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गोल्डेन बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड’ में दर्ज हुआ जौनपुर के संजय का नाम

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जौनपुर। जौनपुर के लाल ने महाराष्ट्र में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में धमाल मचाते हुये गोल्डेन बुक में अपना नाम दर्ज कराकर परिवार सहित अपने जनपद का नाम रोशन कर दिया।

 यह लाल जनपद के गौराबादशाहपुर के मैरा दखान गांव निवासी किसान लाल बहादुर पाल का होनहार पुत्र संजय पाल है जो महाराष्ट्र के पुणे में आयोजित दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय कराटे एवं किक बाक्सिंग प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता है। वहां से लौटकर अपने घर पहुंचे श्री पाल ने बताया कि उसको प्रथम स्थान के रूप में स्वर्ण पदक मिला। साथ ही उसका नाम गोल्डेन बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज हो गया। प्रतियोगिता में भारत के अलावा नेपाल,बांग्लादेश, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान से लगभग 500 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था। उसने बताया कि इस सफलता से उसका चयन वर्ल्ड किक बाक्सिंग चैम्पियनशिप के लिये हो गया है जो पुर्तगाल में जुलाई माह में होगा।


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जौनपुर शाही किले में सुबह की सैर

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जौनपुर शहर के उत्तरी क्षेत्र में स्थित शाही किला मध्य काल में शर्की सल्तनत की ताकत का केन्द्र रहा है | शाही किला को करार किला और जौनपुर किला के नाम से भी जाना जाता है। इसका इतिहास बेहद उतार-चढ़ाव वाला रहा है। सबसे पहले इस किले को एक टीले पर बनाया गया था और इसे केररार किला कहा जाता था। 1376 से 1377 के बीच फिरोज शाह तुगलक के सेनापति इब्राहिम नेब बरबक ने इसे फिर से बनवाया। विन्ध्याचल से नेपाल,बंगाल और कन्नौज से उड़ीसा तक फैले साम्राज्य की देखरेख करने वाली शर्की फौजों का मुख्य नियंत्रण यहीं से होता था.| पुराने केरारकोट को ध्वस्त करके शाही किला का निर्माण फ़िरोज शाह ने करवाया था.| स्थापत्य की दृष्टि से यह चतुर्भुजी है और पत्थरों की दीवार से घिरा हुआ है.| किले के अन्दर तुर्की शैली का एक स्नानागार है जिसका निर्माण इब्राहिम शाह ने कराया था|

100 साल बाद लोधियों ने फिरोज शाह तुगलक को युद्ध में हरा दिया और इस किले को नष्ट कर दिया। हालांकि मुगल बादशाह हुमायूं और अकबर के शासनकाल में इस किले का अच्छे से नवीनीकरण किया गया। बाद में इस किले पर अंग्रेजों ने कब्जा कर किया। हालांकि 1857 में भारत की आजादी की पहली लड़ाई में इसे फिर से नष्ट कर दिया गया। जौनपुरसे 2.2 किमी दूर यह किला शहर का प्रमुख आकर्षण है |



इस शाही किले पे आज कल जौनपुर के जाने पहचाने लोग और आस पास के इलाके के लोग जोगिंग करने, योग करने , सुबह की सैर के लिए आया करते हैं | नदी किनारे बसे इस किले में सुबह का समय बेहद सुंदर लगता है | आप भी देखें शाही किले का सुबह का नज़ारा |

जौनपुर कैसे पहुंचे


रेल और सड़क मार्ग से जौनपुर आसानी से पहुंचा जा सकता है। अगर आप हवाई मार्ग से जौनपुर जाना चाहते हैं, तो इसके लिए पहले दिल्ली जाना होगा।फिर वहां से रेल या सड़क मार्ग से जौनपुर पहुंचना होगा।

घूमने का सबसे अच्छा समय


नवंबर से फरवरी के बीच का समय जौनपुर घूमने का सबसे अच्छा समय माना जाता है।

मैं बेचारी लेखक कैस जौनपुरी

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जौनपुर निवासी जनाब कैस जौनपुरी से मेरी मुलाक़ात अक्सर हुआ करती है | मैंने हमेशा महसूस किया की वतन से मुहब्बत और कुछ कर सकने की ख्वाहिश यकीनन इनको कामयाबी की उच्च शिखर तक एक दिन अवश्य पहुंचाएगी |जनाब कैस जौनपुरी का जन्म 5 मई 1985 को जौनपुर, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था| .मोहम्मद हसन इण्टर कालेज, जौनपुर से हाईस्कूल से पढ़ते हुए बोर्ड ऑफ टेक्नीकल एजुकेशन लखनऊ से सिविल इंजिनीयरिंग में डिप्लोमा हासिल किया. 5 साल दिल्ली में रहने के बाद अब मुंबई में प्राईवेट नौकरी (सिविल इंजिनियर ) और बॉलीवुड में लेखक के तौर पे स्थापित  हैं|

यह फिल्म राईटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, मुंबई में ‘एसोसिएट मेंबर’. भी हैं और इनकी रचनाएँ नई दुनिया, रचनाकार, गर्भनाल, साहित्यकुंज, अनुभूति, संवाद दर्पण, प्रथम इम्पैक्ट, सरस सलिल, तरुणाई के सपने, विकल्प टाईम्स जैसी राष्ट्रिय और अन्तर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं| पेश हैं जनाब कैस साहब की औरत के ताज़ा हालत पे लिखी एक कहानी "एक बिचारी "

-एस एम् मासूम

भी सोचते हैं क्या है ये प्यार? कैसा दिखता है ये प्यार? क्या ये वही है जो एक नज़र में हो जाता है? क्या ये वही है जो कभी भुलाए नहीं भूलता? या फिर वो, जो कहता है “कोई बात नहीं तुम जैसे भी हो मुझे पसंद हो. मुझे तुम्हारे अतीत से कोई लेना-देना नहीं है.” फिर ऐसा क्यों होता है कि इतना भरोसा करने के बावजूद हमारा प्यार हमें धोखा देने लगता है? फिर ऐसा क्या था जो मेरा पति मुझसे प्यार नहीं करता था? मैंने तो उसे अपना सबकुछ मान लिया था.

मेरे लिए तो “पति माने भगवान” था. फिर मेरा भगवान किसी और के चक्कर में कैसे पड़ गया? और फिर, पड़ा तो पड़ा मगर उस लड़की को कैसे भूल गया? जो सिर्फ उसके सहारे थी. जो अभी भी सिर्फ उसी का इन्तजार कर रही थी कि “कब उसका भगवान आएगा और उसे अपने चरणों का दर्शन देगा?

मगर मेरा भगवान बहुत निष्ठुर निकला. वो तो मुझसे मिलने भी नहीं आया. मैं एक लड़की, अपने माँ-बाप के यहाँ रहने लगी. मगर ये लड़की उसे नहीं भूली थी. उस दिन मेरे पति का जनम-दिन था. मैं अपने माएके में थी. अपने पति के जनम-दिन पर मैं अपने माएके में थी. ये बात मुझे कचोट रही थी. मगर मैं बेचारी क्या करती? चाहती तो थी कि जाऊँ और जाकर अपने पति के सामने मिटटी की दीवार की तरह भहराकर गिर जाऊँ. मगर अब तो मैं खड़ी भी नहीं रह पा रही थी, तो गिरती भला क्या? और फिर कितना गिरती? मैं भी तो एक इंसान ही हूँ. मेरे पति ने तो जितना चाहा मुझे नीचा दिखाया. यहाँ तक कि एक लड़की अपने मायके भी आ गयी. तब भी वो इस लड़की को ही दोष दे रहा था कि “तू अपने माँ-बाप के साथ चली गई. अत्याचार तो तुमने किया मुझ पर.”

एक भगवान एक दासी पर खुद आरोप लगा रहे थे. मगर दासी भी ऐसी-वैसी नहीं थी. दिल बहुत बड़ा था मेरा. मैंने माफ कर दिया था अपने पति को. उसके जनम-दिन पर उसकी उमर की गिनती के बराबर गिन कर तोहफे दिए.

मेरे लिए क्या मुश्किल था. मेरा पति सिर्फ तैंतीस साल का ही तो था. सुबह से लेकर रात तक मैंने तैंतीस तोहफे दिए थे. क्योंकि मैं एक औरत थी. और औरत जब प्यार करती है तो आदमी बर्दाश्त नहीं कर पाता है. वहीँ दूसरी तरफ, जब एक औरत अपने पति से थोड़ा सा प्यार मांगती है तो पति इतना कंजूस हो जाता है कि क्या कहा जाए और क्या माँगा जाए?

मैंने अपने पति कि सारी ज्यादतियां बर्दाश्त कर लीं थी. मगर मेरे पति को ये बर्दाश्त नहीं हुआ कि मैं उसका घर छोड़कर अपने घर आ गई. उसने फिर भी ये नहीं सोचा कि “क्यूँ मैं ऐसा कर बैठी?” मेरा पति बस सोचता रहा कि “मैं तो मर्द हूँ. और एक मर्द कुछ भी कर सकता है. कुछ भी.” शायद इसीलिए तो वो मुझे घर में छोड़कर बाहर ही रहना पसंद करता था.

