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परदेशी-विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने की क्षमता रखने वाला यह बदहाल जौनपुर |

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महर्षि यमदग्नि की तपोस्थली व शर्की सल्तनत की एक शतक तक राजधानी रहने  वाला प्राचीनकाल से शैक्षिक व ऐतिहासिक दृष्टि से समृद्धिशाली शिराजे हिन्द जौनपुर आज भी अपने ऐतिहासिक एवं नक्काशीदार इमारतों के कारण न केवल प्रदेश में बल्कि पूरे भारत वर्ष मेंअपना एक अलग वजूद रखता है। यहाँ पे आज भी आपको सुलेखकला के नमूने मिल जायेंगे | नगर में आज भी कई ऐसी महत्वपूर्णऐतिहासिक इमारतें है जो इस बात का पुख्ता सबूत प्रस्तुत करती है कि यह नगर आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व एक पूर्ण सुसज्जित नगर रहा होगा। विद्यापति का कीर्तिलता में जौनपुर कर रमणीक दृश्यों का वर्णन कुछ इस प्रकार किया गया है |

 "जूनापुर नामक यह नगर आँखों का प्यारा तथा धन दौलत का भण्डार था । देखने में सुन्दर तथा प्रत्येक दृष्टिकोण से सुसज्जित था । कुओं और तालाबों का बाहुल्य था । पथ्थरों का फर्श ,पानी निकलने की भीतरी नालिया ,कृषि , फल  फूल और पत्तों से हरी भरी लहलहाती हुयी आम और जामुन के पेड़ों की अवलियाँ ,भौंरो की गूँज मन को मोह लेती थीं । गगनचुम्बी और मज़बूत भवन थे । रास्ते में ऐसी ऐसी गालियां थीं की बड़े बड़े लोग रुक जाते थे । चमकदार लम्बे लम्बे स्वर्ण कलश मूर्तियों से सुसज्जित सैकड़ो शिवाले दिखते थे ।

अगर इसे पर्यटक स्थल घोषित कर दिया जाय तो स्वर्ग होने के साथ बड़े पैमाने परदेशी-विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने का माद्दा इस शहर में आज भी है। नगर के ऐतिहासिक स्थलों मेंप्रमुख रूप से अटाला मस्जिद, शाहीकिला, शाही पुल, झंझरी मस्जिद, बड़ी मस्जिद, चार अंगुली मस्जिद, लाल दरवाजा, शीतला धाम चौकिया, महर्षि यमदग्नि तपोस्थल, जयचन्द्रके किले का भग्नावशेष आदि आज भी अपने ऐतिहासिक स्वरूप एवं सुन्दरता के साथ मौजूद है। इसकेअलावा चार दर्जन से अधिक ऐतिहासिक इमारते यहां मौजूद है जिनमें से कुछ रखरखाव के अभाव में जर्जर हो गये है।
Atala Masjid Jaunpur

कभी-कभी विदेशी पर्यटक यहां आकर ऐतिहासिक स्थलों का निरीक्षण कर यहां की संस्कृति की सराहना करने से नहीं चूकते लेकिन दूसरी तरफ शासन द्वारा पर्यटकों की सुविधा के मद्देनजर किसी भी प्रकार की स्तरीय व्यवस्था न किये जाने से उन्हे काफी परेशानी भी होती है।

हालांकि जनपद को पर्यटक स्थल के रूप में घोषित कराने का   आज तक जो भी प्रयास किया गया  वो नाकाफी रहा  है|
Mahal Raja Jaunpur

Maqbara Goolar Ghat



Jhanjhri Masjid

Shahi Fort
प्राचीन काल के जो भवन इस समय उत्तर भारत में विद्यमान है उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं प्राचीन अटाला मस्जिद और बड़ी मस्जिद शर्की शासनकाल के सुनहले इतिहास का आईना है। इनकी शानदार मिस्र के मंदिरों जैसी अत्यधिक भव्य मेहराबें तो देखने वालों के दिल को छू लेती है। अटाला मस्जिद का निर्माण सन् 1408 ई. में इब्राहिम शाह शर्की ने कराया था। सौ फिट से अधिक ऊंची यह मस्जिद हिन्दू-मुस्लिम मिश्रित शैली द्वारा निर्मित की गयी है जो विशिष्ट जौनपुरी निर्माण शैली का आदि प्रारूप और शर्कीकालीन वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। शर्कीकाल के इस अप्रतिम उदाहरण को यदि जौनपुर में अवस्थित मस्जिदों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व खूबसूरत कहा जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
Lal Darwaza Masjid

इसी प्रकार जनपद की प्रमुख ऐतिहासिक इमारतों में से एक नगर में आदि गंगा गोमती के उत्तरावर्ती क्षेत्र में शाहगंज मार्ग पर स्थित बड़ी मस्जिद जो जामा मस्जिद के नाम से भी जानी जाती है, वह शर्की कालीन प्रमुख उपलब्धि के रूप में शुमार की जाती है। जिसकी ऊंचाई दो सौ फिट से भी ज्यादा बताई जाती है। इस मस्जिद की बुनियाद इब्राहिम शाह के जमाने में सन् 1438 ई. में उन्हीं के बनाये नक्शे के मुताबिक डाली गयी थी जो इस समय कतिपय कारणों से पूर्ण नहीं हो सकी। बाधाओं के बावजूद विभिन्न कालों और विभिन्न चरणों में इसका निर्माण कार्य चलता रहा तथा हुसेन शाह के शासनकाल में यह पूर्ण रूप से सन् 1478 में बनकर तैयार हो गया। इन ऐतिहासिक इमारतों के अनुरक्षण के साथ ही साथ बदलते समय के अनुसार आधुनिक सुविधा मुहैया कराकर इन्हे आकर्षक पर्यटक स्थल के रूप मेंतब्दील किया जा सकता है।


नगर के बीचोबीच गोमती नदी के पूर्वी तट पर स्थित उत्थान-पतन का मूक गवाह 'शाही किला'आज भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुखकेन्द्र बिन्दु बना हुआ है। इस ऐतिहासिक किले का पुनर्निर्माण सन् 1362 ई. में फिरोजशाह तुगलक ने कराया। दिल्ली व बंगाल के मध्यस्थित होने के कारण यह किला प्रशासन संचालन की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण था। इस शाही पड़ाव पर सैनिक आते-जाते समय रुकते थे।किले के मुख्य द्वार का निर्माण सन् 1567 ई. में सम्राट अकबर ने कराया था। राजभरों, तुगलक, शर्की, मुगलकाल व अंग्रेजों के शासनकालके उत्थान पतन का मूक गवाह यह शाही किला वर्तमान में भारतीय पुरातत्व विभाग की देखरेख में है। इस किले के अन्दर की सुरंग का रहस्य वर्तमान समय में बन्द होने के बावजूद बरकरार है। शाही किले को देखने प्रतिवर्ष हजारों पर्यटक आते रहते है।

Pancho Shivala, Pandaraiba, Jaunpur

महाभारत काल में वर्णित महर्षि यमदग्नि की तपोस्थली जमैथा ग्राम जहां परशुराम ने धर्नुविद्या का प्रशिक्षण लिया था। गोमती नदी तट परस्थित वह स्थल आज भी क्षेत्रवासियों के आस्था का केन्द्र बिन्दु बना हुआ है। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि उक्त स्थल के समुचितविकास को कौन कहे वहां तक आने-जाने की सुगम व्यवस्था आज तक नहीं की जा सकी है। झंझरी मस्जिद, चार अंगुली मस्जिद जैसी तमाम ऐतिहासिक अद्वितीय इमारतें है जो अतीत में अपना परचम फहराने में सफल रहीं परन्तु वर्तमान में इतिहास में रुचि रखने वालों केजिज्ञासा का कारण होते हुए भी शासन द्वारा उपेक्षित है।
Char ungli Masjid

मार्कण्डेय पुराण में उल्लिखित 'शीतले तु जगन्माता, शीतले तु जगत्पिता, शीतले तु जगद्धात्री-शीतलाय नमो नम:'से शीतला देवी की ऐतिहासिकता का पता चलता है। जो स्थानीय व दूरदराज क्षेत्रों से प्रतिवर्ष आने वाले हजारों श्रद्घालु पर्यटकों के अटूट आस्था व विश्वास काकेन्द्र बिन्दु बना हुआ है। नवरात्र में तो यहां की भीड़ व गिनती का अनुमान ही नहीं लगाया जा सकता है।



शिराज-ए-हिन्द जौनपुर की आन-बान-शान में चार चांद लगाने वाला मध्यकालीन अभियंत्रण कला का उत्कृष्ट नमूना 'शाही पुल'पिछली कई सदियों से स्थानीय व दूरदराज क्षेत्रों के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। भारत वर्ष के ऐतिहासिक निर्माण कार्यो में अपना अलग रुतबा रखने वाला यह पुल अपने आप में अद्वितीय है। वही खुद पयर्टकों का मानना है कि दुनिया में कोई दूसरा सड़क के समानान्तरऐसा पुल देखने को नहीं मिलेगा।

शहर को उत्तरी व दक्षिणी दो भागों में बांटने वाले इस पुल का निर्माण मध्यकाल में मुगल सम्राट अकबर के आदेशानुसार मुनइम खानखानाने सन् 1564 ई. में आरम्भ कराया था जो 4 वर्ष बाद सन् 1568 ई. में बनकर तैयार हुआ। सम्पूर्ण शाही पुल 654 फिट लम्बा तथा 26 फिटचौड़ा है, जिसमें 15 मेहराबें है, जिनके संधिस्थल पर गुमटियां निर्मित है। बारावफात, दुर्गापूजा व दशहरा आदि अवसरों पर सजी-धजीगुमटियों वाले इस सम्पूर्ण शाही पुल की अनुपम छटा देखते ही बनती है।
बड़ी मस्जिद 
Shahi Pull  Jaunpur

