Quantcast
Channel: हमारा जौनपुर हमारा गौरव हमारी पहचान
Viewing all 2089 articles
Browse latest View live

जिलाधिकारी भानु चन्द्र गोस्वामी के अव्वाहन पे जौनपुर में मना ऐतिहासिक मतदाता दीपावली |

$
0
0

आज मतदाता दिवाली जैसा दृष्य घाटों पर दिखाई पड़ा

 Jaunpur


जौनपुर 2 फरवरी 2017 (सू0वि0)- मतदाताओं को जागरूक करने के लिए आज शाहीपुल से सद्भावनापुल के मध्य दोनो तरफ घाटों पर स्वयं सेवी संस्थाओं, शिक्षण संस्थाओं द्वारा दीपों को सजाया गया। जिला निर्वाचन अधिकारी भानुचन्द्र गोस्वामी ने मतदाता जागरूकता कार्यक्रम के अन्तर्गत गोमती नदी पर दीप सजाव महोत्सव में दीपदान कर शुभारंभ किया तथा नदी के दोनों तरफ जाकर अवलोकन भी किया। इस अवसर पर आकर्षक मतदाता जागरूकता रंगोली भी सजाई गई थी। इस कार्यक्रम में सहयोग प्रदान करने के लिए दीपों को आर्कषक ढंग से सजाकर मतदाताओं को जागरूक के लिए समस्त स्वयं सेवी संस्थाओं को बधाई दिया तथा उन्होंने सभी मतदाताओं से अपील किया कि 8 मार्च 2017 को अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य करें तथा मतदाताओं को भी जागरूक करते हुए उनको भी बताये कि मताधिकार आपका अधिकार है और इसका प्रयोग अवश्य करना चाहिए। जिला विद्यालय निरीक्षक भाष्कर मिश्र ने आये हुए मतदाताओं का आभार व्यक्त किया। 


इस अवसर पर जिला विद्यालय निरीक्षक भास्कर मिश्र, स्वीप प्रभारी संजय पाण्डेय, जनक कुमारी इं0का0 के प्रधानाचार्य डॉ0 जंगबहादुर सिंह, सभी खण्ड शिक्षाधिकारी ममता सरकार, आर.पी.यादव, राजेश गुप्ता, ईओ संजय शुक्ला, लायन्स क्लब मेन अध्यक्ष अजय आनन्द, सै. मो. मुस्तफा, लायन्स गोमती अध्यक्ष मनीष गुप्ता, जेसीआई क्लब से आलोक सेठ, जेसीआई चेतना से नीतू गुप्ता मेघना रस्तोगी,  रोटरी क्लब से आशीष, रविकांत, लायन्स क्लब सूरज अध्यक्ष संतोष साहू, रचना विशेष अध्यक्ष नसीम अख्तर, सद्भावना अध्यक्ष त्रिपुण्ड भाष्कर, विमला सिंह, लायन्स क्लब पवन अध्यक्ष सुरेन्द्र प्रधान, संजय सेठ जेब्रा, राकेश श्रीवास्तव व स्वच्छ गोमती अभियान के गौतम गुप्ता, दिनेश श्रीवास्तव आदि लोगो के विशेष सहयोग द्वारा कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। लगातार माइक से सजीव वर्णन ममता सरकार एवं मो0 मुस्तफा द्वारा किया गया। इस अवसर पर घाट पर मेले जैसा दृष्य रहा। सद्भावना एवं शाहीपुल को ईओ नगर पालिका संजय शुक्ला द्वारा विद्युत झालरों से सजाया गया था।  






 Admin and Founder 
S.M.Masoom
Cont:9452060283

अरे क्या आज भी कोई दीपावली है ?

उप जिला निर्वाचन अधिकारी जौनपुर श्री उमाकांत त्रिपाठी जी ने गाया मतदाता जागरूकता गीत |

$
0
0
ADM/उप जिला निर्वाचन अधिकारी जौनपुर श्री उमाकांत त्रिपाठी जी ने मतदाता जागरूकता कालर टयुन अपनी आवाज में गाया है जो बहुत जल्द आपको सुनने को मिलेगी और मतदान करने के लिए प्रेरित करेगी|

बस एक दिन का इंतज़ार और फिर आपके सामने होगा वो गीत जो बनेगा कॉलर ट्यून |

वोट करेगा जौनपुर के पेज पे सबसे पहले होगा यह गीत रिलीज़ |





 Admin and Founder 
S.M.Masoom
Cont:9452060283

वेबसाइट पर ‘लाइक’ के नाम पे 3700 करोड़ का घोटाला "लाइक स्कैम "

$
0
0

"लाइक पे मत जाओ अपनी अकल लगाओ "

सोशल मीडिया पे वेबसाइट पेज इत्यादि पे लाइक की बड़ी डिमांड है और हर कोई चाहता है की उसके पेज को ,उसके विडियो को अधिक से अधिक लोग लाइक करें जिस से वो यह बता सके की उसका पेज या उसका विडियो कितना पोपुलर है ? कभी लाइक से उस  पेज या विडियो की पॉपुलैरिटी को आंकना सही हुआ करता था लेकिन आज जो ३७०० करोड़ का घोटाला पकड़ा गया उसे देख के यह समझ में आता है की यह लाइक का खेल भी एक धोका है |

अब जब लाइक से ही किसी पेज या वायरल विडियो की पॉपुलैरिटी को आँका जाता है तो यह जालसाजों की नज़र से कैसे बच सकता था|

न्यूज 18 इंडियाके मुताबिक, उत्तर प्रदेश एसटीएफ ने सोशल ट्रेडिंग के नाम पर लगभग 3700 करोड़ रुपए के फर्जीवाड़े का खुलासा किया है. इस मामले में एसटीएफ ने कंपनी के मालिक अभिनव मित्तल सहित तीन लोगों को गिरफ्तार किया है. इसके साथ ही कंपनी का खाता भी सीज कर दिया है, जिसमें लगभग 500 करोड़ रुपए की राशि बताई जा रही है|

कंप्यूटर पर बैठे-बैठे बस क्लिक कर पैसा कमाइए. ऐसी स्कीम आपने भी सुनी होगी. पुलिस ने ऐसी ही स्कीम का भंडाफोड़ किया है कि जिसके जरिए लोगों को माउस से एक क्लिक से 5 रुपए और फुल टाइम धंधा कर हजारों रुपए कमाने का लालच देकर चूना लगाया जा रहा था. हैरानी की बात यह है कि इस कंपनी के ग्राहकों की संख्या 100-200 या फिर 1000-2000 नहीं, बल्कि साढ़े 6 लाख है|

जब ये स्कीम शुरु की गई तो शुरूआत में कुछ लोगों को पैसे वापस भी किये गए. जब लोगों के पास पैसे वापस आने लगे तो लोगों को लगा कि कंपनी फ्रॉड नहीं है. अब लोगों ने अपने जानने वालों को इस स्कीम के बारे में बताना शुरु किया. देखते ही देखते तकरीबन 7 लाख लोग इस कंपनी से जुड गए. शुरु में सबके पास पैसे आये. लेकिन धीरे-धीरे पैसे आने का सिलसिला बंद होने लगा.जब जांच की गई तो पता चला कि जो पेज लॉगिन के लिए दिया जाता था यो तो वो गलत यूआरएल होते थे या फिर आपस में मेंबर्स को ही एक दूसरे को लाइक करवा दिया जाता था. साल 2011 में कंपनी का सालाना टर्नओवर मात्र 1 लाख रुपये था और साल 2016 में ये टर्नओवर 37 अरब रुपये तक पहुंच गया|

अब अगर इंनके 6 लाख मेम्बर एक दुसरे का ही पेज लाइक कर दें तो कितने लाइक मिल जायेंगे आब खुद अंदाज़ लगा सकते हैं जबकि इनके पेज पे आने वाला कोई नहीं होगा सब फर्जी लाइक ही होंगे | इसी तरह अधिक लाइक के नाम पे लोगों को धोका दिया जाता है और यह भ्रम फैलाया जाता है की उनके विडियो और पेज को अधिक से अधिक लाइक करने वाले देखने वाले हैं |


बीबीसी पे पढ़िए अधिक डिटेल
इसे देख के कहना ही पड़ेगा "लाइक पे मत जाओ अपनी अकल लगाओ "



 Admin and Founder 
S.M.Masoom
Cont:9452060283

विश्व कैंसर दिवस पे जौनपुर के डॉक्टर्स और समाजसेवी संस्थाओं ने किया लोगों को जागरूक |

$
0
0

विश्व कैंसर दिवस पे जौनपुर के डॉक्टर्स और समाजसेवी संस्थाओं ने किया लोगों को जागरूक |

डॉ मैहर अब्बास जो जौनपुर के एक मशहूर ह्रदयरोग विशेषज्ञ हैं और हमारा जौनपुर सोशल वेलफेयर फाउंडेशन(हजौसोवेफा) के पैनल डॉक्टर हैं उन्हीने हमेशा से समाज को ह्रदय रोग, गुर्दा रोग और कैंसर इत्यादि बिमारियों के प्रति जागरूक करने का काम किया है |डॉ मैहर अब्बास  का आर बी मेमोरियल हॉस्पिटल के नाम से हॉस्पिटल अशोक  सिनेमा के पीछे है | अब विश्व कैंसर दिवस हो और डॉ मैहर अब्बास लोगों को जागरूक ना करें यह कैसे संभव है | आप भी सुनिए डॉ मैहर अब्बास का सदेश विश्व कैंसर दिवस के अवसर पे |



हमारा जौनपुर सोशल वेलफेयर फाउंडेशन (हजौसोवेफा )से जुड़े डेंटिस्ट डॉ  डा.गौरव प्रकाश मौर्य और डा. तुलिका मौर्या द्वारा उनके केयर डेंटल स्पेशियलिटी सेण्टर से भी लोगों को जागरूक किया गया |

विश्व कैंसर दिवस की पूर्व संध्या  पर भारत विकास परिषद द्वारा केयर डेण्टल स्पेशियलिटी सेण्टर रुहट्टा में गोष्ठी का आयोजन किया गया,जिसमें कैंसर के बढ़ते प्रकोप एंव रोकथाम पर विस्तृत चर्चा की गयी।

इस मौके पर दन्त रोग विशेषज्ञ डा.गौरव प्रकाश मौर्य ने बताया विश्व में प्रतिवर्ष 70 लाख लोग कैंसर के कारण मरते हैं,इनमें 30%मुंह के कैंसर के रोगी होते हैं, पूरे विश्व में 246 लाख लोग कैंसर से पीड़ित हैं।2020 तक कैंसर से मरने वालों का आंकड़ा 100लाख के आसपास पहुंच जाएगा।

 W.H.O.के दक्षिण पूर्वी सेल SEAR के अनुसार भारत में मुख कैंसर से करीब 4लाख लोगों की मृत्यु होती है।नेशनल कैंसर रजिस्ट्रेशन प्रोग्राम के हाल में लिए सर्वे के अनुसार भारत में 1लाख आबादी में 20 लोग मुंख के कैंसर से प्रभावित होते हैं।

  ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे GATS UP के अनुसार उत्तर प्रदेश में करीब 33.9%लोग तम्बाकू खाते हैं और 25.3% लोग बीड़ी एंव सिगरेट का उपयोग करते है,जिससे उनको विशेषत: मुंह  एंव गले के कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है।

वही डा. तुलिका मौर्या ने बताया कैंसर एक सामान्य रोग हो गया है,10 में सें एक भारतीय को कैंसर होने की संभावना रहती है जिसमें प्रमुख रूप से मुख कैंसर है,जो हमारे जनपद में बृहद रुप से पांव पसारे है। विशेषज्ञों का मानना है कि सभी प्रकार के कैंसरों में से 1/3 की रोकथाम की जा सकती है।कैंसर के अधिकांश मामले हमारे गलत जीवन शैली के कारण सामने आ रहे हैं। अगर हम सार्थक सुझाव पर अमल करें तो कैंसर को मात दे सकते हैं।विशेषज्ञों द्वारा शारीरिक जांच व संतुलित आहार हरी सब्जी,ताजे फल व योग व्यायाम को नियमित करने से कैंसर को दूर भगाया जा सकता है। गोष्ठी में उपस्थित लोगो ने शपथ लिया कि हम अपने आस पास के लोगों को कैंसर के प्रति जागरुक करेगें। अंत में परिषद के अध्यक्ष विक्रम कुमार गुप्त ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया |





भारत विकास परिषद एंव जेसीआई के संयुक्त त्वाधान में आज विश्व कैंसर दिवस पर कैंसर जागरूकता रैली निकाली गयी,जो नगर के ओलन्दगंज,शाहीपुल,चहारसू चौराहा,कोतवाली चौराहा,सुतहट्टी होते हुए भण्डारी स्टेशन तक गया। जिसमें कैंसर से बचाव के स्लोगन लिखे हुए तख्ती व बैनर से लोगो को जागरूक किया गया।

 इस मौके पर भाविप के अध्यक्ष विक्रम कुमार गुप्त ने बताया कि जनपद में कैंसर के रोगी बहुत हैं। संस्था द्वारा जनपद को कैंसर से बचाव के लिए लगातार लोगो को जागरुक किया जा रहा । कुछ लोगों ने दोहरा,गुटखा का सेवन बन्द भी कर दिया है।इस तरह के जागरूकता के कार्यक्रम लगातार संस्था के माध्यम से होता रहेगा।  वही जेसीआई अध्यक्ष आलोक सेठ  ने जनपद को कैंसर मुक्त बनाने में एकजुट होकर सहयोग की बात कहा।इस मुहिम मे हमलोग साथ मिलकर काम करेंगें।

कार्यक्रम के अन्त में सभी उपस्थित लोगों ने कैंसर जागरूकता में सहयोग करने का संकल्प भी लिया।
परिषद के अध्यक्ष विक्रम कुमार गुप्त ने सभी का आभार व्यक्त किया।
 जिसमें डा.प्रशान्त द्विवेदी,अवधेश गिरि,लोकेश कुमार,अमित निगम,कुंवर अरविन्द सिंह,शरद पटेल,अतुल जायसवाल,अवनीन्द्र तिवारी ,संदीप पाण्डेय,भृगुनाथ पाठक,सर्वेश जायसवाल,मनोज अग्रहरि,दिलीप जायसवाल,जितेन्द्र गुप्ता,राजकुमार जायसवाल,विवेक सिंह,रमेश श्रीवास्तव,नीरज श्रीवास्तव,मोहित शर्मा,संजय मौर्या,सतीश यादव,अजीत विश्वकर्मा,नवीन विश्वकर्मा,प्रवीन यादव आदि सैकड़ो लोग उपस्थित रहे।

ला. सैयेद मोहम्मद मुसतफा ने भी हमारा जौनपुर (हजौसोवेफा) के माध्यम से लोगों को जागरूक किया |


 Admin and Founder 
S.M.Masoom
Cont:9452060283

लखनऊ ब्लॉगर अस्सोसिअशन के अध्यक्ष सलीम खान की एस एम् मासूम से बात चीत |

$
0
0
जौनपुर सिटी -हमारा जौनपुर के संचालक ,लखनऊ ब्लॉगर अस्सोसिअशन के उपाध्यक्ष और जौनपुर  ब्लॉगर अस्सोसिअशन के संयोजक , सोशल मीडिया के गहरे जानकार श्री एस एम् मासूम जी  से कुछ सवाल और उनके जवाबात |--सलीम खान  ( अध्यक्ष  लखनऊ ब्लॉगर अस्सोसिअशन) ( Interview taken 2011)


सवाल-1 सलीम खान --अपने बारे में कुछ बताएं, मसलन बचपन, पढाई और किशोरावस्था के बारे में?

