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गौरीशंकर धाम सुजानगंज में उमड़ता है कांवरियों का सैलाब |

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जौनपुर और आस पास के इलाकों में आपको पुराने ऐतिहसिक मंदिर बहुत से मिलेंगे जिनमे से एक है जौनपुर सुजानगंज के पश्चिमी छोर पर स्थित ऐतिहासिक शक्ति पीठ गौरी शंकर धाम जो आज शिव भक्तों के लिए आस्था और विश्वास का संगम बन चुका है। 

माना जाता है की यह मंदिर चौदहवीं शताब्दी के आस पास आस्तित्व में आया और इसकी ख़ास बात यह है की यहाँ शिवलिंग स्वयंभू और कालातीत होने के साथ अ‌र्द्ध नारीश्वर के रूप में है जो अपने आप में अनोखा है|

 https://www.facebook.com/hamarajaunpur/इस मदिर के बारे में आस पास के इलाके के लोग कुछ इस तरह से बताते हैं की 14वीं सदी में यहां के शासक भर थे। जिनकी नील की गोदाम यहां पर थी।  पास के गांव से एक गाय आई और टीले पर स्थित झुरमुट (झाड़ी) में घुस गई। समय होने पर जब गाय वापस नहीं लौटी तो गाय का स्वामी खोज करते-करते जब उस टीले तक पहुंचा और झाड़ी में निगाह दौड़ाने पर उसने जो देखा उससे वह स्तब्ध रह गया। उसने देखा कि गाय के स्तन से दूध निकल रहा है जो नीचे एक काले पत्थर पर गिर रहा है और वह शांत खड़ी है।

कुछ देर बाद गाय बाहर आई तो उसे लेकर वह घर गया और आंखों देखी घटना का लोगों से जिक्र किया तो लोग आश्चर्यचकित रह गए। कुछ लोगों ने झाड़ी को साफ कर पत्थर की खोदाई कराई किंतु उसका दूसरा हिस्सा नहीं मिला। इसके बाद से इस स्थान की पूजा होने लगी।

पिछले ढाई सौ वर्षों  से यहां पर कांवरियों का सैलाब उमड़ने लगा है। ऐसा लोगों में विश्वास है कि जो भी बाबा के दरबार में  श्रद्धा और विश्वास के साथ आता  है बाबा भोलेनाथ उसकी मनोकामना अवश्य पूरा करते हैं।

प्रत्येक सोमवार को और सावन के महीने में यहाँ खास करके बहुत भीड़ हुआ करती है और मेला लगता है |


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नाश्ते के बिना घर से बाहर कभी ना जायें |

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काम पे जाने  की जल्दी में अक्सर लोग घर से बिना नाश्ता किये चले जाते हैं और फिर रास्ते में थोडा सा कुछ खा के दिन गुज़ार देते हैं | एक कहावत  मशहूर है की नाश्ता करो राजा की तरह दोपहर का भोजन करो वजीर की तरह और रात का खाना खाओ फ़कीर की तरह | इसका मतलब होता है सबसे अधिक पौष्टिक खाना सुबह का होना चाहिए क्यूँ की रात भर का भूखा होता है इंसान और सुबह यदि तगड़ा नाश्ता कर लिया तो दिन भर की मेहनत से वो हज़म भी हो जायेगा |



मानव जीवन शैली में छोटे छोटे परिवर्तन बहुत सी बीमारियों से बचाव का कारण बन सकते हैं और थोड़ी सी सावधानी बरत कर इन बीमारियों से बचा जा सकता है। अमरीका में होने वाले एक शोध के अनुसार नाश्ता छोड़ने से दिल के दौरे का ख़तरा कई गुना बढ़ सकता है किन्तु समय पर नाश्ता करके इस बीमारी से बचा जा सकता है। शोध में यह बात सामने आई है कि जो लोग नाश्ते से मुंह मोड़ते हैं, उनमें दिल के दौरे या हृदय रोग से मौत का ख़तरा 27 प्रतिशत तक अधिक होता है और रात देर से सोने वाले लोगों में हृदय रोग का ख़तरा 55 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि नाश्ते को छोड़ना मोटापे, उच्च रक्तचाप, हाई कोलिस्ट्रोल, और मधुमेह के साथ दिल के दौरे का कारण बनने वाले मुख्य कारणों में से एक है।




मधुमेह (डायबिटीज) के मरीजों के लिए चावल और गेंहू में कोई अंतर नहीं होता |

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 https://www.facebook.com/hamarajaunpur/अक्सर ये बात सुनने में आया करती है की अगर आपको मधुमेह (डायबिटीज) की बिमारी है तो आप चावल खाना बंद कर दें जबकि ये गलत है | सत्य ये है की मधुमेह (डायबिटीज)  के मरीजों के लिए चावल और गेंहू में कोई अंतर नहीं होता  बस इतना ध्यान रखें की चावल की मात्रा खाने में अधिक  नहीं होनी चाहिए |


१/२ कप पका चावल बराबर होता है एक रोटी के |
अगर इतना ध्यान रखेंगे तो समझ लें आपके लिए चावल और गेंहू में कोई अंतर नहीं होगा |









सेक्स पावर बढ़ाने के कुछ बाजारू नुस्खे |

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भारतीय समाज में सेक्स के टॉपिक पर खुलेआम बातें करने की इजाज़त नहीं  हैं, इसलिए अक्सर लोग इस विषय पे  भ्रम के श‍िकार हो जाते हैं| आज का युवा उस समय जब उसके शरीर में परिवर्तन हो रहे होते हैं तो सेक्स के विषय पे अपने हम उम्र मित्रों और सस्ते साहित्य या आज के युग में पोर्न से जानकारी हासिल करने की कोशिश करता है | ये सारे जानकारी हकीकत में उसे इस विषय पे सही जानकारी देने की जगह मानसिक रोगी बनाती चाय जाती हैं और वो बुरी आदतों का या भरम का शिकार हो जाता है | अधकचरे सेक्स गाइड,  विज्ञापनों या पोर्न से भी कोई फायदा नहीं मिलता बल्कि नुकसान अधिक होता है |


समस्या ये हैं की युवा को तो इस विषय पे जानकारी चाहिए और  हमारे समाज में माता पिता ये जानकारी देते नज़र नहीं आते तो मजबूरी में युवा को अधकचरे सेक्स गाइड,  विज्ञापनों या पोर्न का सहारा लेना पड़ता है |इस समस्या का हल केवल यही है की सही समय पे अपने युवाओं को सेक्स के विषय पे सही जानकारी उनके घर से ही उन्हें दी जाए |

चलिए ये तो हुयी समस्या लेकिन आज युवा क्या सीखता है इन अधकचरे सेक्स गाइड,  विज्ञापनों या पोर्न से और किन मुश्किलों में फँस जाता है इस विषय पे भी ध्यान दिया जाए |

आज आप ट्रेन से सफ़र करें तो जगह जगह दीवारों पे गुप्त रोग का शर्तिया इलाज जैसे इश्तेहार देखने को मिल जायेंगे जिनके चक्कर में फंसने से केवल नुकसान होता है और इसकी दूकान चलने का सही कारण युवाओं का इस विषय पे सही जानकारी का न होना है |


ट्रेनों के भीतर और रेलवे लाइनों के इर्द-गिर्द अक्सर ऐसे विज्ञापन दिखते हैं, जिनमें 'बचपन की गलतियों'हस्तमैथुन  से पैदा हुई कमजोरी दूर करने के दावे किए जाते हैं | हस्तमैथुन हकीकत में एक बुरी आदत है लेकिन ध्यान रहे इस से पैदा हुयी मुश्किलों का इलाज इन नीम हकीमो के पास नहीं बल्कि मानसिक रोग का इलाज करने वाले डॉ के पास होता है |

अक्सर ऐसे विज्ञापन नजर आ जाते हैं, जिसमें यह दावा किया जाता है कि अमुक तेल के इस्तेमाल से सेक्स की क्षमता में बढ़ोतरी होती है और सेक्स के दौरान भरपूर आनंद आता है| सडको पे बिकते सांडे का तेल से लेकर न जाने बाज़ार में कौन कौन से तेल मौजूद है  लेकिन ये भी एक ऐसा झूट है जिसका व्यापार बहुत तेज़ी से फल फूल रहा है | कई बार लोग सड़कों के किनारे तंबू लगाए बाबाओं की दुकानों से दवा खरीदते देखे जाते हैं जहां अज्जेब अजीब तरह की जड़ी बूटियाँ रखी होती है और ये भी नहीं पता होता की ये क्या हैं और इनका फायदा होगा भी या नहीं | हकीकत में ये भी युवाओं की सेक्स के विषय पे अज्ञानता का फायदा लेने वाला व्यापार है जो फल फूल रहा है |