वो पसंद करता था किसी बाहरवाली को. इसलिए नहीं कि “वो उसे पसंद करता था” बल्कि इसलिए क्योंकि “वो सोचता था कि वो एक मर्द है. और मर्द का अगर किसी बाहरवाली के साथ चक्कर न हो तो वो मर्द ही क्या? इससे अच्छा तो चूडियाँ पहन कर घर में बैठ जाए.” जैसा मैं कर रही थी. क्योंकि मैं एक औरत थी. एक नए जमाने कि हिन्दुस्तानी औरत. जो आज भी अपने पति कि बेवफाई चुपचाप बर्दाश्त कर रही थी.

कभी-कभी सोचती हूँ अपने बारे में तो रोना आ जाता है. मगर वो नहीं आता है. चाहे मैं रो-रो के बेहाल हो जाऊं, तो भी नहीं..... कितनी बार तो मैं रोते-रोते ही सो जाती हूँ. मगर वो मेरे पास नहीं आता क्यूंकि वो एक औरत को रोते हुए नहीं देख सकता. जबकि सच ये है कि वो सिर्फ मुझे रोते हुए नहीं देखना चाहता. क्योंकि फिर उसे शायद दिखावे के लिए कहना पडेगा कि “मत रोओ”. जो वो कभी दिल से कहना नहीं चाहता. क्यूंकि मैं रोऊँ चाहे गाऊं, उसे कुछ फर्क नहीं पड़ता था. हां अगर उसकी चहेती रात के दस बजे भी रोकर उसे बुलाए तो वो कोई न कोई बहाना बनाकर उससे मिलने जरुर जाता था.

जैसे एक दिन उसने कहा कि “मैं एटीएम से पैसे निकालने जा रहा हूँ.” और इस बहाने से वो बिल्डिंग से नीचे उतरा और उस हरामजादी से मिल के आया. और जब मैंने पूछा कि “क्या हुआ एटीएम खराब हो गया था क्या?” तो वो अपनी गलती को छुपाने के लिए मुझपर चिल्लाने लगा. और हमेशा कि तरह “मैं खामोश हो गई.”

मगर उस दिन मुझे ये पता चला कि “मेरा पति अब मेरा नहीं रहा. वो किसी और का भी था. इसलिए अब वो मेरा नहीं था.” क्योंकि पति तो पूरा ही होता है. “आधा पति” क्या होता है? और मुझे “आधा पति” चाहिए भी नहीं था. क्योंकि “वो सोता तो मेरे साथ था मगर उसकी बाहों में मैं नहीं होती थी.” इसलिए मुझे कोई दर्द भी महसूस नहीं होता था, और उसे कोई मजा भी नहीं आता था. क्योंकि “मर्दों को तो औरत को रौंदने में मजा आता है.” अगर बिस्तर पे औरत हाथ-पैर न जोड़ ले तो मर्द खुद पर ही शक करने लगता है.

मगर यहाँ भी वो मुझे ही गलत समझता था. “वो चाहता था कि मैं चिल्लाऊं मगर मैं तो उसकी तरह झूठी नहीं थी. चिल्लाने के लिए दर्द का अहसास भी तो होना चाहिए. मुझे प्यार का अहसास तो होता नहीं था दर्द तो बहुत दूर की बात थी.

मगर जो दर्द मुझे हो रहा था उसका अहसास उसे कभी नहीं हुआ. क्योंकि वो दर्द मेरे दिल में था और मेरा पति मेरे दिल में नहीं रहता था. वो किसी और के दिल में रहता था. बड़ी अजीब बात है “जब हम किसी को प्यार करते हैं तब हम कहते हैं, तुम मेरे दिल में रहते हो. चाहे तुम मुझे अपने दिल में रखो या मत रखो.” मगर यहाँ कहानी कुछ और ही थी. ना तो वो मुझे अपने दिल में रखता था और ना ही मेरे दिल में रहना चाहता था.

कभी-कभी सोचती हूँ “ऐसा क्या नहीं था मेरे पास जो मेरा पति मेरा होते हुए भी कभी मेरा नहीं हो पाया.” कभी-कभी मैं ये भी सोचती हूँ “क्या मैं एक लड़की नहीं या मैं एक औरत नहीं?” और इसी कशमकश में मैं कभी-कभी अपने औरत होने के सबूतों से पूछती हूँ “क्या तुमलोग काफी नहीं? मेरे पति को क्या चाहिए? तुम ही बता दो.” मगर हड्डी और मांस का सबूत क्या बताता? वो सब भी मेरी तरह खामोश हो चुके थे.

सच कहूँ तो मेरे पति ने मेरे साथ कम, मेरे अंदर मौजूद लड़की, जो अब कहने को औरत बन चुकी थी, के साथ ज्यादा जुल्म किया था. एक पति जब नामर्द निकलता है तो पूरी दुनिया उसे कोसती है. मगर जब एक सही-सलामत औरत को कोई इस तरह नज़र-अंदाज़ करता है तब ये दुनिया कुछ नहीं कहती है. नामर्द की तरह औरत के लिए “नाऔरत” शब्द नहीं बना है. औरत तो सिर्फ “बेचारी” होती है. मेरी तरह.

तभी तो मैं बेचारी समझ ही नहीं पाई कि जिस सीधे-साधे आदमी के साथ मेरी शादी हो रही है. वो सचमुच में सीधा-साधा नहीं है.... बल्कि वो तो तैयारी कर रहा था कि “किस तरह वो मुझे और अपनी “मन-पसंद” को एक साथ संभालेगा?”

मगर अब मुझे उससे दूर होकर ये समझ में आता है कि “दुनिया का हर वो आदमी, जो अपनी बीवी से बेवफाई करता है. बहुत बड़ा ‘बेवकूफ’ होता है.” ये आदमी ये नहीं सोचता है कि “घर में रहने वाली को भी थोड़ा प्यार दूँ ताकि इसे मेरी बाहरवाली के बारे में पाता न चले. मगर ये ‘बेवकूफ’ आदमी जब अपनी ‘मन-पसंद’ बाहरवाली के साथ होता है तब इसे अपनी बीवी की याद भले ही एक बार भी न आए. मगर यही ‘बेवकूफ’ आदमी जब अपनी ‘बीवी’ के साथ होता है तब इसे अपनी ‘मन-पसंद’ बाहरवाली की याद और ज्यादा आने लगती है.

और इस ‘बेवकूफ’ आदमी को ये नहीं पता कि “औरत ने ही आदमी को पैदा किया है. और एक औरत आदमी की नस-नस से वाकिफ होती है. एक आदमी, कभी एक औरत का शरीर उस तरह से नहीं देख पाता है जिस तरह एक औरत, आदमी के शरीर को जानती है, समझती है....”

“जिस रास्ते से मर्द अपनी मर्दानगी दिखाता है, उस रास्ते में जान एक औरत ही डालती है.” मगर कौन समझाए इस ‘बेवकूफ आदमी’ को. ये तो बस कुत्ते की तरह दुम हिलाता हुआ जीभ निकाल लेता है, जहाँ भी कोई लड़की देखी. इसीलिए तो सब लड़कियां कहती हैं “आदमी कुत्ता होता है.”

Qais Jaunpuri
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आह जौनपुर वाह जौनपुर

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हमारा वतन ही हमारी पहचान है यह बात मैं तब समझा जब मैं अपनी रोज़ी रोटी की तलाश में मुंबई पहुच गया | मुंबई शहर में बड़े आराम हैं शान है लेकिन पहचान नहीं है | इस पहचान शब्द को समाज के मिलने जुलने वालों से पहचान के रूप में न देखिये बल्कि आपकी पहचान वो होती है कि आपने अपने गाँव और घर का पता बताया और सामनेवाला आपके बारे में ,खानदान के बारे में आपकी शराफत के बारे में जान गया | वतन से दूर इंसान का जीवन किसी खानाबदोश से अलग नहीं होता जो आज यहाँ कल वहाँ भटकता रहता है | जहां रहता है कुछ जान पहचान बनाता है और जब वहाँ से चला जाता है तो सब कुछ बस एक याद बन के रह जाता हैं |

अपने वतन का इंसान यदि आप से सीधे संपर्क में नहीं भी होता है तो भी आपका अपना होता है और आपको उनसे बेहतर जानता है जो आपके वतन के बाहर के गहरे दोस्त हैं | वतन से दूर वतन की याद बहुत आती हैं जब वतन पहुँचता हूँ और वहाँ के नज़ारे,वहाँ की शान और सुदरता देखता हूँ तो दिल कहता है वाह जौनपुर लेकिन लेकिन जब वहाँ की बदहाली देखता हूँ तो दिल कहता है आह जौनपुर | चाहते हुए भी जौनपुर बहुत अधिक दिनों तक रहना संभव नहीं हो पाता |



जौनपुर में रोज़गार का न मिल पाना एक ऐसा कारण है जिसके चलते वहाँ के बहुत से घर या तो बंद पड़े रहते हैं या कोई एक-दो लोग जो बूढ़े हो चुके हैं आपना जीवन व्यतीत कर रहे होते हैं | वरना कौन है जो अपने वतन से दूर जाना चाहता है और वो भी जब वतन जौनपुर जैसा शान और शौकत की कहानी सुनाता हो |