जवाब एस एम् मासूम :-मेरा जन्म उत्तेर प्रदेश के जौनपुर शहर मैं  २६ अगस्त  १९६१  को जौनपुर के मशहूर  ज़मींदार ज़ुल्क़दर बहादुर नासिर अली के परिवार मैं हुआ | पिताजी रेलवे मैं इंजीनिअर थे और लिखने पढने मैं बहुत रूचि  रखते थे. बचपन मज़े मैं बीता, पढना लिखना और समाज सेवा करना इसी मैं  समय गुज़र जाता था |  मैं ना तो कोई साहित्यकार हूँ और ना ही बनना चाहता हूँ. बस सामाजिक सरोकारों से जुड़ के समाज के लिए कुछ करता रहता हूँ | यही कारण है कि इस ब्लोगिंग मैं भी शोहरत के सस्ते हथकंडों से दूर रहता हूँ और ज़मीनी स्तर पे काम करने मैं अधिक रूचि रखता हूँ|

सवाल  -2 आप ने अपनी शिक्षा कहाँ से प्राप्त कि?

मैंने अपना पढ़ाई  का ज़माना लखनऊ और वाराणसी मैं गुज़ारा और विज्ञानं से स्नातक कि डिग्री लखनऊ विश्वविद्यालय से ली, कंप्यूटर,इन्टरनेट,वेबसाइट,हार्डवेयर ,सॉफ्टवेयर, इत्यादि का ज्ञान  स्वम  प्राप्त किया| 

सवाल-3--आपका व्यवसाय क्या है?

मैं बैंक में मेनेजर था २७ वर्ष काम करने के बाद इस नौकरी से मन ऊब गया और खुद का बिज़नस शुरू कर दिया | पत्रकारिता और सोशल मीडिया से भी जुड़ा हूँ लेकिन इसका इस्तेमाल सामाजिक सरोकारों से जुड़ के समाज की उन्नति के लिए करता हूँ |

सवाल--4-बचपन का कोई ऐसा क़िस्सा जो आज भी आपने ज़ेहन में कौंधता रहता है?

जी हाँ एक दोस्त कि याद नहीं जाती दिल से. मैं उस समय नवी मैं लखनऊ के जुबली कॉलेज मैं था और मेरा एक मित्र था पंकज रस्तोगी. हम दोनों फिल्म देखने गए रंगीला रतन . मध्यांतर मैं हम दोनों बाहर आये एक फ़कीर ने पैसा माँगा दुआ के साथ कि तुम्हारा भविष्य उज्जवल हो , पंकज के कहा अरे जाओ भाई कल किसने देखा है. हम यह शो ३-६ देख रहे थे.  शो ख़त्म होने के बाद हम अपने अपने घर आ गए|

रात मैं खबर आयी कि पंकज घर कि छत   से गिर गया और अस्पताल मैं है. सुबह पंकज के घर वाले मेरे पास आये क्योंकि पंकज बेहोशी मैं मेरा नाम ले के पुकार रहा था, मैं ११ बजे उसके पास गया जैसे ही उसने मुझे देखा एक बार मुस्कराया और दम तोड़ दिया.यह बात मुझे कभी नहीं भूलती. और यह भी कि फ़कीर को वापस ना लौटाओ और ना दो तो कोई उलटी बात ना बोलो| 

सवाल-5--आप कई वर्षों से लिख रहे  हैं, लेखन सम्बन्धी कोई ऐसा वाकिया जो भुलाये न भूलता हो, बताईये?

जैसा मैंने पहले भी कहा कि मैं कोई साहित्यकार नहीं. अंग्रेजी ब्लोगिंग मैं १० वर्षों से काम कर रहा हूँ २०१० मैं हिंदी ब्लोगिंग मैं क़दम रखा है. अभी भी हिंदी ब्लॉगर  कि ज़हनियत को समझने कि कोशिश कर रहा हूँ| 

सवाल—6 -ब्लॉगर कैसे बने ? आप ब्लॉग-लेखन कब से कर रहे  हैं और क्यूँ कर कर रहे  हैं?

अंग्रेजी मैं ब्लोगिंग तो मैं पिछले १०-१२ साल से कर रहा हूँ. हिंदी ब्लॉग जगत में मुझे इस्मत जैदी साहिबा २०१० में लाई और तभी से दोनों ब्लॉग जगत में काम कर रहा हूँ| मैंने ैंअमंका पैगाम नामक ब्लॉग बनाया जिसे पूरी दुनिया के ब्लॉग जगत का सहयग मिला और आज भी मैं अपने ब्लॉग एस एममासूम डॉट कॉम से  ही इंसानियत और एकता के लिए काम करता हूँ. अभी मुझे अपने वतन का क़र्ज़ भी उतारना  है और अब उसी के लिए सक्रिय हूँ. जौनपुर ब्लॉगर असोसिअशन बनाया और हिंदी  और  अंग्रेजी  मैं  जौनपुर की पहली ऐतिहासिक वेबसाइट बनायी   | मैं  डॉ मनोज मिश्रा , डॉ पवन मिश्र  जैसे जौनपुर के ब्लॉगर भाइयों का उनके सहयोग के लिए आभारी हूँ |

सवाल—7 -वर्तमान हिन्दी ब्लॉग-जगत में सामूहिक ब्लॉग की कितनी महत्ता है?

साझा ब्लॉग की महत्ता तो बहुत है लेकिन केवल उन्हीको जोड़ना चाहिए जो ब्लॉग मैं रूचि रखते हों और ब्लॉग को समय दे सकें|  साझा ब्लॉग हम वतनो को, या एक विचार वालों को एक साथ जोड़ता है. इस से अधिक और क्या चाहिए?

सवाल—8 -किन्ही ५  ब्लॉगर का नाम बताईये जिनसे आप प्रभावित हुए बिना नहीं रहे ?

वैसे तो कई हैं इस ब्लॉगजगत मैं जिनसे मैं बहुत ही अधिक प्रभावित हूँ लेकिन आप 5 नाम मांगे हैं तो मैं डॉ मनोज मिश्रा जी का नाम सबसे पहले लूँगा. एक सुलझा हुआ इंसान जिसने चुप चाप अपने वतन के लिए बहुत काम केवल अपने ब्लॉग से किया. दूसरा नाम जनाब जीशान जैदी का है , यह भी विज्ञानं के छेत्र मैं चुपचाप  अपना काम किया करते हैं और तीसरा नाम है हमारे कवि मित्र  कुंवर कुसुमेश जी का ,जिनकी तारीफ शब्दों मैं बयान नहीं कि जा सकती ,चौथा नाम है डॉ  पवन मिश्रा जी का ,गहराई मैं जाकर किसी भी विषय पे लिखते है और बेहतरीन लिखते हैं. पांचवां नाम है असद जाफर साहब का  , बेहतरीन लेखनी और उच्च विचार. यहाँ यह भी कहता चलूँ ऐसे मेरी लिस्ट मैं २०-२१ ब्लॉगर हैं और २ तो ऐसे हैं जिनसे मेरे विचार नहीं मिलते लेकिन उनकी लेखनी कि धार का मैं कायल हूँ|

सवाल—9 -अपने व्यक्तिगत ब्लॉग में लेखन का मुख्य विषय / मुद्दा क्या है?

मेरे व्यक्तिगत ब्लॉग का मुख्य विषय सामाजिक सरोकार और विश्व में  अमन और शांति के लिए काम करना है और मैं सामाजिक सरोकारों पे ही लिखता हूँ. भ्रष्ट समाज को बदलने कि कोशिश  करता हूँ बस|

सवाल—10 -आप कि नज़र मैं बड़ा ब्लॉगर कौन है?

बड़ा ब्लॉगर वही है जो शोहरत से , गन्दी राजनीती से दूर हट के समाज के लिए कुछ काम अपनी लेखनी का इस्तेमाल करते हुए  कर रहा है|

सवाल--11-आज कल बड़े बड़े उत्सव, महोत्सव , ब्लॉगर मीट हुआ करती हैं, इनाम बांटे जाते हैं. सब अपना अपना देखते हैं. आप को कैसा लगता है?



हर इंसान को यह अधिकार है कि वो कहीं भी कोई भी मीटिंग करे, उत्सव या महोत्सव करे, खुद को ही इनाम दे डाले या अपने दोस्तों को ही इनाम दे. दूसरों के अधिकार छेत्र में जा के मैं कुछ कहना ठीक नहीं समझता.  ब्लॉगजगत को इस से बहुत फाएदा होता नहीं दिखाई देता. हाँ आपस के रिश्ते कुछ ब्लॉगर के मज़बूत होते है यह एक अच्छी बात है और आशा है इन रिश्तों का वो सही इस्तेमाल करेंगे.

सवाल—12 -धार्मिक-उपदेश और उनको अपने जीवन में उतारना, आज के युग में कहाँ तक सही है?

धार्मिक उपदेश कि महत्ता हर धर्म कि किताबों मैं है. आज हम ना तो ईमानदारी और सदाचारी होना पसंद करते हैं और ना ही धार्मिक उपदेशों को सुन ना . यह हमारी कमी है ना कि किसी धर्म या धार्मिक उपदेशों की . धार्मिक उपदेश हमारे जीवन का आईना हैं , जिसे हमेशा देखते रहना चाहिए|

सवाल--13 -एक भारतीय महिला को कैसा होना चाहिए, कोई महिला ऐसी है जिसे आप आदर्श के रूप में प्रस्तुत कर सकें?

भारतीय महिला ? शायद सवाल यह सही है कि एक महिला को कैसा होना चाहिए? आज  के  युग मैं जहाँ आधुनिक महिला कम वस्त्र धारण कर के गर्व महसूस करती है ,इस विषय पे कुछ कहना  सही नहीं है. ब्लॉगजगत की  तस्वीरों से देखा जाए तो रेखा श्रीवास्तव जी को देख ख़ुशी होती है. आदर्श महिलाएं इस विश्व मैं बहुत सी गुज़री हैं.  जिनमें से जनाब ए मरियम ,और जनाब ए फातिमा (स.ए) का नाम मैं अवश्य लूँगा.

सवाल..14..आप को जौनपुर को विश्व से जोड़ने  का ख्याल कैसे आया?

अपने वतन जौनपुर की मुहब्बत का एहसास मुझे जौनपुर से दूर रहने पे हुआ और इसी  एहसास ने मुझे जौनपुर को विश्व से जोड़ने की  प्रेरणा दी. मैंने परदेस मैं कहीं कोई  जब अपने देस का मिल जाता है तो कितनी ख़ुशी होती है यह मुझ जैसा एक परदेसी ही बता सकता है. जब कभी वतन की याद आती तो यह ख्याल आता "ओ देश से आने वाले बता क्या अब भी वतन में वैसे ही सरमस्त नजारें होते हैं"



महावीर शर्मा जीकी कुछ पंकियां याद आ रही हैं की
जब वतन छोड़ा, सभी अपने पराए हो गए
आंधी कुछ ऐसी चली नक़्शे क़दम भी खो गए
खो गई वो सौंधि सौंधी देश की मिट्टी कहां ?
वो शबे-महताब दरिया के किनारे खो गए



सवाल--15-जौनपुर निवासियों के लिए कोई सन्देश?

