उस्मान शीराज़ी थे जो एक मशहूर ज्ञानी थे और उन्ही की शान में खालिस मुख्लिस मस्जिद बनवायी गयी जो आज पानदरीबा में स्थित है ।

मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी  एक दिन मक्का की तरफ हज करने गए तो वहीँ के हो के रह गए और सन १४६५ में जब इनकी उम्र ५२ की हुयी तो इनहोने मक्का में महदवी वर्ग की घोषणा कर दी । बहुत विरोध के बावजूद इनके चाहने वालो की तादात बढ़ती है और इनहोने गुजरात को अपना केंद्र बनाया ।

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का कहना है की ।
सत्य प्रेम और हृदय की परिपक्वता के कारण मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी ने थोड़े ही समय में बहुत से मुरीद बना लिए और यहां तक की बादशाहों को भी  बना लिया । मौलाना का मानना था की इनका महदवी समूह सत्य पे आधारित था । मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी  और उनके सहयोगी ईश्वर भक्त और सदा जीवन व्यतीत किया करते थे ।

जब इनकी मृत्यु के बाद गुजरात महदियत का गढ़ हुआ और मिया के मुस्तफा ने इस समूह को आगे बढ़ाया और जब इसकी खबर बादशाह अकबर को  १५७३ में मिली तो उसने मियाँ मुस्तफा को बुलवा भेजा इस ख्याल से की इनकी गर्दै उड़वा दी जाएगी लेकिन जब मिया मुसतफ़ा से बात हुयी तो वो इनका मुरीद हो गया ।

सय्यद मुहम्मद जौनपुरी की विचारधारा यह थी की जो भी गुण हज़रत मुहम्मद में थे वो प्रत्यछ रूप से इश्वेर की दें थे और वही सभी गुण सय्यद मोहम्मद जौनपुरी में भी हैं लेकिन हज़रत मुहम्मद के अनुसरण के कारन है । इनकी इस विचारधारा के कारण लोगो को ऐसा लगा की इन्होने इमाम मेहदी होने का दावा कर दिया है जिनमे मतभेद है ।
शेख अली मुनतक़ी जो उनके विरोधी थे उन्होंने भी इस बात को स्वीकार किया की मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी  ने खुद को इमाम मेहदी कभी घोषित नहीं किया बल्कि यह कहते थे की वो इमाम महदी का अनुसरण करने वाले हैं और उनके जैसे ही हो गए है ।

उन मानने वालो ने इसे गलत समझा और यह मान लिया की मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी  इमाम महदी होने का दावा कर दिया है ।

 आपका देहांत १४६९ इ में या १५०४ इ में फराह में हुआ जहां आज भी वो दफन है । जौनपुर के उनके घर पानदरीबा मीर  घर और उसके पास मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी  के पिता की क़ब्र पे आज भी मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी के चाहने वाले गुजरात से आया करते है ।


झंझरी मस्जिद सिपाह जौनपुर

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झंझरी मस्जिद सिपाह जौनपुर में  गोमती के दाहिने किनारे पे स्थित  है । इसको  इब्राहिम शाह  शार्की  ने अटाला तथा खालिस मुख्लिस मस्जिद के समय में बनवाया था । यह सिपाह मोहल्ला खुद इब्राहिम शाह शार्की ने बसाया था और यहां पे फौजी  ,सिपाही रहा करते थे । लेकिन इस इलाक़े में उस समय के कई मशहूर संत क़ाज़ी नसीरुद्दीन गुम्बदी ,हज़रत अबुल फतह सोब्रिस ,सय्यद सादर जहां अजमल ,मौलाना सिराजुद्दीन मिन्हाज इत्यादि रहा करते थे और इनके मदरसे और ख़ानक़ाहें भी  यही पे थी इसी लिए शर्क़ी बादशाहो को यहां पे एक मस्जिद बनवाने  की ज़रुरत हुयी ।

इस मस्जिद को के मेहराब की सुंदरता ऐसी है की कोई भी इसे देखे बिना यहां से नहीं जाता । इसीलिये इसका नाम झंझरी मस्जिद पड़ा । सिकंदर लोधी ने इसे ध्वस्त किया था लेकिन फिर भी इसका एक हिस्सा बच गया जिसपे आयतल कुर्सी लिखी हुयी है ।
आज भी आप इसकी सुंदरता को मोहल्ला सिपास जौनपुर में जा  के देख सकते हैं ।


पारसनाथ यादव और शादाब फातिमा को मिला विभाग |

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त्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने आज मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के प्रस्ताव 15 कैबिनेट मंत्रियों, 8 राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) तथा 10 राज्य मंत्री को विभाग आवंटित कर दिये हैं


कैबिनेट मंत्री 
(1) अहमद हसन को बेसिक शिक्षा,
(2)  बलराम यादव को माध्यमिक शिक्षा,
(3)  अवधेश प्रसाद को होम गार्डस, प्रान्तीय रक्षादल,
(4) पारस नाथ यादव को ग्रामीण अभियंत्रण सेवा,
(5) राम गोविन्द चैधरी को समाज कल्याण, अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण, सैनिक कल्याण,
(6) दुर्गा प्रसाद यादव को वन,
 (7) श्री बृह्माशंकर त्रिपाठी को खादी एवं ग्रामोद्योग,
(8)  रघुराज प्रताप सिंह राजा भैय्या को स्टाम्प तथा न्यायालय शुल्क, पंजीयन, नागरिक सुरक्षा,
(9)  इकबाल महमूद को खाद्य एवं औषधि प्रशासन,
(10)  महबूब अली को रेशम एवं वस्त्रोद्योग,
(11)  अरिवन्द्र सिंह गोप को ग्राम्य विकास,
(12)  कमाल अख्तर को खाद्य तथा रसद,
(13) विनोद कुमार उर्फ पंडित सिंह को कृषि (कृषि विदेश व्यापार, कृषि निर्यात एवं कृषि विपणन को छोड़कर), कृषि शिक्षा एवं कृषि अनुसंधान,
(14)  बलवंत सिंह रामूवालिया को कारागार,
(15) साहब सिंह सैनी को पिछड़ावर्ग कल्याण तथा विकलांग जन विकास विभाग दिये हैं।

राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में 
(1)  रियाज अहमद को मत्स्य एवं सार्वजनिक उद्यम,
(2)  फरीद महफूज किदवई को प्राविधिक शिक्षा,
(3)  मूलचन्द्र चैहान को उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण,
(4)  राम सकल गुर्जर को खेल एवं युवा कल्याण,
(5)  नितिन अग्रवाल को सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम तथा निर्यात प्रोत्साहन,
(6)  यासर शाह को परिवहन,
(7)  मदन चैहान को मनोरंजन कर
(8) श्रीमती सैय्यदा शादाब फातिमा को महिला कल्याण विभाग आवंटित किया गया है।