इस ऐतिहासिक पुल में वैज्ञानिक कला का समावेश किया गया है। स्नानागृह से आसन्न दूसरे ताखे के वृत्त पर दो मछलियां बनी हुई है। यदिइन मछलियों को दाहिने से अवलोकन किया जाय तो बायीं ओर की मछली सेहरेदार कुछ सफेदी लिये हुए दृष्टिगोचर होती है किन्तु दाहिनेतरफ की बिल्कुल सपाट और हलकी गुलाबी रंग की दिखाई पड़ती है। यदि इन मछलियों को बायीं ओर से देखा जाय तो दाहिने ओर की मछली सेहरेदार तथा बाई ओर की सपाट दिखाई पड़ती है। इस पुल की महत्वपूर्ण वैज्ञानिक कला की यह विशेषता अत्यन्त दुर्लभ है।

हमारा जौनपुर सोशल वेलफेयर फाउंडेशन की तरफ से हर समय यही प्रयास रहता है की इस जौनपुर को परदेशी-विदेशी पर्यटकों के आने योग्य बनवाते हुए इसे पर्यटक स्थल घोषित करवाया जा सके और अपने मकसद में काफी हद तक सफल भी हुए हैं बस नतीजे का इंतज़ार है |

एस एम् मासूम


जौनपुर में राष्ट्रीय मतदाता दिवस कार्यक्रम |

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आज राष्ट्रीय मतदाता दिवस कार्यक्रम को वृहद स्तर पर सफल बनाने में जिला निर्वाचन अधिकारी भानुचन्द्र गोस्वामी, पुलिस अधीक्षक अतुल सक्सेना द्वारा तिलकधारी महाविद्यालय के उमानाथ स्टेडियम में प्रातः 10 बजे जिले के लगभग 77 कालेजों एवं अन्य विद्यालयों के प्रतिभागियों ने प्रतियोगिता में भाग लिया। इस अवसर पर प्रतिभाग करने वाले प्रतिभागियों को प्रथम, द्वितीय, तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले छात्र, छात्राओं द्वारा मतदाता जागरूकता अभियान के अन्तर्गत विभिन्न प्रतियोगिताए हुई जिसमें छात्र/छात्राओं द्वारा सिलाई-कढ़ाई में प्रथम सुजाता, द्वितीय शबिस्ता, तृतीय बीनू, मधु, नाखून पॉलिश में अभिलाषा मौर्य, चारू श्रीवास्तव, श्रृद्धा शर्मा, टैटू में दीक्षा श्रीवास्तव, अनुज सोनकर, अजितेश कुमार, कलश सजाव में टी.डी.पी.जी. कालेज, कृष्णा स्कूल ऑफ नर्सिंग, बी.डी. इंटरमीडिए कालेज, पोस्टर-पेंटिंग में शैलेन्द्र कुमार शर्मा, सूर्य प्रताप सिंह, रामविलास विपिन कुमार, दुर्गेश कुमार, फैन्सी ड्रेस टी.डी. कालेज एवं डायट, मो.हसन, शिया कालेज, नृत्य मुक्तेश्वर प्रसाद, शिया कालेज, कमला दुबे कालेज, नाटक टी.डी. कालेज, सर्वजीत महिला केवटकी, उमानाथ सिंह, सुक्खीपुर, बीड्स घर के पुराने सामानों से सीमा बानों, रूपाली, आकाक्षा, रोहित, विनय कुश्वाहा, रविन्द्र सिंह यादव, रंगोली रा0पीजी कालेज सुजानगंज, राज डिग्री कालेज हुसना, उमानाथ सिंह बीटीसी, मेहदी वैश्वनी द्विवेदी, तन्जीम फात्मा, राजिया बानो, कलश में टी.डी.कालेज, कृष्णा स्कूल आफ नर्सिंग, बीडी कालेज, स्लोगन विक्रम सिंह, राहुल पाल, अन्तिमा यादव रही। 21 जनवरी 2017 को पतंग प्रतियोगिता के विजेताओं को भी पुरस्कृत किया गया।




इस अवसर पर जिला निर्वाचन अधिकारी भानुचन्द्र गोस्वामी एवं पुलिस अधीक्षक अतुल सक्सेना ने प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय प्रतिभागियों को पुरस्कृत भी किया गया। जिला निर्वाचन अधिकारी ने बताया कि जिले भर के कालेजों से आये छात्रों एवं अभिभावकों को वोट के महत्व के बारे में बताते हुए अपील किया कि 8 मार्च 2017 को अपने मतदान केन्द्र पर जाकर अवश्य मतदान करें तथा सभी लोगों से स्वयं मतदान के साथ ही सभी अन्य लोगों को भी मतदान के लिए प्रेरित करने के लिए कहा। उन्होंने बताया कि वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में लगभग 55 प्रतिशत ही मतदान हुआ था उन्होंने शहर एवं गांव-गांव से आये हुये अध्यापक, छात्र, छात्राओं एवं अभिभावकों से शतप्रतिशत मतदान करने के लिए कहा। सर्व प्रथम जिला निर्वाचन अधिकारी, पुलिस अधीक्षक को बुके देकर स्वागत किया। दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। जिला निर्वाचन अधिकारी ने सभी को मतदाताओं को शपथ ’’हम, भारत के नागरिक, लोकतंत्र में अपनी पूर्ण आस्था रखते हुए यह शपथ लेते है कि.......... किसी भी प्रलोभन से प्रभावित हुये बिना सभी निर्वाचनों में अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे।’’ इस अवसर पर पांच युवा मतदाता को मतदाता पहचान पत्र भी दिया गया। जिला निर्वाचन अधिकारी भानुचन्द्र गोस्वामी ने जिले भर से आये प्रतिभागियों को राष्ट्रीय मतदाता दिवस के कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए प्रशांसा किया। कार्यक्रम को गीतों के माध्यम से भोजपुरी गायक रविन्द्र सिंह ज्योति, डा0 क्षितिज शर्मा ने अपने गीतों द्वारा युवाओं में मतदान के लिए जोश भर दिया। संचालन मो0 मुस्तफा एवं रोशन श्रीवास्तव ने किया। इस मौके पर उप जिला निर्वाचन अधिकारी उमाकान्त त्रिपाठी ने निर्वाचन आयोग के संदेश को बताया। इस अवसर पर उपजिला निर्वाचन अधिकारी उमाकान्त त्रिपाठी, अपर पुलिस अधीक्षक नगर कमलेश दीक्षित, जिला विद्यालय निरीक्षक भाष्कर मिश्र, बी.एस.ए. शिवेन्द्र प्रताप सिंह, डिप्टी कलेक्टर प्रियंका सिंह, ज्योति मौर्या, टी.डी.कालेज के प्राचार्य डा. विनोद सिंह, जनक कुमारी के प्रधानाचार्य जंगबहादुर सिंह, स्वीप प्रभारी संजय पाण्डेय, खण्ड शिक्षा अधिकारी ममता सरकार, आर.पी.यादव, राजेश गुप्ता, शैलपति यादव, अखिलेश कुमार झा, चन्द्रशेखर यादव, महेन्द्र कुमार मौर्य, सुरेन्द्र मोहन वर्मा, मो0 अकरम, दिवाकर पाठक, शकील गद्दा, इश्तेयाक गुलाब, वल्ली खॉ, रूपेश आदि उपस्थित रहे।


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गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं

आज मिलिए जौनपुर निवासी मशहूर समाजशास्त्री और सामजिक कार्यकर्ता डॉ पवन विजय जी से |

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हमारा जौनपुर की टीम इस बार जा पहुंची दिल्ली और वहाँ पे जौनपुर का नाम रौशन करने वाले जनाब पवन जी के पास |आज हमारे बीच में समाजशास्त्री और सामजिक कार्यकर्ता डॉ पवन विजय मौजूद हैं जौनपुर के सुजानगंज क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले डॉ पवन विजय दिल्ली के आई पी विश्वविद्यालय से सम्बद्ध  कॉलेज में समाजशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष हैं|  भाषा और शिक्षा के साथ सामजिक सरोकारों से जुड़े विषयों पर आप लगातार सक्रिय हैं| हिन्दी की राष्ट्रीय स्वीकार्यता अभियान की स्थापना करने वाले डॉ विजय का “हमारा जौनपुर”हार्दिक अभिनंदन करता है | पवन विजय जी एक मशहूर ब्लॉगर भी हैं और आज उनके कई ऐसे ब्लॉग हैं जिसने वो सामाजिक समस्याओं से जुड़ के लिखा करते है |

पवन विजय जी का सहयोग हमेशा से हमारा जौनपुर वेबसाईट को रहा और समय समय पे उनके गीत ,कजरी लेख और संस्मरण आप पढ़ते रहे हैं | आज एक प्रतिभाशाली जौनपुरी जनाब पवन जी को आप सब से मिलवाने मुझे बहुत ख़ुशी का आभास हो रहा है | 