जौनपुर निवासियों का अपने वतन से और वहां के लोगों से प्रेम  जग ज़ाहिर है. अपने शहर मैं ही रोज़गार   के अवसर तलाशें और इसके लिए सरकार पे दबाव बनाएं|  बिजली की व्यवस्था को सही करने और गोमती नदी के प्रदुषण को कम करने , जौनपुर को पर्यटन स्थल घोषित करने की मुहीम मिल जुल  के चलाएं| गंगा जमुनी संस्कृति के लिए मशहूर इस जौनपुर का नाम विश्व मैं ऊंचा उठाने मैं सकारात्मक सोंच रखते हुए एक दूसरे का सहयोग  दें.|

शार्की समय में हुआ जौनपुर में महान सूफी संतो और सादात का आगमन ।

$
0
0
शार्की  समय में हुआ जौनपुर में महान संतो का आगमन जिनकी नस्ले आज भी यहां रहती है ।  जौनपुर में इब्राहिम शार्की का नाम ,उसका इन्साफ और नेकदिली की बातें सुन के तैमूर के आक्रमण के कारण बहुत से अमीर ,विद्वान, प्रतिष्ठित व्यक्ति ,कलाकार जौनपुर में शरण लेने आने लगे । इब्राहिम शाह ने हर महान संतो, विद्वानो और कलाकारों को इज़्ज़त दी और पद,जागीर इत्यादि दे के सम्मानित किया और जौनपुर में बसाया ।

सय्यिद अली दाऊद की नस्लें
बहुत मशहूर है कि इब्राहिम शाह के दौर में ईद और बकरईद पे नौ सौ चौरासी विद्वानो की पालकियां निकला करती थी ।

जौनपुर में आने पे आपको दिखेगा की हर गली मोहल्ले में मकबरे और कब्रें भरी पडी हैं जिस से इसे कुछ लोग क़ब्रों और मकबरों का शहर भी कह देते हैं | इन मकबरों का कारन यही है की जब शार्की समय में नौ सौ से १४०० के बीच ग्यानी और संत आये तो जौनपुर की सुन्दरता और शांत वातावरण देख के यहीं बस गए और यही दफन हो गए और क़ब्रों और मकबरों के रूप में आज भी अपनी कहानियों में जीवित हैं | आज इन मकबरों और क़ब्रों पे उर्स लगा करता हैं, अप यह चिस्ती हों, शिराज़ी, हों ,शेख दीन्याल हों या सय्यद अली दावूद हों |

कुछ महान संतो के नाम इस प्रकार है ।


शेख वजीहुद्दीन अशरफ ,उस्मान शीराज़ी ,,सदर जहा अजमल,क़ाज़ी नसीरुद्दीन अजमल, क़ाज़ी शहाबुद्दीन मलिकुल उलेमा क़ाज़ी निजामुद्दीन कैक्लानी, मालिक अमदुल मुल्क बख्त्यार खान, दबीरुल मुल्क कैटलॉग खान, मालिक शुजाउल मुल्क मखदू ईसा ताज,शेख शम्सुल हक़ ,मखदूम शेख रुक्नुद्दीन, सुहरवर्दी, शेख जहांगीर, शेख हसन ताहिर,मखदूम सैय्यद अली दाऊद कुतुबुद्दीन, मखदूम शेख मुहम्मद इस्माइल ,शाह अजमेरी,ख्वाजा क़ुतुबुद्दीन ,ख्वाजा शेख अबु सईद चिस्ती ,मखदूम सैयद सदरुद्दीन, शाह सैय्यद ज़ाहिदी, मखदूम बंदगी शाह,साबित मदारी।, शेख सुलतान महमूद इत्यादि
       …। लेखक एस एम मासूम

सैय्यद अली दाऊद कुतुबुद्दीन की शान मे बना था लाल दरवाजा

उस्मान शिराज़ी की शान में बनी चार ऊँगली मस्जिद

सय्यद अली दाऊद की शान में बना लाल दरवाज़ा




For more Jaunpur History,Talents and Society


Subscribe at

Like us on Facebook

Follow us on Twitter

Video At

जौनपुर निवासी दीवान और सेक्रेटरी काशी नरेश अली जामिन की जीवनी पे लिखी गयी किताब |

$
0
0

काशी नरेश  महाराजा  विभूति नारायण के दीवान अली जामिन  की बेटी
रबाब जामिन मुझे किताब भेंट करते हुए |
जौनपुर का इतिहास अपने आपमें बहुत से रहस्यों को समेटे हुए है |  आज लखनऊ में मैंने  काशी नरेश  महाराजा  विभूति नारायण के दीवान अली जामिन जैदी की बेटी रबाब जामिन  से मुलाक़ात  की जिन्होंने अपने पिता अंतिम दीवान काशी नरेश खान बहादुर अली जामिन  के  जीवन पे एक किताब लिखी जिसका नाम है " A family Saga"जिसे उन्होंने  मुझे  भेंट किया क्यूँ की खान बहादुर  दीवान और काशी  नरेश अली जामिन  मेरी पत्नी के दादा (grand Father)  थे |  ... एस एम् मासूम





काशी नरेश के पहले दीवान गुलशन अली 
आज़ादी के पहले तक बनारस एक ऐसी रियासत रही है जहां हमेशा से जौनपुर की  सय्यद परिवार के दीवान रहे हैं | जिसमे पहले दीवान और प्रधान मंत्री बनारस एस्टेट के बने जौनपुर कजगांव निवासी सय्यद गुलशन अली और इनकी अहमियत केवल इसी बात से पता चलती है इतिहासकार सयेद नकी हसन अपनी किताब "My nostagic Journey"में लिखते हैं की जब मौलाना सय्यद गुलशन अली के देहांत की खबर उस समय के राजा बनारस इश्वरी प्रसाद नारायण सिंह ने सुनी तो उन्होंने अपना कीमती मुकुट उठा के ज़मीन पे फेंक  दिया और रोते हुए बोले आज मेरे पिता का देहांत हो गया |

महाराजा इश्वरी प्रसाद नारायण सिंह के बाद १८८९ में महराजा प्रभु नारण सिंह राजा बने और उसके बाद १९३१ में उनके देहांत के बाद आदित्य नारायण सिंह महाराजा बने | इसी के साथ साथ दीवान मौलाना गुलशन अली के बाद उनके बेटे  सैय्येद अली  मुहम्मद और उसके  बाद सय्यद मोहम्मद नजमुद्दीन दीवान बनारस स्टेट रहे |

रबाब जामिन बताती है की  महाराजा आदित्य नारायण के कोई पुत्र नहीं था इसलिए उन्होंने अपने ही परवार से सात साल का बच्चा गोद ले लिया था जो उनके देहांत के समय  बहुत छोटे थे  | महाराजा आदित्य नारायण सिंह १८३९ में   रुबाब जामिन के पिता जौनपुर निवासी खान बहादुर अली जामिन को  दीवान  काशी नरेश बना चुके  थे | अपने अंतिम समय में राजा आदित्य नारायण सिंह ने दीवान अली जामिन साहब को बुलाया और अपने १२ साल के पुत्र विभूति नारायण का हाथ उनके हाथ में दे दिया |


अंग्रेजों ने खान बहादुर अली जामिन  को बनारस एस्टेट का सेक्रेट्री बना दिया और जुलाई १९४७ में आजादी के बाद खान बहादुर अली जामिन  ने सत्ता विभूति नारायण  के हाथ  सौप दी  और  दीवान काशी नरेश का पद संभाल लिया | लेकिन १९४८ में सेहत की खराबी के कारण अवकाश प्राप्त कर के अपने वतन चले गए और इस प्रकार बनारस एस्टेट से सय्यद दीवान बनने का सिलसिला ख़त्म हुआ | दीवान काशी नरेश खान बहादुर अली जामिन का परिवार मुरादाबाद से होता हुआ कनाडा इत्यादि देश की तरफ रोज़गार के सिलसिले में चला गया लेकिन वे सभी  आज भी अपने वतन कजगांव जौनपुर से जुड़े हुए हैं |

काशी नरेश के अंतिम दीवान अली जामिन 
रुबाब जामिन हर साल सर्दियों में कजगांव जौनपुर आती है लेकिन अधिक समय लखनऊ में रहती है | उन्होंने मुलाक़ात में बताया की उनके पिता सय्यद  अली जामिन का जन्म सन १८८४ में हुआ जो जौनपुर  कजगांव के  रहने वाले थे | कजगांव  का पुराना नाम  सदात मसौंडा था | खान बहादुर अली जामिन उस घराने से ताल्लुक रखते थे जिसके पुरखे हमेशा से काशी नरेश के यहाँ उच्च पदों पे रहे और  बनारस स्टेट  के काम काज में अहम् भूमिका निभाते रहे थे |

रुबाब जामिन के पिता अंतिम दीवान काशी  नरेश का देहांत १  नवम्बर १९५५ में मुरादाबाद में हो गया और इसी के साथ बनारस स्टेट में जौनपुर के सय्यद मुस्लिम दीवान का अध्याय भी ख़त्म हो गया क्यूँ आजादी के बाद बनारस स्टेट भी उत्तर प्रदेश का हिस्सा बन चुका था |

रबाब जामिन अपनी किताब A Family Saga में लिखती हैं की 16 सितम्बर १९४८ को दीवान  काशी नरेश अली जामिन के त्यागपत्र देने के बाद हादी अखबार ने लिखा बनारस राज्य एक हिन्दू राज्य होने के बाद भी अधिकतर वहाँ के दीवान जौनपुर के सय्यिद हुआ करते थे जिनके बनारस स्टेट में बहुत अधिक अधिकार प्राप्त थे और सय्यद  अली जामिन  उनमे से अंतिम दीवान थे |

आज भी जौनपुर का यह सय्यिद ज़मींदार घराना जौनपुर के कजगांव में और पानदरीबा में रहता है जिसके अधिकतर लोग रोज़ी रोटी के सिलसिले में देश के बहार अन्य शहरों में और अन्य देशों में बस गए हैं | यह सभी लोग वर्ष में एक बार अपने वतन कजगांव और पान दरीबा जौनपुर  अवश्य आते हैं जहां उनका पुश्तैनी घर और कुछ रिश्तेदार रहा करते हैं |

Book  A family Saga

 अब जब भी रबाब जामिन लखनऊ और जौनपुर आती हैं तो उन्हें बहुत कुछ बदला बदला लगता है | न अब वो काशी के रजवाड़े रहे और न वो लोग जिन्हें रबाब जामिन खुद अपनी आँखों से देख चुकी हैं | अंतिम दीवान काशी नरेश की बेटी रबाब जामिन बताती हैं की एक बार ऐसा हुआ की  रामलीला का अवसर था जिसमे हाथी पे सबसे आगे सवारी महाराजा  विभूति नारायण की होनी चाहिए थी लेकिन वे उस समय अजमेर के मायो कॉलेज पे पढ़ रहे थे और उनकी अनुपस्थिति में सबसे बड़ी पोस्ट दीवान की थी और खान बहादुर अली जामिन को सबसे आगे हाथी पे बैठना था लेकिन वो भी उस दिन उपस्थिक नहीं हो सके तो  उन्हें दीवान कशी नरेश की पुत्री होने के कारण  बैठना बड़ा जबकि उनकी उम्र उस समय केवन सात साल की थी  |


 Facebook
उन्हें  अब तक याद है की महावत आया और हाथी से बोला बीबी को सलाम करों और हाथी ने गुटने पे बैठ के सूंड उठा के उनका माथा छु के सलाम किया और फिर उन्हें हाथी पे बिठाया गया और पूरी रामलीला में उनका हाथी सबसे आगे आगे चलता रहा और उन्हें वही इज्ज़त दी गयी जो महाराया या दीवान काशी  नरेश को दी जानी चाहिए थी जब की उनकी उम्र उस समय केवल सात साल की थी | उनके अनुसार उस बनारस में जहां कभी वो खुद रामलीला के समय हाथी पे बैठा के सबसे अधिक इज्ज़त पाती थीं वहाँ इस वर्ष उनके जाने पे कोई उन्हें पहचान ही नहीं सका |  उदास आँखों से रबाब जामिन बार बार  कहती हैं "ना  वो घर रहा न वो लोग"
.
खान बहादुर अली जामिन हुसैनाबाद ट्रस्ट से भी जुड़े थे और आज भी उनकी तस्वीर पिक्चर गल्लरी में लगी है |
..एस एम् मासूम

 Admin and Founder 
S.M.Masoom
Cont:9452060283

मर्सिया मीर अनीस का अंदाज़ और उनके जौनपुरी शागिर्द |

$
0
0
 ज़ुल्क़दर बहादुर नासिर अली और शागिर्द मीर अनीस मोहममद मोहसिन|
एक समय था जब जौनपुर में ज्ञान का समंदर बहता  था और हर छेत्र के ज्ञानी यहाँ बसते थे जिनके बारे में आज बहुत कम लोग जानते हैं | मेरी कोशिश यही रहती है की उन छुपे हुए खजाने को सामने लाया जाय जिस से दुनिया यह जान सके की जौनपुर आखिर है क्या जिससे यहाँ की धरोहरों को मिटने से बचाया  जा सके | हमारा खानदान जो जौनपुर के मशहूर ज़मींदार ज़ुल्क़दर बहादुर का खानदान कहा जाता है यह  मीर अनीसी अंदाज़ में मर्सिया पढने के लिए भी जाना जाता  है |


मीर अनीस का नाम तो सबने सुना है और उनके मर्सिये का मुकाबला आज तक कोई नहीं कर सका | मर्सिया शब्द अरबी मूल शब्द 'रिसा'से बना है जिसका अर्थ होता है किसी की मृत्यु पर विलाप करना और विशिष्ट रूप में कर्बला के मैदान में हज़रत मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन की शहादत के विषय लिखा जाता  रहा है | है।  लखनऊ ,कानपूर ,फैजाबाद और हैदराबाद में मीर अनीस की यादें आज भी मौजूद हैं  और इन्ही यादों में एक घराना जौनपुर का भी है जिसे ज़ुल्क़दर बहादुर सय्यद नासिर अली का घराना कहा जाता है |