राज्यमंत्री के रूप में 
(1) श्री वसीम अहमद को बाल विकास, पुष्टाहार, बेसिक शिक्षा एवं ऊर्जा,
(2) डाॅ0 शिव प्रताप यादव को जन्तु उद्यान एवं चिकित्सा एवं स्वास्थ्य,
(3) श्री राधेश्याम सिंह को कृषि (कृषि विदेश व्यापार, कृषि निर्यात एवं कृषि विपणन को छोड़कर), कृषि शिक्षा एवं कृषि अनुसंधान तथा चिकित्सा शिक्षा,
(4) श्री शैलेन्द्र यादव ललई को नियोजन एवं ऊर्जा,
(5) श्री ओमकार सिंह यादव को ग्राम्य विकास,
 (6) श्री तेज नारायण पाण्डेय ऊर्फ पवन पाण्डेय को वन विभाग,
(7) श्री सुधीर कुमार रावत को आई0टी0 एवं इलेक्ट्रानिक्स तथा चिकित्सा एवं स्वास्थ्य,
(8) श्री हेमराज वर्मा को खाद्य तथा रसद,
(9) श्री लक्ष्मीकान्त ऊर्फ पप्पू निषाद को खाद्य एवं रसद
(10) वंशीधर बौद्ध को समाज कल्याण, अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण, सैनिक कल्याण विभाग आवंटित किया गया है।

पत्रकार आरिफ हुसैनी की डिमांड का हुआ मुलायम सिंह पे असर , शादाब फातिमा बनी राज्य मंत्री।

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लगभग एक वर्ष पहले पत्रकार आरिफ  हुसैनी ने मुलायम सिंह यादव जी की जौनपुर यात्रा पे उनसे  डिमांड की थी की  शादाब फातिमा को कोई  मंत्री पद क्यों नहीं दिया गया जबकि वो ग़ाज़ीपुर और जौनपुर के शिया मुस्लिम समुदाय की नेता हैं ।

३१ अक्टूबर को हुए मंत्रिमंडल विस्तार में शादाब फातिमा को राज्य मंत्री का दर्जा  मिला  और आज जब उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री राम नाईक ने आज मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव के प्रस्ताव 15 कैबिनेट मंत्रियों, 8 राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) तथा 10 राज्य मंत्री को विभाग आवंटित किया तो शादाब फातिमा को  महिला कल्याण विभाग आवंटित किया गया है।

आल इण्डिया शिया जागरण मंच के राष्ट्रिय अध्यक्ष मौलाना हसन मेहदी ने उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री मंडल विस्तार में शिया समाज की विधायक शादाब फातिमा को राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार बनाये जाने पर ख़ुशी का इज़हार करते हुए सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को धन्यवाद भी दिया । 


पीर दमकी बाबा या सय्यद बाबा की मज़ार ,प्रेमराज पूर जौनपुर Video

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पीर दमकी बाबा या सय्यद बाबा की मज़ार ,प्रेमराज पूर जौनपुर 

कजगाँव जौनपुर का मशहूर कजरी मेला वीडिओ

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जफराबाद क्षेत्र के कजगांव (टेढ़वां बाजार) की ऐतिहासिक कजरी जो क्षेत्रीय बुजुर्गां के अनुसार लगभग 85 वर्षों से लगती चली आ रही है जिसमें टेढ़वां के लोग राजेपुर गांव में शादी करने का दावा पेश करते हैं और राजेपुर गांव के लोग टेढ़वां में शादी करने का सपना संजोकर बारात लेकर आते हैं। बाजार के अन्त में दोनों गांव के बीच स्थित पोखरे पर राजेपुर की बारात पूर्वी छोर और कजगांव की बारात पश्चिमी छोर पर बाराती, हाथी, घोड़ा, ऊंट तथा दूल्हे के साथ द्वार पूजा के लिये खड़ी हो जाती है। एक-दूसरे पर दोनों तरफ से मनोविनोदी आवाज में जोर-जोर बाराती और कभी-कभी दूल्हा भी चिल्लाने लगता है कि दूल्हन दे दो, हम लेकर जायेंगे। यह क्रम घण्टों चलता है। यदि बीच में पोखरा न हो तो शायद आपस में भिड़ंत भी हो सकती है लेकिन 85 वर्षों में कभी भी ऐसी कोई बात नहीं हुई।

जौनपुर की शान खुर्शीद अनवर साहब से एक बात चीत -वीडियो

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Today I met Most energetic and Action Man of the Jaunpur JanabKhursheed Anwar Khan .
मै अक्सर खुर्शीद साहब को देखा और पढा करता था और उनके व्यक्तित्व मे मै काफी हद तक प्रभावित भी था | आज सोचा चलो खुर्शीद साहब से मिल लिया जाय और मुलक़ात आज हो ही गयी | उनको लगा मै उनके पास किसी काम से मिलने आ रहा हू और इसमे उनकी कोई गलती नहीं क्यू की किसी राजनैतिक पार्टी से जुडे नेता के पास लोग उसी समय जाते है जब कोई काम हो लेकिन मै हर किसी को उसकी शक्सियत से पहचानता हू |

राजनीति से हट के भी हर इन्सान की एक शक्सियत और एक पहचान हुआ करती है इसलिये किसी नेता से कभी दिल से बिना किसी काम के मिल के देखो बडा मजा आता है |

सय्यद मुहम्मद जौनपुरी और उनका दावा ए इमामत की हक़ीक़त |

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सय्यद मुहम्मद जौनपुरी के  बारे मे मशहूर  है कि इन्होने खुद को इमाम मेहदी  होने का दावा  कर दिया था जो इतिहास के आईने मे पुरी तरह सत्य  नही है ।

सय्यद मुहम्मद जौनपुरी का जन्म १४४३ इ में जौनपुर के एक मोहल्ले पानदरीबा में हुआ और उनके घर को आज भी मीरघर के नाम से जाना जाता है । आप शेख दानियाल खिजरी के शिष्य थे और ज्ञानी इतने थे की उस समय के उलेमा ने उन्हें आसहुल उलेमा की पदवी से सम्मानित किया । उनके उपदेश सुनने के लिए दूर दूर से बादशाह और ऋषि  आते और उनके ज्ञान से लाभान्वित हुआ करते हुआ करते थे ।

मखदूम दानियाल खिजरी 
सय्यद मुहम्मद जौनपुरी मखदूम दानियाल खिजरी  के शिष्य थे । शेख मखदूम दानियाल खिजरी  बलख देश के रहने वाले थे और बहुत बड़े ज्ञानी थे । इतिहास कारो  ने अनुसार ये हामिद शाह के उत्तराधिकारी भी थे और ख्वाजा मोईनुद्दीन  चिश्ती के शागिर्द भी थे जिनका ताल्लुक़ हज़रत उमर की नस्ल से भी बताया जाता है ।

 इनका जौनपुर में आगमन हुसैन शाह शार्की ने समय में हुआ और यह महान संत और महा ज्ञानी और चमत्कारी व्यक्ति थे । इन्होने अपनी मृत्यु के पहले ही यह बता दिया था की इनकी मृत्यु १३ रबी उल अवव्ल को होगी और इसकी वसीयत के अनुसार इन्हे इनके उपासना गृह के आँगन में ही दफन किया गया ।

लेखको का  कथन है की इनकी मृत्यु के बाद इनकी क़ब्र से वर्षों खुशबू  आया करती थी ।

मखदूम दानियाल खिजरी 
सैयद परिवार के दो लोग सय्यद अहमद और सय्यद मुहम्मद इनके शिष्य हुए और इनके उत्तराधिकारी बने ।
इतिहासकारो के अनुसार आपकी समाधि इमामबाड़ा हकीम बाक़र ,पान दरीबा के क़रीब मौजूद है लेकिन जब मैंने उसे तलाशना चाहा तो मुझे वहाँ पे क़ब्रिस्तान तो मिला जहाँ कुछ क़ब्रें मौजूद हैं जिसे पे  मशहूर सूफी शेख उस्मान शीराज़ी का नाम लिखा है और उसके पास एक और क़ब्र है जिसे यह कहाँ जा सकता है की  शेख मखदूम दानियाल खिजरी के शागिर्दों सय्यद अहमद और उस्मान शिराजी  की क़ब्रें है ।



