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जौनपुर के प्रतिभाशाली डॉक्टर तिवारी से लखनऊ सहारा हॉस्पिटल में एक मुलाक़ात ।

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 जौनपुर की प्रतिभाओं की तलाश "हमारा जौनपुर डॉट कॉम "को हमेशा रहती है और इसी तलाश में "हमारा जौनपुर "की टीम जा पहुंची लखनऊ के सहारा हॉस्पिटल में जहां मुलाक़ात हुयी जौनपुर शाहगंज के पास के गाँव घनश्यामपुर निवासी डॉ वी के तिवारी जी से जो आज कल लखनऊ के सहारा हॉस्पिटल में कार्डियोलॉजिस्ट हैं |

डॉ वी के तिवारी ने जौनपुर से इंटर पास किया और उसके बाद अल्लाहबाद चले गए जहां से उन्होंने डाक्टरी की पढाई की शुरुआत की | डॉ वी के तिवारी के पिता अध्यापक थे और उन्होंने अपने बच्चों को आगे बढाने की पूरी कोशिश की जिसमे वो कामयाब भी रहे |

डॉ वी के तिवारी जी का कहना है अगर कोई स्टूडेंट पढना चाहता है तो वो जौनपुर में भी पढ़ के जीवन में आगे निकल सकता है|

डॉ तिवारी जी ने बताया की दिल की बिमारीयों को अनदेखा नहीं करना चाहिए और ख़ास कर के सर्दियों में सावधानी बरतनी चाहिए | दिल के जो मरीज़ हैं उन्हें ठण्ड के समय बाहर आना  जाना नहीं चाहिए |

हमारा जौनपुर टीम की शुभकामनाएं डॉ तिवारी जी के साथ हैं की  जीवन में वो और भी तरक्की करें और जौनपुर का ना रौशन करें |

जौनपुर में जनमें  मशहूर कार्डियोलॉजिस्ट से बात चीत के अंश आप भी सुनें

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मंदिर हनुमान घाट का सुंदर दृश्य

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यदि आप शाही पुल के हम्माम से पूर्व की ओर से गोमती नदी के घाट  की तरफ जाए तो आपको मंदिरो का सुन्दर दृश्य देखने को  मिलेगा । यहाँ सबसे पहले सत्य नारायण जी का मंदिर दिखेगा जो शिल्पकला का बेहतरीन नमूना है । इसे २०० वर्ष पुराना बताया जाता है और इसके दरवाज़े पे एक शिलालेख है जिसपे १८७१ लिखा है । उसे के ठीक सामने दुर्गा देवी का मंदिर है इसका निर्माण भी १०० वर्ष पहले हुआ था । यही गणेश जी और शंकर जी का भी मंदिर है और सबसे अंत में हनुमान जी का मंदिर है जो पंचायती मंदिर कहा जाता है और इसके निर्माण में कसरी लोगो का हाथ है । इस सुंदर नज़ारे को शाही पुल्ल से भी देखा जा सकता है ।




सदर इमामबाड़ा जौनपुर का इतिहास

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सदर इमामबाड़ा जौनपुर का  इतिहास 

दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह के शासन काल में राजा शेख हाशिम अली मछली शहर के पूर्वज शेख फतह  मुहम्मद उर्फ़ मंगली  मंगली मियाँ जौनपुर जो इलाहबाद में प्रबंधक सैनिक अधिकारी थे । उस समय जौनपुर इलाहाबाद के अधीन था । मंगली मियाँ बड़े ही धनवान और प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से थे । उसी समय इन्होने गोमती किनारे इसकी नीव डाली ।

इमामबाड़े में भीतर इमाम हुसैन का ,हज़रत अब्बास का रौज़ा और क़दम ऐ रसूल है । इसकी तामीर फिर से बड़े पैमाने पे १८७८ इ हुयी और इसके फाटक पे लखनऊ के मशहूर  शायर नफीस का शेर लिखा है ।

ऐ जाहे कर्बला पाख इमाम ,या करो गिरया फ़र्ज़ ऍन  यह है
यह जो इसमें  इमामबाड़ा है।,जाय फरियादी शोरो शॉन यह है
बाद जिसका हुआ है नौ तामीर ,मोमिनो के दिलों का चैन यह है
है बजा कहिये गर डरे फ़िरदौस बाग़ ऐ जन्नत का जेब औ जीन यह है
साल ऐ तारिख कई नफीस हज़ी ख़ानए मातम ऐ हुसैन यह है (१२९५ हिजरी)





वरिष्ठ कांग्रेसी नेता श्रीमती गिरजा देवी तिवारी से एक यादगार मुलाक़ात |.....विडीयो

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वरिष्ठ काँग्रेसी नेता श्रीमती गिरजा देवी तिवारी के साथ 