ऐसे ही लिंग की लम्बाई बढाने के दावे , तंत्र मंत्र से सेक्स पॉवर बढाने के दावे सब झूठे हुआ करते हैं | वैसे भी डॉक्टरों के अनुसार लिंग की लम्बाई से और सेक्स में संतुष्टि का आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है |


गाँव इत्यादि में ऐसे व्यापार बड़ी तेज़ी के साथ फलते फूलते दिखाई देते हैं जिनसे युवाओं को बचना चाहिए और सेक्स पॉवर बढाने का सबसे आसान तरीका ये है की अपनी पाचन शक्ति को दुरुस्त रखें और अश्लील किताबों को ,पोर्न को अधिक देखने से बचें |

Note:  हर सप्ताह रविवार के दिन सेक्स सम्बंधित जानकारी जौनपुर के युवाओं की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए हमारा जौनपुर की तरफ से आप सभो को दी  जाएगी |
आपकी अपनी वेबसाइट हमारा जौनपुर , अपने वतन जौनपुर को समर्पित | संचालक एस एम् मासूम

सदात मसौंडा का नाम कजगांव तेढ़वान कैसे पड़ा |

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सय्यिद नसीरुद्दीन ने जो चिराग़ ऐ दिल्ली के नाम से भी जाने जाते हैं एक ख्वाब देखा की हजरत मुहम्मद (स.अ.व) आये हैं और उनसे कह रहे है कि सय्यिद बरे नाम के शख्स को अपनी शागिर्दी में ले लो और उसे अपने ज्ञान से मालामाल करो |सय्यिद नसीरुद्दीन ने अपने दिल्ली में तलाशा तो उन्हें तीन व्यक्ति इस नाम के मिले और वो तय नहीं कर पाए की यह इशारा किसकी तरफ है |दुसरे दिन फिर उन्होंने ख्वाब देखा जिसमे इशारा किया गया था की स्येद बरे जिनके बारे में ख्वाब है वो एकहरा कपडा पहनते हैं |सय्यिद बरे हजरत मुहम्मद (स.अ.व) की ३२वीन नस्ल थे और ७७० हिजरी १३६८ इस्स्वी में वो दिल्ली से जाफराबाद के करीन एक इलाके सुसौन्दा (अब मसौन्दा) में आकर बस गए और एक तालाब के किनारे छप्पर डाल के रहने लगे | सय्यिद बरे ने वहाँ के गांवालों को गुमराही से बचाया और एक ऐसे संत जो हर अमावस्या को गाँव के लोगों से सोना चांदी ,धन दौलत की मांग करता था उसके ज़ुल्म से बचाया |
तालाब जहां सय्यिद बरे  आज के कजगांव में बसे थे |

गाँव वाले सय्यिद बरे को मानने लगे उसी समय इस गाँव सुसौन्दा का नाम बदल में सादात मसौन्दा किया गया | बरे मीर के दो बच्चे थे जिनका नाम सय्यिद हसन और सय्यिद हुसैन था जो आपस में एक दुसरे से बहुत प्रेम करते थे | जब एक भाई की म्रत्यु हो गयी तो उसे गाव के पाहनपुर कब्रिस्तान में दफन किया गया | दुसरे भाई की म्रत्यु के बाद उसे भी अपने भाई के पास ही दफन कर दिया गया | सुबह लोगों ने देखा की दोनों भाइयों की कब्र सर की तरफ से एक दुसरे से मिल गयी है | लोगों से सोंचा मिटटी गीली होने की वजह से ऐसा हुआ होगा और ठीक कर दिया | लेकिन दुसरी रात फिर से ऐसा ही हुआ तो लोगों को समझ में आ गया की यह कोई चमत्कार है |आज भी दो भाइयों की कब्रें वहाँ मौजूद हैं जिसके कारण सदात मसौंडा का को लोग कजगांव तेढ़वान के नाम से जाना जाने लगा |
दो भाइयों की कब्र जो आज भी कजगांव में देखि जा सकती है |



यह कहानी कजगांव बुजुर्गों ने सुनायी है जिसका ज़िक्र उन्होंने अपनी कुछ किताबों में भी किया है | इसमें कितनी सत्यता है यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन दो भाइयों की टेढ़ी कब्र आज भी मौजूद है और गवाही दे रही हैं किसी चमत्कार की |

दौलत के लिए इंसानियत खोने वाले सेहत के मामले में इतने सुस्त क्यूँ है ?

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आज जिन हालत से हम गुज़र रहे हैं उसमे यह सोंचना ही पड़ता है की आखिर हम दौलत के मामले में तो इतने चुस्त हैं की इंसानियत खोते जा रहे हैं और सेहत के मामले में इतने सुस्त की सब कुछ गलत होता देख के भी कोई आवाज़ नहीं उठाते | क्यूँ ?

दूध ,पनीर,खोया ,मिठाई आइसक्रीम, चावल, चटनी, खाने के तेल, आटा, मिठाइयों में मिलावट आम बात है | फल सब्जी अब केमिकल के भेंट चढ़ते हुए खूबसूरत और ज़हरीला रूप अख्तियार करते जा रहे हैं |


और बीमार पड़े तो डॉ की भारी फीस , दवाओं की कमीशन कमर तोड़ देती हैं और तो और झोला छाप डॉक्टर जहां देखिये बेख़ौफ़ आसन जमाये बैठे हैं ,बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे पैथालाजी केन्द्र हमारी सेहत से खेल रहे हैं |

जाएँ तो जाएँ कहाँ ? कोई रास्ता नहीं सिवाए इसके की ४५-५० के बाद बीमारियों को झेलते डॉ के चक्कर लगाते लगाते रहो   |

एक रास्ता है की हम जागरूक हो के इसके खिलाफ आवाज़ उठाते और सरकार पे दबाव डालते की खाने पीने की चीज़ों और दवाओं के सिलसिले में सख्त कानून बनाए और उसे अमल में भी लाये | लेकिन हम ही सुस्त हैं और डॉ के चक्कर लगाने को मजबूर |


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क्या आप अप्राकृतिक सेक्स, बलात्कार और मानसिक रोगी समाज चाहते हैं ?

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आज हर दिन हर तरफ से महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार , बलात्कार की खबरें आया करती हैं और ऐसा महसूस होता है जैसे आज महिला घर, बाहर , दफ्तर ,कहीं भी महफूज़ नहीं है | महानगरों में तो युवाओं का आपस में दोस्ती करना और शारीरिक सम्बन्ध बना लेना आम होता जा रहा है और वहाँ इसे धीरे धीरे नियति मान के लोग चुप बैठने लगे हैं | लेकिन छोटे शहरों में और गाँव में तो ऐसे रिश्ते खुल जाने पे मामला इज्ज़त का बन जाता है और क्यूँ ना बने भाई जब ऐसे रिश्तों में पड़ी लड़की की शादी नहीं होती तो मामला गंभीर तो होगा ही |  आज का युवा मानसिक रूप से रोगी होता जा रहा है इसलिए इसके कारणों की तलाश आज आवश्यक होती जा रही है | 


सेक्स इंसान के जीवन की एक ऐसी आवश्यकता है जिस से बचने की कोशिश मानसिक बिमारियों को जन्म देती है | इंसान के जीवन में जवानी आते ही उसे सेक्स पार्टनर की आवश्यकता महसूस होने लगती है और इसके ज़िम्मेदार  जवानी पे हुए शारीरिक परिवर्नत हुआ करते हैं जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता | इन परिवर्तनों को अनदेखा करना और सही उम्र के बाद भी सेक्स की अनुमति का ना मिलना हमारे जवानो को मानसिक रूप से बीमार करता जाता है और नतीजा होता है अप्राकृतिक सेक्स, बलात्कार, और बहुत बार कौटुम्बिक व्यभिचार | ऐसा  नहीं की यह बीमारियाँ केवंल जवानों को हुआ करती है बल्कि इसका शिकार जवानी से बुढापे  तक किसी भी उम्र के लोग होते देखे गए हैं |



जैसे इंसान को पैदा होते ही शरीर को ताक़त देने के लिए भूख लगती है और बच्चा दूध की तलाश करने लगता है वैसे ही जवानी के बाद इंसान को सेक्स की आवश्यकता महसूस होने लगती है और वो एक पार्टनर की तलाश करने लगता है | हमारे समाज में तो आज जवानो की इस भूख को सही समय पे मिटाने के ज़रिये के बारे में कम ही सोंचा जाता है लेकिन इस भूख को बढाने के ज़रिये हर जगह देखे जा सकते हैं | अब यह महिलाओं के अर्धनग्न पहनावे हों या केवल धन कमाने  के लिए पोर्न परोसता यह समाज हो सब मिल के जवानों की अपरिपक्व उम्र में ही उसे सेक्स की तरफ आकर्षित करते दिखाई देते हैं | 