उस्मान शीराज़ी जो मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी के पिता थे । 

मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी  के पिता उस्मान शीराज़ी थे जो एक मशहूर ज्ञानी थे और उन्ही की शान में खालिस मुख्लिस मस्जिद बनवायी गयी जो आज पानदरीबा में स्थित है ।

मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी  एक दिन मक्का की तरफ हज करने गए तो वहीँ के हो के रह गए और सन १४६५ में जब इनकी उम्र ५२ की हुयी तो इनहोने मक्का में महदवी वर्ग की घोषणा कर दी । बहुत विरोध के बावजूद इनके चाहने वालो की तादात बढ़ती है और इनहोने गुजरात को अपना केंद्र बनाया ।

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का कहना है की ।

सत्य प्रेम और हृदय की परिपक्वता के कारण मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी ने थोड़े ही समय में बहुत से मुरीद बना लिए और यहां तक की बादशाहों को भी  बना लिया । मौलाना का मानना था की इनका महदवी समूह सत्य पे आधारित था । मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी  और उनके सहयोगी ईश्वर भक्त और सदा जीवन व्यतीत किया करते थे ।

जब इनकी मृत्यु के बाद गुजरात महदियत का गढ़ हुआ और मिया के मुस्तफा ने इस समूह को आगे बढ़ाया और जब इसकी खबर बादशाह अकबर को  १५७३ में मिली तो उसने मियाँ मुस्तफा को बुलवा भेजा इस ख्याल से की इनकी गर्दै उड़वा दी जाएगी लेकिन जब मिया मुसतफ़ा से बात हुयी तो वो इनका मुरीद हो गया ।

सय्यद मुहम्मद जौनपुरी की विचारधारा यह थी की जो भी गुण हज़रत मुहम्मद में थे वो प्रत्यछ रूप से इश्वेर की दें थे और वही सभी गुण सय्यद मोहम्मद जौनपुरी में भी हैं लेकिन हज़रत मुहम्मद के अनुसरण के कारन है । इनकी इस विचारधारा के कारण लोगो को ऐसा लगा की इन्होने इमाम मेहदी होने का दावा कर दिया है जिनमे मतभेद है ।

शेख अली मुनतक़ी जो उनके विरोधी थे उन्होंने भी इस बात को स्वीकार किया की मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी  ने खुद को इमाम मेहदी कभी घोषित नहीं किया बल्कि यह कहते थे की वो इमाम महदी का अनुसरण करने वाले हैं और उनके जैसे ही हो गए है ।

उन मानने वालो ने इसे गलत समझा और यह मान लिया की मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी  इमाम महदी होने का दावा कर दिया है ।

आपका देहांत १४६९ इ में या १५०४ इ में फराह में हुआ जहां आज भी वो दफन है । जौनपुर के उनके घर पानदरीबा मीर  घर और उसके पास मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी  के पिता की क़ब्र पे आज भी मखदूम सय्यद मोहम्मद जौनपुरी के चाहने वाले गुजरात से आया करते है ।



हमारा जौनपुर वेब पोर्टल ने लांच किया एंड्राइड मोबाइल App..

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हमारा जौनपुर वेब पोर्टल ने पाठको की डिमांड को देखते हुए उन लोगो की सुविधा को घ्यान में रखते हुए जो एंड्राइड फ़ोन का इस्तेमाल करते हैं एक एप्प लांच किया है जिसे डाउनलोड करने के लिए नीचे दी गयी  तस्वीर  पे click करे   



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जौनपुर में फैली ये मजारें ,क़ब्रें और उनपे लगते ये उर्स और चढ़ती चादरें इतिहास के आईने में ।

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जो लोग जौनपुर और आसपास के इलाक़े में आया जाया करते हैं उन्होंने यह अवश्य देखा होगा की   यहाँ जगह जगह  क़ब्रें और रौज़े बने हैं जिनपे हरी चादरें पडी रहती है या उनपे उर्स साल में एक बार लगता है या फिर ऐसी मजारें हैं जहाँ  गाँव वाले मुरादें मांगने जाया करते हैं ।

हर इंसान एक बार ऐसे नज़ारे देख के यह सोंचने पे मजबूर  एक बार अवश्य हो जाएगा की  ये किसकी मज़ारे हैं जिनके इतने मुरीद आज भी हैं ?  जब मैंने इसके बारे में शोध किया तो मुझे महसूस हुआ की ये मजारें और क़ब्रें तीन तरह के लोगों की है । सबसे पहले जो  बड़ी मजारें मिलती है  सय्यद संत थे जो शर्क़ी समय में जौनपुर में आ के बस गए थे । दुसरे वो सय्यद थे जो शाही घराने में उच्च पदो में थे और जंग में मारे गए । तीसरे वो सूफी या संत हैं जो जौनपुर में  रह के ज्ञान अर्जित किया करते थे और दूर गाँव इत्यादि में बसे  हुए थे ।


इन संतो और सूफियों की जौनपुर में आमद शर्क़ी काल  में १४०१ इ० के आस पास शुरू हुयी तब तैमूर लंग ने दिल्ली पे आक्रमण किया और   सब तरफ मारकाट शुरू हो  गयी और  दौर में अगर कहीं शान्ति थी  तो वो केवल जौनपुर और शर्क़ी राज्य में थी । इब्राहिम  शाह  उस समय जौनपुर का बादशाह था और सभी धर्मो के लोगो को और ज्ञानी ,संतो  को इज्जत दिया करता था ।

जब यह महान संत जिनकी  तादात १४०० से अधिक बातायी जाती है जौनपुर मे बसे तो इनके मुरीद  हिंदू और मुसलमान दोनो हो गये इसीकारण से आज भी उनकी मजारो  पे दोनो धर्म के लोग जाते, चादर चढाते और उरस मे  शरीक हुआ  करते है  ।

ये वही  संत और ज्ञानी है जिनके कारण  जौनपुर को शिराज ए हिंद कहा गया ।

लेकिन इन सबसे हट  के ऐसी क़ब्रों की तादात भी बहुत है जो कौन लोग थे  नहीं लेकिन गाँव वालों ने उनको अपनी मुरादें मांगने का ज़रिया बना लिया और उनके बारे में तरह तरह  किवदंतियां मशहूर हो गयी जिनकी सत्यता प्रमाणित नहीं ।


शार्क़ी समय मे आये १४०० संतो मे से  से ४-५ क़ब्रें तो हमारे ही पूर्वजो की हैं जो सय्यद भी थे ज्ञानी  भी थे लेकिन हम में   से कोई उन मज़ारों  मांगने नहीं जाता हाँ रौशनी करने कभी कभी जाय करते हैं । उनपे उर्स आस पास के  गाँव वाले लगाते हैं जहा वो दफन हैं और चांदरें भी वही लोग  चढ़ाया करते हैं ।

बहुत मशहूर है कि इब्राहिम शाह के दौर में ईद और बकरईद पे नौ सौ चौरासी विद्वानो की पालकियां निकला करती थी ।