 जिस समय हमारे दादा के दादा ज़ुल्क़दर बहादुर सय्यद नासिर अली (१८६८ ) डिप्टी कलेक्टर कानपुर थे उस समय उनके बेटे मुहम्मद मोहसिन ने मीर अनीस की शागिर्दी कर ली और इतने मशहूर,  शागिर्द हुए की मीर अनीस जो भी लिखते थे उसे अपने शागिर्द मुहम्मद मोहसिन जौनपुरी के पास अवश्य भेजते थे | मुहम्मद मोहसिन ने ४८ मर्सिये भी लिखे और अंदाज़ पढने का मीर अनीस वाला अपनाया जो आज तक इस खानदान में देखा जा सकता है | फिर इसी खानदान से मर्सिये मीर अनीस के अंदाज़ को जिंदा रखते बहुत से लोग मर्सिये में माहिर हुए जिनमे कुछ ख़ास नाम हैं | मोहम्मद मोहसिन (अव्वल)  के पुत्र  मोहम्मद  अहसन(अव्वल)  , हामिद हसन ,सय्यद मोहम्मद नासिर अली (दोउम) ,मोहम्मद मोहसिन (दोउम)मुहम्मद अहसन (दोउम) इत्यादि नाम मशहूर हैं | इन सभी के मर्सिये पढने की ख़ास बात यही है की इनका पढने का अंदाज़ वही है जो मीर अनीस के पढने का नदाज़ हुआ करता था |


मैंने अपने जीवन में ज़ुल्क़द्र (दोउम) नासिर अली को १८ सफ़र के रोज़ जौनपुर के हमारे घर ज़ुल्क़द्र मंजिल में मर्सिये ख्वानी का एहतेमाम करते और पढ़ते देखा है जिसमे हमारे घराने का हर फर्द मर्सिया पढ़ा करता था | सबसे पहले सबसे छोटा बच्चा पढता , फिर उसे बड़ा और अंत में मोहम्मद मोहसिन के बाद ज़ुल्क़द्र (दोउम) नासिर अली खुद पढ़ते थे | ये सारे बच्चे अपने दादा ज़ुल्क़द्र (दोउम) नासिर अली की निगरानी में मर्सिया सीखा और पढ़ा करते थे इसलिए इस खानदान का हर शख्स इस हुनर को जानता है लेकिन इसे पूरी तरह से ज़ुल्क़द्र मंजिल में रहने वाले सय्यद मोहम्मद अहसन ने अपनाया जो आज भी दूर शहरों में पढने जाया करते हैं |


मुहम्मद अहसन

इस घराने की सबसे अलग बात यह है की इस घराने ने  कभी  मर्सिया पढने के अपने इस हुनर को अपनी शोहरत का ज़रिया नहीं बनाया क्यूंकि हज़रत मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन की शहादत पे विलाप करने के लिए लिखा जाता है और इसको शोहरत के लिए इस्तेमाल उचित नहीं |









लेखक : सय्यद मोहम्मद मासूमघराना ज़ुल्क़दर बहादुर नासिर अली |


  मीर अनीस के घराने वाले बता  रहे हैं मीर अनीस के शागिर्द ज़ुल्क़दर  बहादुर नासिर अली जौनपुरी के घराने के बारे में |
Marsiya Khwani ka Jaunpur ke ghraane zulqdar se talluq --By Mohammad Ahsan



 Admin and Founder 
S.M.Masoom
Cont:9452060283

जौनपुर रियासत की स्थापना तीन नवंबर १७९७ में शियो लाल दुबे जी ने की थी |

$
0
0
मेरा ताल्लुक जौनपुर के मशहूर ज़मींदार ज़ुल्क़द्र खान बहादुर के घराने से होने के कारण ,बचपन से राजा जौनपुर के बारे में और उनके अपने घर आने जाने के बारे में सुना करता था लेकिन कभी राजा जौनपुर की हवेली की तरफ जाने का अवसर नहीं मिला था | इस बार सोंचा जौनपुर के इतिहास पे काम अधूरा रह जायगा यदि राजा जौनपुर के बारे में नहीं लिखा और यह सोंच के सुबह साढ़े नौ बजे हम लोग राजा जौनपुर के महल पहुँच गए लेकिन उनके मिलने का समय पहले से ना मालूम होने के कारण ११ बजे तक राजा साहब के बाहरी कमरे में इंतज़ार करना पड़ा |

राजा साहब करीब ११ बजे आये और अपने दफ्तर में उनसे बात चीत शुरू हुई | उन्होंने बताया की जौनपुर रियासत की स्थापना ०३/११/१७९७ में हुई और वो इस रियासत के १२ वें राजा है | राजा अवनींद्र दत्त से इस मुलाक़ात से जौनपुर रियासत की काफी जानकारी हासिल हुई और मैं खुद राजा अवनींद्र दत्त जी का उनके सहयोग के लिए आभारी हूँ |

जौनपुर रियासत की स्थापना तीन नवंबर १९९७ में शियो लाल दुबे जी ने की जो एक धनी बैंकर श्री मोती लाल दुबे के पुत्र थे | शिव लाल दुबे जी अमौली फतेहपुर के रहने वाले थे |१७९७ में उन्हें ताल्लुका बदलापुर “राजा बहादुर “ के खिताब के साथ मिला | उनकी म्रत्यु 90 वर्ष की आयु में सन १८३६ में हो गयी ,उस समय रायपुर राज्य आजमगढ़,बनारस,गोरखपुर,मिर्ज़ा पुर तक पहिल चुकी थी | राजा शिव लाल दत्त की म्रत्यु के बाद उनके पौत्र राजा राम गुलाम जी ने राज्य का काम काज संभाला जबकि उनके पिता राजा बाल दत्त जी अभी जिंदा थे |

राजा राम गुलाम जी की म्रत्यु सन १८४३ में हुई और उनके पिता राजा बाल दत्त ने राज्य की ज़िम्मेदारी संभल ली |रजा बाल दत्त के बाद उनके दुसरे पुत्र लछमन गुलाम राजा बने लेकिन उनकी कोई संतान न होने के कारण सन १८४५ में राजा बाल दत्त की पत्नी रानी तिलक कुंवर के साथ में राज पाट का काम आ गया |

१९१६ में राजा श्री कृष्ण दत्त १९४४ में राजा यद्वेंदर दत्त १९९९ में आज के राजा अवनींद्र दत्त इस राज्य की देख भाल कर रहे हैं |






 जौनपुर रियासत (स्थापना ०३/११/१७४७)

|


रजा शिव लाल दत्त पत्नी रानी खेम कुंवर और रानी राम कुंवर

जन्म १७४६ म्रत्यु २९/०१/१८३६- 90 वर्ष

|


राजा बाल दत्त पत्नी रानी तिलक कुंवर 

म्रत्यु १८४४

|

म्रत्यु १८४३

|

राजा लछमन गुलाम पत्नी रानी प्रेम कुंवर

म्रत्यु १८४५

|

राजा हरी गुलाम पत्नी रानी राम कुंवर

म्रत्यु १८५७

|

राजा शिव गुलाम पत्नी रानी जशोदा कुवर

म्रत्यु १८५८

|

राजा लछमी नारायण पत्नी गुलाब कुंवर

म्रत्यु १८७५

|

राजा हरिहर दत्त पत्नी रानी शाहोद्र कुंवर

म्रत्यु १८९२

|

राजा शंकर दत्त पत्नी रानी गुमानी कुंवर

म्रत्यु १८९७

|

राजा श्री कृष्ण दत्त पत्नी रानी इश्वरी कुंवर

जन्म १८९६ -म्रत्यु १९४४

|

राजा यादवेन्द्र दत्त पत्नी रानी दयावती कुंवर

जन्म १९१८ म्रत्यु १९९९

|



राजा अवनींद्र दत्त पत्नी रानी नीता कुंवर

जन्म १९४७ 



राजा जौनपुर का अतिथि गृह 


राजा हरिहर दत्त दुबे (रंगीन जौनपुरी) और उर्दू साहित्य की उन्नति

$
0
0

राजा हरिहर दत्त दुबे (रंगीन जौनपुरी) लेखक मोहम्मद इरफ़ान

उर्दू साहित्य की उन्नति मैं देश के प्रत्येक जाती के व्यक्तियों का विशेष योगदान रहा है. इसमें मुस्लिम कविगण और साहित्यकारों के अतिरिक्त ग़ैर मुस्लिम कविगण, लेखकों और साहित्यकारों और विवेचना कारो के वो महान कारनामे दर्ज हैं, जिसपे उर्दू साहित्य को गर्व है.

सरज़मीन ए शिराज़ ए हिंद को यह गर्व प्राप्त है की यहाँ भी फ़ारसी और उर्दू साहित्य की उन्नति मैं बिना भेड़ भाव धर्म और जाती प्रत्येक व्यक्ति सम्मानित रहा.इस कड़ी मैं "रंगीन जौनपुरी"का नाम सर्वप्रथम आता है.

राजा हरिहर दत्त दुबे (रंगीन जौनपुरी) राज परिवार से सम्बंधित थे.यूं तो उनके प्रारम्भिक जीवन के विषय मैं अधिक विवरण का ज्ञान नहीं है किन्तु कुछ स्थानों मैं उनके बारे मैं मिलता है.

रंगीन जौनपुरी, घुबार जौनपुरी के शिष्य थे.यह ना केवल अच्छे कवि थे बल्कि विद्या के प्रेमी भी थे.उनके दरबार से बहुत से कविगण हमेशा लाभ प्राप्त किया करते थे.यह अक्सर अपनी हवेली मैं महफ़िल और मुशेरा का आयोजन करते और स्थानीय लोगों के अलावा देश के नामवर उस्ताद कविओं को भी आमंत्रित करते.

राज्गीन जौनपुरी की कविता सरल एवं रमणीक होती थी .यमर गुजरने के साथ साथ इनके विचारों मैं भी ठहराव की स्थिति पैदा हुई और उन्होंने तसब्बुक जैसे संकीर्ण विषय को अपना लिया और उमर के इस पडाव पे आते ही राजपाट अपने छोटे भाई के हवाले करके दक्षिण की और चल पड़े और वान्हीन रहने लगे .रंगीन का देहांत वंही सन १८९२ ई ० मैं हुआ.

रंगीन का कलाम ज़माने की नाक़द्री के कारण अधिक सुरछित ना रह सका .केवल कुछ शेर और गलें ही प्राप्त हो सकीं हैं अब तक.

आज इस बात की आवश्यकता है की देशवासी इस महान सपूत के बारे मैं शोध करें ताकि जो गुमनामी के अँधेरे मैं लुप्त है उजागर हो सके.


राजा हरिहर दत्त दुबे (रंगीन जौनपुरी) की एक ग़ज़ल पेश है.



अदाओं मैं फिर  इस घर में वाह जानना आता है.

क़दम ले आरजू ए दिल कि साहिब ए खाना आता है.



वाह मस्त ए नाज़ बेखुद यूं सुए मैखाना आता है

बहकता लडखडाता झूमता  मस्ताना आता है.



खड़ा हूँ सर-ब-काफ कब से नहीं लगती गले आकर.

तेरी तलवार को भी नाज़े मशुकाना आता है.



असर बिंईये दिल का है ऐसा देख ए हरदम.

लबों तक सीने से नाला भी अब बेताबना आता है.



ना दिल जलने को जाए किस तरह इन शम्मा रूयों मैं.

हमेशा होके बेखुद शम्मा पर परवाना आता है.



रूखे  दिलकश पे बिखराए हुए जुल्फें वो कहते हैं.

यही है दाम जिसमें मुर्ग़े दिल बेदाना आता है.



दिले वहशी मुबारक तुझको सोने वक़्त जाग उठे .

तलब को तेरी उसके पास से परवाना आता है.



अदम के  हाल को पूछूँ मैं किस से दिल को हैरत है.

पलट कर उस तरफ से कोई भी आया ना आता है.



छलकते शीश ओ सागर भरी कश्ती के लिए साक़ी.

हमारे वास्ते मैखाने का मैखाना आता है.



पकड़ना हस्ग्र मैं कातिल का दामन बे झिझक बढ़ कर.

ये वक्ते इम्तिहाँ है हिम्मते मरदाना आता है.



यह जज्बे इश्क कामिल है कि बज्मे नाज़ से उठ कर .

हमारे  घर मैं ऐ रंगीन वाह बेताबना आता है.