एक युवा में शारीरिक परिवर्तन के चलते अगर १५-१६ साल की आयु में सेक्स की चाह पैदा होती है लेकिन  यह पोर्न और पश्चिमी समाज का खुला  माहोल १२ साल की आयु में ही उसे  सेक्स के बारे में सोंचने पे मजबूर कर देता है ऐसे में अपरिपक्व उम्र और कौतुहल नयी चीज़ को जानने का आज के युवाओं को गुनाह और जुर्म के दलदल में फंसा सकता है | आज बच्चों के हाथ में मोबाइल और उसमे पोर्न फिल्मो का खज़ाना उनके सेक्स के लिए पार्टनर की तलाश के लिए मजबूर करता है और यह तलाश अनजान जगहों पे नहीं बल्कि आस पास के मिलने जुलने वालों पे ही जा के ख़त्म हुआ करती है | इसमें अगर बलात्कार हो जाये तो इसका दोषी कौन ? समाज या वो नाबालिग बच्चा ?


अपने युवाओं को अच्छे संस्कार दें जिस से वो पाने पे संयम रखा सीख सकें लेकिन फिर भी उनकी शारीरिक आवश्यकताओं को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता | इसलिए इसका एक मात्र उपाय  अब यही बचा है की समाज की स्वीकृति के साथ जिस समय नौजवानों को सेक्स की इच्छा पैदा हो और वो उसपे काबू करने की हालत में न हों उन्हें सेक्स पार्टनर उपलब्ध करवाया जा सके | यकीनन समाज की स्वीकृति का मतलब है विवाह बंधन में बंधना | इसके लिए  कौन सी उम्र तय की जाए या किस प्रकार से ऐसे विवाह की इजाज़त दी जाये यह नौजवानों की शारीरिक ज़रुरत पे निर्भर करेगा | इन्साफ की बात यही है की जिस उम्र में सेक्स की चाह पैदा हो नौजवानों में उन्हें उसी उम्र में पार्टनर मिलना चाहिए वरना अनैतिक शारीरिक  सम्बन्ध, अप्राकृतिक सेक्स, बलात्कार और मानसिक रोग वाले युवाओं वाले  समाज के लिए तैयार रहना चाहिए |


इसका उपाय सोंचना आज इस समाज में रह रहे हर वर्ग और धर्म के लोगों का काम है क्यूँ की जब सामाजिक समस्याएँ पैदा होने लगे तो इसका हल कानून के पास कम और समाज के पास अधिक हुआ करता है | आज मुश्किल यह है की समाज ने खुद को नियति के सहारे छोड़ दिया है और कानून सख्त से सख्त बनाने की मांग  की जा रही है ऐसे में किसी अच्छे नतीजे की उम्मीद करना मुर्खता ही कही जायगी | 

एस एम् मासूम 

चलिए आज देखते हैं जौनपुर में सात बादशाहों के मकबरे |

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जौनपुर में सबसे अधिक शार्की समय के बनाये हुए मकबरे बहुत अधिक देखने को मिलते हैं जिनमे से अधिकतर के बारे में केवल इतिहासकार ही बता सकते हैं |

 https://www.facebook.com/hamarajaunpur/शार्की समय  में  १४००  से  अधिक  सूफी  और ज्ञानी जौनपुर में  आये  क्यूँ की  शार्की  ज्ञानियों  की इज्ज़त  करते  थे | इनमे  से अधकतर  पूरा  जीवन  जौनपुर में ही  रहे  और यहीं  बने  इनके मकबरे और  उनके  चाहने वाले आज  तक  उनकी  क़ब्रों  पे  चादर चढाते  , उर्स लगाते  दिखते  हैं |

उनका नाम औ निशाँ आज  तलाशने में  मुश्किल  केवल इस कारण से होती  है कि अब्राहिम लोधी ने उन्हें नष्ट कर दिया था और बाद में अब उनके केवल खंडहर या अधूरे और टूटे मकबरे ही बचे हैं |

इन्ही में से बहुत मशहूर है सात बादशाहों की कब्रें जो बड़ी मस्जिद से सटे हुए कब्रिस्तान में मिलती हैं |




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 https://www.facebook.com/hamarajaunpur/यह इलाका अटाला मस्जिद से तकरीबन ९०० यार्ड की दूरी पे  आज भी मोजूद है | यहाँ पे शार्की सुल्तान इब्राहीम शाह ,उनकी पत्नी,  सुलतान फ़िरोज़ शाह जिसने जौनपुर बसाया के बेटे शाहजादा नासिर जहां मालिक ,हुसैन शाह और उनके परिवार इत्यादि की कब्रें मौजूद हैं | कभी इन क़ब्रों के ऊपर रौज़े बने थे जिनकी सजावट देखते ही बनती थी लेकिन इब्राहीम लोधी के तोड़ने के बाद आज यहाँ ७२ कब्रें ही दिखती हैं | जौनपुर जंक्शन स्टेशन से यह जगह केवल एक किलोमीटर की दुरी पे है | इस स्थान पे आप जौनपुर जंक्शन से सब्जी मंदी, कोतवाली , नवाब युसूफ रोड होते हुए बड़ी मसजिद और इन सात मकबरों तक पहुँच सकते हैं |





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जौनपुर में अज़ादारी और शानदार ऐतिहासिक इमामबाड़े |

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जौनपुर अज़ादारी का अपना एक इतिहास है और शिया  मुसलमानों की आबादी लखनऊ के बाद यहाँ सबसे अधिक है | यहाँ एक से एक बड़े ऐतिहासिक इमामबाड़े और मस्जिदें मुग़ल और शार्की समय के मौजूद हैं इसीलिये यहाँ का मुहर्रम और चेहल्लुम दुनिया भर में मशहूर है | जौनपुर की अज़ादारी को अब ऑनलाइन जौनपुर सिटी डॉटइन के प्रयास से नयी वेबसाईट जौनपुर अज़ादारी डॉट कॉमकी शुरुआत के साथ किया जा रहा है |
इस वेबसाईट के द्वारा दुनिया भर में यहाँ की अज़ादारी का इतिहास, यहाँ के मशहुर इमामबाड़ों का इतिहास ,यहाँ की मशहूर सोअज़ और मर्सिया ,नौहा ,मजलिस और अज़ादारी का ख़ुलूस अब दुनिया तक आसानी से पहुंचाया जा सकेगा |अब यहाँ के अजादारो और अज़ादारी के अमन और भाईचारे के पैगामात दुनिया तक आसानी से पहुंचाए जा सकेंगे |जौनपुर का मशहूर मर्सिया, यहाँ का चेहल्लुम, सोअज़ और नौहे अब आप जब चाहें सुन सकेंगे | जौनपुर अज़ादारी के इस पेज को facebook से भी जोड़ा गया है जिससे आप सभी इसको likeकरके जुड़ सकते हैं|
वेबसाईट: http://www.jaunpurazadari.com

जौनपुर के कुछ मशहूर इमामबाड़े
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वीडियो : लीजिये मज़ा उत्तर भारतीय लोकगीत और कजरी का |

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उत्तर भारतीय खासकर पूर्वी लोकगीतों में पूरी पूरी सामजिक व्यवस्था के दर्शन होते है। जब भाई अपनी बहन के घर जाता है, तो बहन अपना दुख बता लेने के बाद भाई से कहती है, 'ये दुख किसी से मत कहना। ये दुख माँ से मत कहना, वह रोएगी,पिताजी से भी न कहना वो भी रोयेंगे। ये सारे दुख अगुआ से कहना, उसी ने ऐसे घर में मेरा ब्याह कराया।'