कुछ महान संतो के नाम इस प्रकार है ।



शेख वजीहुद्दीन अशरफ ,उस्मान शीराज़ी ,सदर जहा अजमल,क़ाज़ी नसीरुद्दीन अजमल, क़ाज़ी शहाबुद्दीन मलिकुल उलेमा क़ाज़ी निजामुद्दीन कैक्लानी, मालिक अमदुल मुल्क बख्त्यार खान, दबीरुल मुल्क कैटलॉग खान, मालिक शुजाउल मुल्क मखदू ईसा ताज,शेख शम्सुल हक़ ,मखदूम शेख रुक्नुद्दीन, सुहरवर्दी, शेख जहांगीर, शेख हसन ताहिर,मखदूम सैय्यद अली दाऊद कुतुबुद्दीन, मखदूम शेख मुहम्मद इस्माइल ,शाह अजमेरी,ख्वाजा क़ुतुबुद्दीन ,ख्वाजा शेख अबु सईद चिस्ती ,मखदूम सैयद सदरुद्दीन, शाह सैय्यद ज़ाहिदी, मखदूम बंदगी शाह,साबित मदारी।, शेख सुलतान महमूद इत्यादि


सबको तो पेश करना यहा आसान नही लेकिन कुछ को पेश कर रहा हू ।

दानियाल खिजरी पुरानी बाजार जौनपुर 



ये हमारे ७०० वर्ष पुराने पूर्वज सय्यद अली दाऊद की क़ब्र है जो सदल्ली पूर  इलाक़े में  है और आस पास हिन्दू घर बसे है जो इन्हे सय्यद बाबा कहते हैं और चादरें चंढाते है ।लाल दरवाज़ा १४४७  लाला दरवाज़ा मस्जिद का निर्माण १४४७ में सुलतान महमूद शार्की के दौर में उनकी पत्नी बीबी राजे ने करवाया और उसे उस दौर के एक सैय्यद आलिम जनाब सयेद अली दाउद कुतुब्बुद्दीन को समर्पित कर दिया |
लाल दरवाज़ा का निर्माण बीबीराजे ने एक सैयद संत की शान में करवाया|

सय्येद  बडे और उनके भाई  
सय्यिद बरे हजरत मुहम्मद (स.अ.व) की ३२ वीन नस्ल थे और ७७० हिजरी १३६८ इस्स्वी में वो दिल्ली से जाफराबाद के करीन एक इलाके सरसौन्दा (अब मसौन्दा) में आकर बस गए और एक तालाब के किनारे छप्पर डाल के रहने लगे | सय्यिद बरे ने वहाँ के गांव वालों को गुमराही से बचाया और एक ऐसे संत जो हर अमावस्या को गाँव के लोगों से सोना चांदी ,धन दौलत की मांग करता था उसके ज़ुल्म से बचाया |

जानिये कजगांव तेढ़वान की दो भाइयों की टेढ़ी कब्र का रहस्य

सय्येद उस्मान शिराजी 
पुराने जौनपुर के दरिया किनारे के कुछ इलाके शर्की लोगों की ख़ास पसंद रहे थे | पानदरीबा रोड पे आपको पुराने समय की बहुत सी इमारतें मिलेंगी जिनमे से बहुत से इमामबारगाह जो इमाम हुसैन (अ.स) की याद में बनाए गए थे ,मिलेंगे | यहाँ पान दरीबा रोड पे मकबरा सयेद काजिम अली से सटी हुई एक मस्जिद मौजूद है जिसे खालिस मुखलिस या चार ऊँगली मस्जिद कहते हैं | शर्की सुलतान इब्राहिम शाह के दो सरदार इस इलाके में आया जाया करते थे कि एक दिन उनकी मुलाक़ात जनाब सैयेद उस्मान शिराज़ी साहब से हुई जो की एक सूफी थे और इरान से जौनपुर तैमूर के आक्रमण से बचते दिल्ली होते हुए आये थे और यहाँ की सुन्दरता देख यहीं बस गए | सयेद उस्मान शिराज़ी साहब से यह दोनों सरदार खालिस मुखलिस इतना खुश हुए की उनकी शान में इस मस्जिद  की  तामील  करवायी | जनाब उस्मान शिराज़ी की कब्र वहीं चार ऊँगली मस्जिद के सामने बनी हुई है जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं |जनाब उस्मान शिराज़ी के घराने वाले आज भी पानदरीबा इलाके में रहते हैं जिनके घर को अब मोहल्ले वाले “मीर घर “ के नाम से जानते हैं |
खालिस मुखलिस मस्जिद जिसे चार ऊँगली मस्जिद भी कहते हैं |

पटाखों पर लगाये गये हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र पर प्रतिबंध लगाने की मांग

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जनपद के हिन्दूवादी संगठनों ने डीएम के माध्यम से राज्यपाल को भेजा पत्रक

जौनपुर। पटाखों पर लगाये गये हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र पर प्रतिबंध लगाने की मांग को लेकर शनिवार को तमाम हिन्दूवादी संगठनों ने कलेक्टेªट पहुंचकर महामहिम राज्यपाल को सम्बोधित मांगों का ज्ञापन जिला प्रशासन को सौंपा। सौंपे गये ज्ञापन के माध्यम से कहा गया कि दीपावली पर बम पटाखों, चरखी, फुल्झड़ी आदि पर हिन्दू आस्था के प्रतीक देवी-देवताओं की फोटो न लगायी जाय। इससे हिन्दू आस्था पर कुठाराघात हो रहा है। मांग किया गया कि देवी-देवताओं के चित्र लगाने वालों (पटाखा फैक्ट्रियों) को निर्देशित किया जाय कि हिन्दू आस्था पर ठेस न पहुंचायें। पटाखों के रैपर पर देवी-देवताओं के चित्र न लगायें जायं। दुकान पर हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र लगे पटाखे, बम, चरखी, फुल्झड़ी आदि मिले तो हिन्दू आस्था पर कुठाराघात मानते हुये उन पर कानूनी कार्यवाही की जाय। महामहिम राज्यपाल को सौंपे गये ज्ञापन की प्रतिनिधि जिलाधिकारी व आरक्षी अधीक्षक को भी प्रेषित किया गया है। ज्ञापन सौंपने वालों में विहिप के जिला संगठन मंत्री मनोज मिश्र, जिलाध्यक्ष नरसिंह बहादुर सिंह, जिला मंत्री राकेश श्रीवास्तव, कार्याध्यक्ष अजय पाण्डेय, बजरंग दल के संयोजक विनय मौर्य, नगर मंत्री महेश सेठ, प्रभाकर तिवारी, धर्माचार्य प्रमुख आचार्य रविन्द्र द्विवेदी, चन्द्रभूषण दूबे, राम अकबाल मिश्रा, राज प्रताप सिंह, दयाराम अग्रहरि के अलावा सैकड़ों पदाधिकारी उपस्थित रहे।


एक ऐसा मेला जिसमे पुरुषो का जाना वर्जित |

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अशोक केसरवानी


कौशाम्बी के भरवारी कस्बे में दिल्ली के तरह मीना मेला लगता है| एक दिन के इस मेला क्षेत्र में सिर्फ महिलाओ का ही प्रवेश होता है| मेला क्षेत्र में पुरुषों का प्रवेश पूरी तरह से प्रतिबंधित रहता है| सैकड़ो वर्ष से लग रहे मेले में खरीदारी के आलावा खाने पीने के सामान मौजूद रहता है। यह मेला यहाँ के वार्षिक दशहरा मेले के दिन लगता है। इस मेले के आयोजको का कहना है कि बुजुर्गों ने इसकी शुरुआत के पीछे कस्बे और आस पास के महिलाओ को एक ही जगह पर उनकी जरुरत के सामानों और खाने पीने के सामान के आलावा मनोरंजन की सुविधा मुहैया कराना था, यह परंपरा आज भी कायम है।