१८५७ जनक्रांति के जौनपुर से पहले शहीद शहीद राजा इदारत जहां का भूला हुआ इतिहास |

$
0
0

जौनपुर का  १८ सितम्बर सन १८५७ जनक्रांति  का पहला शहीद राजा इदारत जहां| .....लेखक एस एम् मासूम

राजा इदारत जहां के पूर्वंज सैयद अहसन थे जो खुन्दमीर के नाम से जाने जाते थे और मुग़ल सम्राट हुमायूँ के साथ इरान से भारत आये | सैयद अहसन सम्राट हुमायूँ की सेना में सेनापति थे और इन्होने ने ही भारत में जहनिया खानदान की नीव अल्लाहाबाद के परगना कुसुम कदारी में डाली | बाद में अकबर बद्शान के ज़माने में यह आजमगढ़ के माहुल इलाके में बस गए जहां  इदारत जहां का जन्म हुआ था और उनकी पढ़ाई  और परवरिश उनके पिता मुबारक जहां की देख रेख में हुआ | राजा इदारत जहां अरबी ,फारसी ,हिंदी ,उर्दू,संस्कृत इत्यादि के अच्छे जानकार थे |

माहुल स्थित महल के खंडहर 
युद्ध कला में निपुण होने के कारन वे  अवध के नवाब की सेना में भतरी हो गए जहां उन्होने अपनी पकड़ मज़बूत कर ली और कई युद्ध में अंग्रेजों को मात दी | १५ नवम्बर १८५६ को अवध के नाजिम नज़र हुसैन ने इदारत जहां को जौनपुर का नायब नाजिम बना के भेजा | नायब  नाजिम होने के बाद राजा इदारत जहां ने मालगुजारी अपने राज्य की अंग्रेजों को ना भेज के अवध के नवाब बहादुरशाह ज़फर को भेजनी शुरू कर दी |

सन १८५७ में अवध के नवाब वाजिद अली शाह की पदोन्नति हुयी और अवध प्रांत अंग्रेज़ों के शाासन में शामिल हो गया इस घटना ने ताल्लुकेदारों,राजाओं और नवाबो को चिंतिति कर दिया और हर एक सोंचने लगा एक दिन उसके साथ भी ऐसा ही होगा ।  १८५७ ईस्वी में बांदा ने नवाब के यहां शादी के अवसर में एक मीटिंग राजाओं की हुयी जिसमे ये तय पाया गया की अंग्रेज़ों से बलपूर्वक लड़ा जाएगा और दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह ज़फर को  बादशाह स्वीकार कर लिया जाय ।

मुबारक पुर गभिरन के पास 
राजा इदारत जहां को जौनपुर ,आज़मगढ़ ,बनारस, बलिया, तथा मिर्ज़ापुर प्रबध के लिए सौंपा गया ।  जब अंग्रेज़ों ने राजा इदारत जहां से मालग़ुज़ारी मांगी तो उन्हने इंकार कर दिया और कहा हमने दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह ज़फर को  बादशाह स्वीकार कर लिया है और  से माल ग़ुज़ारी उन्ही को दी जाएगी ।

१८ सितम्बर सन १८५७ को कर्नल रिफ्टन को ये खबर लगी की आज़मगढ़ में कुछ लोगों ने आज़ादी का एलान कर दिया है तो उसने तुरंत कैप्टेन बाॅइलो को ११०० गोरखा फ़ौज इस बगावत के दमन के लिए साथ भेजी । इस बगावत का सेहरा जाता था सैयद इदारत जहां के सर जो पहले जौनपुर, आज़मगढ़,सुल्तानपुर,प्रतापगढ़ ,और फैज़ाबाद का उप प्रबंधक थे  ।

इस अस्वीक्रति पे अंग्रेज़ों ने जौनपुर के शाही क़िले पे जो राजा इदारत जहां की सत्ता का केंद्र था उसपे हमला कर दिया । राजा इदारत जहां उस समय चेहल्लुम के सिलसिले में मुबारकपुर गए हुए थे लेकिन दीवान महताब राय से अंग्रेजी फौज का सामना हो गया जो बहुत बहादुरी से लड़े लेकिन बाद में क़ैद कर लिए गए । इस झड़प में बहुत से लोग शहीद  हुए जिनकी क़ब्रें आज भी क़िले में मिलती हैं । शाही क़िले को इस झड़प में बहुत नुकसान हुआ ।


महताब राय ने अंग्रेज़ो से कहा की उनके हाथ   में कुछ नहीं है और राजा इदारत जहां मुबारकपुर गए हुए हैं आप उनसे ही बात कर लें । अंग्रेज़ो ने २७ सितमबर को एक तोपखाना सहित फ़ौज मुबारकपुर  भेज दी । दीवान महताब राय के दरिया के रास्ते से मुबारकपुर ले जाय  गया । राजा इदारत जहां को जब ये मालूम हुआ तो उन्होंने ने अपने सैनिक और सेनापतियों अमर सिंह और मखदूम बक्श को मुकाबले के लिए भेजा जिसने दीवान महताब राय को आज़ाद करवा लिया ।

मुबारकपुर में ये युद्ध चार दिनों तक चला । राजा इदारत जहां के बेटे मुज़फ्फर जहां ने महल की तहसील और थाने पे क़ब्ज़ा कर लिया । राजा फ़साहत से तिघरा नामक स्थान पे झड़प हुयी और अंग्रेज़ो को लगा की लड़ के इन पे   तो उसने संधि प्रस्ताव रखा ।

 राजा फ़साहत भी संधि के लिए तत्पर हो गए और इस संधि पे प्रस्ताव ये था की राजा इदारत जहां का वो सब छेत्र वापस किया जाएगा जिनपे अंग्रेज़ो का क़ब्ज़ा है ।

राजा इदारत जहां भी  इस संधि के लिए तैयार हो गए और मोजीपुर क़िले और मुबारकपुर के मध्य एक आम के बाग़  में ज़ुहर  के बाद का समय संधि के  लिए तय पाया गया । जबकि राजा इदारत जहां  के दोनों  सेनाधिकारी  अमर सिंह और मखदूम बख्श इस संधि के खिलाफ थे । इसी कारण अमर सिंह मोजीपुर क़िले में और मखदून बख्श मुबारकपुर कोट में रुक गए ।

राजा इदारत जहां नमाज़ ज़ुहर के बाद अपने ४० लोगो और  फ़साहत जहां के साथ संधि के लिए आम  के बाग़ में पहुँच गए जहां अँगरेज़ कमांडर पहले से मौजूद था । उस कमांडर ने मक्के के खेत के पीछे अपनी फ़ौज को छुपा रखा था और राजा इदारत जहां के साथ धोका किया जिसमे राजा फ़साहत जहां भी शामिल था । राजा के सारे कर्मचारी वहीँ क़ैद कर के फांसी पे लटका दिए गए और राजा इदारत जहां वहाँ से निकलने की कोशिश में  थे लेकिन आगे जा के धोकेबाज़ पवई के राजा फ़साहत जहाँ के धोके के कारण पकड़े गए जिन्हे अंग्रेज़ों ने उस बाग़ से कुछ दूर एक स्थान पे फांसी दे दी और कई मील उनकी लाश को घुमाया गया और फिर एक आम के पेड़ से लटका दिया गया | इस प्रकार राजा इदारत जहां  १८५७ की क्रांति के पहले शहीद कहलाये ।  सत्य यही है की राजा इदारत जहां  ने १८५७ में अंग्रेज़ो से आज़ादी का बिगुल अपनी शहादत के साथ दिया । जब राजा इदारत जहां  को फांसी दी जा रही थी तो उन्होंने ने अपने धोकेबाज़ भाई फ़ज़ाहत जहां से कहा "भाई जान क्या कोई और  भी ख्वाहिश है "  ये अँगरेज़ तुम्हे कुछ नहीं देंगे ।


कब्र राजा इदारत जहां मुबारकपुर

राजा इदारत जहां  के सेनापति अमर सिंह ने मोजीपुर  के क़िले से युद्ध किया और शहीद  हो गए और इस प्रकार वो आज़ादी की जंग के दुसरे  सिपाही कहलाये ।मखदूम बख्श लड़ते लड़ते कहीं चुप गया और बच गया। इस लड़ाई में मोजीपुर क़िले और मुबारकपुर कोट को नुकसान  पहुंचा इसी लिए आज भी खंडहर की शक्ल में निशाँ मिला करते है ।

राजा फ़साहत जब अंग्रेज़ों से अपना इनाम मांगने गया तो अंग्रेज़ो ने उसे भी यह कह के फांसी दे दी की तुम जब अपने भाई के नहीं हुए तो हमारे वफादार कैसी हो सकते हो ।

माहुल में राजा मुज़फ्फर जो राजा इदारत जहां  का पुत्र था उसने बदला लेने के लिए १६००० सिपाहियों  बनायी जिसमे मखदूम बक्श भी शामिल थे । इस फ़ौज ने तिघरा नामक स्थान पे अंग्रेज़ो पे हमला कर दिया ।  अँगरेज़ फ़ौज घबरा गयी और बिखरने लगी । राजा मुज़फ्फर सन १८६० तक  अंग्रेज़ो से लड़ते रहे और अंत में आगरा के क़िले में क़ैद कर  दिए गए ।


 राजा मुज़फ्फर जहा ने क़ैद होने के पहले खानदान  की  महिलाओं को  खुरासो से नेपाल की तरफ भेज  दिया था और  जब वो आगरा से आज़ाद हुआ तो रुदौली में मीर हुसैन और शेर अली के यहां  शरण ली ।

मेरी मुलाक़ात जौनपुर में तनवीर शास्त्री जी से हुयी तो उन्होंने अपने भाई राजा अंजुम से मिलवाया और बताया की उनका ताल्लुक राजा इदारत जहां के परिवार से है | उनसे बातचीत आपके सामने है |

राजा अंजुम बताते हैं की उनके पूर्वंज सैयद अहसन  खुन्दमीर के पुत्र सय्यद जान अली युद्ध में विजय के बाद |"जान जहां "की पदवी दे के सम्मानित किया गया और उन्हें सैय्यद जान जहां कहा जाने लगा | उनके बाद दुबारा महाराजा अकबर ने उन्हें राजा का खिताब दिया जिसके बाद उन्हें राजा जान जहां अली कहा जाने लगा तभी से उनके वंशज अपने नाम के आगे राजा जहां लगाते हैं |


राजा इदारत जहां की फांसी की कहानी राजा अंजुम की ज़बानी 


सन १८५७ ई० की जन क्रांती मे जिनको फांसी दे दी और उनकी संपत्ती को ज़प्त कर लिया वास्तव में वही स्वतंत्रता की प्रथम क्रांतिकाारी और वीर सैनिक थे जिनपे आज भी भारतवर्ष को गर्व है ।

इन गौरवपूर्ण विभूतियों में राजा इदारत जहा , मेहदी हसन , राजा मुज़फ्फर ,दीवान अमर सिंह , ज़मींदार कुंवर पुर और इनके साथियो का नाम हमेशा अमर रहेगा ।

राजा इदारत जहां की संपत्ति पहले राजा बनारस, राजा जौनपुर और मौलवी करामात अली (मुल्ला टोला ) को दी गयी जिन्होंने इसे लेने से इंकार कर दिया । बाद में ये संपत्ति राय हींगन लाल, महेश नारायण, मीर रियायत अली ,मुंशी हैदर हुसैन, सैयद हसन, अली बख्श खा , मुंशी सफ़दर हुसैन ,मौलवी हसन अली ,मेरे मुहम्मद तक़ी ,अब्दुल मजीद मुंसिफ और मेरे असग़र अली को दे दी गयी ।  ..हवाला जौनपुर नामा
राजा अंजुम ने बताया की  उनके पिता मरहूम सयैद इबादत हुसैन तजम्मुल हुसैन  के बेटे थे |
राजा इदारत जहां के कुछ वंशज बडागांव छुप के गए और वहां से मुल्तान की तरफ निकल गए लेकिन कुछ उनके वंशज सिकंदर जहां , हैदर जहां रुदौली खेतासराय में और अटाला मस्जिद जौनपुर के पास राजा अंजुम जहां और तनवीर शास्त्री रहते हैं |

राजा अंजुम जहां और तनवीर शास्त्री 
राजा इदारत जहां शिया सय्यद थे और उन्होंने अपने समय में बहुत सी मस्जिदें और इमामबाड़े भी बनवाये सय्यद  अहसन अख्विंद मीर जो ईरान के शाह तह्मस्प की फ़ौज में थे हुमायूँ के साथ हिन्दुस्तान आये और जौनपुर में आकर बस गए | उन्होंने बहुत से इमामबाड़े बनवाये जो आज भी मौजूद हैं और उन्होंने ही इस अज़ादारी में "ज़ुल्जिनाह "निकालने का तरीका शामिल किया जो ईरान में पहले से ही मौजूद था | राजा इदारत जहां जो सय्यिद अहसन अख्विंद मीर की नस्ल से हैं उन्होंने भी मस्जिदों और इमाम बाड़ों की तामील करवायी | REF: ibid PG 50-53


......लेखक एस एम् मासूम 

 Admin and Owner
S.M.Masoom
Cont:9452060283

अपने वोट का सही उपयोग करते हुए अपने वतन जौनपुर और अपने भविष्य को सुन्दर बनाएं | एस एम् मासूम

$
0
0

इलेक्शन आते ही नेताओं के वादे और अन्य पार्टियों पे दोषारोपण का काम शुरू हो जाता है औr उसके बाद शुरू होता है २५-५० सूत्रीय वादों का प्रोग्राम और आश्चर्य तो तब होता है की रूलिंग पार्टी जिसने पिछले कई सैलून सत्ता में रहने के बाद कुछ नहीं कर सकी फिर से उन्ही पुराने वादों को ले के चुनाव के मैदान में आ जाती है |


जौनपुर ने बहुत से बड़े बड़े नेता देश को दिए हैं लेकिन दुःख की बात यह है की जौनपुर को इन नेताओं ने बहुत अधिक कुछ नहीं दिया | कभी शार्की राज्य की राजधानी रहा जौनपुर आज अपना अस्तित्व बचाने के लिए लड़ रहा है और इतने सुदर पर्यटक स्थल होने के बाद भी इसे पर्यटक छेत्र घोषित नहीं करवाया जा सका या कह लें किसी नेता ने इसकी चिंता ही नहीं की | सडकें ,होटल ,ट्रेन और बस की काम चलाऊ सुविधाओं से अधिक जौनपुर कुछ नहीं पा सका | ऐसे पर्यटक कैसे यहाँ आयेंगे और कैसे 2-४ दिन रुकेंगे |

आज रोज़ी रोटी की तलाश में अपने खेतों को सूना करके पलायन करते यह नौजवान देख के दुःख होता है | 

अधिकतर इलेक्शन में होता यह है की लोग अपना अपना फायदा देख वोट देने जाया करते हैं या बहुत से लोग अधिक दुखी हो के वोट देने जाते ही नहीं | 

अभी भी समय है वोट देने के अपने अधिकार का सही इस्तेमाल करें और अपने फायदे से पहले अपने वतन जौनपुर की तरक्की के बारे में सोचें | जौनपुर की तरक्की आपकी तरक्की है इसबात को गाँठ बाँध लें और अपने वोट का उपयोगकरते हुए अपना भविष्य सुन्दर बनाएं |