ईहो दुख ए भइया अम्मा अगवाँ जनि कहिहा

मँचिया बइठलि अम्मा रोईहनि हो राम

ईहो दुख ए भइया बाबा अगवाँ जनि कहिहा

सभवा बइठल बाबा रोईहनि हो राम

ईहो दूख ए भइया अगुवा अगवाँ कहिह

जिनि अगुआ कइलऽ मोर बीयहवा हो राम



यह गीत श्रीमती विजय लक्ष्मी ने गाया है जोकि डॉ पवन विजय की माँ हैं।




लिखा है डॉ पवन मिश्र ने और स्वर दिया है डॉ मनोज मिश्र जी ने |


हमारे गांव में इस समय महिलाये झूले पर बैठ कजरी गा रही होंगी। पेंग मारे जा रहे होंगे। हलकी बारिश में भीगे ज्वान नागपंचमी की तैयारी में अखाड़े में आ जुटे होंगे और मैं यहाँ ७०० किलोमीटर दूर कम्प्यूटर तोड़ रहा हूँ। खैर आप लोग लोकभाषा में लिखे इस गीत और भाव को देखिये।
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हमका मेला में चलिके घुमावा पिया
झुलनी गढ़ावा पिया ना।

अलता टिकुली लगइबे
मंगिया सेनुर से सजइबे,


हमरे उँगरी में मुनरी पहिनावा पिया

मेला में घुमावा पिया ना।

हँसुली देओ तुम गढ़ाई
चाहे कितनौ हो महंगाई,

हमे सोनरा से कंगन देवावा पिया
हमका सजावा पिया ना।

बाला सोने के गढ़इबे
चांदी वाली करधन लइबे,

छागल माथबेनी हमके बनवावा पिया
झुमकिउ पहिनावा पिया ना।

कड़ेदीन की जलेबी
रसमलाई औ इमरती,

एटमबम्म तू हमका लियावा पिया
बरफी खियावा पिया ना।

गऊरी शंकर धाम जइबे
अम्बा मईया के जुड़इबे ,

इही सोम्मार रोट के चढावा पिया
धरम तू निभावा पिया ना।

.......डॉ पवन मिश्र



डॉ ज्योति सिन्हा 

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गउरा बादशाहपुर का इतिहास और उस से जुडी कहानियाँ |

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जौनपुर शहर के साथ साथ इस बार आस पास के गाँव का रुख किया मैंने और कुछ गाँव की तसवीरें वहाँ का रहन सहन वहाँ का इतिहास सब कैमरे में क़ैद करता रहा जिस से उन्हें आप तक पहुंचा सकूँ | मछलीशहर के बाद जा पहुंचा जौनपुर और आज़मगढ़ के बॉर्डर पे बसे गाँव गौरा बादशाहपुर जिसका पुराना नाम गौरा था और औरंगज़ेब के वहाँ आ के जाने के बाद उसका नाम गौरा बादशाहपुर पड़ गया |
कर्बला जो aurnagzeb के दौर में बनी 

अभी जो इतिहास गौरा बादशाहपुर का बताने जा रहा हूँ वो वहाँ के रहने वालों की ज़बानी सुना हुआ  इतिहास है जो इतिहास की किताबों से अलग हो सकता है | वहाँ पे मुझे लगभग ३०० वर्ष पुराने या कह लें मुग़ल दौर के बने मस्जिद और कर्बला मिली और कुछ पुराने मंदिर मिले जो पुराने तो हैं लेकिन उनसे जुडी किवदंतियां बताती हैं की उसी गाँव के कुछ बाबा और संतों की याद में या उनके द्वारा बनवाए गए मंदिर है जिनका अधिक इतिहास वहाँ के लोग नहीं जानते |
 https://www.youtube.com/user/payameamn

वहाँ के इतिहास की तलाश में मैं जा पहुंचा कैसर अब्बास रिज़वी साहब के घर जिनके अनुसार उनका घराना यहाँ औरंगज़ेब से  समय से यहाँ रह रहा है |  उनका कहना है की उनके पुरखे सैयेद नूरुल्लाह जो औरंगज़ेब के किसी बड़े ओहदेदार के भाई था नाराज़गी में जौनपुर के गौरा गाँव में आ गए जिन्हें तलाशते हुए उनके भाई और औरंगज़ेब दोनों का आना यहाँ हुआ | 

सैयेद नूरुल्लाह  एक पहुंचे हुए संत थे जिन्होंने यहाँ आने के बाद यहाँ से जाना स्वीकार नहीं किया तो औरंगज़ेब ने उन्हें यहाँ पे ५७९ बीघा जमीन दे दी और वो यही बस गए | यहाँ बसने के बाद उन्होंने यहाँ कर्बला और मस्जिद बनवाई जो अभी मौजूद है | उसी समय से यहाँ का नाम गौरा से गौरा बादशाहपुर पड़ गया |
Qabr Syed Noorullah 

सैयेद नूरुल्लाह साहब की कब्र वहीँ उनके घर के पास जिसे बमैला भी कहा जाता है मौजूद है और वहाँ लोग मुरादें मांगते और चादरें चढाते हैं |

कैसर अब्बास रिज़वी साहब के अनुसार ५७९ बीघा ज़मीन देने का औरंगज़ेब का फरमान आज भी उनके घराने में मौजूद है |
More than 250 years old Shiv mandir

गौरा बादशाहपुर की कर्बला के ही पास में एक तालाब और मंदिर है जो उसी दौर का बताया जाता है जिसके इतिहास में किसी नागा बाबा का ज़िक्र आता है लेकिन मंदिर शिव मंदिर है जहां तलब और मंदिर का द्रश्य बहुत से सुंदर दिखता है |
Eidgaah build 300 years back
गौरा बादशाहपुर का इतिहास  वहां के लोगों की ज़बानी 
क़ब्र सय्यद नूरुल्लाह



खालिस मुखलिस मस्जिद (चार ऊँगली मस्जिद) के रहस्य |

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पुराने जौनपुर के दरिया किनारे के कुछ इलाके शर्की लोगों की ख़ास पसंद रहे थे | पानदरीबा रोड पे आपको पुराने समय की बहुत सी इमारतें मिलेंगी जिनमे से बहुत से इमामबारगाह जो इमाम हुसैन (अ.स) की याद में बनाए गए थे ,मिलेंगे | यहाँ पान दरीबा रोड पे मकबरा सयेद काजिम अली से सटी हुई एक मस्जिद मौजूद है जिसे खालिस मुखलिसया चार ऊँगली मस्जिद कहते हैं | शर्की सुलतान इब्राहिम शाह के दो सरदार इस इलाके में आया जाया करते थे कि एक दिन उनकी मुलाक़ात जनाब सैयेद उस्मान शिराज़ी साहब से हुई जो की एक सूफी थे और इरान से जौनपुर तैमूर के आक्रमण से बचते दिल्ली होते हुए आये थे और यहाँ की सुन्दरता देख यहीं बस गए | सयेद उस्मान शिराज़ी साहब से यह दोनों सरदार खालिस मुखलिस इतना खुश हुए की उनकी शान में इस मस्जिद  की  तामील  करवायी | जनाब उस्मान शिराज़ी की कब्र वहीं चार ऊँगली मस्जिद के सामने बनी हुई है जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं |जनाब उस्मान शिराज़ी के घराने वाले आज भी पानदरीबा इलाके में रहते हैं जिनके घर को अब मोहल्ले वाले “मीर घर “ के नाम से जानते हैं |

निर्माण कला की दृष्टी से यह मस्जिद शर्क़ी कला की एक झांकी है जो बद हाल हालत में है । गजेटियर जौनपुर  अनुसार इसका निर्माण १४१७ में हुआ  । सिकंदर लोधी ने इसको बहुत नुक़्सान पहुचाया




वैसे तो यह मस्जिद आज पुरातत्व विभाग की देख रेख में हैं लेकिन इसके पीछे का हिस्सा गिर चूका है और आज भी इसे मरम्मत की ज़रूरत है | वहाँ तलाशने पे भी पुरातत्व विभाग का कोई केयर टेकर नहीं मिला | इस मस्जिद में बाएँ हाथ की तरफ की दीवार में एक चार ऊँगल का पत्थर लगा है जिसमे बारे में यह मशहुर है कि पहले इसे कोई भी नापे तो यह चार ऊँगल ही आता था लेकिन अब ऐसा नहीं है |यहाँ के बारे में इसके सामने के मोहल्ले सोनी टोला के लोग बहुत से बातें बताते हैं जो की इतिहास में नहीं मिलती | जैसे कोई कहता है यहाँ अंग्रेजों ने गोली चलायी उसी के बाद से यह पत्थर अब चार ऊँगल सब के नापने पर नहीं आता | कोई कहता है मस्जिद में मछली और घोडा बना है | ऐसा प्रतीत होता है की यह मछली और घोड़े के निशाँ बाद में बनाई गएँ हैं और उनसे कोई बात कही जा रही है |

 https://www.youtube.com/user/payameamn

इन कहानियों की सत्यता तो प्रमाणित नहीं लेकिन यह अवश्य बताता है की यह एक बहुत ही मशहुर मस्जिद है| यहाँ रमजान के महीने में मोहल्ले के शिया मुस्लिम इफ्तार का इंतज़ाम किया करते हैं और नमाज़ होती है | तथा मुहर्रम के महीने में इलाके के लोग मजलिस ऐ हुसैन किया करते हैं |