हमारा जौनपुर से बात चीत  में पवन जी ने सबसे बड़ी बात जो बतायी की कैसे मुश्किल हालात में उन्होंने अपनी पढाई जौनपुर से पूरी की और कैसे उन्होंने  १५-१८ किलोमीटर साइकिल से और कई बार पैदल जा के इन्टरमीडीयट किया और आज  मशहूर समाजशास्त्री और साहित्यकार के रूप में पहचाने जाते हैं |उनका मानना है की साहित्य समाज का दर्पण है और आज इसी कारण  से उनके शोध पत्र ,किताबें बहुत चर्चित हैं | इन्टरनेट से ले के लाइब्रेरी ,अखबार ,पत्रिकाओं और  टीवी तक जहाँ उन्हें जहां तलाश लिया जाय वो मिल जाया करते हैं |

पवन जी की लिखी कुछ पंक्तियों के साथ मैं अपनी कलम को रोकता हूँ | 

वीराना हो भला कितना ठिकाना ढूंढ लेता है, 
ग़मों को गुनगुनाने का तराना ढूंढ लेता है। 
कवायद खूब होती है मुझे मायूस करने की,
मगर दिल मुस्कुराने का बहाना ढूंढ लेता है। 


डॉ. पवन विजय| 



तो आईये डॉ साहब से सवालों जवाबों का सिलसिला आप खुद सुनिए | 


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"वोट करेगा जौनपुर "फेसबुक पेज को LIKE और Share करते आगे बढाने वालों का धन्यवाद | जिलाधिकारी जौनपुर भानुचन्द्र गोस्वामी

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वोट करेगा जौनपुर
जिला निर्वाचन अधिकारी और जिलाधिकारी जौनपुर भानुचन्द्र गोस्वामी ने वोटर्स को जागरूक करने के लिए और उनका अधिकार क्या क्या है बताने के लिए एक पेज फेसबुक पे बनाया जिसका नाम रखा " वोट करेगा जौनपुर'और इस पेज पे हर दिन वोट देने को प्रेरित करते कार्टून , विडियो और खुद उनके मेसेज डाला जाता है |

जिला निर्वाचन अधिकारी भानुचन्द्र गोस्वामी से बात चीत के दौरान उन्होने सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए कहा "
 उन सभी लोगों का धन्यवाद जो वोट करेगा जौनपुके पेज को LIKE और SHAREकरते हुए इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचा रहे हैं | जो लोग इस पेज तक आते हैं वो इसे LIKE करते हुए अपनी उपस्थिति यहाँ अवश्य दर्ज करवा दें जिस से अन्य लोगों को अधिक से अधिक जागरूक किया जा सके |
..जिला निर्वाचन अधिकारी भानुचन्द्र गोस्वामी





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सोशल मीडिया और वेब पोर्टल्स का राजनीति में हो सकता है बड़ा योगदान |

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जैसा की मैंने अपने पिछले लेख में कहा था की विश्व भर में अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए आज सोशल मीडिया  का इस्तेमाल हर क्षेत्र में किया जा रहा है और इसी कारण यह अब भारतवर्ष में भी राजनेताओं की पहली पसंद  बन चूका है । जौनपुर और पूर्वांचल में भी कुछ नेता अपने खुद के पोर्टल और फेसबुक ,ट्विटर पेज का चला रहे है |

यह भी आशा की जाती है की सरकारी तंत्र भी जनता तक अपनी बात पहुंचाने और जागरूक करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करेगा |  यहाँ यह बात अवश्य बताता चलूँ की सोशल मीडिया हो या  वेब पोर्टल्स  इनको बना लेना तो आसान है लेकिन लोगों तक पहुंचाना और विश्वसनीयता कायम करना मुश्किल हुआ करता है और इसमें समय लगता है | 

मेरी समझ से यह अच्छी शुरुआत होगी  और अगर नेता खुद अपना ब्लॉग पोर्टल , फेसबुक ,ट्विटर पेज बनाते हैं तो जनता को उन्हें समझने में भी आसानी होगी और समय आने पे  भी खुद इसका लाभ उठा सकेंगे | 




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जौनपुर निवासी मशहूर समाजशास्त्री और सामजिक कार्यकर्ता डॉ पवन विजय जी से एक मुलाक़ात |

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हमारा जौनपुर की टीम इस बार जा पहुंची दिल्ली और वहाँ पे जौनपुर का नाम रौशन करने वाले जनाब पवन जी के पास |आज हमारे बीच में समाजशास्त्री और सामजिक कार्यकर्ता डॉ पवन विजय मौजूद हैं जौनपुर के सुजानगंज क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले डॉ पवन विजय दिल्ली के आई पी विश्वविद्यालय से सम्बद्ध  कॉलेज में समाजशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष हैं|  भाषा और शिक्षा के साथ सामजिक सरोकारों से जुड़े विषयों पर आप लगातार सक्रिय हैं| हिन्दी की राष्ट्रीय स्वीकार्यता अभियान की स्थापना करने वाले डॉ विजय का “हमारा जौनपुर”हार्दिक अभिनंदन करता है | पवन विजय जी एक मशहूर ब्लॉगर भी हैं और आज उनके कई ऐसे ब्लॉग हैं जिसने वो सामाजिक समस्याओं से जुड़ के लिखा करते है |

पवन विजय जी का सहयोग हमेशा से हमारा जौनपुर वेबसाईट को रहा और समय समय पे उनके गीत ,कजरी लेख और संस्मरण आप पढ़ते रहे हैं | आज एक प्रतिभाशाली जौनपुरी जनाब पवन जी को आप सब से मिलवाने मुझे बहुत ख़ुशी का आभास हो रहा है | 

हमारा जौनपुर से बात चीत  में पवन जी ने सबसे बड़ी बात जो बतायी की कैसे मुश्किल हालात में उन्होंने अपनी पढाई जौनपुर से पूरी की और कैसे उन्होंने  १५-१८ किलोमीटर साइकिल से और कई बार पैदल जा के इन्टरमीडीयट किया और आज  मशहूर समाजशास्त्री और साहित्यकार के रूप में पहचाने जाते हैं |उनका मानना है की साहित्य समाज का दर्पण है और आज इसी कारण  से उनके शोध पत्र ,किताबें बहुत चर्चित हैं | इन्टरनेट से ले के लाइब्रेरी ,अखबार ,पत्रिकाओं और  टीवी तक जहाँ उन्हें जहां तलाश लिया जाय वो मिल जाया करते हैं |

पवन जी की लिखी कुछ पंक्तियों के साथ मैं अपनी कलम को रोकता हूँ | 

वीराना हो भला कितना ठिकाना ढूंढ लेता है, 
ग़मों को गुनगुनाने का तराना ढूंढ लेता है। 
कवायद खूब होती है मुझे मायूस करने की,
मगर दिल मुस्कुराने का बहाना ढूंढ लेता है। 


डॉ. पवन विजय| 



तो आईये डॉ साहब से सवालों जवाबों का सिलसिला आप खुद सुनिए | 


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जौनपुरी दोहरे का महफ़िलों से शमशान तक का दर्दनाक सफ़र डॉक्टरों की ज़बानी | "दोहरा मुक्त जौनपुर "और "सेव टीथ-सेव लाइफ"

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हमारा जौनपुर सोशल वेलफेयर फाउंडेशन"का मिशन "दोहरा मुक्त जौनपुर "और "सेव टीथ-सेव लाइफ"


 hamarajaunpurजौनपुर के दोहरे की भी अपनी ही एक अलग कहानी है | इसको खाने वाले मजबूर लाचार हो जाते  हैं | एक बार इसकी आदत लग गयी तो शमशान जाने के बाद ही छूट पाती है | यह दोहरा केवल जौनपुर में ही पाया जाता है और यह अभी तक लोकल स्तर पे ही बनाया जाता है लेकिन अब जौनपुर के बाहर भी यह जाने लगा है | लोकल स्तर पे बनने वाला यह दोहरा अपने नशे और जानलेवा विशेषता के कारण पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ  है |
जानकार बताते हैं कि दोहरा की शुरूआत महफिल से ही हुई है। यह अलग बात थी कि तब का दोहरा माउथ कैंसर तक इंसान को नहीं पहुंचाता था। वजह उसे बनाने व खाने का तरीका भी अलग था। लखनऊ मार्ग स्थित बसारतपुर में आजादी के पूर्व दोहरा बनाया जाना शुरू हुआ। शुरू में सुपाड़ी के टुकड़े में इलाइची, लौंग, चूना मिलाकर खाया जाता था। इसका सेवन महफिल में लोग समय गुजारने के लिए करते थे, किंतु धीरे-धीरे इसका रूप बदलता गया और आज इसने एक नशे का रूप ले लिया जो कैंसर म्रत्यु का एक बड़ा कारण बनता जा रहा है |

दोहरा कैसे बनाया जाता है और इसमें ऐसी क्या चीज़ मिलाई जाती है की इसकी आदत छुडाने पे भी नहीं छूटती | फिर भी लोगों से पूछ ताछ करने पे पता चला  कि सुपाड़ी को एक पात्र में तीन दिन रखा जाता है। इसके बाद चूने के पानी में इसे सोधा जाता है। इसके बाद इसकी फर्री काटी जाती है। पहाड़ी कत्था, ब्रास, पिंपरमिंट, चूना के अलावा कुछ केमिकल मिलाकर इसे तैयार किया जाता है। यह सब सभी अपने-अपने तरीके से मिलाते हैं।