एस एम् मासूम 
इस पेज को  लाइक अवश्य करें 





 Admin and Founder 
S.M.Masoom
Cont:9452060283

एक पुलिसवाले का दर्द पुलिसवाले की ज़बानी |

$
0
0

कमलेश सिंह 
एक पुलिसवाले का दर्द 

मन तो मेरा भी करता है मॉर्निग वॉक पर जाऊं मैं,

सुबह सवेरे मालिश करके थोड़ी दंड लगाऊं मैं,

बूढ़ी मॉ के पास में बैठूं और पॉव दबाऊँ मैं

लेकिन मैं इतना भी नही कर पाता,

क्योंकि मैं वो मानव हूँ जो मानव नही समझा जाता
 ****************************************

हमने बर्थ डे की पिघली हुई मोमबत्तियॉ देखी है,

हमने पापा की राह तकती सूनी अंखियाँ देखी हैं,

हमने पिचके हुए रंगीन गुब्बारे देखे हैं,

पर बच्चे के हाथ से मैं केक नही खा पाता,
क्योंकि मैं वो मानव हूँ जो मानव नही समझा जाता 

****************************************

निज घर करके अंधेरा सबके दिये जलवाये हैं,

कहीं सजाया भोग कहीं गोवर्धन पुजवायें हैं,

और भाई बहिन को यमुना स्नान करवाये हैं,

पर तिलक बहिन का मेरे माथे तक नही आ पाता,
क्योंकि मैं वो मानव हूँ जो मानव नहीं समझा जाता
****************************************
हमने ईद दिवाली दशहरा खूब मनाये हैं,
रोज निकाले जुलूस और गुलाल रंग बरसाए हैं,
ईस्टर,किर्समस,वैलेंटाइन और फ्राइडे मनाये हैं,
पर मैं कोई होलीडे संडे नही मना पाता,
क्योंकि मैं वो मानव हूँ जो मानव नहीं समझा जाता
****************************************
जाम आपदा फायरिंग या विस्फोट पर आना है,
सब भागें दूर- दूर पर हमें उधर ही जाना है,
रोज रात में जागकर आप सबको सुलाना है,
पर मैं दिन में कभी दो घंटे नहीं सो पाता,
क्योंकि मैं वो मानव हूँ जो मानव नहीं समझा जाता
****************************************
जिन्हें अपनों ने ठुकराया वो सैकड़ो अपनाये हैं,
जिन्हें देखकर अपने भागे हमने वो भी दफनाये हैं,
कई कटे-फटे, जले- गले, अस्पताल पहुंचाए हैं,
कई चेहरों को देखकर मैं खाना नहीं खा पाता,
क्योंकि मैं भी मानव हूँ पर मानव नहीं समझा जाता
****************************************
घनी रात सुनसान राहों पर जब कोई जाता है,
हर पेड़ पौधा भी वहॉ चोर नजर आता है,
कड़कड़ाती ठंड में जब रास्ता भी सिकुड़ जाता है,
लेकिन पुलिया पर बैठा सिपाही फिर भी नही घबराता,
क्योंकि यह वो मानव है जो मानव नही समझा जाता
****************************************
नहीं चाहता मैं कोई सम्मान दिलवाया जाय,
नही चाहता हमें सिर आँखों पर बैठाया जाय,
चाहत है बस हफ्ते में एक छुट्टी मिल जाय,
कभी हमारी तरफ भी कोई प्यारी नजर उठ जाय,
हम भी मानव हैं और हमें बस मानव समझा जाय|

साभार कमलेश सिंह 

भारतीय सभ्यता और संस्कारों के खिलाफ मनाया जाने वाला यह पर्व अब जौनपुर में भी अपनी जडें जमाने लगा है |

$
0
0


वेलेंटाइन दिवस या संत वेलेंटाइन दिवस को प्रेम दिवस के रूप में पश्चिमी देशों के ७०% लोग १४ फरवरी  को मनाते  हैं जिसमें प्रेमी एक दूसरे के प्रति अपने प्रेम का इजहार वेलेंटाइन कार्ड भेजकर, फूल देकर, या मिठाई आदि देकर करते हैं| ये और बात  है की ये दिन शुरुआत में संत वेलेंटाइन की शहादत के कारण मनाया  जाता था और इसे "प्रेम दिवस"की जगह "शहीद  दिवस का दर्जा प्राप्त था |

 इस संत वेलेंटाइन दिवस के प्रेम दिवस में बदले जाने के पीछे कोई ठोस दलील की जगह दंतकथाओं को आधुनिक समय में जोड़ दिया गया। इनमें वेलेंटाइन को एक ऐसे पादरी के रूप में दिखाया गया जिसने रोमन सम्राट क्लोडिअस II के एक कानून को मानाने से इंकार कर दिया था जिसके अनुसार जवान लड़कों को शादी न करने का हुक्म दिया गया था। सम्राट ने संभवतः ऐसा अपनी सेना बढ़ाने के लिए किया होगा, उसका ये विश्वास रहा होगा की शादीशुदा लड़के अच्छे सिपाही नहीं होते हैं। पादरी वेलेंटाइन इस बीच चुपके से जवान लोगों की शादियाँ करवाया करते थे। जब क्लोडिअस को इस बारे में पता चला, उसने वेलेंटाइन को गिरफ्तार करवाकर जेल में फेंक दिया.इस सुन्दर दंत कथा को और अलंकृत करने के लिए कुछ अन्य किस्से जोड़े गए। मारे जाने से एक शाम पहले, उन्होंने पहला "वेलेंटाइन"स्वयं लिखा, उस युवती के नाम जिसे उनकी प्रेमिका माना जाता था। ये युवती जेलर की पुत्री थी जिसे उन्होंने ठीक किया था और बाद में मित्रता हो गयी थी। ये एक नोट था जिसमें लिखा हुआ था "तुम्हारे वेलेंटाइन के द्वारा"|

जैसे जैसे पश्चिमी सभ्यता का असर भारतवर्ष में होता गया ये वेलेंटाइन दिवस भी नौजवानों में  अधिक पहचाना जाने लगा और धीरे धीरे ये भारत में  भारतीय सभ्यता और पश्चिमी सभ्यता के टकराव दिवस के रूप में भी उभर के आया | भारत वर्ष में जहां एक तरफ नौजवान इस दिन का पूरा लुत्फ़ उठाते दिखते है तो दूसरी तरफ उन्ही नौजवान प्रेमियों के माता पिता अपने को इस सब से अनजान ज़ाहिर करते नज़र आया करते है | महानगरों में जहां पश्चिमी सभ्यता को अब लोगों ने  तरक्की के नाम पे कुबूल करना शुरू कर दिया है वहाँ इस दिवस का जोश अधिक देखा जाता है | 

भारतीय सभ्यता ,संस्कारों और धार्मिक कानून के खिलाफ मनाया जाने वाला यह पर्व अब जौनपुर जैसे छोटे शहरों में भी अपनी जडें जमाने लगा है और नौजवान अपने माता पिता और परिवार वालों से छुप  के इसका आनंद लेते पार्को, और पर्यटन स्थलों इत्यादि जगहों पे देखे जा सकते है |


आशा तो यही है की आगे आने वाले दिनों में इसे माता पिता और बुज़ुर्ग ना चाहते हुए भी मान्यता देने को मजबूर होंगे | अब इसे जौनपुर की तरक्क़ी कहा जाय या नौजवानों की आजादी ?

अब ये आजादी हो या तरक्की  या भारतीय सभ्यता और पश्चिमी सभ्यता का टकराव लेकिन इस दिवस पे  राजनीति करने वालों के छद्म जाल से इसे बचाए रखने में ही समाज की भलाई है |

लेखक एस एम् मासूम 


 Admin and Owner
S.M.Masoom
Cont:9452060283

पूर्व कुलपति प्रो .सुंदर लाल जी से बात चीत के कुछ अविस्मरणीय अंश |

$
0
0

कुलपति प्रो .सुंदर लाल जी से बात चीत के कुछ अविस्मरणीय अंश

May 2012 




 वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्विद्यालय का स्तर ऊंचा उठाने में कुलपति प्रो. सुंदर लाल जी का महत्वपूर्ण  योगदान रहा है. "बापू बाज़ार"कि शुरूआत “पूरब बानी ब्लॉग” , “स्वम सेवा प्रकल्प “ का गठन, वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्विद्यालय को ऑनलाइन फार्म की सुविधा इत्यादि जैसे उनके योगदान को कभी बुलाया नहीं जा सकता. कुलपति प्रो . सुंदर लाल जी की दीर्घायु कि दुआओं के साथ आप सभी के सामने हाज़िर है जौनपुर सिटी डाट इन के संचालक एस. एम. मासूम और कुलपति जी से बात चीत के कुछ अविस्मरणीय अंश .

 एस एम मासूम: आप अपने बारे मैं कुछ बताएं?

कुलपति प्रो. सुंदर लाल:मैं मूलरूप से मेरठ का रहने वाला हूं. मेरी शिक्षा भी वहीं से हुई | ग़रीब परिवार मैं जन्मा, नगरपालिका के स्कूलों से शिक्षा ग्रहण करता हुआ मेरठ विश्वविद्यालय से पी एच डी की और वंही प्रवक्ता के रूप में नौकरी शुरू की | उसके बाद आगरा विश्वविद्यालय से जुड़ा , प्रोफ़ेसर हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट से होता हुआ कुलपति के पद तक पहुंचा | २०१० में वहां से अवकाश ग्रहण किया और एक प्राइवेट संस्था में सीनिअर प्रोफ़ेसर के पद पे काम करने लगा | २१ दिसम्बर २०११ से वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्विद्यालय मैं कुलपति के पद पे  काम कर रहा हूं |

 एस एम मासूम: इन १५ महीनो के छोटे से कार्यकाल मैं आपने जो भी सुधार करने कि कोशिश कि  उसमें आपको कहाँ तक सफलता मिली

कुलपति प्रो. सुंदर लाल:हमारी मौजूदा शिक्षा प्रणाली में बहुत सारी  कमियां भी हैं और उनको दूर करने के लिए आप डंडा नहीं चला सकते | इस प्रणाली मैं पारदर्शिता से ही कुछ हद तक सुधार संभव नज़र आता है और इसके लिए मैं प्रयासरत हूं | इन्टरनेट से विश्वविध्यालय को जोड़ने , वेबसाईट पे परीक्षा फार्म और दूसरी जानकारियां उपलब्ध करवाने जैसी शुरूआत हो चुकी है | विश्विध्यालयों पे कुछ सरकार के बंधन  होते हैं और यूं. डी. सी. गाइड लाइन होती है उनको सामने रखते हुए जितना सुधार संभव हो सकता है करने कि कोशिश किया करता हूं |

 एस एम मासूम: आप ने बापू बाज़ार कि शिरुआत क़ी, इस बारे मैं कुछ जानकारी हम सभी को दें.|

कुलपति प्रो. सुंदर लाल:शिक्षा संस्थानों को समाज के साथ जोड़ने क़ी यह एक कोशिश है | जब मैं जौनपुर आया तो मैंने यहाँ पे ग़रीबी अधिक देखी, बूढ़े लोगों को नंगे पैर सड़कों पे चलते देखा ,बच्चों को फटे पुराने कपड़ों में देखा | वहीं दूसरी और ऐसी भी लोग मिले जिनके पास ५०-५० जोड़ी जूते हैं, इतने कपडे हैं क़ी एक दो बार से अधिक पहन भी नहीं पाते ऐसे मैं एक विचार आया क्यों ना उनसे मांग के जिनके पास अधिक हैं गरीबों को दिया  जाए और वो भी ऐसे क़ी उनके सम्मान को ठेस भी ना पहुंचे | और बस ऐसे ही बापू बाज़ार क़ी शुरुआत हो गयी | जब राष्ट्रीय सेवा योजना के कैडेट घर - घर जाकर इन सामानों को जुटाते  तो उनके मन में समाज के निर्बल लोगों के प्रति प्रेम और सम्मान आता है जो जीवनपर्यंत बना रहता है | एक तरफ छात्रों को समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी समझ आती है वही दूसरी तरफ गरीबों की सम्मान सहित सहायता हो जाती हैं | इसलिए बाज़ार में  वस्तुओं का प्रतीकात्मक दाम रखा जाता है | हमें जीवन में वस्तुओं का मूल्य समझना चाहिए | बहुत सारी वस्तुएं जो हमारे लिए उपयोगी नहीं होती हैं, वो दुसरे के लिए बहुमूल्य हो सकती हैं| इसलिए ये हमारी नैतिक रूप से जिम्मेदारी होती हैं कि हम इन वस्तुयों को जरूरतमंदों तक पहुचाएं |बापू बाज़ार के माध्यम से हम इसी काम को कर रहे हैं | जौनपुर,गाजीपुर,आज़मगढ़  और मऊ में लगे बापू बाज़ार में हजारों लोगों ने अब तक खरीदारी की  हैं | मजेदार बात तो ये होती हैं कि कुछ ही घंटो में बाज़ार का सारा सामान बिक जाता हैं. इनको बेचने के लिए खुद विभिन्न महाविद्यालय के छात्र - छात्राएं दुकानदार बन जाते हैं | इस बापू बाज़ार को मैं इतना आगे बढ़ाना चाहता हूं क़ी बड़े बड़े शोपिंग माल क़ी तरह गरीब लोग अपने लोगों में गर्व से कहें क़ी वो यह सामान बापू  बाज़ार से खरीद के लाये हैं | मानव और प्रकृति के संबंधों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि रोटी, कपड़ा और मकान तीनों की पूर्ति हमें प्रकृति से होती हैं |गाँधी जी ने कहा था प्रकृति से अपनी आवश्यकता भर ले और उसका तब तक प्रयोग करे जब तक उसका उपयोग हो सकता हैं | प्राकृतिक संसाधनों का पूरा प्रयोग हो इसलिए इस बाज़ार में इस्तेमालशुदा सामानों को लाया गया हैं |बापू बाजार के माध्यम से प्रकृति का सम्मान किया जा रहा |

एस एम मासूम:आपने वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय,जौनपुर का आधिकारिक ब्लॉग पूरब बानीशुरू किया, इसके बारे मैं हम सभी को कुछ बताएं |


 कुलपति प्रो. सुंदर लाल:पत्रकारिता विभाग और छात्रों के सहयोग से पूरब बानी ब्लॉग का बनना संभव हो सका | इसके द्वारा विश्वविद्यालय  से सबंधित खबरें, समय समय पे लोगों को दी जाती हैं | अब जल्द ही कम्युनिटी रेडियो भी शुरू करने जा रहे हैं | जिसके  माध्यम से  लोग एक दुसरे  से जुडें और यहाँ के इतिहास, संस्कृति और कलाओं के बारे मैं एक दुसरे  को बताएं. बुज़ुर्ग अपने अनुभव, इत्यादि दूसरों तक पहुंचा सकें |  
एस एम मासूम: क्या शिक्षा के व्यवसायी कारण के बारे मैं आप कुछ कहना चाहेंगे?