राजन तिवारी के साथ उनके घर पे । 
जौनपुर के स्वतंत्रता सेनानी स्व० प० भगवती दीन  तिवारी को कौन नही जानता और उनके पौत्र  स्व० प० रत्नेश कुमार तिवारी  को तो जौनपुर के लोग आज तक भुला नही सके । स्व० प० रत्नेश कुमार तिवारी ना तो किसी बडे सरकारी पद पे थे और ना ही कोई विधायक रहे लेकीन उनकी ख्याती इतनी थी की जो किसी सरकारी पदाधिकारी या जनता द्वारा चुने गये नेता को भी नही मिलती और इस कारण ये था कि समाज के लोगो के बीच रह के उनके दुख दर्द को महसूस किया करते ,उनकी समस्याओं को सुलझाने में साथ देते रहते थे । समाज के हर वर्ग के लोगो में उनकी बड़ी इज्जत हुआ करती थी । 
इंसान अगर नेक हो और समाज के प्रति ईमानदारी से समर्पित को तो वो मर के भी लोगो के दिलो में जीवित रहता है और इसीलिये आज भी स्व० प० रत्नेश कुमार तिवारी जीवित है और आज की नयी पीढ़ी को राह दिखा रहे है । 
पुत्र अगर स्व० प० रत्नेश कुमार तिवारी जैसा हो तो यह सोंचना ही पड़ता है कि ऐसे पितृ की माता कितनी उच्च विचारो और संस्कारो वाली होगी । 

वरिष्ठ काँग्रेसी नेता श्रीमती गिरजा देवी तिवारी  और उनके दोनो पौत्र 

मानस तिवारी के साथ 
 स्व० प० रत्नेश कुमार तिवारी के साथ साथ उनकी माता श्रीमती गिरजा देवी तिवारी जो आज भी वरिष्ठ कांग्रेसी नेता है ,को जौनपुर बड़ी इज्जत देता है और इसका कारण भी श्रीमती गिरजा देवी का समाज के प्रति समर्पित होना है । गिरजा देवी स्वम  स्वतरंत्रता सेनानियों के घराने से सम्बन्ध रखती है  और विवाह  भी स्वतरंत्रता सेनानि  प० भगवती दीन  तिवारी के घराने में हो गया । आत्मविश्वास की कमी ना होने के कारण जब पारिवारिक ज़िम्मेदारियों को कामयाबी से निभाते हुए उन्होंने समाज सेविका की तरह राजनीति में क़दम रखा तो कामयाबी उनके क़दम छूने लगी । ये वो दौर था जब राजनोति में महिलाओं का योगदान काम कम ही हुआ करता था ।श्रीमती गिरजा देवी तिवारी ने महिलाओं के हक़ के लिए एक बड़ी लड़ाई लड़ी है फिर चाहे वो दहेज़ के खिलाफ हो या बाल विवाह के खिलाफ हो या महिलाओं पे किये जा रहे अत्याचारों के लिए लड़ी जा रही लड़ाई हो । 

राजनीति में सक्रिय होने के बाद उन्हें ५ बार १९७७ और १९८० के बीच जेल  भी जाना पड़ा लेकिन हिम्मत नहीं हारी और समाज के लिए काम करती रही ।    शुरू से श्रीमती गिरजा देवी कांग्रेस के साथ जुडी रही और मछली शहर से इलेक्शन भी लड़ी । कांग्रेस के और सामाजिक संस्थाओं के बहुत से महत्वपूर्ण पदो को कुशलता से संभालते हुए गिरजा देवी ने अपना जीवन समाज और जौनपुर को समर्पित रखा और पिछले ३० वर्षों से आज भी उत्तर प्रदेश कांग्रेस (आई ) लखनऊ की मेंबर है । 

स्व० प० रत्नेश कुमार तिवारी के पुत्र राजन तिवारी से जब मैं मिला तो पाया की वो अपने पिता का आइना है और उनमे वो सभी गुण मौजूद है जो उनके पिता में पाये जाते थे और आगे जा के एक बेहतरीन वकील और अधिवक्ता साबित होंगे और अपने पिता द्वारा समाज के हित  में किये जा रहे काम को आगे बढ़ाते रहेंगे । स्व० प० रत्नेश कुमार तिवारी के  दुसरे पुत्र मानस तिवारी जो इंजीनियर बनने वाले है उनसे जब यह पुछा की यह संस्कार आपको कहाँ से मिले तो उन्होंने छूटते ही अपनी दादी श्रीमती गिरजा देवी तिवारी का नाम लिया जिनसे उनके दोनों पौत्र बड़ा प्रेम करते हैं । 
आज जब स्व० प० रत्नेश कुमार तिवारी जी की माता श्रीमती गिरजा देवी तिवारी से मुलाक़ात हुयी तो उनसे बहुत सी बातें हुयी   नयी और पुरानी राजनीति का अंतर तो कभी युवाओं के भविष्य और उनपे पश्चिमी सभ्यता के  में बात हुयी तो कभी सामाजिक समस्याओ पे । जौनपुर के समाज और उनसे जुडी समस्याओं के बारे में  श्रीमती गिरजा देवी की जानकारी देख के मैं अचमभित  था 