फिर भी इसमें कौन सा नशा होता है यह आज तक एक रहस्य ही बना हुआ है |


फैसल हसन तबरेज़ ने हमारे टीम को  बताया की वो उसे बंद करवाने के लिए लगे हुए हैं और उनके साथ है विकास तिवारी जी और जल्द ही इस ज़हर से जौनपुर को मुक्ति मिल जायगी |


 hamarajaunpurबाज़ार में  5, 10, 20, 30 रुपये आदि रेट के हिसाब से प्रति पैकेट मिलने वाले इस ज़हर के बारे में अधिक जानने के लिए "हमारा जौनपुर "की टीम इस बार जौनपुर के कई मशहूर डॉक्टर्स से मिली जिस से की लोगों को इसके नुकसान के बारे में जागरूक किया जा सके |

डॉक्टर्स ने एक मत हो के बताया की  दोहरा खाने से मनुष्य के जीवन पर बहुत घातक प्रभाव पड़ता है। लार ग्रंथियां सूख जाती हैं। फिर पाचन तंत्र की गड़बड़ी समेत अनेक बीमारियों का जन्म हो जाता है जो जटिल एवं असाध्य बन जाती है। जीवन को नष्ट कर देती हैं। इन्हीं बीमारियों से घिरकर मौत हो जाती है। लार का प्रमुख कार्य भोजन को पचाने के लिए पाचक रस तैयार करना एवं शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करना है। मुंह में दोहरा रखते ही लार का स्त्राव होता है। जिसे दिन भर दोहरा खाने वाले थूक देते हैं। साधारणतया लार का स्त्राव भोजन करते समय ही होना चाहिए, जो भोजन में मिश्रित होकर आमाशय में जाना चाहिए। लेकिन दिन भर दोहरा खाने वाले लार को बाहर निकालते रहते हैं। लार ग्रंथियां सूख जाती हैं। जिनके भोजन करते समय लार का स्त्राव कम होता है और भोजन के साथ लार पर्याप्त मात्रा में मिश्रित नहीं हो पाता है। परिणाम स्वरूप भोजन पचाने में लार सहायक नहीं बन पाता एवं पाचन में गड़बड़ी पैदा हो जाती है। सही ढंग से भोजन नहीं पचा पाने के कारण अनेक प्रकार के पौष्टिक तत्वों का संतुलन बिगड़ जाता है। जिसके कारण हार्मोनल संतुलन भी ठीक नहीं रहता। शरीर में पाचन तंत्र से जुड़ी अनेक प्रकार की बीमारियां जन्म ले लेती हैं एवं जटिल होकर जानलेवा बन जाती हैं।

डा.गौरव मौर्य ने सर्वे रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि उत्तर प्रदेश में बांदा जनपद में तंबाकू खाने के बाद 67 फीसद लोग कैंसर से पीड़ित हो रहे है, जबकि जौनपुर में 53 फीसद लोग दोहरा और तंबाकू का उपयोग करने के बाद कैंसर का शिकर हो रहे है। वहीं डा.तूलिका मौर्या ने बताया कि प्रदेश में मैनपुर जनपद के 35 फीसद कैंसर से पीड़ित मरीज खैनी, सुपारी, पान खाने के कारण हो रहे है। चिकित्सक द्वय ने कहा कि दोहरा शरीर के लिए काफी हानिकारक है।


मीठा जहर'दोहरा खाने वालों के कारण कैंसर रोगियों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है। धड़ल्ले से बिक रहे दोहरे को खाने के बाद लोग कैंसर के शिकर हो रहे है। मशहूर डेंटिस्ट डॉ तूलिका मौर्या और डॉ गौरव प्रकाश मौर्या ने बताया की कुछ सर्वे रिपोर्टस  इस बात की तरफ इशारा करती है की  टाटा हास्पिटल मुंबई में हर तीसरा कैंसर मरीज उत्तर प्रदेश से ही होता है। आश्चर्य की बात तो यह है कि इसमें अकले 53 फीसद मरीज जौनपुर से ही होते है। 

मौजूदा समय में स्थिति यह हो गई हैं कि शहर सहित ग्रामीण इलाके में भी इसकी मांग तेजी के साथ बढ़ गई है। इसी का नतीजा यह हैं कि जनपद में माउथ कैंसर तेजी से बढ़ रहा है। माउथ कैंसर के शिकार मरीजों को देखने के बाद चिकित्सक भी जौनपुर के दोहरा का जिक्र शुरू कर दे रहे है|   इसका सेवन करने वालों का मुंह खुलना कम हो रहा है। झटका लगने के बाद इसका सेवन बंद करने तक का प्रयास करना शुरू कर देते है, लेकिन वे नशे की ऐसी लत से घिर जाते हैं कि उससे निकलना भारी हो जाते है। इसी वजह से उनके मुंह में छाले के बाद अल्सर हो जाता है। बावजूद इसके वे अपने जीवन से इसे दूर नहीं कर पाते है। जिसका नतीजा यह होता है कि इस नशे को जिंदगी से अलग न कर माउथ कैंसर को गले लगा लेते है। अपनों की जिंदगी बचाने के लिए परिवार जी-जान लगा देते है, किंतु अंत में निराशा ही हाथ लगती है|


जानिये जौनपुर के मशहूर ह्रदय रोग विशेषज्ञ डॉ मैहर अब्बास क्या कहते हैं जौनपुर के दोहरे के नशे के बारे में ?दोहरा मुक्त जौनपुर जौनपुर के मशहूर कांग्रेस नेता जनाब फैसल हसन तबरेज़ के विचार दोहरा मुक्त जौनपुर के विषय पे |
  हमारा जौनपुर सोशल वेलफेयर फाउंडेशन"का मिशन "दोहरा मुक्त जौनपुर "और "सेव टीथ-सेव लाइफ""दांत बचाओ-जीवन बचाओ"। हमारा जौनपुर की टीम जौनपुर के मशहूर डेंटिस्ट डॉ तूलिका मौर्या और डॉ गौरव प्रकाश मौर्या से एक मुलाक़ात और चर्चा|
ला. सैयेद मोहम्मद मुसतफा से "दोहरा मुक्त जौनपुर "विषय पे बात चीत |





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सोशल मीडिया शब्द से अब जौनपुर अनजान नहीं लेकिन वि‍श्‍वसनीयता की कमी |

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जौनपुर के रहने वालों के लिए अब सोशल मीडिया शब्द अनजान नहीं है और यहाँ की आधी आबादी इसका इस्तेमाल हर दिन किया करती है | लेकिन अभी भी 85 फीसदी लोग  सोशल मीडि‍या में वि‍श्‍वसनीय कंटेंट का चुनाव नहीं कर रहे हैं और इसके ज़िम्मेदार यहाँ के सोशल मीडिया द्वारा खबरें या अन्य जानकारी देने वाले हैं जो इतनी बड़ी आबादी द्वारा पढ़े जाने के बाद भी इन पाठकों के मन मस्तिष्क  में अपनी वि‍श्‍वसनीयता कायम नहीं कर पा रहे हैं | 

आज जहां विश्व में लोग हर दिन अपडेट के लिए फेसबुक ,ट्विटर और वेब न्यूज़ पोर्टल पे विश्वास करते हैं वही दूसरी ओर भारतवर्ष में फेसबुक इत्यादि को टाइम पास और मनोरंजन के लिए अधिक इस्तेमाल किया जाता है और यही कारण हैं की अमरीका जैसे देश में जहां लोग ख़बरों के लिए ट्विटर द्वारा शेयर की गयी वेब न्यूज़ पोर्टल्स पे अधिक भरोसा करते हैं | ट्विटर पे अफवाहों को फैलाना आसान भी नहीं होता क्यूँ की वहाँ बहुत कम शब्दों में ही बात सामने रखी जा सकती है |


एक सर्वे के अनुसार देश के चार महानगरों में 30 फीसदी और बाकी बड़े शहरों में 26 फीसदी युवा सोशल मीडि‍या से जुड़े हैं जिनमे से अधिक संख्या १५ से ३५ वर्षीय लोगों की अधिक है और इनको देखते हुए सोशल मीडिया से जुड़े उन लोगों की ज़िम्मेदारी अधिक बढ़ जाती है जो लोगों को हर दिन कुछ न कुछ अपने लेख ,ख़बरों या टिपण्णी इत्यादि द्वारा दिया करते है |

वेब पत्रकारिता से जुड़े लोग यदि चाहते हैं की उनके पोर्टल पे लोगों का विश्वास बना रहे तो किसी भी प्रकार के लोभ को छोड़ के इमानदारी से सही खबरें लोगों तक पहुंचाएं ,अफवाहों से बचें, सस्ती लोकप्रियता के हथकंडों का इस्तेमाल ना करें |

अभी सुनहरा अवसर है जो एक बार पाठको में विशवास पैदा कर गया समझो हमेशा के लिए कामयाब पोर्टल का मालिक बन गया |


राजनीति‍क और व्यापारिक स्‍वार्थ के कारण अफवाहों को इस सोशल मीडिया के इस्तेमाल की खबरें हम और आप हर दिन पढ़ा करते हैं और इसी लोगों से आज अंतरजाल पे उनका टकराव होना है जो पाठको के मन में अपनी  विश्वसनीयता कायम करते हुए आगे बढ़ते रहना चाहते हैं | ध्यान रहे विस्वास एक दिन में कायम नहीं होता बाकि हर दिन भ्रामक खबरों और लेख से बचते हुए सही दिशा देते रहने से होता है और इसी के साथ साथ पाठको को जागरूक भी करते रहना होगा की कैसे अफवाहों,भ्रामक खबरों,सायबर मॉर्फिंग , सायबर बुल्लिंग इत्यादि से बचें |