एक शानदार इतिहास के होते हुए भी न रोज़गार के अवसर,न खेती करने वाले किसानो को सुविधाएं और ना आम नागरिकों के किये सुख सुविधाएं ऐसे में जौनपुर की प्रतिभाएं बहार जाने पे मजबूर न हों तो क्या करें |

बिजली है तो कब आती हैं और कब जाती है पता ही नहीं लगता अक्सर रातें अँधेरे में ही कटा करती हैं | इन्वर्टर वालों का धंधा ज़ोरों पे है लेकिन वो भी बेचारा कब तक चले ? बिजली यदि आ भी गए तो इतना पॉवर कम हुआ करता है की लोग अब स्टबलेज़र का इस्तेमाल करने लगे हैं | पानी है तो बिना टुल्लू पंप के आता ही नहीं और आता है तो कभी खारा कभी प्रदूषित | नौजवान सरकारी नौकरियों के फार्म भर भर के इंतज़ार करते सड़कों पे दोहरा खा के थूकते और बड़ी बड़ी बातें करते मायूस टहला करते हैं | करें भी तो क्या करें ? फिर कोई सहारा मिल गया तो सौदिया, दुबई और मुंबई चले जाते हैं जो रह गए वो ट्यूशन पढ़ा के या पत्रकार का कार्ड ले कर अपने अच्छे दिन आने का इंतज़ार करते हैं | ऐसे में इन नौजवानों का मिज़ाज चिडचिडा हो जाता है और नतीजे में बोली असभ्य हो जाती है |इसलिए जब जब जौनपुर गया दुखी हो के आया |



वहीं इस जौनपुर की शान तो देखिये शहर के बीच से गुज़रता शाही पुल आज भी उसपे चलने वालों को जौनपुर के शान और शौकत की कहानी सुनाता सा लगता है | वहाँ से गोमती का नज़ारा और मंदिर और मस्जिदों की आवाजें सुन के बड़ा सुकून सा मिलता है शायद इसी लिए लोग कहते हैं जौनपुर की हवा में अफीम मिला होता है जहां नींद बहुत आती है | वहीँ शाही पुल के पहले बनी गज सिंह की मूर्ति देखने पे इंसान किसी दुसरी दुनिया में पहुँच जाता है

ज़रा सा आगे चलिए तो शाही किला और उसमे बने हमाम की शान शब्दों में बयां करना संभव नहीं |बड़ी मस्जिद और अटाला मस्जिद की शान तो बस देखते ही बनती है | जौनपुर के आस पास राजा जौनपुर का महल,पंजे शरीफ हजरत अली (अ.स) का रौज़ा ,इमाम पुर और हमजा पुर का शानदार रौज़ा देखने पे किसी धन दौलत और मुहब्बत से भरे व्यापार का गढ़ रहे जौनपुर की याद दिलाता है| जौनपुर चित्रसारी के खंडहर और जाफराबाद में राजा जयचंद के महलों के खंडहर घुमने पे कोई भी इंसान यह सोंचने में मजूर हो जाता है की जौनपुर में ऐसा क्या था की जो आया बस यही का हो के रह गया | ऐसे जौनपुर को देख के किसे के मुह से नहीं निकलेगा वाह जौनपुर |

कल का वो जौनपुर जो लाखों इंसानों की पसंद हुआ करता था लाखों को रोज़गार देता था आज का सोया सोया सा शहर लगता है जहां बेरोज़गारी एक नासूर बनती जा रही है | शायद इसी कारण से हमारे मित्र पवन मिश्र ने जौनपुर के नज़ारे देख के कहा होगा आह जौनपुर |

जौनपुर और आस पास के मशहुर मंदिर

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 महाभारत काल में वर्णित महर्षि यमदग्नि की तपोस्थली जमैथा ग्राम जहां परशुराम ने धर्नुविद्या का प्रशिक्षण लिया था। गोमती नदी तट परस्थित वह स्थल आज भी क्षेत्रवासियों के आस्था का केन्द्र बिन्दु बना हुआ है। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि उक्त स्थल के समुचित विकास को कौन कहे वहां तक आने-जाने की सुगम व्यवस्था आज तक नहीं की जा सकी है|

रेणुका माता मंदिर जमैथा जौनपुर




विजय थुआ महावीर मंदिर


जौनपुर शहर से करीब 65 किमी  दूर सीमावर्ती कस्बा सूरापुर (सुल्तानपुर जनपद) के पास हनुमान जी का भव्य मंदिर विजेथुआ महावीरन के नाम से प्रसिद्ध है.यह पौराणिक स्थल के रूप में मान्य है.कहा जाता है कि संजीवनी बूटी लेने जा रहे हनुमान जी को रोकने के लिए रावण द्वारा भेजे गये कालनेमि का हनुमान जी ने यहीं वध किया था.मंदिर के बगल में मकरी कुण्ड है जहां मकरी रूपी शापित अप्सरा को हनुमान जी के हाथों निर्वाण प्राप्त हुआ था.इसे सिद्ध स्थल की मान्यता है और यहां मंगलवार,शनिवार,बुढवा मंगल आदि अवसरों पर भारी भीड़ होती है |

मंदिर के बगल में मकरी कुण्ड है जहां मकरी रूपी शापित अप्सरा को हनुमान जी के हाथों निर्वाण प्राप्त हुआ था.इसे सिद्ध स्थल की मान्यता है और यहां मंगलवार,शनिवार,बुढवा मंगल आदि अवसरों पर भारी भीड़ होती है |



 बावन बियर हनुमान मंदिर बलुआ घाट जौनपुर

जौनपुर शहर में मानिक चौक-बलुआघाट बाईपास रोड पर बावनवीर हनुमान मंदिर के प्रवेश द्वार पर स्थापित विशाल प्रतिमा लोगों का ध्यान खींचती है.अब आस-पास के लोग इस विशाल हनुमान प्रतिमा का जिक्र अपने घर की लोकेशन बताने में करने लगे हैं.प्रतिमा की ऊँचाई लगभग 28 फुट है.|

बड़े हनुमान मंदिर

'बड़े हनुमान मंदिर'के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर शहर के बलुआ घाट क्षेत्र में है.इस प्राचीन मंदिर का नवनिर्माण उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पं0 कमलापति त्रिपाठी के संरक्षण एवं आर्थिक सहयोग से हुआ था.नवनिर्माण का शिलान्यास 8 अप्रैल 1968 को उन्हीं के हाथों से हुआ था|



मार्कंडेय मंदिर

मार्कण्डेय महादेव मंदिर

जौनपुर शहर से करीब 70 किमी0 दूर कैथी (वाराणसी)में गोमती और गंगा के संगम के पास पौराणिक महत्व का मार्कण्डेय महादेव मंदिर है| 'बाल्यावस्था में अल्पायु मार्कण्डेय ऋषि को यमराज के पाश से छुड़ा कर भगवान शिव द्वारा की गयी जीवन रक्षा'का कथानक इसी स्थल (मंदिर) से सम्बद्ध है|


त्रिलोचन महादेव मंदिर

त्रिलोचन महादेव मंदिर वाराणसी राजमार्ग पर जौनपुर से करीब 22 किलोमीटर दूर स्थित है| यह भगवान शिव को समर्पित प्राचीन मंदिर है| यह बाबतपुर से 16 किमी0 और वाराणसी से 36 किमी0 पर स्थित है| मंदिर के बगल में एक बड़ा तालाब भी स्नान-ध्यान के लिए है| इस धार्मिक स्थल की विशेष रूप से वाराणसी और जौनपुर में काफी मान्यता है। प्रत्येक सोमवार,शिवरात्रि और श्रावण मास में यहाँ काफी भीड़ हो


जागेश्वरनाथ मंदिर


प्राचीन जागेश्वरनाथ मंदिर जौनपुर शहर के आलमगंज में स्थित है|भगवान शिव का यह मंदिर करीब 100 मीटर दूर स्थित मध्य काल में निर्मित जामा मस्ज़िद(बड़ी मस्ज़िद) का समकालीन माना जाता है| स्थानीय लोगों में इस मंदिर के प्रति गहरी आस्था है| कुछ वर्षों पूर्व इसका जीर्णोद्धार हुआ है|

पाँचों शिवाला मंदिर

जौनपुर शहर के पुरानी बाजार मुहल्ले में स्थित प्राचीन'पाँचों शिवाला मंदिर'आस्थावानों के बीच काफी प्रसिद्ध है। यह एक ही परिसर में आमने-सामने स्थित पाँच शिवालयों(शिव मंदिरों) का समूह है।


मैहर मंदिर


मैहर(मध्य प्रदेश)में स्थित देवी शारदा मंदिर और उनके विग्रह(प्रतिमा)की अनुकृति जौनपुर शहर के शास्त्रीनगर मुहल्ले में स्थापित है| मैहर देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर का निर्माण जाने-माने व्यवसायी राधेश्याम गुप्त ने कराया था| मंदिर की व्यवस्था एक ट्र्स्ट करता है| जिसके प्रधान न्यासी व्यापारी नेता एवं समाजसेवी सूर्यप्रकाश जायसवाल हैं| यह मंदिर पूर्वी उत्तर प्रदेश के श्रद्धालुओं में काफी लोकप्रिय है|