कौशाम्बी जिले की व्यवसायिक नगरी भरवारी कस्बे में लगे मीना मेला क। यहाँ पर सिर्फ महिलाये और लड़कियां ही दिखाई पड़ती है। पुरुष दुकानदारो के आलावा दूसरे पुरुषों का मेले में प्रवेश प्रतिबंधित रहता है। मेले में जुटी महिलाये और लड़कियाँ अपने जरुरत के सामानों की खरीददारी करती है, तो खाने पीने के लजीज और जयेकेदर व्यंजनो का भी स्वाद चखाती है। मीना मेला में महिलाओ कि जरुरत के लगभग सभी सामान एक ही स्थान पर मिल जाता है।

महिलाओ के सौन्दर्य समग्री के आलावा यहाँ पर घरेलु वस्तुओ से लेकर अन्य सामान भी आसानी से मिल जाते है। महिलाएं बताती है की यदि गलती से भी कोई पुरुष मेला परिसर में आ जाता है तो उसकी पिटाई होती है ।




परदेशी-विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने का माद्दा जौनपुर शहर में आज भी है|

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महर्षि यमदग्नि की तपोस्थली व शर्की सल्तनत की एक शतक तक राजधानी रहने  वाला प्राचीनकाल से शैक्षिक व ऐतिहासिक दृष्टि से समृद्धिशाली शिराजे हिन्द जौनपुर आज भी अपने ऐतिहासिक एवं नक्काशीदार इमारतों के कारण न केवल प्रदेश में बल्कि पूरे भारत वर्ष मेंअपना एक अलग वजूद रखता है। नगर में आज भी कई ऐसी महत्वपूर्णऐतिहासिक इमारतें है जो इस बात का पुख्ता सबूत प्रस्तुत करती है कि यह नगर आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व एक पूर्ण सुसज्जित नगर रहा होगा। शासन की नजरे यदि इनायत हो और इसे पर्यटक स्थल घोषित कर दिया जाय तो स्वर्ग होने के साथ बड़े पैमाने परदेशी-विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने का माद्दा इस शहर में आज भी है। नगर के ऐतिहासिक स्थलों मेंप्रमुख रूप से अटाला मस्जिद, शाहीकिला, शाही पुल, झंझरी मस्जिद, बड़ी मस्जिद, चार अंगुली मस्जिद, लाल दरवाजा, शीतला धाम चौकिया, महर्षि यमदग्नि तपोस्थल, जयचन्द्रके किले का भग्नावशेष आदि आज भी अपने ऐतिहासिक स्वरूप एवं सुन्दरता के साथ मौजूद है। इसकेअलावा चार दर्जन से अधिक ऐतिहासिक इमारते यहां मौजूद है जिनमें से कुछ रखरखाव के अभाव में जर्जर हो गये है।
Atala Masjid Jaunpur

कभी-कभी विदेशी पर्यटक यहां आकर ऐतिहासिक स्थलों का निरीक्षण कर यहां की संस्कृति की सराहना करने से नहीं चूकते लेकिन दूसरी तरफ शासन द्वारा पर्यटकों की सुविधा के मद्देनजर किसी भी प्रकार की स्तरीय व्यवस्था न किये जाने से उन्हे काफी परेशानी भी होती है।

हालांकि जनपद को पर्यटक स्थल के रूप में घोषित कराने का प्रजो भी प्रयास  आज तक जो भी प्रयास किया गया  वो नाकाफी रहा  है|
Mahal Raja Jaunpur

Maqbara Goolar Ghat

Shahi Pull  Jaunpur


Jhanjhri Masjid

Shahi Fort

प्राचीन काल के जो भवन इस समय उत्तर भारत में विद्यमान है उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं प्राचीन अटाला मस्जिद शर्की शासनकाल के सुनहले इतिहास का आईना है। इसकी शानदार मिस्र के मंदिरों जैसी अत्यधिक भव्य मेहराबें तो देखने वालों के दिल को छू लेती है। इसका निर्माण सन् 1408 ई. में इब्राहिम शाह शर्की ने कराया था। सौ फिट से अधिक ऊंची यह मस्जिद हिन्दू-मुस्लिम मिश्रित शैली द्वारा निर्मित की गयी है जो विशिष्ट जौनपुरी निर्माण शैली का आदि प्रारूप और शर्कीकालीन वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। शर्कीकाल के इस अप्रतिम उदाहरण को यदि जौनपुर में अवस्थित मस्जिदों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व खूबसूरत कहा जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
Lal Darwaza Masjid


इसी प्रकार जनपद की प्रमुख ऐतिहासिक इमारतों में से एक नगर में आदि गंगा गोमती के उत्तरावर्ती क्षेत्र में शाहगंज मार्ग पर अवस्थित बड़ीमस्जिद जो जामा मस्जिद के नाम से भी जानी जाती है, वह शर्की कालीन प्रमुख उपलब्धि के रूप में शुमार की जाती है। जिसकी ऊंचाई दो सौ फिट से भी ज्यादा बताई जाती है। इस मस्जिद की बुनियाद इब्राहिम शाह के जमाने में सन् 1438 ई. में उन्हीं के बनाये नक्शे के मुताबिक डाली गयी थी जो इस समय कतिपय कारणों से पूर्ण नहीं हो सकी। बाधाओं के बावजूद विभिन्न कालों और विभिन्न चरणों में इसका निर्माण कार्य चलता रहा तथा हुसेन शाह के शासनकाल में यह पूर्ण रूप से सन् 1478 में बनकर तैयार हो गया। इन ऐतिहासिक इमारतों के अनुरक्षण के साथ ही साथ बदलते समय के अनुसार आधुनिक सुविधा मुहैया कराकर इन्हे आकर्षक पर्यटक स्थल के रूप मेंतब्दील किया जा सकता है।


नगर के बीचोबीच गोमती नदी के पूर्वी तट पर स्थित उत्थान-पतन का मूक गवाह 'शाही किला'आज भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुखकेन्द्र बिन्दु बना हुआ है। इस ऐतिहासिक किले का पुनर्निर्माण सन् 1362 ई. में फिरोजशाह तुगलक ने कराया। दिल्ली व बंगाल के मध्यस्थित होने के कारण यह किला प्रशासन संचालन की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण था। इस शाही पड़ाव पर सैनिक आते-जाते समय रुकते थे।किले के मुख्य द्वार का निर्माण सन् 1567 ई. में सम्राट अकबर ने कराया था। राजभरों, तुगलक, शर्की, मुगलकाल व अंग्रेजों के शासनकालके उत्थान पतन का मूक गवाह यह शाही किला वर्तमान में भारतीय पुरातत्व विभाग की देखरेख में है। इस किले के अन्दर की सुरंग का रहस्य वर्तमान समय में बन्द होने के बावजूद बरकरार है। शाही किले को देखने प्रतिवर्ष हजारों पर्यटक आते रहते है।

Pancho Shivala, Pandaraiba, Jaunpur

महाभारत काल में वर्णित महर्षि यमदग्नि की तपोस्थली जमैथा ग्राम जहां परशुराम ने धर्नुविद्या का प्रशिक्षण लिया था। गोमती नदी तट परस्थित वह स्थल आज भी क्षेत्रवासियों के आस्था का केन्द्र बिन्दु बना हुआ है। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि उक्त स्थल के समुचितविकास को कौन कहे वहां तक आने-जाने की सुगम व्यवस्था आज तक नहीं की जा सकी है। झंझरी मस्जिद, चार अंगुली मस्जिद जैसी तमाम ऐतिहासिक अद्वितीय इमारतें है जो अतीत में अपना परचम फहराने में सफल रहीं परन्तु वर्तमान में इतिहास में रुचि रखने वालों केजिज्ञासा का कारण होते हुए भी शासन द्वारा उपेक्षित है।
Char ungli Masjid