एस एम मासूम जी ने जौनपुर के पत्रकार जगत को वेब पत्रकारिता का तोहफा दिया | डॉ पवन विजय

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 रामचरित मानस में एक जगह दुनिया भर के लोगों का वर्गीकरण किया गया है. जिसमे पहली श्रेणी में वो लोग है जो करनी में विश्वास करते है दूसरी श्रेणी में वो लोग है जो कहने और उसे करने की कोशिश करते है . तीसरी श्रेणी में लबार लोग आते है जो चिल्ल पों मचाने जिंदाबाद मुर्दाबाद गप्प हांकने अपनी बडाई करने में मशगूल रहते है|

एस एम् मासूम से  उनके जौनपुर आगमन पे एक मुलाक़ात उनके  घर ज़ुल्क़द्र मंजिल में |
यह जौनपुर का सौभाग्य है कि उनके पास सैय्यद मोहम्मद मासूमजैसा पहली श्रेणी का शख्स है जो बिना परिणाम की चाह किये अपने कर्म में रत है| मासूम भाई ने साबित कर दिया कि अमन का पैगाम महज जिव्हा से नही अपितु कर्म के द्वारा सही तरीके से दिया जा सकता है| 

जौनपुर में वेब पत्रकारिता के भीष्म पितामह कहलाने वाले एस एम मासूम जी ने जौनपुर  के पत्रकार जगत को वेब पत्रकारिता का तोहफा दिया जागरूक किया और केवल इतना ही नहीं बिना किसी लोभ के जौनपुर के इतिहास और यहाँ की प्रतिभाओं को विश्व से रूबरू करवाया |
 
सबसे बड़ी विशेषता एस एम् मासूम में यह है की जो भी इनके पास सहयोग के लिए पहुँच गया ये उसे सहयोग देते हैं और हमेशा यही कहते हैं ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर | वतन की और यहाँ के लोगों के लिए सच्चे प्रेम को अगर देखना हो तो आप इसे एम् एम् मासूम जी में देख सकते हैं | हमारी शुभकामनाएं इनके साथ हैं |

डॉ पवन विजय

Dr. Pawan K. Mishra
Associate Professor of Sociology
Delhi  Institute of Rural Development
New Delhi.

अभी नहीं संभले तो शिराज ऐ हिन्द केवल इतिहास में ही रह जायेगा| Dr. Manoj Mishra

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जौनपुर  का अतीत बहुत स्वर्णिम रहा है ,इस को कभी शिराज   -ए -हिंद की खिताब से नवाजा गया था . कहा जाता है कि जौनपुर में इब्राहिमशाह शर्की के समय में इरान से 1000 के लगभग आलिम (विद्वान् ) आये थे जिन्होंने पूरे भारत में जौनपुर को शिक्षा का बहुत बडा केंद्र बना दिया था . इसी कारण जौनपुर को शिराज़े हिंद कहा गया .शिराज का तात्पर्य श्रेष्ठता से होता है
.दरअसल तत्कालीन दौर में जौनपुर शिक्षा का बहुत बडा केंद्र  था .आज मैं इसके अतीत के पन्नों को पलटना नहीं चाहता. .अतीत ही नहीं वर्तमान में भी
देश का ऐसा कोई प्रदेश या शहर नहीं होंगा जहाँ यहाँ के निवासी न रह रहें हों .


उत्तर प्रदेश से प्रशासनिक सेवाओं में सबसे ज्यादा लोग इसी जनपद से हैं और तो और यहाँ के जन्मे लोंगों ने विज्ञान और  अनुसन्धान के क्षेत्र में पूरी दुनिया में नाम कमाया है .यह सब मैं इस लिए नहीं कह रहा हूँ कि यह मेरा गृह जनपद है बल्कि इस लिए कि यह एक ऐतिहासिक तथ्य है . अपने आप में यह दुनिया का एक अनूठा शहर है ,जिसके बीचों -बीच दो भागो  में बांटती सदानीरा गोमती बहती है .मैं इसकी भी चर्चा नहीं करना चाहता कि कैसे इसका नाम  यमदग्निपुर से यवनपुर होते हुए कालान्तर में  जौनपुर के रूप में परिवर्तित हो गया .गोमती तट पर अवस्थित यह शहर प्राचीन भारत में  ब्यापार -विनिमय का महत्त्वपूर्ण केंद्र था .भारतीय पुरातत्व के अथक अन्वेषक सर अलेक्जेंडर कनिंघम को जौनपुर की बड़ी मस्जिद के प्रस्तर खंड पर इश्वरवर्मन का एक अभिलेख मिला था ,जिससे मौखरियों के इतिहास को प्रकाशित करनें में काफी मदत मिली थी. जौनपुर में मलिक सरवर से लेकर शर्की बंधुओं ने 75 वर्षों तक स्वंतंत्र राज किया .इब्राहिमशाह शर्की के समय में जौनपुर सांस्कृतिक दृष्टि  से बहुत उपलब्धि हासिल कर चुका था .उसी के समय में जौनपुर में कला -स्थापत्य में एक नयी शैली का जनम हुआ.जिसे जौनपुर अथवा शर्की शैली कहा गया .कला -स्थापत्य के इस शैली का निदर्शन  आज भी अटाला मस्जिद में किया जा सकता है ।
मैं राग जौनपुरी,चमेली , अमरुद,इमरती और जलेबी  की खुशबू,मूली aur मक्का  की  चर्चा  नही करना चाहता जिसकी अनेक कहानियाँ पुरनियों की जबान से आज भी तैरती रहती हैं .मैं वर्तमान और भविष्य के जौनपुर के बारे में यथार्थ परक बात करना चाहता हूँ  .एक ऐसा शहर-ऐसा जनपद जो कि पूरी दुनिया में पुनः सर्वश्रेष्ठता  हासिल कर सके .निश्चित रूप से इस  डगर पर अनेक चुनौतियाँ हैं और राह में असंख्य कांटे.इन सबसे हमको निपटना होगा,नहीं तो पूर्व का शिराज केवल इतिहास में ही रह जायेगा.आज पूरी दुनिया जहाँ बदलाव के दौर से गुजर रही हैं वहीं जौनपुर भी इससे अछूता नहीं  है.सामाजिक  मान्यताएं बदल रही हैं-रिश्ते नातों की नई परिभाषाएं बन  रही हैं,सामाजिक सरोकार कमरों तक सिमट गये हैं ,सब कुछ अर्थ मय हो चला है.समय की डगर पर जौनपुर भी सक्रिय है-आज जौनपुर के लोग भी सामाजिक सरोकार के नये रूप फेस बुक ,ट्विटर और ब्लॉग के जरिये पूरी दुनिया के साथ-साथ  अपनेँ पड़ोसियों का भी कुशल-क्षेम जान  रहे हैं
.
समय बदला-जमाना बदला लेकिन विकास के मामले में पिछले दो दशकों से आशा के अनुरूप अपना जौनपुर नहीं बदला.यहाँ पर शिक्षा  के उच्चतम संसाधन होने बावजूद भी क्यों हमारे जनपद के विद्यार्थी राष्ट्रीय स्तर पर पिछड़ रहे है?विद्यार्थी उच्च अंक तो पा रहे है लेकिन इस उच्च अंक के पीछे हम कौन सी विधि अपना रहे है ?बेजोड़ खेती -किसानी वाली माटी के बावजूद भी हमारा किसान परेशान क्यों है? ओद्योगिकी कारण के क्षेत्र में जौनपुर आज क्यों पिछड़ रहा है.यह सब विचारणीय प्रश्न है . यह सही है कि शहर की हर डगर पक्की है लेकिन तंग है.यातायात के साधन तो हैं लेकिन सुगमता नहीं है.दिन के समय शहर में चक्रमण ,अच्छे -अच्छों को पसीना ला देता है.आज अगर जौनपुर को समय के साथ चलना है तो उसे नये दौर में ढलना होगा .यहाँ के लोंगों को धर्मं-जाति और राजनीति से ऊपर उठ कर इस शहर की गरिमा को पुनर्स्थापित करने के लिए मूल भूत सुविधाओं के प्रति जबाब देही तय करनी पड़ेगी.दिन में शहर की सड़कों पर दीखते जन सैलाब  को  नियंत्रित करने के लिए हमें कई  बाई पास-ओवर ब्रिज की आवश्यकता है.अब इसमें देर नहीं की जानी चाहिए.इस मुद्दे
पर क्या पक्ष-क्या प्रतिपक्ष -सभी जौनपुर वासियों को एक होना होगा ..यह हम सब के लिए चुनौती
है .  ,उसकी आहट अभी से आ रही है...
बकौल इकबाल साहब - .......