शीतला चौकियां

पूर्वी उत्तर प्रदेश में जौनपुर के शीतला चौकियां धाम की काफी मान्यता है| श्रद्धालु विभिन्न संस्कारों के लिए यहां आते है| साथ ही चौकियां माई को पूज कर देवी शक्तिपीठों की यात्रा पर आगे निकलने की परम्परा भी है|देवी शीतला को संक्रामक रोगों से बचाव के लिए भी पूजा जाता है। नवरात्र में शीतला चौकियां धाम दिन-रात श्रद्धालुओं से भरा रहता है। श्रद्धालु दर्शन-पूजन के साथ मुण्डन,यज्ञोपवीत,विवाह आदि संस्कारों के लिए भी यहां आते हैं।

मार्कण्डेय पुराण में उल्लिखित 'शीतले तु जगन्माता, शीतले तु जगत्पिता, शीतले तु जगद्धात्री-शीतलाय नमोनम:'से शीतला देवी की ऐतिहासिकता का पता चलता है। शीतला माता का मंदिर स्थानीय व दूरदराज क्षेत्रों से प्रतिवर्ष आने वाले हजारों श्रद्घालु पर्यटकों के अटूट आस्था व विश्वास काकेन्द्र बिन्दु बना हुआ है लेकिन इसके भी सौन्दर्यीकरण की और लोगों का ध्यान नहीं जाता और यदि कभी जाता भी है तो सरकारी फाइलों में दब के रह जाता है |

शीतला चौकियां धाम में स्थित यह तालाब जलाशयों के निर्माण की हमारी समृद्ध परम्परा का प्रतीक है|इस तालाब में हमेशा पानी रहता है|


 पंचमुखी हनुमान मंदिर गुलर घाट जौनपुर

जौनपुर शहर स्थित गूलर घाट पर प्राचीन रामजानकी मंदिर में पंचमुखी हनुमान की प्रतिमा स्थापित है.जनपद में अपने तरह की यह अकेली प्रतिमा बतायी जाती है.आस्थावान लोगों में इसकी काफी मान्यता है.


आज का आपका शहर जौनपुर |

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जौनपुरशहर, दक्षिणी-पूर्वी उत्तर प्रदेश राज्य, उत्तर-मध्य भारत, वाराणसी (भूतपूर्व बनारस) के पश्चिमोत्तर में स्थित है। यह  शहर गोमती नदी के दोनों तरफ़ फैला हुआ है। आज के जौनपुर को देख के ऐसा लगता है कि जैसे कोई छोटा सा शहर है जो बहुत ही धीमी गति से तरक्की की और बढ़ रहा है | जौनपुर का शाही क़िला , अटाला मस्जिद ,जामा मस्जिद, लाल दरवाज़ा, खालिस मुखलिस मस्जिद, किले ,मकबरे और पुराना हनुमान मंदिर आज भी यहाँ की शोभा में चार-चाँद लगा रहे हैं। भारतीय इतिहास के मध्यकालीन भारत में जौनपुर अपनी कला एवं स्थापत्य के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध था। आज भी इत्र और चमेली के तेल का व्यवसाय यहाँ बड़े पैमाने पर होता है। जौनपुर का मक्का ,मूली ,चमेली का तेल, इत्र और इमरती आज भी मशहूर है |


यह नगर गोमती नदी के किनारे बसा हुआ है। प्राचीन किंवदंती के अनुसार जमदग्नि ऋषि के नाम पर इस नगर का नामकरण हुआ था। जमदग्नि का एक मंदिर यहाँ आज भी स्थित है। यह भी कहा जाता है कि इस नगर की नींव 14वीं शती में 'जूना ख़ाँ'ने डाली थी, जो बाद में मुहम्मद तुग़लक़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ और दिल्ली का सुल्तान हुआ। जौनपुर का प्राचीन नाम 'यवनपुर'भी बताया जाता है। 1397 ई. में जौनपुर के सूबेदार ख़्वाजा जहान ने दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद तुग़लक़ की अधीनता को ठुकराकर अपनी स्वाधीनता की घोषणा कर दी और शर्कीनामक एक नए राजवंश की स्थापना की। जौनपुर एक शतक तक शर्क्की राज्य की राजधानी रहा है |इस दौरान शर्की सुल्तानों ने जौनपुर में कई सुन्दर भवन, एक क़िला, मक़बरा तथा मस्जिदें बनवाईं।

आज भी जौनपुर की सुन्दरता इसके किले,गोमती,शाही पुल और भव्य मकबरों, पुरानी मस्जिदों और मंदिरों के कारण देखती ही बनती है | पर्यटकों के लिए जौनपुर एक बहुत ही बेहतरीन पर्यटन स्थल है बस आवश्यकता है यहाँ पे पर्यटकों के लिए सहूलियतें पैदा करने की |

जौनपुर में एक समय ऐसा भी था की यहाँ ज्ञान का समुदर बहा करता था | विश्व भर से लोग यहाँ ज्ञान हासिल करने आया करते थे | आज भी यहाँ के लोगों को ज्ञान हासिल करने में बहुत ही अधिक रूचि रहती है | एक से एक शायर ,लेखक और इतिहासकार मौजूद हैं | हाँ यह बात और है की उनके इस ज्ञान का फायदा विशव् के दुसरे लोगों को नहीं मिला पता  और इसका कारन यहाँ के अधिकतर लोगों का अपनी बात को विश्व भर में फैलाने का साधन का न मिलना है | जौनपुर सिटी ने अपने इस प्लेटफार्म से ऐसी प्रतिभाओं को विश्व भर में पहुँचाने का काम किया है |


आज यह देख के प्रसन्नता होती है की आज यहाँ बड़े बड़े बैंक और शोपिंग मॉल खुल गए हैं | एक बड़े शहर में जो भी सुविधाएं हुआ करती है वो सब धीरे धीरे आती जा रही हैं | बस आवश्यकता है यहाँ  के लोगों को अपनी सोंच बदलने की और जौनपुर के बाहर विश्व से जुड़ने की | तारे तोड़ने की कोशिश करोगे तो तारा अगर न भी तोडा तो चाँद अवश्य तोड़ लोगे |
जौनपुरजो “शिराज़--हिंदके नाम से भी मशहूर हैं, भारत के उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर एवं लोकसभा क्षेत्र है। मध्यकाल में शर्की शासकों की राजधानी रहा जौनपुर वाराणसी (भूतपूर्व बनारस) से 58 किमी. दूर है और यह  गोमती नदी के दोनों तरफ़ फैला हुआ है |1394 के आसपास मलिक सरवर ने जौनपुर को शर्की साम्राज्य के रूप में स्थापित किया और यह शर्क़ी वंश (1394-1479) के स्वतंत्र राज्य की राजधानी भी रहा है| इब्राहीम लोदी ने १४८४ में जौनपुर पे क़ब्ज़ा कर के इसी खंडहरों में बदल दिया जिसके नमूने आज भी जौनपुर में देखे जा सकते हैं | आज का जौनपुर अब तरक्की के और बढ़ रहा है लेकिन आज भी यहाँ कि सबसे बड़ी समस्या बिजली का दिन में १६ घंटे घायब रहना, प्रदूषित पीने का पानी और सड़कों कि बुरी हालत है | बिजली का न होना यहाँ कि तरक्की में सबसे बड़ी बाधा है | नेता आते हैं इलेक्शन के दौरान बिजली देने का वादा करते हैं जीत भी जाते हैं और सुधार नहीं होता | यहाँ के निवासी बस एक उम्मीद लगाये बैठे हैं कि कोई तो आएगा जो यहाँ कि हालत में सुधार करेगा? आज का युग पढ़े लिखे नौजवानों का है और यह नेताओं के फरेब अब बहुत दिन नहीं चलने वाले ऐसा यहाँ के नौजवानों से बात चीत कर के लगता है | चलिए आज के जौनपुर कि कुछ झलकियाँ देखते चलें |  



























ओलन्दगंज फलों कि बहार  जौनपुर कि मशहूर इमरती चित्रसारी के सरसों के खेत जेसीज चौराहा  
जाफराबाद पान कि दूकान मुगफली सर्दियों कि शान गोमती का किनारा और स्नान राजा  जौनपुर का महल चित्रसरी के खंडहर  खुछ ख़ास नज़ारे
पुराने जौनपुर के शानदार घर शौपिंग मॉल DSC02792

प्रदर्शनी के माध्यम से बच्चों के अंदर कई गुणों का विकास हुआ है

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जौनपुर। जहां शिक्षा को मात्र कॉपी किताब कलम तक ही सीमित मनी जाए, वहां सर्वप्रथम शिक्षक को छात्रों के बीच जिज्ञासा पैदा करने की ज़रुरत होती है।  विज्ञान कला मेला इसी कड़ी में पहला कदम है।  इन बच्चों में  जिज्ञासा के बीज बोने का पहला काम आज किया गया | प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक विद्यालय जहरुद्दीनपुर विकास क्षेत्र सुईथा कला जौनपुर में आज विज्ञान एवं कला की प्रदर्शनी आयोजित की गई| इस अवसर पर एबीआरसी  विश्वकर्मा जी रमेश  एवं अरुण सिंह  ने बच्चों का मार्गदर्शन व मनोबल बढ़ाया ग्राम प्रधान ने इसे एक अनोखी पहल बताया जोकि सराहनीय व अनुकरणीय है !