मार्कण्डेय पुराण में उल्लिखित 'शीतले तु जगन्माता, शीतले तु जगत्पिता, शीतले तु जगद्धात्री-शीतलाय नमो नम:'से शीतला देवी की ऐतिहासिकता का पता चलता है। जो स्थानीय व दूरदराज क्षेत्रों से प्रतिवर्ष आने वाले हजारों श्रद्घालु पर्यटकों के अटूट आस्था व विश्वास काकेन्द्र बिन्दु बना हुआ है। नवरात्र में तो यहां की भीड़ व गिनती का अनुमान ही नहीं लगाया जा सकता है।



शिराज-ए-हिन्द जौनपुर की आन-बान-शान में चार चांद लगाने वाला मध्यकालीन अभियंत्रण कला का उत्कृष्ट नमूना 'शाही पुल'पिछली कई सदियों से स्थानीय व दूरदराज क्षेत्रों के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। भारत वर्ष के ऐतिहासिक निर्माण कार्यो में अपना अलग रुतबा रखने वाला यह पुल अपने आप में अद्वितीय है। वही खुद पयर्टकों का मानना है कि दुनिया में कोई दूसरा सड़क के समानान्तरऐसा पुल देखने को नहीं मिलेगा।

शहर को उत्तरी व दक्षिणी दो भागों में बांटने वाले इस पुल का निर्माण मध्यकाल में मुगल सम्राट अकबर के आदेशानुसार मुनइम खानखानाने सन् 1564 ई. में आरम्भ कराया था जो 4 वर्ष बाद सन् 1568 ई. में बनकर तैयार हुआ। सम्पूर्ण शाही पुल 654 फिट लम्बा तथा 26 फिटचौड़ा है, जिसमें 15 मेहराबें है, जिनके संधिस्थल पर गुमटियां निर्मित है। बारावफात, दुर्गापूजा व दशहरा आदि अवसरों पर सजी-धजीगुमटियों वाले इस सम्पूर्ण शाही पुल की अनुपम छटा देखते ही बनती है।

इस ऐतिहासिक पुल में वैज्ञानिक कला का समावेश किया गया है। स्नानागृह से आसन्न दूसरे ताखे के वृत्त पर दो मछलियां बनी हुई है। यदिइन मछलियों को दाहिने से अवलोकन किया जाय तो बायीं ओर की मछली सेहरेदार कुछ सफेदी लिये हुए दृष्टिगोचर होती है किन्तु दाहिनेतरफ की बिल्कुल सपाट और हलकी गुलाबी रंग की दिखाई पड़ती है। यदि इन मछलियों को बायीं ओर से देखा जाय तो दाहिने ओर की मछली सेहरेदार तथा बाई ओर की सपाट दिखाई पड़ती है। इस पुल की महत्वपूर्ण वैज्ञानिक कला की यह विशेषता अत्यन्त दुर्लभ है।

आज का युवा शक्ति ही जौनपुर और समाज को सही दिशा दे सकती है - एस एम मासूम

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आज का युवा शक्ति ही जौनपुर को सही दिशा दे सकती है । 



आज धनतेरस के दिन लोग धन की कामना  करते है  लेकिन युवा शक्ति से बडा  कोई धन मुझे  नही लगता । आज के दिन हमारे घर जौनपुर की युवा शक्ती के पैर पडे और उनकी बाते और उनकी  समाज के लोगो  के हर वर्ग के लोगो  के प्रति  प्रेम और चिंता देख के ऐसा लगा कि इनकी सोंच तो अच्छी  है और अगर सही दिशा  मिलती  रहे तो आने वाले दिनो मे जौनपुर के समाज को  बदलने के ताक़त इनमे है । 



आज नौजवान छात्र संगठन के जिलाध्यक्ष प्रभारी पूर्वाचल जोन अनुराग मिश्र प्रिंस जिनकी लगन सोंच और मेहनत की सराहना आज जौनपुर मे हर तरफ हो रही है , मनीष तिवारी अध्यक्ष बंदेमातरम जनसेवा ट्रस्ट और  अमित शुक्ला  सामाजिक कार्यकर्ता मुझसे  मिलने  के लिये घर पे आये । 

राजनीति , जौनपुर  का समाज और आस पास के गांव की समस्या पे बात हुई और इन युवाओं की बातो से मैं काफी प्रभावित हुआ क्यों की यह इस समाज को स्वनिर्भर और मानसिक शांति के हँसता खेलता देखने की तमन्ना रखते है और इसी मक़सद के लिए प्रयत्नशील भी हैं । 

 जिलाध्यक्ष प्रभारी पूर्वाचल जोन अनुराग मिश्र प्रिंस  मे एक जोश है और समाज के कमजोर और गरीब तब्क़े की  समस्याओं को समझने की सलाहियत भी उनमे मौजूद है । 

बस एक आशा है की शायद ये युवा आज के समाज में जो भ्रष्टाचार , अशांति फैली हुयी है उसे बदल  सकेंगे और जौनपुर को उसका उचित स्थान विश्व में दिला सकने में सहयोगी होंगे । 

मेरी शुभकामनाएं इन युवाओं के साथ है क्यूंकि मुझे मालूम है की आज का युवा शक्ति ही जौनपुर को सही दिशा दे सकती है ।

...............  एस एम मासूम 


धनवन्तरि के दिन जौनपुर की चहल पहल |

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 मुॅगराबादशाहपुर में गाॅव कमालपुर में स्थित प्रकाशचन्द्र एकडमी स्कूल में रंगोली प्रतियोगिता आयोजित की गयी जिसमें विधालय के नन्हे मुन्हे छात्र छात्राओ ने अपनी अपनी कला का बेहतर प्रदर्शन किया बच्चों द्वारा सुन्दर व मनमोहक चित्रों के चित्रांकन को अभिभावको ने सराहा प्रतियोगिता में अनन्या तिवारी त्रिशा मिश्रा अंतिका यादव नैना केशरी अभिषेक पाण्डेय व त्रेयषी तिवारी आदि छात्र छात्राओ ने प्रतिभाग किया प्रधानाचार्य नीजम पाण्डेय के देख रेख प्रतियोगिता सम्पन्न हुआ प्रबन्धक सुषमा पाण्डेय ने निखरते हुए प्रतिभाओ के प्रति मंगल कामनाएॅ व्यक्त किया मुख्य रूप् से शिल्पी यादव अश्वनी केशरी राजकुमारी पाल प्रेम लता सिंह नीलम मिश्रा नीलम गुप्ता आदि थे ।