न संभलोगे तो मिट जाओगे ऐ हिंदोस्ता वालों ,
तुम्हारी दास्ताँ भी न होगी इन दास्तानों में.


With Regards-
Dr. Manoj Mishra
Sr.Lecturer
Department of Mass-Communication
V.B.S.Purvanchal University,Jaunpur
(U.P.) India
Phone- +91-9415273104(Mobile)
*Website :  http://manjulmanoj.blogspot.com/

१८५७ जनक्रांति के जौनपुर से पहले शहीद शहीद राजा इदारत जहां का भूला हुआ इतिहास |

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जौनपुर का  १८ सितम्बर सन १८५७ जनक्रांति  का पहला शहीद राजा इदारत जहां| .....लेखक एस एम् मासूम

राजा इदारत जहां के पूर्वंज सैयद अहसन थे जो खुन्दमीर के नाम से जाने जाते थे और मुग़ल सम्राट हुमायूँ के साथ इरान से भारत आये | सैयद अहसन सम्राट हुमायूँ की सेना में सेनापति थे और इन्होने ने ही भारत में जहनिया खानदान की नीव अल्लाहाबाद के परगना कुसुम कदारी में डाली | बाद में अकबर बद्शान के ज़माने में यह आजमगढ़ के माहुल इलाके में बस गए जहां  इदारत जहां का जन्म हुआ था और उनकी पढ़ाई  और परवरिश उनके पिता मुबारक जहां की देख रेख में हुआ | राजा इदारत जहां अरबी ,फारसी ,हिंदी ,उर्दू,संस्कृत इत्यादि के अच्छे जानकार थे |

माहुल स्थित महल के खंडहर 
युद्ध कला में निपुण होने के कारन वे  अवध के नवाब की सेना में भतरी हो गए जहां उन्होने अपनी पकड़ मज़बूत कर ली और कई युद्ध में अंग्रेजों को मात दी | १५ नवम्बर १८५६ को अवध के नाजिम नज़र हुसैन ने इदारत जहां को जौनपुर का नायब नाजिम बना के भेजा | नायब  नाजिम होने के बाद राजा इदारत जहां ने मालगुजारी अपने राज्य की अंग्रेजों को ना भेज के अवध के नवाब बहादुरशाह ज़फर को भेजनी शुरू कर दी |

सन १८५७ में अवध के नवाब वाजिद अली शाह की पदोन्नति हुयी और अवध प्रांत अंग्रेज़ों के शाासन में शामिल हो गया इस घटना ने ताल्लुकेदारों,राजाओं और नवाबो को चिंतिति कर दिया और हर एक सोंचने लगा एक दिन उसके साथ भी ऐसा ही होगा ।  १८५७ ईस्वी में बांदा ने नवाब के यहां शादी के अवसर में एक मीटिंग राजाओं की हुयी जिसमे ये तय पाया गया की अंग्रेज़ों से बलपूर्वक लड़ा जाएगा और दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह ज़फर को  बादशाह स्वीकार कर लिया जाय ।

मुबारक पुर गभिरन के पास 
राजा इदारत जहां को जौनपुर ,आज़मगढ़ ,बनारस, बलिया, तथा मिर्ज़ापुर प्रबध के लिए सौंपा गया ।  जब अंग्रेज़ों ने राजा इदारत जहां से मालग़ुज़ारी मांगी तो उन्हने इंकार कर दिया और कहा हमने दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह ज़फर को  बादशाह स्वीकार कर लिया है और  से माल ग़ुज़ारी उन्ही को दी जाएगी ।

१८ सितम्बर सन १८५७ को कर्नल रिफ्टन को ये खबर लगी की आज़मगढ़ में कुछ लोगों ने आज़ादी का एलान कर दिया है तो उसने तुरंत कैप्टेन बाॅइलो को ११०० गोरखा फ़ौज इस बगावत के दमन के लिए साथ भेजी । इस बगावत का सेहरा जाता था सैयद इदारत जहां के सर जो पहले जौनपुर, आज़मगढ़,सुल्तानपुर,प्रतापगढ़ ,और फैज़ाबाद का उप प्रबंधक थे  ।

इस अस्वीक्रति पे अंग्रेज़ों ने जौनपुर के शाही क़िले पे जो राजा इदारत जहां की सत्ता का केंद्र था उसपे हमला कर दिया । राजा इदारत जहां उस समय चेहल्लुम के सिलसिले में मुबारकपुर गए हुए थे लेकिन दीवान महताब राय से अंग्रेजी फौज का सामना हो गया जो बहुत बहादुरी से लड़े लेकिन बाद में क़ैद कर लिए गए । इस झड़प में बहुत से लोग शहीद  हुए जिनकी क़ब्रें आज भी क़िले में मिलती हैं । शाही क़िले को इस झड़प में बहुत नुकसान हुआ ।


महताब राय ने अंग्रेज़ो से कहा की उनके हाथ   में कुछ नहीं है और राजा इदारत जहां मुबारकपुर गए हुए हैं आप उनसे ही बात कर लें । अंग्रेज़ो ने २७ सितमबर को एक तोपखाना सहित फ़ौज मुबारकपुर  भेज दी । दीवान महताब राय के दरिया के रास्ते से मुबारकपुर ले जाय  गया । राजा इदारत जहां को जब ये मालूम हुआ तो उन्होंने ने अपने सैनिक और सेनापतियों अमर सिंह और मखदूम बक्श को मुकाबले के लिए भेजा जिसने दीवान महताब राय को आज़ाद करवा लिया ।

मुबारकपुर में ये युद्ध चार दिनों तक चला । राजा इदारत जहां के बेटे मुज़फ्फर जहां ने महल की तहसील और थाने पे क़ब्ज़ा कर लिया । राजा फ़साहत से तिघरा नामक स्थान पे झड़प हुयी और अंग्रेज़ो को लगा की लड़ के इन पे   तो उसने संधि प्रस्ताव रखा ।

 राजा फ़साहत भी संधि के लिए तत्पर हो गए और इस संधि पे प्रस्ताव ये था की राजा इदारत जहां का वो सब छेत्र वापस किया जाएगा जिनपे अंग्रेज़ो का क़ब्ज़ा है ।

राजा इदारत जहां भी  इस संधि के लिए तैयार हो गए और मोजीपुर क़िले और मुबारकपुर के मध्य एक आम के बाग़  में ज़ुहर  के बाद का समय संधि के  लिए तय पाया गया । जबकि राजा इदारत जहां  के दोनों  सेनाधिकारी  अमर सिंह और मखदूम बख्श इस संधि के खिलाफ थे । इसी कारण अमर सिंह मोजीपुर क़िले में और मखदून बख्श मुबारकपुर कोट में रुक गए ।

राजा इदारत जहां नमाज़ ज़ुहर के बाद अपने ४० लोगो और  फ़साहत जहां के साथ संधि के लिए आम  के बाग़ में पहुँच गए जहां अँगरेज़ कमांडर पहले से मौजूद था । उस कमांडर ने मक्के के खेत के पीछे अपनी फ़ौज को छुपा रखा था और राजा इदारत जहां के साथ धोका किया जिसमे राजा फ़साहत जहां भी शामिल था । राजा के सारे कर्मचारी वहीँ क़ैद कर के फांसी पे लटका दिए गए और राजा इदारत जहां वहाँ से निकलने की कोशिश में  थे लेकिन आगे जा के धोकेबाज़ पवई के राजा फ़साहत जहाँ के धोके के कारण पकड़े गए जिन्हे अंग्रेज़ों ने उस बाग़ से कुछ दूर एक स्थान पे फांसी दे दी और कई मील उनकी लाश को घुमाया गया और फिर एक आम के पेड़ से लटका दिया गया | इस प्रकार राजा इदारत जहां  १८५७ की क्रांति के पहले शहीद कहलाये ।  सत्य यही है की राजा इदारत जहां  ने १८५७ में अंग्रेज़ो से आज़ादी का बिगुल अपनी शहादत के साथ दिया । जब राजा इदारत जहां  को फांसी दी जा रही थी तो उन्होंने ने अपने धोकेबाज़ भाई फ़ज़ाहत जहां से कहा "भाई जान क्या कोई और  भी ख्वाहिश है "  ये अँगरेज़ तुम्हे कुछ नहीं देंगे ।