प्रदर्शनी के माध्यम से बच्चों के अंदर कई गुणों का विकास हुआ है , बच्चे कई लोगों के बीच खुलकर बोले  वह लोगों द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दिए | बच्चों ने विज्ञान के प्रयोगों से लोगों को मंत्र मुक्त कर दिया | हाथ से बने हुए कलाकृतियां जैसे की चूड़ी से बने हुए आकृति, आइसक्रीम की लकडी से बने हुए फूल पत्ती ,मिट्टी की मूर्तियां ,पेपर के पंखे आदि से बच्चों ने अपना कौशल दिखाया इस अवसर पर उपस्थित समस्त गुरुजन अभिभावक व दर्शक काम में तहे दिल से शुक्रगुजार हूं |
इस अवसर पर विद्यालय के शिक्षक शिवम सिंह संजू पाल सीमा यादव झगरु राम चित्रावती सुनीता देवी लोगों की कार्य की सराहना की गईl





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जौनपुर में वैलेंटाइन डे तरक्क़ी या आजादी ?

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वेलेंटाइन दिवस या संत वेलेंटाइन दिवस को प्रेम दिवस के रूप में पश्चिमी देशों के ७०% लोग १४ फरवरी  को मनाते  हैं जिसमें प्रेमी एक दूसरे के प्रति अपने प्रेम का इजहार वेलेंटाइन कार्ड भेजकर, फूल देकर, या मिठाई आदि देकर करते हैं| ये और बात  है की ये दिन शुरुआत में संत वेलेंटाइन की शहादत के कारण मनाया  जाता था और इसे "प्रेम दिवस"की जगह "शहीद  दिवस का दर्जा प्राप्त था |

 इस संत वेलेंटाइन दिवस के प्रेम दिवस में बदले जाने के पीछे कोई ठोस दलील की जगह दंतकथाओं को आधुनिक समय में जोड़ दिया गया। इनमें वेलेंटाइन को एक ऐसे पादरी के रूप में दिखाया गया जिसने रोमन सम्राट क्लोडिअस II के एक कानून को मानाने से इंकार कर दिया था जिसके अनुसार जवान लड़कों को शादी न करने का हुक्म दिया गया था। सम्राट ने संभवतः ऐसा अपनी सेना बढ़ाने के लिए किया होगा, उसका ये विश्वास रहा होगा की शादीशुदा लड़के अच्छे सिपाही नहीं होते हैं। पादरी वेलेंटाइन इस बीच चुपके से जवान लोगों की शादियाँ करवाया करते थे। जब क्लोडिअस को इस बारे में पता चला, उसने वेलेंटाइन को गिरफ्तार करवाकर जेल में फेंक दिया.इस सुन्दर दंत कथा को और अलंकृत करने के लिए कुछ अन्य किस्से जोड़े गए। मारे जाने से एक शाम पहले, उन्होंने पहला "वेलेंटाइन"स्वयं लिखा, उस युवती के नाम जिसे उनकी प्रेमिका माना जाता था। ये युवती जेलर की पुत्री थी जिसे उन्होंने ठीक किया था और बाद में मित्रता हो गयी थी। ये एक नोट था जिसमें लिखा हुआ था "तुम्हारे वेलेंटाइन के द्वारा"|

जैसे जैसे पश्चिमी सभ्यता का असर भारतवर्ष में होता गया ये वेलेंटाइन दिवस भी नौजवानों में  अधिक पहचाना जाने लगा और धीरे धीरे ये भारत में  भारतीय सभ्यता और पश्चिमी सभ्यता के टकराव दिवस के रूप में भी उभर के आया | भारत वर्ष में जहां एक तरफ नौजवान इस दिन का पूरा लुत्फ़ उठाते दिखते है तो दूसरी तरफ उन्ही नौजवान प्रेमियों के माता पिता अपने को इस सब से अनजान ज़ाहिर करते नज़र आया करते है | महानगरों में जहां पश्चिमी सभ्यता को अब लोगों ने  तरक्की के नाम पे कुबूल करना शुरू कर दिया है वहाँ इस दिवस का जोश अधिक देखा जाता है | 

भारतीय सभ्यता ,संस्कारों और धार्मिक कानून के खिलाफ मनाया जाने वाला यह पर्व अब जौनपुर जैसे छोटे शहरों में भी अपनी जडें जमाने लगा है और नौजवान अपने माता पिता और परिवार वालों से छुप  के इसका आनंद लेते पार्को, और पर्यटन स्थलों इत्यादि जगहों पे देखे जा सकते है |

आशा तो यही है की आगे आने वाले दिनों में इसे माता पिता और बुज़ुर्ग ना चाहते हुए भी मान्यता देने को मजबूर होंगे | अब इसे जौनपुर की तरक्क़ी कहा जाय या नौजवानों की आजादी ?

अब ये आजादी हो या तरक्की  या भारतीय सभ्यता और पश्चिमी सभ्यता का टकराव लेकिन इस दिवस पे  राजनीति करने वालों के छद्म जाल से इसे बचाए रखने में ही समाज की भलाई है |

लेखक एस एम् मासूम 


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श्वेता श्रीवास्तवा का चयन लोअर पीसीएस में ,जनपद का नाम किया रौशन |

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 जौनपुर। शहर के तारापुर कालोनी की श्वेता श्रीवास्तवा का चयन लोअर पीसीएस-2013 में मत्स्य निरीक्षक के पद पर हुआ है। त्रिलोकी नाथ लाल की पुत्री श्वेता श्रीवास्तवा फिलवक्त बक्शा विकास खण्ड में परिषदीय विद्यालय में सहायक अध्यापिका के पद पर तैनात हैं। श्वेता श्रीवास्तवा ने एमएससी, बीएड की  शहर के ही टीडीपीजी कालेज से प्राप्त किया। वह अपनी सफलता का श्रेय अपने छोटे भाई अनुराग श्रीवास्तव की प्रेरणा और मार्गदर्शन को देती हैं। अनुराग श्रीवास्तव डाक विभाग में अस्टिेन्ट डायरेक्टर पोस्टल एकाउण्ट के पद पर कार्यरत हैं।





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जिलाधिकारी भानुचन्द्र गोस्वामी ने कहा जाम की समस्या का समाधान जल्द |

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जौनपुर। जिलाधिकारी भानुचन्द्र गोस्वामी, पुलिस अधीक्षक शिवशंकर यादव के साथ कल देर शाम कलेक्ट्रेट सभागार में व्यापारी नेताओं के साथ नगर में वाहनों के जाम समस्या रविवार के अतिरिक्त अन्य दिन बन्दी, नदी इस पार तथा नदी उस पार अलग-अलग बन्दी का दिन के बारे में विचार विमर्श किया गया। इस अवसर पर व्यापारी नेता इन्द्रभानु सिंह ’’इन्दु’’, शकील अहमद, रवि मिगलानी, श्रवण जायसवाल, राजनाथ गुप्ता, धनश्याम साहू, आरिफ हबीब, सुभाष अग्रहारी, जयप्रकाश, संजय सिंह आदि ने बहुमूल्य सुझाव दिये। पुलिस अधीक्षक ने व्यापारियों से अनुरोध किया कि वे अपनी दुकान सड़क पर न लगायें न ही किसी अन्य वाहन ठेले आदि को खड़ा होने दे। मुख्य मार्गों पर जाम की समस्या के निदान के लिए 100 नम्बर डायलकर अवगत करायें, तत्काल मौके पर कोबरा टीम संबंधित चौकी इंचार्ज मौके पर पहुंचकर निदान करायेगा।

जिलाधिकारी ने बताया कि आपके बहुमूल्य सुझाव पर विचार कर लागू किया जायेगा। हम आप मिलकर समस्या का समाधान कर सकते है। सुबह 9 बजे से पहले तथा रात्रि 8 बजे के बाद ही भारी वाहन शहर में प्रवेश करेगे। बन्दी के बारे में व्यापारी संगठन बातकर शीघ्र अवगत कराये। 10 मार्च से यह व्यवस्था लागू की जायेंगी। शीघ्र की शहर में अवैध वाहनों को उठाने वाली मशीन भी आ जायेगी। इस अवसर पर अपर जिलाधिकारी रजनीश चन्द्र, राम सिंह, अपर पुलिस अधीक्षक नगर रामजी सिंह यादव, नगर मजिस्टेªट उमाकान्त त्रिपाठी, ई.ओ. नगर पालिका संजय शुक्ला सहित व्यापारी नेता उपस्थित रहे।








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कभी जौनपुर की शान रहे कजगांव टेढ़वा की बदहाल हालत |