जिस प्रकार वेब न्यूज़ पोर्टल चलाने वालों और अन्य सोशल मीडिया पे लिखने वालों टिपण्णी करने वालों की ज़िम्मेदारी है की अपनी विश्वसनीयता कायम करे उतनी की ज़िम्मेदारी कानून व्यवस्था कायम रखने वालों की भी बनती है की कैसे वो अपनी टीम को सायबर मॉर्फिंग ,सायबर सायबर बुल्लिंग और अफवाह फैलाने  वालों की पहचान करना सिखाएं | 

पि‍यू रि‍सर्च सेंटर की रि‍पोर्ट को देखते हुए यह कहा जा सकता है की  अमेरि‍की इंटरनेट यूजर्स सोशल मीडि‍या के फायदों के बारे में भारतीयों से कहीं ज्‍यादा वाकि‍फ हैं। उनके लि‍ए यह सूचनाएं प्राप्‍त करने का एक आसान माध्‍यम है, जबकि‍ हमारे यहां यह सूचनाएं साझा करने का। 

इसलिए  ऐसी ख़बरों, पोस्ट, लेख और टिप्पणियों से बचें जिनकी वि‍श्‍वसनीयता संदि‍ग्‍ध हो, बरगलाने वाली हों भ्रामक हो । 

..लेखक   एस एम् मासूम 



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वेब पत्रकारिता में किसी भी वेबसाईट के लिए बुरी खबर क्या हो सकती है |- एस एम् मासूम

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वेब पत्रकारिता  को जौनपुर में आये  ५ वर्ष पूरे हो रहे हैं और मेरे अनुसार यह देर से आई और इसका मुख्य कारण यहाँ के पत्रकारों का अंतर्जाल के प्रति जागरूक ना होना भी  माना जा सकता है | 


एक साल कड़ी मेहनत के बाद  पत्रकार भाइयों को वेब पत्रकारिता की अहमियत मिल के समझाने में और उन्हें जागरूक करने में मुझे कामयाबी मिली और सबसे पहले राजेश श्रीवासतव ने इसकी अहमियत समझी और आज कामयाबी  के साथ वेब पत्रकारिता करते हुए अपना वेब पोर्टल शिराज़ ऐ हिन्द डॉट कॉम  चला रहे है |
सबसे पहले मुझे डॉ मनोज मिश्रा जी ने पूर्वांचल विश्वविद्यालय की कार्यशाला में मॉस एंड मीडिया के स्टूडेंट्स के सामने इस विषय पे प्रकाश डालने का अवसर दिया जो बहुत कामयाब भी हुआ | 
वेब पत्रकारिता में कामयाबी के बहुत से उसूल हैं जिन्हें मैं बार बार इसलिए अपने लेखो और लेक्चर द्वारा समझाता रहता हूँ क्यूँ मैं देख रहा हूँ की मशरूम की तरह वेब और न्यूज़ पोर्टल बन रहे हैं जो प्रिंट मीडिया की तरह ही यहाँ भी खबरें दाल रहे हैं जबकि प्रिंट मीडिया से वेब पत्रकारिता बहुत अलग है |
बहुत से लोग वेबसाइट जब बनाते हैं तो इस बात की चिंता उन्हें अधिक रहती है की उसकी डिजाईन देखने में सुंदर लगे जबकि किसी भी वेबसाइट में डिजाईन से अधिक अहमियत इस बात की है की वो रेस्पोंसिव है या नहीं है सर्च इंजन फ्रेंडली है या नहीं है और इसके बाद  वेब पत्रकारिता में सबसे अधिक अहमियत हुआ करती हैं प्रमाणिक और सकारात्मक ख़बरों के देने  की | 
तीसरी  अहमियत होती है ख़बरों को खुद तलाश करके डालने की ना की मीडिया सेंटर की ख़बरों को एक ही शब्दों में हर जगह  डालते रहेने  की | 
और चौथी  और सबसे अहम् शर्त यह होती है की आपका पोर्टल न्यूट्रल रहे और सामाजिक सरोकारों को ध्यान में रखते हुए खबर दे या अन्य शब्दों में कह सकते हैं की खबर ऐसी हो जो केवल सूचना भर ना हो बल्कि उसके साथ समस्या का समाधान भी हो | 

वेब पत्रकारिता में अपना या पराया जैसा कोई भेदभाव ,झूटी कहानियो जैसे खबरें इत्यादि इसकी  साख को कम कर देता है और पाठको की संख्या को कम देता है जो किसी भी वेबसाईट के लिए बुरी खबर हुआ करती है |




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जौनपुर उन भाग्यशाली शहरों में से हैं जहां आज भी गौरैया चहचहाती है |

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जौनपुर की उन भाग्यशाली शहरों में से हैं जहां आज भी लोगों की सुबह गौरैया की चहचहाहट से हुआ करती है | मेरा घर जौनपुर शहर में गोमती किनारे होने के कारण आज भी सुबह सुबह आँगन में गौरैयों का झुण्ड आता जाता रहता है और उनकी चहचाहट से ही सुबह की शुरुआत हुआ करती है |

जौनपुर के डॉ मनोज मिश्र इस बात पे गर्व महसूस करते हैं की उनके आँगन में आज भी गौरय्या चहचहाती है | मक्के के साथ गौरैया के चित्र उनके ही आँगन के हैं | शायद इसका कारण आज भी जौंपुरियों का अपनी माटी से जुड़ा रहना और मक्के की खेती है | आज भी आँगन में लोग इन गौरैयों को दाना बड़े प्रेम से डालते दिखा जाया करते है | वैसे भी मेरा मानना है की की गाँव का गरीब शहरों के अमीरों से बेहतर हुआ करते हैं क्यूँ की गाँव का गरीब कम से कम कुछ चिड़ियों को तो दाना खिला ही देता है लेकिन यह शहरों के अमीर गरीब को दो वक़्त भी खाना नहीं खिला पाते |


साहित्य में गौरैया- हमारे साहित्य में भी इस प्यारी गौरैया को बहुत स्थान मिला है। लोकगीतों में अक्सर हम सभी ने इसी चिड़िया को अपने आंगन में फ़ुदकते देखा और इसकी आत्मीयता को महसूस किया है|

“चिड़िया चुगे है दाना हो मोरे अंगनवा---मोरे अंगनवा”
इसकी भांति-भांति की क्रियाओं को कवियों साहित्यकारों ने अपने-अपने ढंग से चित्रित करने का प्रयास किया है। घाघ-भड्डरी की कहावतों में तो इसके धूल-स्नान की क्रिया को प्रकृति और मौसम से जोड़ा गया है|

“कलसा पानी गरम है, चिड़िया नहावै धूर। चींटी लै अंडा चढ़ै, तौ बरसा भरपूर।”


यानि कि गौरैया जब धूल में स्नान करे तो यह मानना चाहिये कि बहुत तेज बारिश होने वाली है। आधुनिक काल के कवियों ने भी इस प्यारी चिड़िया को रेखांकित किया है। “मेरे मटमैले आंगन में, फ़ुदक रही प्यारी गौरैया” (शिवमंगल सिंह सुमन) “गौरैया घोंसला बनाने लगी ओसारे देवर जी के” कैलाश गौतम।



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कलांपुर गॉव तहसील शाहगंज ज़िला जौनपुर का भूला हुआ इतिहास |

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जैसा की जौनपुर का इतिहास की जानकारी रखने वाले जानते हैं की इस शहर की तरक्की शार्की समय में बहुत हुयी थी और आस आप का इलाका या तो शार्की समय में वजूद में आया या  कुछ तुग़लक के समय में आबाद हुआ | सूफियों का आगमन जौनपुर और आस पास के इलाकों में शार्की  समय से ही शुरू हो गया था जो अधिकतर इरान से आये थे और तैमूर लंग के ज़ुल्म से बचते हुए शार्की राज्य में इन्होने पनाह ली | आज भी इस सूफियों की यादें जौनपुर से बिहार तक क़ब्रों और मजारों के रूप में मौजूद हैं |

लेखक असद जफ़र 
यहाँ की कुछ मशहूर हस्तियों में सैयद मोहम्मद जाफ़र मरहूम जो गांधीवादी थे और जिन्हीने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के साथ फॉरवर्ड ब्लॉक को स्थापित किया था का नाम हमेशा याद किया जाता रहेगा | आज राजनीति में सक्रिय जनाब सिराज मेहदी भी इसी गाव से ताल्लुक रखते हैं | जनाब असद जाफर और उनके भाई जिया जाफर जो सैयद मोहम्मद जाफ़र मरहूम के भतीजे हैं आज दुनिया में नाम पैदा कर रहे हैं और अपने वतन जौनपुर को विश्वपटल पे लाने की कोशिश में लगे हुए हैं |



हमारे मित्र और कलांपुर निवासी जनाब असद जफ़र साहब ने मुझे कलांपुर का इतिहास भेजा जिसके लिए मैं दिल से उनका आभारी हूँ | आप भी जानिये कलांपुर का इतिहास असद जफ़र की ज़बानी |