जौनपुर। ज्योति पर्व दीपावली 11 नवम्बर दिन बुधवार को है लेकिन इसी से सम्बन्धित सोमवार को धनवन्तरि पूजा का प्रचलन है। इस पूजा की मान्यता है कि लोगों को सामथ्र्य के अनुसार घर-गृहस्थी का सामान अवश्य खरीदना चाहिये। इसी के चलते आज नगर में बर्तन, सोने-चांदी, कपड़े आदि की दुकानें सजीं जहां खरीददारांे की काफी भीड़ उमड़ी। देखा गया कि जहां गहना कोठी, बालाजी ज्वेलर्स, संकल्प ज्वेलर्स सहित अन्य आभूषणों की दुकानों पर लोगों ने सोने-चांदी का जेवर खरीदा, वहीं दूसरी ओर भारत ग्लास हाउस, सीताराम-ज्ञानचन्द्र की दुकानों से लोगों ने थाली, कूकर, गैस चूल्हा, इंडक्शन चूल्हा सहित अन्य बर्तनों की जमकर खरीददारी किया। इसके अलावा अन्य सम्बन्धित सामग्रियों की दुकानों पर लोगों, विशेषकर महिलाओं की काफी भीड़ रही। सुबह से शुरू हुई खरीददारी देर रात तक होती रही जिसके चलते पूरे नगर के मोहल्लों में जगह-जगह जाम की भी स्थिति बनी रही।
 जौनपुर। नगर के इंग्लिश क्लब के पास स्थित प्रज्ञा एकेडमी स्कूल में सोमवार को रंगोली व दिया प्रतियोगिता का आयोजन हुआ जहां बच्चों ने अपनी प्रतिभाओं का खुलकर प्रदर्शन किया। इसके पहले प्रबन्धक रीता श्रीवास्तव ने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिये प्रेरित किया तो डायरेक्टर अमित पाण्डेय ने बच्चों का उत्साहवर्धन किया। साथ ही कहा कि इस तरह की प्रतियोगिताओं से बच्चों को मानसिक व प्रतियोगिता का विकास होता है। अन्त में प्रधानाचार्य संजीव यादव ने समस्त अतिथियों समेत सभी आगंतुकों के प्रति आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर विद्यालय के समस्त शिक्षक, अभिभावक, छात्र-छात्राएं के अलावा अन्य उपस्थित रहे।

वरिष्ठ कांग्रेसी नेता श्रीमती गिरजा देवी तिवारी से एक यादगार मुलाक़ात |.....विडीयो

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वरिष्ठ काँग्रेसी नेता श्रीमती गिरजा देवी तिवारी के साथ 

राजन तिवारी के साथ उनके घर पे । 
जौनपुर के स्वतंत्रता सेनानी स्व० प० भगवती दीन  तिवारी को कौन नही जानता और उनके पौत्र  स्व० प० रत्नेश कुमार तिवारी  को तो जौनपुर के लोग आज तक भुला नही सके । स्व० प० रत्नेश कुमार तिवारी ना तो किसी बडे सरकारी पद पे थे और ना ही कोई विधायक रहे लेकीन उनकी ख्याती इतनी थी की जो किसी सरकारी पदाधिकारी या जनता द्वारा चुने गये नेता को भी नही मिलती और इस कारण ये था कि समाज के लोगो के बीच रह के उनके दुख दर्द को महसूस किया करते ,उनकी समस्याओं को सुलझाने में साथ देते रहते थे । समाज के हर वर्ग के लोगो में उनकी बड़ी इज्जत हुआ करती थी । 
इंसान अगर नेक हो और समाज के प्रति ईमानदारी से समर्पित को तो वो मर के भी लोगो के दिलो में जीवित रहता है और इसीलिये आज भी स्व० प० रत्नेश कुमार तिवारी जीवित है और आज की नयी पीढ़ी को राह दिखा रहे है । 
पुत्र अगर स्व० प० रत्नेश कुमार तिवारी जैसा हो तो यह सोंचना ही पड़ता है कि ऐसे पितृ की माता कितनी उच्च विचारो और संस्कारो वाली होगी । 

वरिष्ठ काँग्रेसी नेता श्रीमती गिरजा देवी तिवारी  और उनके दोनो पौत्र 

 स्व० प० रत्नेश कुमार तिवारी के साथ साथ उनकी माता श्रीमती गिरजा देवी तिवारी जो आज भी वरिष्ठ कांग्रेसी नेता है ,को जौनपुर बड़ी इज्जत देता है और इसका कारण भी श्रीमती गिरजा देवी का समाज के प्रति समर्पित होना है । गिरजा देवी स्वम  स्वतरंत्रता सेनानियों के घराने से सम्बन्ध रखती है  और विवाह  भी स्वतरंत्रता सेनानि  प० भगवती दीन  तिवारी के घराने में हो गया । आत्मविश्वास की कमी ना होने के कारण जब पारिवारिक ज़िम्मेदारियों को कामयाबी से निभाते हुए उन्होंने समाज सेविका की तरह राजनीति में क़दम रखा तो कामयाबी उनके क़दम छूने लगी । ये वो दौर था जब राजनोति में महिलाओं का योगदान काम कम ही हुआ करता था ।श्रीमती गिरजा देवी तिवारी ने महिलाओं के हक़ के लिए एक बड़ी लड़ाई लड़ी है फिर चाहे वो दहेज़ के खिलाफ हो या बाल विवाह के खिलाफ हो या महिलाओं पे किये जा रहे अत्याचारों के लिए लड़ी जा रही लड़ाई हो । 

मानस तिवारी के साथ 
राजनीति में सक्रिय होने के बाद उन्हें ५ बार १९७७ और १९८० के बीच जेल  भी जाना पड़ा लेकिन हिम्मत नहीं हारी और समाज के लिए काम करती रही ।    शुरू से श्रीमती गिरजा देवी कांग्रेस के साथ जुडी रही और मछली शहर से इलेक्शन भी लड़ी । कांग्रेस के और सामाजिक संस्थाओं के बहुत से महत्वपूर्ण पदो को कुशलता से संभालते हुए गिरजा देवी ने अपना जीवन समाज और जौनपुर को समर्पित रखा और पिछले ३० वर्षों से आज भी उत्तर प्रदेश कांग्रेस (आई ) लखनऊ की मेंबर है । 

स्व० प० रत्नेश कुमार तिवारी के पुत्र राजन तिवारी से जब मैं मिला तो पाया की वो अपने पिता का आइना है और उनमे वो सभी गुण मौजूद है जो उनके पिता में पाये जाते थे और आगे जा के एक बेहतरीन वकील और अधिवक्ता साबित होंगे और अपने पिता द्वारा समाज के हित  में किये जा रहे काम को आगे बढ़ाते रहेंगे । स्व० प० रत्नेश कुमार तिवारी के  दुसरे पुत्र मानस तिवारी जो इंजीनियर बनने वाले है उनसे जब यह पुछा की यह संस्कार आपको कहाँ से मिले तो उन्होंने छूटते ही अपनी दादी श्रीमती गिरजा देवी तिवारी का नाम लिया जिनसे उनके दोनों पौत्र बड़ा प्रेम करते हैं । 
आज जब स्व० प० रत्नेश कुमार तिवारी जी की माता श्रीमती गिरजा देवी तिवारी से मुलाक़ात हुयी तो उनसे बहुत सी बातें हुयी   नयी और पुरानी राजनीति का अंतर तो कभी युवाओं के भविष्य और उनपे पश्चिमी सभ्यता के  में बात हुयी तो कभी सामाजिक समस्याओ पे । जौनपुर के समाज और उनसे जुडी समस्याओं के बारे में  श्रीमती गिरजा देवी की जानकारी देख के मैं अचमभित  था 

 श्रीमती गिरजा देवी तिवारी से मिल के अच्छा लगा क्यू की श्रीमती गिरजा देवी तिवारी मे एक अच्छी समाज सेविका ,अच्छी नेता, अच्छी माता और अच्छी पत्नी को मैने आज देखा और सबसे बड़ी बात न घमंड और ना दिखावा जब तक सामने बैठा रहा ऐसा कभी नहीं महसूस हुआ की किये राजनितिक पार्टी के वरिष्ठ नेता के सामने बैठा हूँ बल्कि  जैसे मैं अपनी ही परिवार में अपनी माँ के साथ बैठा बातचीत कर रहा हूँ । 