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जौनपुर शहर से मात्र 6 किलोमीटर की दूरी पे स्थित कजगांव की हालत दिन बा दिन खराब ही होती जा रही हैं | बाज़ारों में तो गन्दी नालियों और कीचड़ ही इस बरसात में देखने को मिला करता है | पूरे बरसात में ग्राम सभा द्वारा सफाई पर ध्यान नहीं दिया गया जिससे गंदगी का साम्राज्य बढ़ता ही जा रहा है।

| जबकि इस कजगांव की कभी बड़ी शान हुआ करती थी जिसे यह शानदार घर आज भी बयान कर रहे हैं | इस घरों में आज भी वही शान ओ शौकत देखने को मिला करती है | आज ऐसी शानदार जगह पे आप चले जाये तो शाम ४-५ बजे के बाद जौनपुर शहर वापस आने के लिए यातायात का कोई साधन जुटाना भी मुश्किल हो जाया करता है |



ज़रा देखिये कजगांव के बाज़ार की सड़कों की हालत और इन बड़ी कोठियों को जो एक कहानी कह रहे हैं | यह कजगांव जौनपुर से भी एक साल पहले ७७१ AH में वजूद में आया और तब इसका नाम मसौन्दा था जो बाद में सादात मसौन्दा हुआ और अब कजगांव टेढ़वा कहलाता है |





फोटोग्राफर ठाकुर सन्त बहादुर सिंह उर्फ काका जनपद के प्रथम प्रेस फोटोग्राफर थे|

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जिले के तेजी बाजार अटरा गांव के निवासी ठाकुर सन्त बहादुरसिंह उर्फ़ काका का निधन 92 वर्ष की आयु में उनके निवास स्थान सिंह स्टूडियो 28 सितम्बर २०१३ को हुआ |  ठाकुर सन्त बहादुर सिंह ने मात्र 15 वर्ष की अवस्था में जौनपुर नगर के अलफ्टीनगंज मुहल्ले में 1936 में सिंह स्टूडियों के नाम दुकान खोली थी जो आज भी मशहूर है|  जन्म के साथ मृत्यु भी निर्धारित है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने कार्यों की अमिट छाप छोड़ जाते हैं और लोग उन्हें याद करते हैं। ऐसे ही व्यक्तित्व के व्यक्ति थे जनपद के प्रथम प्रेस छायाकार संत बहादुर सिंह। 

वामिग़ जौनपुरी का नाम और कलाम आज पूरी दुनिया में मशहूर है |

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DSC01921वामिग़ जौनपुरी का नाम और कलाम आज पूरी दुनिया में मशहूर है | वामिग़ साहब का जन्म जौनपुर के कज्गाव में २३ अक्टूबर १९२३ में हुआ और  उनकी शिक्षा लखनऊ यूनिवर्सिटी से पूरी  हुयी जहां से उन्होंने  BA, LLB किया | उनका पूरा नाम अहमद मुजतबा जैदी अल वास्ती था |अह्लेबय्त की शान में कलाम कहना उनका शौक था | 21 नवम्बर १९९८ को उनका देहांत हुआ | आज भी जौनपुर में उनके बड़े मुरीद  मौजूद हैं |उनकी कुछ किताबें आप भी पढ़ें |
Chikhe.n
  • Jaras
  • Shab Chiragh
  • Safar-E-Natamam
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Sajda kar ke qadam-e-yaar pe qurbaan hona
Yun likha tha meri qismat pe musalmaan hona
Kalaam - Wamiq Jaunpuri Sahab
  P1010716Copy
आज की शाम है किस दर्जा हसीं, कितनी उदास
हो भरी बज़्म में तन्हाई का जैसे एहसास 
उठने ही वाला है फिर क्या कोई तूफ़ान नया
फिर तबियत हुई जाती है ज्यादा हस्सास*

[hassas/hissas=sentimental, touchy, emotional]
आज क्यूं उनमें नहीं जुर्रत-ए-ताज़ीर* कि हम 
मुन्तजिर कब से खड़े हैं रसन-ओ-दार** के पास  
[tazeer=punish] [daar-o-rasan or rasan-o-dar meaning=hanging by rope, gallows]

उनसे नज़रें जो मिलाईं तो खतावार हैं हम
और अगर बज़्म से उठ जाएँ तो ना-कद्र-शिनास
दिल लरजता है की वोह वक़्त न आये वामिक
गम में होने लगे जब लज्ज़त-ए-गम का अहसास
---------वामिक जौनपुरी             
aaj kii shaam hai kis darja hasiiN, kitnii udaas
ho bharii bazm meN tanhaaii ka jaise ehsaas
uThne hii vaala hai phir kyaa koii tuufaaN nayaa
phir tabiat huii jaati hai zyaada hassaas
aaj kyuuN unmeN nahiiN jurrat-e-taaziir ki ham
muntazir kab se khaRe haiN rasan-o-daar ke paas
unse nazreN jo milaaiiN to khataa-vaar haiN ham
aur agar bazm se uTh jaayeN to naa-qadr shinaas
dil laraztaa hai ki voh vaqt na aaye Wamiq
Gham meN hone lage jab lazzat-e-gham ka ehsaas
-------Wamiq Jaunpuri
award

tujh se mil ke dil me.n rah jaatii hai aramaano.n kii baat

tujh se mil ke dil me.n rah jaatii hai aramaano.n kii baat
yaad rahatii hai kise saahil pe tuufaano.n kii baat
[saahil = shore]
vo to kahiye aaj bhii zanjiir me.n jhankaar hai
varnaa kis ko yaad rah jaatii hai diivaano.n kii baat
kyaa kabhii hogii kisii kii tuu magar ai zindagii
jaan de kar ham ne rakh lii tere diivaano.n kii baat
bazm-e-anjum ho ke bazm-e-Khaak-taa-bazm-e-Khayaal
jis jagah jaao sunaa_ii degii insaano.n kii baat
[bazm-e-anjum = gathering of stars; bazm-e-Khaak = wilderness]
[taa = from...to; bazm-e-Khayaal = imagination]
phuul se bhii narm-tar 'Wamiq' kabhii apanaa kalaam
aur kabhii talavaar ham aashuftaa_saamaano.n kii baat
[narm-tar = softer than; kalaam = talk/writing]
[aashuftaa = of distressed mind]
वामिग़ जौनपुरी साहब को बहुत से अवार्ड मिले जिनमे से
: SOVIET LAND NEHRU AWARD
: IMTIYAZ-E-MEER (MEER ACADEMY, LUCKNOW)
ख़ास हैं |







जौनपुर के ऐतिहासिक नज़ारे

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जौनपुर शहर के इतिहास और आज के जौनपुर के बारे में आप सभी जौनपुर सिटी की अंग्रेजी और हिंदी की वेबसाईट पे पढ़ा करते हैं लेकिन बहुत बार ऐसा होता है की अपने वतन जौनपुर के चित्र आपको बहुत आकर्षित कर जाते हैं |

आज आपको जौनपुर का नज़ारा यहाँ के नए पुराने चित्रों द्वारा दिखता हूँ | पसंद आय तो अवश्य बताएं |













रेल बजट 2016-17 में जौनपुर को क्या मिला ?

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 जौनपुर। रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने आज रेल बजट पेश किया है। इस बजट में जौनपुर जिले में तीन ओवर ब्रिज और रेल लाईनो को दोहरी करण करने का ऐलान किया है। जिसमें जघंई प्रतापगढ़ रेल मार्ग पर मुंगराबादशाहपुर में ओवर ब्रिज बनेगा। उसके जौनपुर फैजाबाद मार्ग पर आदमपुर रेलवे क्रासिंग पर ओवर ब्रिज का निमार्ण होगा तीसरा ओवर ब्रिज इस से सटा जौनपुर औडि़हार रेल लाईन पर बनाया जायेगा।

इसके अलावा जौनपुर टाण्डा रेल मार्ग पर 830 करोड़ की लागत से 94 किलोमीटर रेल मार्ग को दोहरी करण किया जायेगा। जघंई प्रतापगढ़ मार्ग का दोहरी करण 750 करोड़ की लागत से 87 किलोमीटर रेल लाईन बिछायी जायेगी। शाहगंज मऊ रेल का दोहरी करण 960 करोड़ रूपये की लागत किया जायेगा। जौनपुर औडि़हार रेल का दोहरी करण के लिए 600 करोड़ दिया गया है।