उत्तर प्रदेश की राजधानी से २०० किलोमीटर की दुरी पर एक गांव जिसने हिंदुस्तान की आज़ादी में एक महत्पूर्ण योगदान किया तथा संविधान के लिखे जाने में भागीदारी सराहनीय है। यह मेरा गांव है उसका नाम कलानपुर है और वह ज़िला जौनपुर ब्लॉक - खेतासराय में स्थीत है। यह मुख्यता शिया मुस्लमान बहुल गांव है जहाँ सैकड़ो सालो से भैस/गाय नही काटी गयी, कोई शराब की दुकान नही है साक्षरता १००% है। मुस्लिम परिवार मुहर्रम के शुरुआती १० दिनों में दुनिया के तमाम मुल्को से एकत्रित होते है फिर अपनी नौकरी/कारोबार पर वापस हो जाते है और ११ महीने २० दिन उनके घरो और खेतो की देखभाल इस गांव में रहने वाले दलित और दुसरी गैर-मुस्लिम लोगो के ज़िम्मे होती है। गज़ब का भाईचारा बेमिसाल मुहब्बत जो आज के नफरत भरे राजनीतिक परिवेश में अपवाद लगता है।


कलांपुर तहसील शाहगंज ज़िला जौनपुर का एक गॉव जिसका इतिहास बहुत रोचक है मेरी बहन नाहीद वर्मा में सन १९७३ में जब गांव के बारे में एक शोध किया और इस सिलसिले में गांव के कुछ विद्वानों से बात की तो पता चला कि कलाँपुर का इतिहास मोहम्मद बिन तुग़लक़ के आगमन से जुड़ता है। कहते है तुग़लक़ के साथ एक महान सूफ़ी भी भारत आये थे और उस समय कलाँपुर पर राजभर का शासन था और राजभर के नौयते पर सूफ़ी कलाँ ने कलाँपुर में बसने का फैसला किया।


सूफी कलाँ पर्सिया के एक छोटे से गॉव के रहने वाले थे और शायद बानी-उम्मिया जो की शिया विरोधी था उससे अपनी जान को खतरा देख वो भारत आ गये थे। उस समय कलाँपुर जंगल हुआ करता था और राजभर के प्रेम ने उन्हें अपनी तमाम उम्र यही रहने के लिये विवश किया। शाह सयेद कलाँ के वंशज भी कलाँपुर में ही बस गये। कहते है उनके बेटे सयेद ताहा और सयेद मीर उम्मे जरी मशहुर सुलेखक थे जो कलाँपुर में आबाद हो गये। सयेद मीर जरी के पाँच बेटे थे १. मीर मोहम्मद अली २. मीर तसद्दुक अली ३. मीर अली नक़ी ४. मीर तुफैल अली ५. मीर अली हुसैन। इन पाचो बेटो की नस्ल कलाँपुर की शिया आबादी का मुख्य कारण रही और कलाँपुर की गैर-मुस्लिम आबादी में अक्सरियत दलित और भर (एक जाति जो कृषि प्रधान है) की रही। विकास और समय के साथ अन्य जातीय दूसरे गॉव से आकर यहाँ बस्ती गयी जैसे तेली, लुहार, कुम्हार और फूलो का काम करने वाले। इस तरह गांव अपने आप में स्व-निर्भर होता गया, यही सामाजिक संरचना आज भी देखी जा सकती है। कलाँपुर के मुख्य विशेषता यह रही की मिया लोगो ने अन्य जातियों का सदा की सम्मान किया और इतिहास में किसी भी प्रकार के उत्पीड़ण का कोई उद्धरण समान्यता नही मिलता। मोहर्रम यहाँ बड़ी श्रदा के साथ मनाया जाता है जो बिना गैर-मुस्लमान आबादी के सहयोग के मुमकिन नही हो सकता गांव की गैर-मुस्लिम आबादी को ईमाम साहेब (ईमाम हुसैन) से काफी उम्मीदे रहती है वो उनकी सारी मुरादे पुरी करते है। शिया मुसलमानो की अनदेखी और व्यवहार से गैर-मुस्लमान आबादी मोहर्रम से कुछ वर्ष दुर रही मगर ईमाम हुसैन से दुरी उन्हें वापस आने के लिये प्रेरणास्रोत बनी और आज भी उनकी बड़ी संख्या ईमाम हुसैन की आखरी विदाई को ग़मगीन बनाने में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करती है।


कलांपुर का मशहूर इमामबाड़ा 
कलाँपुर पहली बार चर्चा में १८५७ में आया जब अँगरेज़ हुकुमरानों ने ग़दर को कुचलने के लिये नागरा के तहसीलदार मीर सुब्हान अली, सब-इंस्पेक्टर हाजी मीर आबिद हुसैन शैख़ मोहम्मद मेहंदी को ग़दर कुचलने और अँगरेज़ हुकुमत को सहयोग करने के एवज़ में काफी ईनाम और ज़मीन दी। इसी के साथ गाँधीवाद जो व्याप्त था अदृष्‍ट प्रभाव भी दिखने लगा था उसकी अगुवाई स्वर्गीय सयेद मोहम्मद जाफ़र कर रहे थे जो इसी गॉव से सम्बन्ध रखते थे और मेरे बड़े अब्बा थे और परिवार के दबाव को दरकिनार कर वह स्वन्त्रता संग्राम में पुरी तरह सक्रीय भूमिका निभा रहे थे।

बाबा साहब  आंबेडकर 
यहाँ बताना आवश्यक होगा की स्वर्गीय सयैद मोहम्मद जाफ़र के पिता यानि मेरे दादा तहसीलदार थे और उनको यह घोषणा करनी पड़ी की उनका अपने पुत्र से कोई सम्बन्ध नही है कारण पारिवारिक ज़िम्मेदारिया खुल कर अपने पुत्र का समर्थन करने से रोकती रही। सन १९३०अन्तरिम सरकार का गठन होना था और खुटहन निर्वाचन-क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार स्वर्गीय केशव देव मालवीय मैदान में थे मुक़ामी ज़म्मीदार उनके विरोध में थे और क्षेत्र के लोगो पर उनका काफी प्रभाव था स्वर्गीय मोहम्मद जाफ़र ने अपने काम और गांधीवादी विचारधारा के प्रचार और प्रसार के बल पर स्वर्गीय श्री मालवीय को विजय दिलाई। इसी कलाँपुर के एक किसान जिसका नाम पालारू था यूनियन जैक को उतार कर हिन्दुस्तान के झण्डे को लहरा कर गॉव के लिये एक मिसाल बना। आगे चल कर स्वर्गीय सयैद मोहम्मद जाफ़र ने नेता सुभाष चन्द्र बोस के साथ मिल फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया।



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ये है गउरा बादशाहपुर का इतिहास और उस से जुडी कहानियाँ |

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जौनपुर शहर के साथ साथ इस बार आस पास के गाँव का रुख किया मैंने और कुछ गाँव की तसवीरें वहाँ का रहन सहन वहाँ का इतिहास सब कैमरे में क़ैद करता रहा जिस से उन्हें आप तक पहुंचा सकूँ | मछलीशहर के बाद जा पहुंचा जौनपुर और आज़मगढ़ के बॉर्डर पे बसे गाँव गौरा बादशाहपुर जिसका पुराना नाम गौरा था और औरंगज़ेब के वहाँ आ के जाने के बाद उसका नाम गौरा बादशाहपुर पड़ गया |
कर्बला जो aurnagzeb के दौर में बनी 

अभी जो इतिहास गौरा बादशाहपुर का बताने जा रहा हूँ वो वहाँ के रहने वालों की ज़बानी सुना हुआ  इतिहास है जो इतिहास की किताबों से अलग हो सकता है | वहाँ पे मुझे लगभग ३०० वर्ष पुराने या कह लें मुग़ल दौर के बने मस्जिद और कर्बला मिली और कुछ पुराने मंदिर मिले जो पुराने तो हैं लेकिन उनसे जुडी किवदंतियां बताती हैं की उसी गाँव के कुछ बाबा और संतों की याद में या उनके द्वारा बनवाए गए मंदिर है जिनका अधिक इतिहास वहाँ के लोग नहीं जानते |

वहाँ के इतिहास की तलाश में मैं जा पहुंचा कैसर अब्बास रिज़वी साहब के घर जिनके अनुसार उनका घराना यहाँ औरंगज़ेब से  समय से यहाँ रह रहा है |  उनका कहना है की उनके पुरखे सैयेद नूरुल्लाह जो औरंगज़ेब के किसी बड़े ओहदेदार के भाई था नाराज़गी में जौनपुर के गौरा गाँव में आ गए जिन्हें तलाशते हुए उनके भाई और औरंगज़ेब दोनों का आना यहाँ हुआ | 

सैयेद नूरुल्लाह  एक पहुंचे हुए संत थे जिन्होंने यहाँ आने के बाद यहाँ से जाना स्वीकार नहीं किया तो औरंगज़ेब ने उन्हें यहाँ पे ५७९ बीघा जमीन दे दी और वो यही बस गए | यहाँ बसने के बाद उन्होंने यहाँ कर्बला और मस्जिद बनवाई जो अभी मौजूद है | उसी समय से यहाँ का नाम गौरा से गौरा बादशाहपुर पड़ गया |
Qabr Syed Noorullah 

सैयेद नूरुल्लाह साहब की कब्र वहीँ उनके घर के पास जिसे बमैला भी कहा जाता है मौजूद है और वहाँ लोग मुरादें मांगते और चादरें चढाते हैं |

कैसर अब्बास रिज़वी साहब के अनुसार ५७९ बीघा ज़मीन देने का औरंगज़ेब का फरमान आज भी उनके घराने में मौजूद है |
More than 250 years old Shiv mandir

गौरा बादशाहपुर की कर्बला के ही पास में एक तालाब और मंदिर है जो उसी दौर का बताया जाता है जिसके इतिहास में किसी नागा बाबा का ज़िक्र आता है लेकिन मंदिर शिव मंदिर है जहां तलब और मंदिर का द्रश्य बहुत से सुंदर दिखता है |
Eidgaah build 300 years back
गौरा बादशाहपुर का इतिहास  वहां के लोगों की ज़बानी 
क़ब्र सय्यद नूरुल्लाह