श्रीमती गिरजा देवी तिवारी की दी हुई इज्जत मुझे हमेशा याद रहेगी |






दीपावली को लेकर बाजारों में रौनक लेकिन यातायात का हाल बुरा |

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जौनपुर। दीपावली को लेकर बाजारों में उमड़ पड़ी हैं। दुकानों पर खरीददारी के लिए मारा मारी मची हुई है। सामान लेने की जल्दी सबको मची है। लक्ष्मी गणेश, लाई- चूड़ा, खील बतासे, मिठाई, फल, मेवा, पनीर , पटाखों और परचून की दुकानों की फिजा ही बदली रही। उधर बीआरपी इण्टर कालेज के मैदान में आतिशबाजी की दुकानों पर बच्चों के साथ युवा भी अपने पसन्द के पटाखे खरीद रहे थे। गजरा और माला भी अनेक स्थानों पर ठेले और दुकानों बेचा जा रहा था। गत वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष मंहगाई बढ़ी हैं। बावजूद इसके सामानों की खरीददारी में अधिकांश लोग कोताही नहीं बरत रहे हैं। ग्राहकों के आने और जमकर खरीददारी से दुकानदारों की बांछे खिली हुई हैं। पर्व के मद्देनजर इलेक्ट्रिकल की दुकानों पर सजावट के लिए झालर और अन्य विद्युत उपकरणों की खरीद जोरों पर रही। शहर के प्रमुख बाजार ओलन्दगंज, चहारसू, कोतवाली, कसेरी बाजार, सुतहट्टी, कचहरी रोड, लाइन बाजार आदि में मंगलवार को पूर्वान्ह 10 बजे के बाद भारी भीड़ उमड़ पड़ी। जिससे यातायात व्यवस्था चरमरा गयी ।  सर्वाधिक आकर्षक मिठाइंया की दुकानें लग रही थी। रंग विरंगे और विभिन्न प्रकार की मिठाइयांे को लोग खरीद रहे थे। मिट्टी के बर्तन और खिलौने खरीदने वालों की संख्या कम नहीं रही। शहर में सैकड़ों मकान और दुकानों को गजरा और विद्युत उपकरणों से सजाया गया है जो शाम होते ही जगमगाने लगे। बाजार में चीन के निर्मित सामान पट गया है। इसमें बिजली के झालर, लैम्प शेड, गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां हो या फिर उपहार दिये जाने वाला सामान। इसी के साथ ही बम पटाखों के मामले में भी चीनी उत्पाद का धीरे छाने लगा है। रंगीन ऊंची आवाज करने वाले और कई किस्मों के साथ यहां पर उपलव्ध है।




मंदिर हनुमान घाट का सुंदर दृश्य

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यदि आप शाही पुल के हम्माम से पूर्व की ओर से गोमती नदी के घाट  की तरफ जाए तो आपको मंदिरो का सुन्दर दृश्य देखने को  मिलेगा । यहाँ सबसे पहले सत्य नारायण जी का मंदिर दिखेगा जो शिल्पकला का बेहतरीन नमूना है । इसे २०० वर्ष पुराना बताया जाता है और इसके दरवाज़े पे एक शिलालेख है जिसपे १८७१ लिखा है । उसे के ठीक सामने दुर्गा देवी का मंदिर है इसका निर्माण भी १०० वर्ष पहले हुआ था । यही गणेश जी और शंकर जी का भी मंदिर है और सबसे अंत में हनुमान जी का मंदिर है जो पंचायती मंदिर कहा जाता है और इसके निर्माण में कसरी लोगो का हाथ है । इस सुंदर नज़ारे को शाही पुल्ल से भी देखा जा सकता है ।




सदर इमामबाड़ा जौनपुर

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सदर इमामबाड़ा जौनपुर 

दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह के शासन काल में राजा शेख हाशिम अली मछली शहर के पूर्वज शेख फतह  मुहम्मद उर्फ़ मंगली  मंगली मियाँ जौनपुर जो इलाहबाद में प्रबंधक सैनिक अधिकारी थे । उस समय जौनपुर इलाहाबाद के अधीन था । मंगली मियाँ बड़े ही धनवान और प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से थे । उसी समय इन्होने गोमती किनारे इसकी नीव डाली ।

इमामबाड़े में भीतर इमाम हुसैन का ,हज़रत अब्बास का रौज़ा और क़दम ऐ रसूल है । इसकी तामीर फिर से बड़े पैमाने पे १८७८ इ हुयी और इसके फाटक पे लखनऊ के मशहूर  शायर नफीस का शेर लिखा है ।

ऐ जाहे कर्बला पाख इमाम ,या करो गिरया फ़र्ज़ ऍन  यह है
यह जो इसमें  इमामबाड़ा है।,जाय फरियादी शोरो शॉन यह है
बाद जिसका हुआ है नौ तामीर ,मोमिनो के दिलों का चैन यह है
है बजा कहिये गर डरे फ़िरदौस बाग़ ऐ जन्नत का जेब औ जीन यह है
साल ऐ तारिख कई नफीस हज़ी ख़ानए मातम ऐ हुसैन यह है (१२९५ हिजरी)





शाही पुल के किनारे बना "राम जानकी"मंदिर का कीजे दर्शन |

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शाही पुल पे खड़े हो के गोमती नदी के घाट पे बने मंदिरो की सुंदरता को देखने का अपना  ही एक मजा है  इस बार सोंचा चलो शाही पुल के किनारे गूलर घाट पे बने "राम जानकी "मंदिर हो लिया जाय और जा पहुंचा अपनी भक्तो की टीम के साथ राम जानकी मंदिर ।

राम जानकी मंदिर का मुख्य द्वार 

राम जानकी मंदिर 


पीपल के पेड़ की जड़ में स्थित सबसे पुरानी मूर्ती 

राम जानकी मंदिर में वहाँ एक नेक दिल बाबा फलहारी महाराज मिले जिन्होंने पूरे मंदिर के बारे में बताया। फलहारी महाराज के अनुसार यह मंदिर  सन १८३२ में बना था और इसमें सबसे पुरानी स्थापित मूर्ती अब नहीं है जो चोरी हो गयी । 

यहां राम मंदिर, हनुमान मंदिर और शनि देव का काले रंग का मंदिर मौजूद है जिसके पीछे एक पीपल का पुराना पेड़ है जिसकी जड़ में एक मूर्ती रखी है और उसी को आज सबसे पुरानी मूर्ती माना जाता है । यहां मंदिर में पानी में तैरता पथ्थर है जो  रामेश्वरम से लाया गया है और यह वो पथ्थर है जिससे लंका जाने के लिए सेतु बनाया गया था । ध्यान से देखने पे यह मालूम होता है कि यह पथ्थर नहीं बल्कि कोरल है जो इतने बड़े पैमाने में पाये जाते हैं कि उनके इस्तेमाल से तैरता हुआ पुल्ल बनाया जा सकता है । 


काले रंग का शनिदेव का मदिर भी वहीँ किनारे पे है जहां काले रंग के कपडे चढ़ावे के रूप में जो आते है लटके हुए थे । 

मंदिर से बैठ के गोमती का नजारा बहुत सुंदर दिखाई देता है । फलहारी महाराज से मिल के ज्ञान में वृद्धि हुयी। 
मनीष शुक्ला ,मै और रणजीत पाठक जी 

भक्तो की टीम 

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