रेल बजट 2016-17 में जौनपुर को 3252 करोड़ की सौगात मिली..जो इस प्रकार है..
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1.ओड़िहार-जौनपुर रेलवे मार्ग का होगा दोहरीकरण, लागत 600 करोड़.
2.मछलीशहर को रेलवे से जोड़ा जायेगा..मछलीशहर से जंघाई जंक्शन के बीच बिछाई जाएगी रेल ट्रैक.
3.जौनपुर-वाराणसी रेलवे मार्ग पर बनेगा फोर लेन ओवरब्रिज
4.जौनपुर-औड़िहार रेल मार्ग पर होगा विद्युतीकरण होगा.
5.जंघाई स्टेशन का विस्तारीकरण और सुन्दरीकरण होगा.
6.जंघाई-प्रतापगढ़ अमेठी मार्ग का दोहरीकरण होगा,लागत 750 करोड़.
7.केराकत हाल्ट को पूर्ण स्टेशन का दर्जा.
8.जौनपुर-टाण्डा रेल मार्ग का दोहरीकरण होगा,लागत 830 करोड़.
9.जौनपुर जंक्शन पर नया रनिंग रूम बनेगा.
10.शाहगंज-मऊ-इंदारा-फेफना रेलवे मार्ग का दोहरीकरण होगा.
11.शाहगंज-मऊ-बलिया रेलवे मार्ग का विद्युतीकरण होगा.
12.जौनपुर में चार और रेलवे क्रासिंगों पर बनेंगे रेलवे ओवर ब्रिज...जो इस प्रकार है..
A.जौनपुर-औड़िहार रेल मार्ग पर स्थित क्रासिंग 43B पर, लागत 37 करोड़ ..
B.जौनपुर-फैजाबाद रेल मार्ग पर रेलवे क्रासिंग 42B पर, लागत 37 करोड़ 50 लाख.
C.जंघाई-प्रतापगढ़ रेल मार्ग पर स्थित रेलवे क्रासिंग 64B पर,लागत 37 करोड़ 88 लाख.
C.जलालपुर-केराकत मार्ग पर जलालगंज रेलवे क्रासिंग पर...जिससे जौनपुर में रेलवे ओवर ब्रिजों की संख्या 6 हो जायेगी..
इन सब के ऐलावा..कुछ उम्मीदें होगी बहुत जल्द पूरी...
1.जौनपुर जंक्शन पर वासिंग यार्ड की जल्द मिलेंगी स्वीकृति...जिससे जौनपुर से ट्रेनों का संचालन होगा संभव.
2.जौनपुर में बहुत जल्द तीन प्रमुख एक्सप्रेस ट्रेनों का होगा ठहराव..
3.जौनपुर जंक्शन और जौनपुर सिटी का होगा सुन्दरीकरण.
4.जौनपुर से वाराणसी के लिए नई DMU ट्रेन का होगा संचालन
और नई ट्रेनों का होगा ठहराव


जौनपुर। रेल बजट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये शिक्षाविद् डा. ब्रजेश यदुवंशी ने कहा कि इस रेल बजट से जौनपुरवासियों को केवल निराशा ही हाथ लगी। यहां से एक टेªन ऐसी चलनी चाहिये जो सीधे दिल्ली तक चले। जौनपुर से नई दिल्ली तक एक सीधी टेªन की आवश्यकता है। साथ ही जौनपुर के लोग जीविकोपार्जन के लिये मुम्बई में बहुतायत संख्या में रहते हैं। ऐसे में एक सीधी टेªन जौनपुर से मुम्बई तक चलनी चाहिये। डा. यदुवंशी ने कहा कि यहां के अधिकतर लोग कृषि पर आधारित हैं। ऐसे में जौनपुर रेलवे जंक्शन के पास एक कृषि भण्डारण होना चाहिये जिससे किसान वहां अपने कृषि उत्पादन को रखकर आयात-निर्यात की लाभ उठा सके। शिक्षाविद् ने कहा कि कुल मिलाकर केन्द्र सरकार द्वारा संसद में पेश किया गया रेल बजट जौनपुरजनांे के लिये संतोषजनक नहीं, बल्कि निराशाजनक है।




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गोमती नदी प्रदुषण जौनपुर लखनऊ और सुल्तानपुर

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 जौनपुर, भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला है। जिले का मुख्यालय जौनपुर है। मध्यकाल में शर्की शासकों की राजधानी रहा जौनपुर, वाराणसी से 58 कि. मी. दूर है। जौनपुर शहर गोमती नदी के दोनों तरफ फैला हुआ है। इस शहर की स्थापना 14वीं शताब्दी में फिरोज तुगलक ने अपने चचेरे भाई सुल्तान मुहम्मद की याद में की थी। सुल्तान मुहम्मद का वास्तविक नाम जौना खां था। इसी कारण इस शहर का नाम जौनपुर रखा गया। 1394 के आसपास मलिक सरवर ने जौनपुर को शर्की साम्राज्य के रूप में स्थापित किया। शर्की शासक कला प्रेमी थे। उनके काल में यहां अनेक मकबरों, मस्जिदों और मदरसों का निर्माण किया गया।



गोमतीउत्तर भारत मे बहने वाली नदी है जिसका उदगम पीलीभीत जिले मे माधोटान्डा के पास होता है। इसका बहाव उत्तर प्रदेश मे ९०० किमी तक है। यह वाराणसी के निकट सैदपुर के पास गंगा में मिल जाती है I पुराणों के अनुसार गोमती ब्रह्मर्षि वशिष्ठ की पुत्री है| लखनऊ, लखीमपुर खेरी, सुल्तानपुर और जौनपुर शहर गोमती के किनारे पर स्थित हैं |

जौनपुर शहर के पास गोमती नदी कि सुंदरता देखते ही बनती है जो अब प्रदूषण के करण समाप्त होती जा रही है |

आईटीआरसी के शोधपत्र के मुताबिक चीनी मिलों और शराब के कारखानों के कचरे के कारण यह नदी प्रदूषित हो चुकी है। गोमती में जो कुछ पहुंचता है वह पानी नहीं बल्कि औद्योगिक कचरा होता है।सरकार भी मानती है कि गोमती में प्रदूषणका स्तर बढ़ा | ..द टाइम्स औफ़ इण्डिया, 2010-01-28

गोमती नदी में जलजीवों की संख्या तेजी से घट रही है। आकलन के मुताबिक 1950 की तुलना में मछलियों की संख्या एक तिहाई से भी कम हो गई है। वहीं कछुवे विलुप्त होने के कगार पर हैं। तटवासियों के अनुसार कछुवे की संख्या 1950 की तुलना में मात्र 10 प्रतिशत रह गई है।

गोमती नदी में सोइंस, मगर, लगभग गायब हो गए हैं। मछलियों की पुरानी प्रजातियां जैसे रोहू, भाकूर, नयन, पहिना, टेंगर, बलगेगरा, चेलवां, गोच, सधरी, बैकड़ इत्यादि की संख्या तेजी से घटी है, जबकि नई प्रजातियां यथा तेलपियां, सिल्वरकार्प, मांगुर, सौरी, की संख्या बढ़ी है, जिससे पुरानी प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है।

सुलतानपुर नगर की कहानी जौनपुर से बहुत अलग नहीं है वहां अन्तर केवल इतना है कि वहां मल जल नाले के पानी के लिए पम्पिंग स्टेशन बने हैं, परंतु वे चलते नहीं है।इसी प्रकार लखनऊ नगर में भी आदि गंगा-गोमती कराह रही है। यहां की कहानी जौनपुर और सुलतानपुर से बहुत अलग नहीं है। भले ही यह राजधानी है, लेकिन यहां पर भी मल, जल, नाले सीधे नदी में मिल रहे हैं|

अगर समय रहते गोमती को प्रदूषण की आगोश से बचाया नही गया तो वो दिन दूर नही की जौनपुर की आवाम मे पानी के लिए हाहाकार मच जाएगा।


झंझरी मस्‍जि‍द जौनपुर सि‍पाह

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 Jhanjree Masjid

झंझरी मस्‍जि‍द जौनपुर शहर के सि‍पाह मोहल्ले में गोमती नदी के उत्‍तरी तट पर बनी है| यह मस्‍जि‍द पुरानी वास्‍तुकला का अत्‍यन्‍त सुन्‍दर नमूना है ऐसा लगता है की यह अटाला मस्‍जि‍द की समकालीन है और इसे  इब्राहि‍म शाह शर्की ने बनवाया था| सिपाह मुहल्‍ला भी स्‍वयं इब्राहि‍म शाह शर्की का बसाया हुआ है और शर्की बादशाह  यहॉ पर सेना तथा  हाथी, घोड़े, उंट एवं खच्‍चर रहते थे| सि‍कन्‍दर लोदी ने शर्की सलतनत पर आक्रमण के दौरान इस मस्‍जि‍द को ध्‍वस्‍त करवा दि‍या था और कहा जाता है की सि‍कन्‍दर लोदी द्वारा ध्‍वस्‍त कि‍ये जाने के बाद यहॉ के काफी पत्‍थर शाही पुल में लगा दि‍ये गये थे |वर्तमान में मस्जिद का झंझरी वाला हिस्सा ही अस्तित्व में है|



बलात्कार एवं उसका निवारण -डॉ दिलीप कुमार सिंह

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जिस बात को न्यायाधीश कामनी ला ने हाल में ही कहा की बलात्कारियों को नपुंसक बना देना चाहिए अर्थात उनका बंध्याकरण कर देना चाहिए उस बात को मैं १९८५ ई से ही कहता अवं लिखता चला आ रह हूँ |मेरा मानना   है की ऐसे विकृत चित्त , निडर यौन अपराधी को प्रथमत: तो बंध्या क्र देना चाहिए तथा फिर से यदि वो यही अपराध करे तो उसके यौनांग काट देने चाहिए|  १९९२-९३ में मेरा जब यह लेख छपा तो जौनपुर के जिला जज श्री ओंकरेश्वेर भट्ट और यहाँ के ९०% जजों ने मेरे इन विचारों का समर्थन किया था लेकिन १०% ने इस पे बवाल भी मचाया | कारन स्पष्ट करने की आवश्यकता नहीं है | कुछ वर्ष पहले एक साहसी महिला  ने एक लम्पट और व्यभिचारी बाबू साहब का लिंग ही काट लिया तो वो कहीं मुह दिखने लायक नहीं रहे | और यह बात जनपद निवासी जानते हैं की इस घटना के बाद आज तक किसी ने बलात्कार का दुस्साहस नहीं किया | बलात्कार के मामले में सिर्फ कानून, पुलिस अवं प्रशासन के सहारे बैठना सही नहीं और यह इसका समाधान भी नहीं | ररूस की ड्यूमा ने यौनाचारी कोण बंध्या करने का बिल पास कर दिया है |