कुलपति प्रो. सुंदर लाल:शिक्षा का आज जो स्वरुप हो चुका है जिसे व्यवसायीकरण भी कहा जा सकता है इसके दो पहलू हैं | पहला तो यह क़ी इससे एक फायदा हुआ है और वो यह क़ी पहले ५-६ किलोमीटर पे स्कूल हुआ करते थे बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए दूर दूर जाना होता था | आज यह स्कूल, कॉलेज जगह जगह मिल जाएंगे | इस से शिक्षा का प्रसार अवश्य हुआ है लेकिन इसका वो स्वरुप नहीं रहा जिसकी कल्पना कभी  क़ी गयी थी | अब यह विध्यालय पढ़ने के लिए कम और धन अर्जित करने के लिए अधिक खोले जाते हैं जो क़ी एक चिंता का विषय है |


  एस एम मासूम: आज क़ी शिक्षा प्रणाली, किताबों के बढ़ते बोझ और पढ़ाई के बाद बेरोजगारी के विषय पे कुछ अपने विचार हम सभी के सामने रखें|


  कुलपति प्रो. सुंदर लाल: जैसा क़ी मैं पहले भी कह चुका हूं क़ी हमारी मौजूदा शिक्षा प्रणाली में बहुत सारी  कमियां भी हैं और उनको दूर करने के लिए आप डंडा नहीं चला सकते | इस प्रणाली मैं पारदर्शिता से ही कुछ हद तक सुधार संभव नज़र आता है | गाँधी जी का काहना था क़ी शिक्षा को जीवनयापन से अवश्य जुड़ा होना चाहिए जो आज  कल नहीं पाया जाता |  आज क़ी पढ़ाई इतना पैसा और समय खर्च करने के बावजूद नतीजे मैं बहुत कुछ छात्रों को नहीं दे पा रही है | आज पहले के मुकाबले शिक्षित अधिक हैं लेकिन बेरोजगारी बढ़ती जा रही है |   इसका हल यही है क़ी शिक्षा को जीवनयापन से जोड़ा जाए और विध्यालयों मैं ऐसे कोर्से शुरू किये जाएं जो क़ी छात्र को किसी भी स्तर पे पढ़ाई पूरा करके बाहर निकलने पे रोज़गार दिला सके |

  एस एम मासूम:: आज क़ी शिक्षा नौकर बनाती है मालिक नहीं. क्या यह कहना सही हैं?

  कुलपति प्रो. सुंदर लाल:आज यह सच है क़ी इस शिक्षा प्रणाली मैं सुधार क़ी आवश्यकता महसूस क़ी जा रही है लेकिन आज क़ी इस प्रणाली मैं भी ऐसे कोर्से मौजूद हैं जिनके द्वारा कोई भी छात्र अपना व्यवसाय शुरू कर सकता है | एक किसान यदि अपने बच्चे को आज MBA, BBA, MCA क़ी जगह  मsc(ag) phd (ag) करवाए तो देखिये वो कैसे अपनी ही ज़मीन पे काम करते हुई कितनी तरक्की  कर सकता है | इन संभावनाओं क़ी आज प्रचार करने क़ी आवश्यकता है.

  एस एम मासूम: कुछ विशाविध्यालयों का नाम अधिक होता है वहाँ से किये कोर्से क़ी अहमियत भी अधिक हुआ करती है  और कुछ क़ी कम. ऐसा क्यों है?

  कुलपति प्रो. सुंदर लाल:किसी भी विश्विद्यालय को सरकार क़ी तरफ से कितने  सहूलियतें मिलती हैं ,कितना अनुदान मिलता है,. फक्लिटी कैसी है, कैसे संसाधन उपलब्ध हैं ,सरकार से सालाना कितना धन मिलता है इन सभी बातों पे किसी भी विश्विद्यालय के या वहाँ पढाये जाते वाले कोर्से का स्तर तय होता है |  

एस एम मासूम: आपका प्रेरणा स्त्रोत ?

  कुलपति प्रो. सुंदर लाल:यह मेरा सौभाग्य रहा क़ी मुझे बेहरतीन शिक्षक मिले और वही मेरे प्रेरणा स्त्रोत भी रहे हैं. यह दुःख क़ी बात है क़ी आज ऐसे शिक्षकों क़ी भी कमी है  जो अपने छात्रों का सही मायने मैं मार्गदर्शन कर सकें |

  एस एम मासूम: आप अपना खाली समय कैसे गुजारते हैं?

  कुलपति प्रो. सुंदर लाल:कुछ ख़ास नहीं पढना लिखना और प्रकृति के बीच बाग मैं टहलना.

 एस एम मासूम: छात्रों को कोई सन्देश जो आप देना चाहें ? या शिक्षक से कुछ कहना चाहें |

  कुलपति प्रो. सुंदर लाल:मेहनत का कोई शार्टकट  नहीं है | छात्रों को अपने विचारों में पवित्रता लानी चाहिए | अच्छा उद्देश्य पवित्र विचार और मेहनत ही आप को सही मायने मैं कामयाबी दिला सकता है | आज समय की पुकार है कि शिक्षक अपनें तप बल  से विद्यार्थियों  को प्रेरणा  दें,ताकि विद्यार्थी उनका अनुसरण कर अपनी मंजिल पा सकें .गुरु -शिष्य परम्परा कलंकित न हो इसके लिए गुरुजनों को सक्रिय होना होगा .उन्होंने कहा  कि  जहाँ एक ओर विद्यार्थी    ज्ञान प्राप्ति के लिए संकुचित दृष्टिकोण अपना रहे हैं वहीं गुरुजन भी विद्यार्थियों के साथ उस तरह नहीं जुड़ पा  रहे  जैसे वे पहले जुड़ते थे.शिक्षक का  मतलब केवल किताबी ज्ञान देना भर नहीं है अपितु  उसे विद्यार्थियों  के चतुर्मुखी विकास के लिए सोचना होगा.उन्हें  अपनें ज्ञान का स्तर इतना बढ़ाना होगा ताकि उसके पांडित्य का प्रभाव विद्यार्थियों पर निश्चित रूप से पड़ सके क्योंकि आज का विद्यार्थी भी अब सजग और जागरूक है..उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को भी अपना ज्ञानचक्षु खुला  और भावनाओं को जिन्दा रखना होगा. आज इस पुनीत दिन हम सबको एक-दूसरे की बेहतरी और सम्मान के लिए संकल्पित होना होगा. इस ज्ञानवर्धक बात चीत को सुनें  
---------------अंत----------------

एस एम मासूम:इस बात चीत के बाद मुझे ऐसा महसूस हुआ क़ी मैं सही मायने मैं किसी महान इंसान के सामने बैठा हूं |एक  ऐसा इंसान जो समाज के लिए ,इंसानियत के लिए, ग़रीबों के लिए बहुत कुछ अपने जीवन में  करना चाहता है और कोशिश करता रहता है | कुलपति प्रो. सुंदर लाल जी के दिल मैं ग़रीबों के लिए हमदर्दी और छात्रों को सही राह दिखाने क़ी चाह मुझे साफ साफ़ दिखाई दे रही थी | यह कहना ग़लत नहीं होगा कि मैं गया था  वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्विद्यालय जौनपुर के कुलपति से मिलने लेकिन लौटा एक सही मायने मैं इंसान कहे जाने वाली शक्सियत से मिल कर, उनकी ज्ञान भरी बातों क़ी सुनहरी यादों  के साथ जिसे कभी भुला ना सकूँगा | चलते चलते मैं खुद को यह कहने से रोक नहीं सका क़ी मैं आप से फिर अवश्य मिलना चाहूँगा | जीवन मैं यह क्षण दोबारा कब आएगा यह तो नहीं जानता लेकिन मेरे फिर मिलने के सवाल के जवाब में प्रो. सुंदर लाल जी का मुस्कराते हुई जवाब "अवश्य"हमेशा याद रहेगा |  

अखिलेश यादव ने जौनपुर शाहगंज निवासी नासिर खान को बनाया लोहिया वाहिनी समाजवादी पार्टी का सचिव |

$
0
0


चुनाव के ठीक पहले अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी के नेता नासिर खान को लोहिया वाहिनी समाजवादी पार्टी का सचिव बना दिया| नासिर खान समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व विधायक अरशद खान के पुत्र है और शाहगंज के पानदरीबा इलाके के रहने वाले हैं | नासिर खान की समाजवादी पार्टी के लिए उनका कार्य और सक्रियता को देखते हुए उन्हें इस पद दिया गया है |



लोहिया वाहिनी राष्ट्रीय अध्यछ चन्द्र शेखर यादव जी ने नासिर खान को सचिव पद पे मनोनीत करते समय प्रसन्नता वयक्त की |




 Admin and Founder 
S.M.Masoom
Cont:9452060283

मेरे अपने शहर में बड़े लोग |

$
0
0

मेरे अपने शहर में बड़े लोग : डॉ दिलीप सिंह

4_१९८० इ० में अपने गांव गैरवाह से जौनपुर नगर में बसने के साथ साथ मुझे पहला अंतर मिटटी और सुगंध में मिला| कुछ समय बाद ही प्रख्यात शहरी शख्सियतों के साथ किला घूमने का कार्यक्रम बना| एक बार जो किला गया तो आज तक वहाँ जाना अनवरत जारी है| शर्की काल में बना यह किला कई माने में बेजोड और कई रहस्यों को अपने में समेटे हुए है |तंत्र मंत्र , ज्योतिष, मौसम का गहन अह्येता होने के कारण नेने कई बार वास्तव में इन रहस्यों का साक्षात अनुभव घोर वर्षा, प्रचंड गर्मी, विकट ठण्ड में किया है | खण्डहर एवम टीले पर आदिगंगा गोमती के पवन तट पर बना यह किला जीर्ण शीर्ण होता जा रहा है और ढहता जा रहा है | पर किसी को इसकी चिंता नहीं है | कागजी कार्यवाही में तो सब कुछ ठीक बिलकुल ओ. के. है|
१९८०-१९८१ में यह किला काफी ठीक हालत में था |तब यहाँ कि भूल भुलैया खुली थी | वंही से एक सुरंग अंडे कि और जाती है जिसके बारे में कथाएँ हैं कि यह गोमती पार निकलती है और कुछ तो इसे दिल्ली के लालकिले से  जुडा मानते हैं|  १९८० में जब मुझे किला घूमने का अवसर प्राप्त हुआ तब से लेकर अब तक इस किले में एक से बढ़ कर एक नेता ,कलाकार,साहित्यकार, आमजन, नमाज़ी, चित्र विचित्र लोगों को देखते २२ वर्ष गुज़र गए |
सुबह एक साथ आप यहाँ आज भी दो कुंतल से आधा कुंतल तक के लोगों को भागते दौड़ते ,हांफते ,गिरते पड़ते ,कसरत व्यायाम करते ,प्राणायाम करते ,योग से लेकर भोग करते अपनी आँखों से यथार्थ में देख सकते हैं |जाकी रही भावना जैसी हरी मूरत देखि तिन तैसी “ यहाँ चरितार्थ होता है| प्रेमी युगल से वृद्ध युगल ,योगी से भोगी सभी इस विशाल दुर्ग में विधमान हैं|  यहाँ के सभी कर्मचारी प्रातः घुमक्कड (मार्निंग वाकर्स) के अभ्यस्त हैं | यहाँ आप अशोक सिंह से लेखर संजय अस्थाना, के. एस. परिहार से मोहम्मद अब्बास जैसों को मोर्निंगवाल्क करते देख सकते हैं |सबसे पुराने घुमक्कड़ से लेकर १ दिन वाले घुमक्कडो को भी यहाँ देखा जा सकता है |
मुख्य बात तो अभी बाकी है और वो यह कि नगर के विख्यात तमाम व्यक्तियों की कथनी और करनी का अंतर भी यही इसी किले में देखने को मिलता है |पहले पूर्ण स्वच्छ समीर भरा यह किला अब दिनों दिन कूड़ा कचरा और गंदगी से पटता जा रहा है और हमारे नगर के प्रसिद्ध लोग ही इसके जनक हैं |प्रेमी युगलों कि सक्रियता दिनों दिन यहाँ रोज वेलंटाइन डे या मधुयामिनी का भास् कराती है यदि आप ७ बजे के बाद तलाहने जाएँ | किले में भवनों के भीतर ही मलमूत्र त्याग कर हमारे शहरी लोग अनार ,नीबू , संतरा ,से मिश्रित जो सुगंध बिखेरते हैं उस से किले में लाल हरे नीले पीले सतरंगी चंपा, बेला चमेली कनेर गुडहल आदि कि खुशबु वैसे ही खो जाती है जैसे ब्रहमास्त्र में सरे अस्त्र खो जाते हैं | जम्दाग्निपुर,जवनपुर से जौनपुर कि गाथा देखने वाली गोमती नदी अब प्रदूषण से पटी सहमी सी दिखती है | इमामबाड़े के पास बड़े पेड़ के नीचे  एक नाग रोज बैठा मिलता है जो मूकदर्शक है इसका|
 