बौध समय के मछली शहर का नाम मछिका खंड था |

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आज मछलीशहर की तरफ रुख किया कुछ वहाँ के समाज और वहाँ के इतिहास की जानकरी समझने के लिए और वहाँ के लोगों से मिलते मिलाते इस बात का विशवास हो गया की मछलीशहर एक ऐतिहासिक जगह है जिसके तार बौध समाज से जुड़े हैं |

लेकिन वहाँ के  लोगों से जब पुछा तो लगा की उनकी  बातों में सत्यता कम और किवदंतियां अधिक पायी गयी जैसा की हमारे समाज में हर जगह देखा जा सकता है |वहाँ के एक ज्ञानी महराज ने बताया की इसका पुराना नाम मझले शहर था | यह सत्य नहीं क्यूँ की इसका ज़िक्र इतिहास में तो मैंने आज तक नहीं देखा |
मछलीशहर में लोगों से मिलते हुए |

जौनपुर से २० किलोमीटर दूर बसा शहर जिसे आज मछलीशहर के नाम से जाना जाता एक ऐतिहसिक शहर  है जिसके तार बोद्ध समाज से जुड़े हुए हैं | मछलीशहर आज जौनपुर जिले का हिस्सा है जिसका बौध समय में नाम मछिका खंड था और यह बौध मोंक और गौतम बुध के आने जाने वाला स्थान था और उन्हें बहुत प्रिय था |

यहाँ का इतहास भी जौनपुर की ही तरह शार्की समय और तुगलक समय से जुडा हुआ है और आज  भी उस समय के बने मस्जिदें जिन्हें शाही मस्जिद और जुमा मस्जिद के नाम से जाना जाता है  यहाँ अच्छी हालत में मौजूद हैं |


यहाँ सूफियों की आमद की निशानियाँ क़ब्रों और मजारों की शक्ल में मिला करती है |

यहाँ पे मुस्लिम समाज के शिया और सुन्नी दोनों मिल जुल के रहते हैं | इमामबाड़ा क़दीमी यहाँ है जिसमे रखी जारी बहुत मशहूर है और माना जाता है की इसी के नक़्शे पे जौनपुर का छोटा इमामबाड़ा बना है |

यहाँ के लोग और उनका समाज जौनपुर के समाज जैसा ही है लेकिन यहाँ के लोगों को रेलवे स्टेशन बनाने का  सपना जिसे पंडित जवाहर लाल नेहरु ने दिखाया आज  भी सपना ही बना हुआ है क्यूँ की यहाँ के लोगों को २०-२५ किलोमीटर जंघई स्टेशन से ट्रेन पकडनी पड़ती है | अधिकतर लोग छोटे सफ़र के लिए बसों का इस्तेमाल करते हैं |

मछलीशहर की कुछ तसवीरें जो वहाँ के समाज को दर्शा रही हैं |


Machhlishahr Diyawanath Mahadev Temple




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अंकित जायसवाल ने पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में गोल्ड मेडल हासिल किया |

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जिले के लाल  अंकित जायसवाल ने आज अपनी कड़ी मेहनत के बदौलत पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में गोल्ड मेडल हासिल किया है। हम आपको बताते चले कि अंकित के माता पिता को केवल साक्षर ही कहा जा सकता है। उनके घर के आसपास का मौहाल केवल व्यापारिक है। ऐसी स्थित पढ़ाई करके गोल्ड मेडल हासिल करना यह अंकित का कमाल ही कहा जायेगा।

नगर के नखास मोहल्ले के निवासी संजय कुमार जायसवाल एक छोटे व्यापारी है। वे अपनी एक छोटी सी दुकान से पूरे परिवार वालो का भरण पोषण करते है। उनके घर के आसपास मछली बेचने और धरिकारो का डेरा है। एक तरह से माना जाय कि यहां शिक्षा की रोशनी नाम मात्र है। इस माहौल उनका पुत्र अंकित जायसवाल मेहनत से पढ़ाई करते हुए आज पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट किया ही साथ में अपने विभाग में गोल्ड मेडलिस्ट भी बन गया। । 


आशा करता हूँ की  समाज के हित को देखते  हुए पत्रकार जगत को एक नयी दिशा अंकित जायसवाल देंगे|


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लाल दरवाज़ा हो या झंझरी मस्जिद जौनपुर में आपको हर जगह सुलेख कला के नमूने मिल जायेंगे |

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झंझरी  मस्जिद पे लिखी इबारत सुलेख की बेहतरीन मिसाल 

अकबर बादशाह के समय में सुलेख कला का प्रचलन सबसे अधिक था जो अंग्रेज़ों की हुकूमत के आते आते ख़त्म सा होने लगा । जौनपुर में शर्क़ी समय या मुग़ल समय की इमारतों में इस कला की सुंदरता आज भी देखने को मिल जाय करती है ।

लाल दरवाज़ा हो या झंझरी मस्जिद या  इमारतें  आपको हर जगह इस सुलेख कला के नमूने मिल जायेंगे ।

जौनपुर के आस पास जिन इलाक़ो में इस सुलेख कला पदार्पण हुआ वो जगहे थी कजगाओ और माहुल और इसका श्रेय जाता है कजगाँव के मौलाना गुलशन अली जो दीवान काशी नरेश भी थे और राजा इदारत जहाँ को जो जौनपुर की आज़ादी की लड़ाई जो १८५७ में हुयी उसके पहले शहीद थे । 
लाल दरवाज़े पे लिखी आयतल कुर्सी


जमैथा के खरबूजे में अब वो मिठास क्यूँ नहीं मिलती ?

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जमैथा के वे किसान जिन्हीने मुझे जानकारी दी |

गर्मियों के शुरू होते ही बाज़ारों मैं खुशबूदार खरबूजे दिखाई पड़ने लगते हैं. जौनपुर मैं जमैथा का खरबूजा बहुत ही मशहूर है जिसकी पहचान उसे झिल्के पे फैली हुई जाल हुआ करती हैं.यह फल विटामिन और मिनरल से भरपूर हुआ करता है ख़ास तौर पे विटामिन A और C. यह कब्ज़ को दूर करता है , चमड़े कि बीमारी का इलाज है, वज़न कम करने वालों के लिए वरदान है,नींद ना आने बीमारी जिसे हो उसको फायदा करता है और दिल के दौरे से बचाता है.


आज इस लाजवाब फल को प्रकृति की बुरी नजर लग गयी है। शायद यही वजह है कि अब न यहां के खरबूजे में वह पहले वाली मिठास रह गयी और न ही इसकी बआई के प्रति किसानों का कोई खास रुझान। पहले जहां एक दिन की पैदावार प्रति बीघा 8 मन हुआ करती थी, वहीं आज यह घटकर 3 मन के आस-पास पहुंच गयी है। बताते चलें कि वर्ष 1930 के आस-पास जब जनपद के सिरकोनी विकास खण्ड अंतर्गत जमैथा गांव के लोगों ने पहली बार खरबूजा की खेती की थी तो शायद यह सोचा भी नहीं रहा होगा कि उत्तर प्रदेश के पटल पर गांव की पहचान इसी फल से ही बनेगी। यह खरबूजा जनपद ही नहीं, बल्कि पूरे पूर्वांचल में निर्यात किया जाता है। इस फल के मिठास का असली राज का पता लगाने की कोशिश करें तो पायेंगे कि किसानों द्वारा बुआई में जैविक खादों का ज्यादातर इस्तेमाल करना है। गांव के बुजुर्ग किसानों का कहना है बोआई के पूर्व काश्तकार इन खाली पड़े खेतों में पशुओं के गोबर व मूत्र को जैविक खाद के रुप में इस्तेमाल करते हैं।

वहाँ के एक खरबूजे की खेती करने वाले किसान से पूछा की आज जमैथा के खरबूजे में वो मिठास क्यूँ नहीं आती तो जवाब था की पहले खेत में केवल एक फसल खरबूजे की पैदा की जाती थी आज लोग आलू और अन्य सब्जी भी बो लिया करते हैं और दुसरे जैविक खादों की जगह केमिकल वाली खाद इत्यादि के इस्तेमाल के कारन अब खरबूजों में वो मिठास नहीं मिला करती |

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जौनपुर के लगभग ३०० वर्ष पुराने बाबा बारी नाथ का मंदिर का इतिहास ||

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जौनपुर के लगभग ३०० वर्ष पुराने बाबा बारी नाथ का मंदिर का इतिहास



मुख्या द्वार मंदिर बाबा बारी नाथ |

 बाबा बारिनाथ का मंदिर इतिहासकारों के अनुसार लगभग ३०० वर्ष पुराना है | यह मंदिर उर्दू बाज़ार में स्थित है और इस दायरा कई बीघे में है | बाहर से देखने में आज यह उतना बड़ा मंदिर नहीं दीखता लेकिन प्रवेश द्वार से अन्दर जाने पे पता लगता है की यह कितना विशाल रहा होगा |

अंदरूनी भाग  बाबा बारिनाथ का मंदिर 
भीतर प्रवेश करने पे बायें हाथ पे पेड़ के नीचे बाबा बारिनाथ की संगमरमर की समाधी दर्शन करने वालों के लिए बनायी  गयी है जो देखने में बहुत ही सुंदर है लेकिन मूल समाधि अन्दर बनी एक कोठरी के अन्दर है |