कब्र राजा इदारत जहां मुबारकपुर

राजा इदारत जहां  के सेनापति अमर सिंह ने मोजीपुर  के क़िले से युद्ध किया और शहीद  हो गए और इस प्रकार वो आज़ादी की जंग के दुसरे  सिपाही कहलाये ।मखदूम बख्श लड़ते लड़ते कहीं चुप गया और बच गया। इस लड़ाई में मोजीपुर क़िले और मुबारकपुर कोट को नुकसान  पहुंचा इसी लिए आज भी खंडहर की शक्ल में निशाँ मिला करते है ।

राजा फ़साहत जब अंग्रेज़ों से अपना इनाम मांगने गया तो अंग्रेज़ो ने उसे भी यह कह के फांसी दे दी की तुम जब अपने भाई के नहीं हुए तो हमारे वफादार कैसी हो सकते हो ।

माहुल में राजा मुज़फ्फर जो राजा इदारत जहां  का पुत्र था उसने बदला लेने के लिए १६००० सिपाहियों  बनायी जिसमे मखदूम बक्श भी शामिल थे । इस फ़ौज ने तिघरा नामक स्थान पे अंग्रेज़ो पे हमला कर दिया ।  अँगरेज़ फ़ौज घबरा गयी और बिखरने लगी । राजा मुज़फ्फर सन १८६० तक  अंग्रेज़ो से लड़ते रहे और अंत में आगरा के क़िले में क़ैद कर  दिए गए ।


 राजा मुज़फ्फर जहा ने क़ैद होने के पहले खानदान  की  महिलाओं को  खुरासो से नेपाल की तरफ भेज  दिया था और  जब वो आगरा से आज़ाद हुआ तो रुदौली में मीर हुसैन और शेर अली के यहां  शरण ली ।

मेरी मुलाक़ात जौनपुर में तनवीर शास्त्री जी से हुयी तो उन्होंने अपने भाई राजा अंजुम से मिलवाया और बताया की उनका ताल्लुक राजा इदारत जहां के परिवार से है | उनसे बातचीत आपके सामने है |

राजा अंजुम बताते हैं की उनके पूर्वंज सैयद अहसन  खुन्दमीर के पुत्र सय्यद जान अली युद्ध में विजय के बाद |"जान जहां "की पदवी दे के सम्मानित किया गया और उन्हें सैय्यद जान जहां कहा जाने लगा | उनके बाद दुबारा महाराजा अकबर ने उन्हें राजा का खिताब दिया जिसके बाद उन्हें राजा जान जहां अली कहा जाने लगा तभी से उनके वंशज अपने नाम के आगे राजा जहां लगाते हैं |


राजा इदारत जहां की फांसी की कहानी राजा अंजुम की ज़बानी 


सन १८५७ ई० की जन क्रांती मे जिनको फांसी दे दी और उनकी संपत्ती को ज़प्त कर लिया वास्तव में वही स्वतंत्रता की प्रथम क्रांतिकाारी और वीर सैनिक थे जिनपे आज भी भारतवर्ष को गर्व है ।

इन गौरवपूर्ण विभूतियों में राजा इदारत जहा , मेहदी हसन , राजा मुज़फ्फर ,दीवान अमर सिंह , ज़मींदार कुंवर पुर और इनके साथियो का नाम हमेशा अमर रहेगा ।

राजा इदारत जहां की संपत्ति पहले राजा बनारस, राजा जौनपुर और मौलवी करामात अली (मुल्ला टोला ) को दी गयी जिन्होंने इसे लेने से इंकार कर दिया । बाद में ये संपत्ति राय हींगन लाल, महेश नारायण, मीर रियायत अली ,मुंशी हैदर हुसैन, सैयद हसन, अली बख्श खा , मुंशी सफ़दर हुसैन ,मौलवी हसन अली ,मेरे मुहम्मद तक़ी ,अब्दुल मजीद मुंसिफ और मेरे असग़र अली को दे दी गयी ।  ..हवाला जौनपुर नामा
राजा अंजुम ने बताया की  उनके पिता मरहूम सयैद इबादत हुसैन तजम्मुल हुसैन  के बेटे थे |
राजा इदारत जहां के कुछ वंशज बडागांव छुप के गए और वहां से मुल्तान की तरफ निकल गए लेकिन कुछ उनके वंशज सिकंदर जहां , हैदर जहां रुदौली खेतासराय में और अटाला मस्जिद जौनपुर के पास राजा अंजुम जहां और तनवीर शास्त्री रहते हैं |

राजा अंजुम जहां और तनवीर शास्त्री 
राजा इदारत जहां शिया सय्यद थे और उन्होंने अपने समय में बहुत सी मस्जिदें और इमामबाड़े भी बनवाये सय्यद  अहसन अख्विंद मीर जो ईरान के शाह तह्मस्प की फ़ौज में थे हुमायूँ के साथ हिन्दुस्तान आये और जौनपुर में आकर बस गए | उन्होंने बहुत से इमामबाड़े बनवाये जो आज भी मौजूद हैं और उन्होंने ही इस अज़ादारी में "ज़ुल्जिनाह "निकालने का तरीका शामिल किया जो ईरान में पहले से ही मौजूद था | राजा इदारत जहां जो सय्यिद अहसन अख्विंद मीर की नस्ल से हैं उन्होंने भी मस्जिदों और इमाम बाड़ों की तामील करवायी | REF: ibid PG 50-53


......लेखक एस एम् मासूम 

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सपा नेता उमाशंकर चौधरी की हार्ट अटैक से मौत

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समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की मौजूदगी में चल रही पार्टी की बैठक के दौरान आज एक नेता की तबीयत खराब हो गई। उमा शंकर चौधरी को समाजवादी पार्टी के कार्यालय में चल रही बैठक में हार्ट अटैक हो गया। 

ख़बरों के मुताब‌िक आज  लखनऊ स्थ‌ित समाजवादी पार्टी के दफ्तर में सपा की मंथन बैठक चल रही थी। तभी उमाशंकर की तबीयत ब‌िगड़ गई।  उन्हें इलाज के ल‌िए स‌िव‌िल अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोष‌ित कर द‌िया।

म्रत्यु  की सूचना म‌िलते ही अख‌िलेश यादव अस्पताल पहुंचे।




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जौनपुर की तरक्की चाहते हो तो इस चाटुकार युग का अंत करो |

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डॉ मेहर अब्बास बनाय गए कांग्रेस जन आन्दोलन के प्रदेश सह प्रभारी |

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श्री गोस्वामी ने आशा व्यक्त की है की प्रदेश व केंद्र की सरकार के जन विरोधी नीतियों के खिलाफ आंदोलन में डॉ अब्बास  अपनी सक्रिय भूमिका से प्रदेश में हो रहे किसानो दलितों व्यपारियो अल्पसंख्यको पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आन्दोलन को ताकत देंगे ।डॉ अब्बास के सह प्रभारी बनाये जाने पर नदीम जावेद (पूर्व विधायक),वरिष्ठ नेता फैसल हसन तबरेज़,युवक कांग्रेस के पूर्व ज़िलाध्याश प्रमोद मिश्रा, टीडी कालेज के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष अनिल सिंह , राज कपूर श्रीवास्तव ,ज्ञानेश सिंह, मुफ़्ती हाशिम मेहदी, देवानन्द मिश्रा, आज़म जैदी,रूमी आब्दी,इस्तेयाक अहमद,शौरभ शुक्ला, सरवर अहमद ,खालिद अहमद एडवोकेट, इश्तेयाक अहमद ,हाजी वक्कास, विशाल सिंह हुकुम, विकास तिवारी, पंकज सोनकर, रोहित खान, सहित अन्य लोगो ने बधाई दिया है।
जौनपुर। जिले के वरिस्ठ कार्डियोलगिस्ट व् कांग्रेसी नेता डॉ मेहर अब्बास को पार्टी ने जन आन्दोलन का प्रदेश का सह प्रभारी नियुक्त किया है। उनकी नियुक्ति उत्तर प्रदेश कांग्रेस के जन आन्दोलन  के प्रदेश प्रभारी एसपी गोस्वामी ने आला कमान व प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर से विचार करने के बाद किया है।

श्री गोस्वामी ने आशा व्यक्त की है की प्रदेश व केंद्र की सरकार के जन विरोधी नीतियों के खिलाफ आंदोलन में डॉ अब्बास  अपनी सक्रिय भूमिका से प्रदेश में हो रहे किसानो दलितों व्यपारियो अल्पसंख्यको पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आन्दोलन को ताकत देंगे ।डॉ अब्बास के सह प्रभारी बनाये जाने पर नदीम जावेद (पूर्व विधायक),वरिष्ठ नेता फैसल हसन तबरेज़,युवक कांग्रेस के पूर्व ज़िलाध्याश प्रमोद मिश्रा, टीडी कालेज के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष अनिल सिंह ,  आज़म जैदी, सहित अन्य लोगो ने बधाई दिया है।