बलात्कार की भारतीय अवं विदेशी परिभाषा :- भारतीय दण्ड विधान  में बलात्कार धरा ३७५ में तथा अप्राकृतिक सम्भोग को धरा ३७७ में परिभाषित किया गया है "किसी स्त्री की इच्छा के विरुद्ध ,उसकी सहमती के बिना, भय या चोट का डर दिखा के उसकी सहमती के साथ,या किसी स्त्री को पत्नी होने का विश्वास दिला के,पागल स्त्री की सहमती ले कर या उसे मादक पदार्थ खिला कर अथवा १६ वर्ष से कम की स्त्री के साथ सहमती के साथ मैथुन बलात्कार कहलाता है | यहाँ यह ध्यान देना चैये की मैथुन के लिए लिंग प्रवेश काफी है |

बलात्कार में प्रेम या मित्रता साबित हो जाने पे वोह बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता | यधपि केवल पीडिता के बयान पे भी सजा हो सकती है | बलात्कार की न्यूनतम सजा ७ साल से लेकर आजीवन कारावास तक की है  |

बलात्कार के कारण  :-बलात्कार एक ऐसी सामाजिक बीमारी है जिसका जन्म ही मानव सभ्यता के सतत साथ हुआ है | देव,दानव ,यक्ष ,राक्षस ,  मानव, गन्धर्व सभी के समाजों में बलात्कार होता आया है | वास्तव में बलात्कार बड़ी ही जटिल सामाजिक समस्या है जिसका कारन भी खोज पाना हमेशा संभव नहीं होता |

गहनतम सर्वेक्षन अवन शोध यह बताते हैं की केवल ५% मामले ही वास्तव में बलात्कार होते हैं बाकी  दोनों पछों की सहमती से,लालच ,स्वार्थ,के वशीभूत हो कर किये जाते हैं| पकडे जाने पे इसका दोष केवल पुरुष पे दाल दिया जाता है क्योंकि स्त्री को बलात्कारी या व्यभिचारी माना  ही नहीं गया है | अब पुरुष पर यह भार होता है की वोह साबित करे की उसने बलात्कार जैसा जघन्य अपराध नहीं किया है बल्कि यह सहमती से हुआ है | अनुभव अवन शोध यह भी बताते हैं की इस प्रकार की शिकायतों में पहल स्त्री ही करती है जो बाद में बलात्कार का कारन बनती है |

इस विषय पे खुलकर यह बात सामने नहीं आ पति है की बलात्कार किन कारणों से हुआ है क्योंकि पीडिता खुलकर इसका वास्तविक कारन नहीं बताती है | यह भी ध्यान देने वाली बात है की बलात्कारी पे  विशवास नहीं किया जा सकता | इस विषय पे स्वतंत्र रूप से सर्वेक्षन बहुत कम हुई हैं और समाज खुल कर इस विषय पे सबके सामने नहीं बोलता | अधिकतर नतीजे किसी न किसी दबाव के साथ आते हैं कभी दबंग पुरुष प्रधान का दबाव और कभी महिलाओं की संस्थाओं का दबाव | सत्य जैसे कोई सुनना या जानना ही नहीं चाहता हो|

कामिनी झा की बात से मैं पूर्ण सहमत हूँ की बलात्कारी एक जीवित मानव बम है और बलात्कार साबित होने पे बलात्कारी को बंध्या कर देना चाहिए या उसके गुप्तांग कार देने चाहिये ताकि वो ऐसी घटनाओं पे अंकुश लग सके |



लेखक :Dr. Dileep Kumar Singh Juri Judge, Member Lok Adalat,DLSA, Astrologist,Astronomist,Jurist,Vastu and Gem Kundli Expert. Cell:९४१५६२३५

जौनपुर के कुछ मशहूर हनुमान मंदिर

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विजय थुआ महावीर मंदिर
जौनपुर शहर से करीब 65 किमी  दूर सीमावर्ती कस्बा सूरापुर (सुल्तानपुर जनपद) के पास हनुमान जी का भव्य मंदिर विजेथुआ महावीरन के नाम से प्रसिद्ध है.यह पौराणिक स्थल के रूप में मान्य है.कहा जाता है कि संजीवनी बूटी लेने जा रहे हनुमान जी को रोकने के लिए रावण द्वारा भेजे गये कालनेमि का हनुमान जी ने यहीं वध किया था.मंदिर के बगल में मकरी कुण्ड है जहां मकरी रूपी शापित अप्सरा को हनुमान जी के हाथों निर्वाण प्राप्त हुआ था.इसे सिद्ध स्थल की मान्यता है और यहां मंगलवार,शनिवार,बुढवा मंगल आदि अवसरों पर भारी भीड़ होती है |

बावन बियर हनुमान मंदिर बलुआ घाट जौनपुर

जौनपुर शहर में मानिक चौक-बलुआघाट बाईपास रोड पर बावनवीर हनुमान मंदिर के प्रवेश द्वार पर स्थापित विशाल प्रतिमा लोगों का ध्यान खींचती है.अब आस-पास के लोग इस विशाल हनुमान प्रतिमा का जिक्र अपने घर की लोकेशन बताने में करने लगे हैं.प्रतिमा की ऊँचाई लगभग 28 फुट है.|

बड़े हनुमान मंदिर

'बड़े हनुमान मंदिर'के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर शहर के बलुआ घाट क्षेत्र में है.इस प्राचीन मंदिर का नवनिर्माण उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पं0 कमलापति त्रिपाठी के संरक्षण एवं आर्थिक सहयोग से हुआ था.नवनिर्माण का शिलान्यास 8 अप्रैल 1968 को उन्हीं के हाथों से हुआ था

पंचमुखी हनुमान मंदिर गुलर घाट जौनपुर

जौनपुर शहर स्थित गूलर घाट पर प्राचीन रामजानकी मंदिर में पंचमुखी हनुमान की प्रतिमा स्थापित है.जनपद में अपने तरह की यह अकेली प्रतिमा बतायी जाती है.आस्थावान लोगों में इसकी काफी मान्यता है.

जौनपुर सिटी अब फेसबुक और ट्विटर पे

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आज का दौर जौनपुर की तरक्की का दौर है | जौनपुर की आवाज़ को विश्व तक पहुँचाने के लिए यहाँ के लोगों को विश्व से जोड़ने के लिए और यहाँ पर्यटन की आवश्यकता को बताने के लिए जौनपुर शहर की पहली वेबसाइटसन २०१० में हिंदी और अंग्रेजीमें मैंने शुरू की |यह और बात है की इस वेबसाईट को शुरू करने के पीछे मेरा अपने वतन से प्रेम ही था जो वतन से दूर रहने पे अधिक महसूस होता है | आज जौनपुर निवासीयों के सहयोग के कारन यह वेबसाईट कामयाबी की सीढियां चढ़ती जा रही है |



इस वेबसाईट पे मैंने यहाँ का इतिहास, यहाँ से जुडी खबरें, लेख,यहाँ के लोगों का रहन सहन और उनकी समस्याओं को रखने की कोशिश की है |यहाँ की प्रतिभाओं को तलाश के उनके इंटरव्यू ले के उनको विश्व से जोड़ने की कवाएद में अभी तब २१ लोगों के इस प्लेटफार्मसे पेश किया जा चुका है |



जौनपुर शहर की आज की एक बड़ी आवश्यकताओं में इस शहर की डिक्टरेरी का ऑनलाइनहोना काफी दिनों से महसूस किया जा रह था| इस वर्ष जौनपुर सिटी वेबसाइट पे इसका समावेश कर लिया गया है और बहुत से लोग इसका फायदा ले रहे हैं|



जौनपुर के लेखको को प्रोत्साहित करने के लिए जौनपुर ब्लॉगर अस्सोसिअशन की शुरुआत “हमारा जौनपुर” के नाम से की गयी ,जहां से इस शहर के लेखक अपनी बात विश्व के सामने रख सकते हैं |

इस वर्ष जौनपुर सिटी ने अपना एक पेज फसबुकऔर ट्विटर पे शुरू किया है जिससे जुडके अप आप अपने दोस्तों, रिश्तेदारों से इस शहर के बारे में ,यहाँ की समस्याओं के बात चीत कर सकते हैं और अपनी बात अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचा सकते हैं |



आप सभी किसी भी प्रकार से हमारे इस काम से जुड़ना चाहते हैं तो हमसे संपर्क कर सकते हैं | आप की समस्याओं और आपकी आवाज़ को विश्व तक अवश्य पहुचाया जाएगा |

आशा है आप सभी को पसंद आएगा.



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आभार

एस एम् मासूम

(संचालक )

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