बाबा बारी नाथ की संगमरमर की समाधी 

यहाँ शिव मंदिर, हनुमान मंदिर,काली मंदिर  और भैरव जी का मंदिर भी है | बाबा वर्षा नाथ की कुतिया एक तरफ है जिन्होंने ४३ वर्ष यहाँ समय गुज़ारा | यह मंदिर कन फटे बाबाओं की कड़ी समाधि के लिए भी मशहूर है जहां इनकी म्रत्यु के बाद इन्हें खड़े खड़े समाधी दे दी जाती थी |
शिव मंदिर 


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हिंदुस्तान में महिलाओं का नाम पुरुषों के पहले लेते हैं. प्रो सुंदर लाल

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हिंदुस्तान में महिलाओं का नाम पुरुषों के पहले लेते हैं.कुलपति प्रो सुंदर लाल
(News from the file 2013)

औरत  अपने  स्त्रित्व  को पहचाने:डॉ वंदना , औरतों को खुद अपने विकास के लिए आगे आना होगा:तमन्ना फरीदी


वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना द्वारा विश्व महिला दिवस के अवसर पर समय की दहलीज पर औरत विषयक विमर्श का आयोजन संकाय भवन के कांफ्रेंस हाल में किया गया।विमर्श मे वक्ताओं ने महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर जम कर चर्चा की। विमर्श मे बतौर मुख्य वक्ता लेखिका डॉ वंदना चौबे ने कहा कि आज औरत को दहलीज की जरुरत नहीं बल्कि महिलाओं के प्रति सोच बदलने की है।उन्होंने आह्वाहन किया कि औरत  अपने  स्त्रित्व  को पहचाने।आज समाज यहाँ तक की परिवार महिला मुद्दों को नजरंदाज करता हैं यह ठीक बात नहीं है।औरतों को पूरा जीने का हक़ हैं।पुरुषों को पहरेदार नहीं सह यात्री बनना होगा तब जाकर परिवर्तन होगा।उन्होंने कहा कि औरतों की संख्या भले ही राजनीति मे बढ़ रही हो लेकिन अधिकांश जगहों पर सञ्चालन पुरुषों के हाथ मे रहता हैं।इससे मजबूती नहीं आ सकती। विषय परिवर्तन करते हुए डॉ संजय श्रीवास्तव ने कहा कि मुक्ति के तलाश मे औरत को खुद आगे आना होगा।बंधन तोड़ कर निकलना होगा।आज की औरत अँधेरी सुरंग से निकलने का प्रयास कर रहीं है।निश्चित रूप से नया सवेरा आएगा जहाँ उसकी बात होगी।


बतौर विशिष्ट अतिथि लखनऊ की पत्रकार तमन्ना फरीदी ने कहा की हरदम पुरुषों का दोष दिया जाता है यह गलत है।भारतीय परंपरा मे महिलाओं को सदैव देवी के रूप मे पूजा जाता रहा हैं।औरतों को खुद अपने विकास के लिए आगे आना होगा किसी के साथ का इंतजार ना करें और संघर्ष करे।



अध्यक्षीय संबोधन मे कुलपति प्रो सुंदर लाल ने कहा कि हम महिलाओं का नाम पुरुषों के पहले लेते हैं राधे कृष्ण,उमा शंकर, सीता राम इसके उदहारण ने लेकिन कितना पग पग पर महिलाओं की उपेक्षा करते है यह सोचने वाली बात है।अगर कुछ करने का मन मे जज्बा हो तो आयु,धर्म, और पृष्ठभूमि  आड़े नहीं आती।


संकायाध्यक्ष डॉ अजय प्रताप सिंह ने कहा कि महिलाओं का कौशल विकास कर उसकी मानसिक स्थिति को बढ़ा सकते है।आत्म निर्भरता उसको आगे ले जायेगी।टी डी कॉलेज की डॉ वंदना दुबे ने कहा कि आज की महिला जिस दहलीज पर है वहा तक पहुचने पर उसे बहुत संघर्ष करना पड़ा है।


विमर्श के आयोजक कार्यक्रम समन्वयक डॉ एम हसीन खान ने  राष्ट्रीय सेवा योजना  के माध्यम से महिलाओं को मजबूती देने का विश्वास दिलाया।इसके साथ ही अतिथियों को धन्यवाद् ज्ञापित किया। कार्यक्रम का सञ्चालन डॉ मनोज मिश्र ने किया।


विज्ञान परिषद इलाहाबाद शताब्दी सम्मान डॉ अरविन्द मिश्र जी को|

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                  (News from the File Previously published on 27/04/2013)
विज्ञान परिषद, प्रयाग, इलाहाबाद की चर्चित संस्‍था है, जिसकी स्‍थापना 10 मार्च 1913 को हुई थी। इसके संस्‍थापक थे डॉ0 गंगानाथ झा (संस्‍कृत), प्रो0 सालिगराम भार्गव (भौतिकी), प्रो0 रामदास गौड़ (रसायन विज्ञान) तथा प्रो0 हमीदुद्दीन (अरबी-फारसी), जो अपने-अपने विषयों के विशेषज्ञ थे और जनसामान्‍य में विज्ञान व प्रोद्योगिकी के प्रचार-प्रसार तथा विज्ञान लोकप्रिय के लिए प्रयत्‍नशील थे।



विज्ञान को सरल भाषा में आम जन तक पहुंचाने के उद्देश्‍य से सन 1915 में विज्ञान परिषद ने 'विज्ञान'नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्‍भ किया, जिसका पहला अंक अप्रैल माह में प्रकाशित हुआ। इस प्रत्रिका के प्रथम सम्‍पादक का गौरव प्राप्‍त हुआ हिन्‍दी के उत्‍कृष्‍ट विद्वान पं0 श्रीधर पाठक को।



सन 1958 में विज्ञान परिषद से 'विज्ञान परिषद अनुसंधान पत्रिका'का प्रकाशन प्रारम्‍भ हुआ। इसे हिन्‍दी की प्रथम त्रैमासिक शोध पत्रिका के रूप में जाना जाता है। इस पत्रिका के बारे में कहा जाता है कि यह भारत की सभी प्रमुख सरकारी और अर्धसरकारी वैज्ञानिक संस्‍थाओं के अतिरिक विश्‍व के 25 देशों में प्रसारित होती है।



1913 से लेकर आजतक के अपने सफर में 'विज्ञान परिषद'प्रयाग ने 100 साल का सफर तय किया है। इस सफर को यादगार बनाने के उद्देश्‍य से पिछले दिनों इलाहाबाद में परिषद का शताब्‍दी समारोह मनाया गया, जिसका उद्घाटन देश के मुख्‍य वैज्ञानिक एवं पूर्व राष्‍ट्रपति डॉ0 ए0पी0जे0 अब्‍दुल कलाम ने किया था। उस अवसर पर परिषद ने भारत के विभिन्‍न भाषाओं के 50 लेखकों को शताब्‍दी सम्‍मान से विभूषित किया था। इस अवसर पर परिषद ने 300 पृष्‍ठों की 'शताब्‍दी वर्ष स्‍मारिका'का भी प्रकाशन किया था, जिसमें परिषद की विभिन्‍न गतिविधियों पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।

शताब्‍दी सम्‍मान के समापन के अवसर पर 27 अप्रैल 2013 को आयोजित कार्यक्रम में विज्ञान परिषद ने पुन: 02 दर्जन से अधिक विज्ञान लेखकों को उनकी सुदीर्घ सेवाओं के लिए सम्‍मानित किया।



आज विज्ञान परिषद इलाहाबाद के शताब्दी वर्ष के कार्यक्रमों का समापन समारोह था . इस अवसर पर विज्ञान संचार के क्षेत्र में सुदीर्घ सेवाओं के लिए शताब्दी सम्मान महामहिम राज्यपाल छत्तीसगढ़ श्री शेखर दत्त जी के कर कमलों से प्रदान किये गए | ख़ुशी की बात यह है कि जौनपुर जनपद निवासी डॉ अरविन्द मिश्रा को  भी पुरस्कृत किया गया |महामहिम   श्री शेखर दत्त जी  पूर्व रक्षा सचिव भी रहे हैं .यह सुखद संयोग है कि वर्तमान में माननीय मुख्य न्यायाधीश छत्तीसगढ़ श्री यतीन्द्र सिंह जी एवं महामहिम दोनों की विज्ञान कथाओं में विशेष रूचि है|

आप सभी डॉ अरविन्द मिश्रा  को उनके ब्लॉग पे पढ़ा करते हैं लेकिन यह बहुत ही कम लोग जानते हैं कि इनकी परवरिश कैसे परिवार में हुई.  डॉ अरविन्द मिश्रा जी का परिवार जौनपुर जनपद का चिकित्सा परिवार के रूप में जाना जाता है. इनके परिवार की चार पीढीयाँ चिकित्सा कर्म में पिछले सौ सालों से लगी है.आप के परदादा पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र,दादा पंडित उदरेश मिश्र पूर्वांचल के महान वैद्य थे.आपके चाचा भी जहाँ चिकित्सा कर्म से जुड़े हैं वहीं दूसरे चाचा डॉ सरोज कुमार मिश्र लम्बे समय तक नासा अमेरिका में उच्च पदस्त वैज्ञानिक थे और आज भी वे अपनेँ अनुसन्धान से भारत का नाम अमेरिका में रोशन कर रहे है|

डॉ अरविन्द मिश्रा जी के परिवार के बारे में और जानिए |

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