जानिये  डॉ मैहर अब्बास को |



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सईयां जाई बसे हैं पुरुबी नगरिया,

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पिछली लिखी कजली पर मिले प्यार से अभिभूत हूँ। उसे कविता कोष के लोकगीत में शामिल किया गया है। मुझसे कई मित्रों ने एक और कजली लिखने की फ़रमाईश की थी जिसे आज मैं पूरी कर रहा हूँ। प्रस्तुत कजली की धुन पूर्व से अलग है। आनंद लीजियेगा। 

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सईयां जाई बसे हैं पुरुबी नगरिया, 
मड़ईया के छवावे ननदी। 

घर में बाटी हम अकेली
कउनो संगी ना सहेली

पापी पपिहा बोले बीचोबीच अटरिया
मड़ईया के छवावे ननदी।

सईयां जाई बसे हैं पुरुबी नगरिया,
मड़ईया के छवावे ननदी।

चारो ओर बदरिया छाई
हरियर आँगन मोर झुराई

कइसे गाई जाये सावन में कजरिया
मड़ईया के छवावे ननदी।

सईयां जाई बसे हैं पुरुबी नगरिया,
मड़ईया के छवावे ननदी।

छानी छप्पर सब चूवेला
देहिया भींज भींज फूलेला

अगिया लागे तोहरी जुलुमी नोकरिया
मड़ईया के छवावे ननदी।

सईयां जाई बसे हैं पुरुबी नगरिया,
मड़ईया के छवावे ननदी।

++pawan++

समाज में कुत्ते का स्थान

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 https://www.facebook.com/jaunpurbazaarकुत्ता उन गिने चुने जानवरो में एक है जो इन्सानी सभ्यता के सब से क़रीब रहा और रूखी सुखी खा के भी अपने मालिक के लिए वफादारी के लिए मिसाल पेश करता रहा। हिंदी फिल्मो में इसका इस्तेमाल विलेन को गाली देने के काम में आता रहा मगर यह भी सच है की कुत्ते का विकास मानव सभ्यता के विकास के साथ होता रहा। आज समाज में दो प्रकार के कुत्ते पाये जाते है १. अमीर कुत्ते जिन्हे उनका मालिक पेट कहता है और प्यार से उसके नाम से सम्बोधित करता है। कोई राहगीर या कोई परचित उसे गलती से कुत्ता कह दे तो मालिक उसके सम्बोधन से नाराज़ हो जाता है और तुरन्त अमुक व्यक्ति के सम्बोधन पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर देता है। २. वह कुत्ते जो सड़क पर पैदा होते है और सड़क पर मर जाते है। उनके नाम नहीं होते वह बेनाम होते है और उनका भोजन घरो में बचे झुटे भोजन के अवशेष होते है कोई घर नहीं होता जहॉ जगह मिले सो जाते है। इतना कुछ होने के बावजुद वे मानव समाज के प्रति निष्टावान होते है रात को जब सब सो रहे होते है यह आवारा कुत्ते जिन्हे अमूमन हम देसी कुत्ता कहते है किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को स्वतन्त्र विचरण की इजाज़त नहीं देते बन्दरों से हिफाज़त करते फिर भी उपेझित रहते यह देशी कुत्ते।


स्विट्जरलैंड और आयरलैंड के आदिवासी भी खेती करने से पहले कुत्ते पालते थे जिनसे वे शिकार और रखवालों में सहायता लेते थे तथा इनके मांस का भी सेवन करते थे। भारत में कुत्ते ऋग्वेद काल से ही पाले जाते रहे हैं। ऋग्वेद में कुत्ते को मनुष्य का साथी कहा गया है। ऋग्वेद में एक कथा है कि इंद्र के पास सरमा नामक एक कुतिया थी। उसे इंद्र ने बृहस्पति की खोई हुई गायों को ढूँढ़ने के लिए भेजा था। उसमें श्याम और शबल नामक कुत्तों का उल्लेख है; उन्हें यमराज का रक्षक कहा गया है। महाभारत के अनुसार एक कुत्ता युधिष्ठिर के साथ स्वर्ग तक गया था। मोहन जोदड़ो से प्राप्त मृत्भांडों पर कुत्तों के अनेक चित्र प्राप्त होते है। उनमें उनके उन दिनों पाले जाने का परिचय मिलता है।



कहते है रोमन के शासन काल में जब यहूदी  धर्म का बोल बाला था कुछ लोगो का समूह हज़रात ईसा के ज़हूर(आगमन) के लिये निरन्तर खुदा से प्रार्थना कर रहे थे और नबी का इंतेज़ार जब इसकी भनक राजा को लगी वह बहुत नाराज हो गये और उन्हें मारे जाने के लिए एक आदेश जारी किया गया। अपने ईमान (विश्वास) को बचाने के क्रम में वे भागे और भागने के दौरान उनकी भेट एक नवयुवक किसान से हुई जो एक कुत्ते का स्वामी था और उसने भी साथ आने की विनती की, धार्मिक ग्रंथो के अनुसार समूह ने नवयुवक किसान को अपने साथ आने के न्योता को स्वीकार किया तथा उन्हें भी शामिल होने पर रज़ामंदी का इज़हार किया। कहते है की कुत्ता भी अपने मालिक के साथ हो लिया तथा समूह का यह मानना था की कुत्ता भौक के उनके छुपने के राज़ को उजागर कर देगा। कहते है खुदा जिससे चाहे बुलवा सकता है कुत्ते ने यह कहा की वह वफ़ादार है और वह अपने मालिक और समूह की हिफाज़त करेगा, नतीजा कुत्ते के विनर्म निवेदन के पश्चात समूह ने उस कुत्ते को भी अपने साथ आने की इजाज़त दे दी। उस कुत्ते का नाम कितमीर था और क़ुरान के हवाले से वह जन्नत का हक़दार है। समूह ने एक गुफ़ा में शरण ली और कहते है यह समुह उस गुफ़ा में खुदा ने उन्हें ३०० सालो के लिये सुला दिया और कुत्ता उस गुफ़ा के प्रवेशद्वार पर एक गार्ड के रूप बैठा रहा। क़ुरान शरीफ़ में इसका ज़िक्र सूरह-ए कहफ़ १८:१८ में दर्ज है।





यह देसी कुत्ते प्राय झुण्ड में रहते है जिसमे एक हष्ट-पुष्ट कुत्ता उनका मुखिया होता है और बाकि कमज़ोर कुत्ते और कुछ कुतिये उनके सदस्य इनके इलाके तय होते है और अधिकांश यह अपने इलाके में बेरोक टोक घुमते है किसी बाहरी कुत्ते को इनके इलाके में आने की इजाज़त नहीं होती अगर गलती से कोई बाहरी कुत्ता इनके इलाके में प्रवेश कर जाये तो उसकी भनक उस इलाके के कुत्तो के समुह को तुरन्त हो जाती है और भिन्न प्रकार की आवाज़ में भौकना शुरू कर देता है जो शायद अपने मुखिया और अन्य सदस्यों को चेतावनी होती है की कोई विदेशी घुसपैठ हमारे इलाके में प्रवेश कर गया है फिर तत्काल सारा समुह इकट्टा हो कर उस विदेशी घुसपैठ पर पील पड़ते है और इस आक्रमण की कमान मुखिया के हाथ में होती है। कुत्तो में एक बात अच्छी होती है की जो विदेशी घुसपैठिया अपनी पिछली टांगो के बीच अपनी दुम डाल के आत्मसमर्पण कर देता है फिर उसपर किसी प्रकार का हमला नहीं किया जाता यह विशेषता इंसानो से अलग है। यह मेरा अनुभव है की जब देसी कुत्ते हमला करे तो उनके मुखिया को यदि आघात पंहुचा देने में सफलता मिल जाये तो पूरा का पूरा समूह अपने शिकार को छोड़ कर भाग जाते है।


आज हमारे सभ्य समाज में पालतू कुत्तो का स्थान कुछ चुनिंदा पूजीपतियों ने ले ली है और पुरे देश के बाणिज्य पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने में सफल रहे है और देश की राजनीती की धुरी के रूप में पहचाने जाते है और अवाम नबी की आमद का इंतेज़ार में मशगूल।


Writer: Asad Jafar

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