DSC01160
Dr. Dileep Kumar Singh Juri Judge, Member Lok Adalat,DLSA, Astrologist,Astronomist,Jurist,Vastu and Gem Kundli Expert. Cell:९४१५६२३५८३

इतिहास बनता जा रहा है जौनपुर का पुस्तैनी बीड़ी उधोग |

$
0
0

इतिहास बनता जा रहा है जौनपुर का पुश्तैनी  बीड़ी उधोग |

बीडी व्यापार
जौनपुर का पुस्तैनी बीड़ी उधोग 
  शिराजे हिन्द के नाम से अपनी पहचान रखने वाले उ0प्र0 के जनपद जौनपुर में निर्मित बीड़ी उधोग का अपना काफी पुराना इतिहास है। स्वर्णिम काल में बीड़ी उधोग के जरिए देश में इस जनपद की एक पहचान बनी थी, जो आज भी मुसलसल  कायम है। आज के एक दशक पूर्व बीड़ी उधोग की तूती बोलती रही यह उधोग कुटीर उधोग का स्वरूप लेकर घर घर में अपनी दत्तक दे दिया था, और रोटी रोजी का मुख्य जरिया बन गया था। लकिन वर्तमान समय में यह उधोग तमाम कारणो के चलते चरमरा गया है।इस पुस्तैनी कारोबार की चरमराहट से हजारो परिवारो के समक्ष रोटी का एक बड़ा संकट उत्तपन्न हो गया है। इस घरेलू उधोग की साख इस कदर टूट गयी कि अब यह कारोबार महज महिलाओं के बीच ही सिमट कर रह गया है।इससे जुड़े लाखो पुरूष अब इससे तोबाकर अपनी जीविका के लिए दूसरे पेशे से जुड़गये है। आज घरेलू उधोग के नाम पर इस उधोग का परम्परा एवं साख को महिलायें तथा बच्चे ही अपने श्रम के जरिये बचाये हुए है।

इस जनपद में बीड़ी के उधेाग का लगभग सौ वर्षो पुराना एक बिस्मयकारी इतिहास है। इसकी शुरूआत जिले के दो ब्यवसायियो ने किया था। जिनके द्वारासर्व प्रथम  भारत एवं अटाला नामक ट्रेड मार्क के नाम से बीड़ी का उम्पादन शुरू किया गया था। भारत बीड़ी के मालिक  को मुनीब तथा अटाला बीड़ी के मालिक को खलील के नाम से जाना जाता था। लेकिन जैसे जैसे समाज का बिस्तार होता गया  इस उधोग का भी विकास तेजी से आगे बढ़ने लगा। धीरे धीरे जिले तमाम पूंजी पतियो ने अपने को इस उधोग से जोड़ लिया। परिणम हुआ कि दो दशक बीतते बीतते यह उधोग कुटीर उधोग का स्वरूप ले लिया जन जन के रोटी रोजी का एक मात्र जरिया बन गया था। लेकिन कुछ अर्सा बाद ही भारत व अटाला दोनो ब्राण्ड बीड़ी बन्द हो गयी क्योकि इनके वारिसान दूसरे अन्य कारोबार से स्वयं को जोड़ लिये थे।

    बीड़ी का उधोग अपने शुरूवात काल से लगभग 50 वर्षेा तक अनवरत बढ़ता ही रहा है। रोटी रोजी के दृष्टिगत लोगो का झुकाव भी इस धन्ध्े की तरफ बढ़ा तो यह कारोबार कुटीर उधोग का स्वरूप ले लिया। उत्पादन इतना बढ़ गया कि जनपद के साथ साथ आस पास के जनपदो हीनही देश के तमाम शहरो में जौनपुर से निर्मित बीड़ी की आपूर्ति होने लगी। बाद में बीड़ी मालिकानो की घटिया नीयति एवं उनके द्वारा श्रमिको का शोषण माल की गुणवत्ता के साथ लापरवाही इस पुस्तैनी कारोबार को पतन की राह पर ढकेल दिया। धीरे धीरे यह उधोग इतिहास का हिस्सा बनने लगा और पुरूष प्रधान यह उधोग अब महिलाओ सहारे अपनी अस्मिता को बचा रहा है। इसके जन्म काल में जो इसकी शाख थी उसी की बदौलत आज यह उधोग थोड़ा बहुत चल रहा है। अन्यथा पूरी तरह से समाप्त हो जाता। भले ही बीड़ी का कारोबार अपनी अस्मिता को खो दिया है लेकिन आज भी प्रदेश के तमाम जिलो में जौनपुर से निर्मित बीड़ी का निर्यात किया जाता है।


 बीड़ी उधोग के मालिको (सेवायोजको) द्वारा बीड़ी श्रमिको के शोषण की गाथा बहुत पुरानी व दर्दनाक भी है। इसके मकड़ जाल में फंसा मजदूर तरह तरह की यातनाये झेलने को मजबूर था बीड़ी श्रमिको की स्थित पूर्णतः बधुआ मजदूरो की तरह थी ।  अपने दर्द की दांस्ता किसी को बताने में भी खासा असमर्थ था। स्थिति यह रही कि  बीड़ी बनाते बनाते समय से पहले ही अपने मासूम बच्चो का जीवन सजाये संवारे बगैर ही तमाम तरह के गम्भीर संक्रामक रोगो का शिकार होकर उससे जूझते-जूझते ही इस दुनियंा  को अलविदा कह देता था।तत्पस्चात उसके मासूम बच्चे भी बीड़ी बनाने को मजबूर हो जाते रहे है। इस तरह बच्चे भी उसी जाल में फंस जाते रहे।यह क्रम कल भी था और आज भी जारी है। जो एक बार इस धन्ध्े मे श्रमिक के रूप में प्रवेश करलेता है।उसकी अगली पीढ़ी भी इससे उबर नही पाती है। उधमी इसका भरपूर लाभ उठाते हुए  ब्यापक स्तर पर इनका शोषण किया जाता है। बीड़ी श्रमिक  मालिको की यातनाओ से परेशान होकर जब संगठन बनाकर मालिकानो पर दबाव बनाने का प्रयास किये तब सेवायोजक भी श्रम बिभाग से मिलकर ऐसे नियम बना लिये कि मजदूरों की आवाज  मालिको के कानो से टकरा कर वापस लौट जाती थी। श्रम बिभाग के मुताबिक जनपद में शहरी व ग्रामीण सभी क्षेत्रो में कुल 325 बीड़ी के कारखाने है जिसमें 10 बड़े कारखाने बड़े उधमियो के है। इसमे हादीरजा, बाबूराम, 501,मुर्तजा,जोखूराम,अब्दुल अव्वल, चन्द्रिका प्रसाद, मो0 इश्तेयाक, इस्माईल केराकत अदि का नाम प्रमुख है। इसके अलावां 15 से 20 मध्यम दर्जे के उधोगपति है।300 के आसपास छोटी पूंजी के कारोबारी है जो 10से 15 मजदूर रखकर बीड़ी बनवाते है। लगभग एक हजार से अधिक मजदूर तपके के लोग छोटी मोटी गुमटियेां में डेस्क रखकर बीड़ी बनाने के धन्धे से जुड़े है।

    श्रम बिभाग के रिपोट के अनुसार कोई भी बड़ा कारोबारी फैक्ट्री एक्ट की श्रेणी में नही आते है। फैक्ट्री की श्रेणी मे आने के लिए एक सेवायोजक के पास कमसे कम 25 मजदूर होने चाहिए। परन्तु प्रत्येक सेवायोजक के पास अधिकतम 15 मजदूर सरकारी एवं उधमी के रजिस्टर में दर्ज है।इसलिए सेवायोजक इस ऐक्ट से मुक्त है। मालिकान अपने सगे सम्बन्धियो के नाम से लाईसेन्स लेकर उसमें 10से 15 श्रमिको का नाम दर्ज कराके बीड़ी बनवा रहे है। साथ ही मजदूरो का खुले आम शोषण कर रहे है। उनके इस कुकृत्य में श्रम बिभाग के अधिकारियो की भूमिका खासी महत्वपूर्ण रहती है। अभिलेखो के अलग प्रत्येक मालिक के पास 500 से 1000 हजार तक श्रमिक बीड़ी की रालिंग बनाने का काम कर रहे है। इन अब्यवस्थाओ के चलते पुरूष अब इससे किनारा कर लिया है। अब महिलाओ के भरोसे यह कारोबार संचालित हो रहा है। सरकारी आंकड़े के अनुसार इस समय ग्रामीण क्षेत्र से लेकर शहरी इलाके में लगभग 12 से 15 हजार श्रमिक बीड़ी की रोलिंग के काम लगे हुए है। इनमे  लगभग 7से8 हजार महिलायें एव बच्चे इस उधोग से जुड़े हुए है। एक दशक पूर्व पुरूषो की संख्या 90 प्रतिशत रही जो इब घट कर40 प्रति0 के आसपास हो गयी है।


       बीड़ी श्रमिको को संक्रामक रोगो से बचाव एवं उपचार के लिए शासन द्वारा शहर के अन्दर श्रमिक कल्याण केन्द्र के नाम से एक अस्पताल  तो खोला गया लेकिन उससे आज तक एक भी बीड़ी श्रमिक का उपचार संभव नही हो सका है। इनके इलाज के नाम पर लाखो रू0 का खेल प्रति वर्ष हो रहा है। जिम्मेदार जन इससे बेखबर है। भारत सरकार ने बीड़ी सिगार सेवा शर्त अधिनियम 1966के तहत श्रमिको के कल्यान हेतु कुछ नियम बनाये गये थे उसकी एक भी धारा का अनुपालन इस जनपद में नही किया जा रहा है। मानक के तहत मजदरी भी नही दी जाती है। चूकि विगत 15 वर्षो से पुरूष इस धन्धे अलग हो गया है। इसलिए अब यह कारोबार पूर्ण रूप से महिलाओ के उपर आश्रित हो गया है।साथ ही साथ पतन की राह पर भी अग्रसर हो गया है। आने वाले एकसे डेढ़ दशक  बीतते बीतते यह कारोबार इतिहास काहिस्सा बन कर रह जाने की प्रबल संभावना नजर आ रही है।
  इस उधोग मे सबसे महत्व पूर्ण तेदू का पत्ता एवं सुर्ती होती है। जो इस जिले में नही मिलता है। इसे मध्यप्रदेश के जंगलो से लाया जाता हैं। जिसका ठेका एम पी सरकार देती है। उधमी ठेका लेकर तेदू पत्ते को तोड़कर इकठ्ठा करने के बाद उसे सुखा कर बंडल बना कर लाते है। इसकाम में भी श्रमिको की जरूरत होती हैंसुर्ती भी यही पर पैदा की जाती है। इस तरह बीड़ी बन7ाने से लेकर कच्चे माल को तैयार करने तक हर जगह श्रमिक का ही सहारा होता है। और श्रमिको का इससे पलायन होना इस धन्धे को बन्द कराने में सहायक है। इस प्रकार यह कारोबार भले ही पुस्तैनी हो और जिले की पहचान में यहायक बना हो लेकिन भ्रष्टाचार एवं शोषण की एक दर्दनाक कहानी भी इस कारोबार में नजर आती है। जो आज तक लाइलाज बनी है।

लेखक :   कपिलदेव मौर्य, वरिष्ट पत्रकार -जौनपुर 
मो0 न0 9415281787

बनवारी लाल के साथ एक दिन शाही पुल के मंदिरों की सैर |

$
0
0
जनाब बनवारी लाल जी जौनपुर के माने  जाने लोगों में गिने जाते  हैं |  श्री बनवारी लाल जी जौनपुर जिले के व्यापार मंडल में मुख्या पद पे भी  हैं | जौनपुर से श्री बनवारी लाला जी के घराने का रिश्ता करीब १७० साल पुराना है और इनके परिवार का पेशा १२५ सालों से जौनपुर के मशहूर चमेली के तेल, गुलकंद के उत्पादन से जुड़ा हुआ है |
इनके दादा ओर परदादा स्वर्गीय महावीर प्रसाद ओर स्वर्गीय अंतु राम जी ने १८९५ में चमेली के तेल का उत्पादन ओर व्यापार शुरू किया जो आज भी चल रहा है | आज भी इनका बनाया चमेली का तेल देश विदेश  तक जाता है |

मैंने श्री बनवारी लाल जी से मुलाक़ात का समय लिया ओर जा पहुंचा उनकी ओलन्दगंज नखास स्थित दूकान पे | उनके साथ बात चीत करते हुए हम जा पहुंचे  शाही पुल के नीचे गोमती किनारे जहां जाते ही ऐसा लगा जैसे किसी स्वर्ग में आ गए हो | एक तरफ जहां शार्की राजाओं का बनवाया शाही पुल शान से खड़ा था वंही दूसरी ओर उसी से जुड़ा हनुमान ओर शिव मंदिर जौनपुर के सांप्रदायिक सौहाद्रकी कहानी कह रहा था |





बनवारी लाल जी एक हंसमुख और सुलझे मिज़ाज के इंसान हैं | समाज सेवा इनका धर्म है |  आपभी बनवारी लाला जी से बात चीत के अंश सुनें और जानें कि जौनपुर का मशहूर चमेली का तेल कैसे बनाया जाता है और आज भी यह कहाँ मिल सकता है?

Viewing all 2089 articles
Browse latest View live


<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>