 श्रीमती गिरजा देवी तिवारी से मिल के अच्छा लगा क्यू की श्रीमती गिरजा देवी तिवारी मे एक अच्छी समाज सेविका ,अच्छी नेता, अच्छी माता और अच्छी पत्नी को मैने आज देखा और सबसे बड़ी बात न घमंड और ना दिखावा जब तक सामने बैठा रहा ऐसा कभी नहीं महसूस हुआ की किये राजनितिक पार्टी के वरिष्ठ नेता के सामने बैठा हूँ बल्कि  जैसे मैं अपनी ही परिवार में अपनी माँ के साथ बैठा बातचीत कर रहा हूँ । 

श्रीमती गिरजा देवी तिवारी की दी हुई इज्जत मुझे हमेशा याद रहेगी |






जौनपुर में मौजूद क़दम रसूल और इमामबाड़ा पंजे शरीफ का इतिहास|

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पंजे शरीफ 

 जौनपुर में इक़बाल अहमद इतिहासकार के अनुसार चार और कुछ लोगों के अनुसार नौ क़दम ऐ रसूल मौजूद हैं । एक क़दम ऐ रसूल ख्वाजा सदर जहां और हज़रत सोन बरीस के बीच में मौजूद है दूसरा मोहल्ला बाग़ ऐ हाशिम पुरानी बाजार में ,तीसरा मोहल्ला सिपाह में और चौथा पंजेशरीफ के पास मौजूद है । कुछ और क़दम ऐ रसूल है जो सदर इमाम बाड़ा , हमज़ापुर और छोटी लाइन रेलवे स्टेशन और बड़े इमाम सिपाह के पास है ।

तब मैंने तलाश किया तो मुझे नौ क़दम ऐ रसूल  (स  अ व ) मिले ।

पंजा शरीफ जौनपुर : शाहजहाँ के दौर में ख्वाजा मेरे के पुत्र सय्यद अली कुछ हज़रत मुहम्मद (स अ व ) के पद चिन्ह और हज़रत  अली के दस्त (हाथ) के चिन्ह सऊदी और इराक़ ने १६१५ सन में लाये थे । उन्होंने इसे नसब करने के लिये एक ऊंचा सा टीला उसी जगह बनवाया जहां आज पंजे शरीफ में हज़रत अली का रौज़ा है ।  उनका देहांत आस पास के भवन बनने के पहले ही हो गया और उनकी क़ब्र मुफ़्ती मोहल्ले में ख्वाजा मीर के मक़बरे के अंदर थी ।

पंजे शरीफ का शेष निर्माण एक मुसंभात चमन नामक महिला के बाद में करवाया और उसके विराट गेट पे फारसी में लिखवाया :-

रौज़ा ऐ शाह ऐ नजफ कर्द चमन चू तामीर
ताकि सरसबज़ अर्ज़ी हुस्न अम्लहां बाशद
साल ऐ तारिख चुनी वजहे खेरद मुफ्त भले
पंजा ऐ दस्त यदुल्लाह दर इज़ा बाशद

अनुवाद :  रौज़ा शाह ऐ नजफ़ का निर्माण चमन ने करवाया इसलिए की कर्म सदैव हरा भरा रहे यहां अल्लाह के शेर का हाथ है ।

हज़रत अब्बास अलमदार का रौज़ा 
इस पंजे शरीफ से उत्तर की तरफ १०० क़दम की दूरी पे चमन की पुत्री नौरतन ने हज़रत अब्बास अलमदार का रौज़ा और इमामबाड़ा बनवाया जो आज भी मौजूद है और यहां बड़ी मुरादें पूरी हुआ करती हैं ।

जौनपुर के कुछ इलाकों में क्यूँ आता है प्रदूषित और खारा पानी ?

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सर्वप्रथम वर्ष 1993 में 22 मार्च के दिन पूरे विश्व में जल दिवस मनाया गया और इस मौके पर जल के संरक्षण और रख-रखाव पर जागरुकता फैलाने का कार्य किया गया |



चलिए जल दिवस पे जल से सम्बंधित जौनपुर की समस्याओं पे कुछ ध्यान दिया जाय | कुछ इलाकों के प्रदूषित और खारे पानी  से ले कर गोमती नदी में  प्रदुषण की की समस्याओं से जूझता ये जौनपुर इस जल दिवस पे ये अवश्य पूछना चाहता है की वर्षों से इन समस्याओं पे बात होती रही है लेकिन आज तक इन समस्याओं का हल नहीं निकाला जा सका | क्यूँ ?

जौनपुर में गोमती नदी के किनारे बसे पानदरीबा , बाज़ार भुआ  जैसे इलाकों पे जो पानी वर्षों से आ रहा है वो आज भी खारा और प्रदूषित है |अब चलिए खारा ही सही पानी तो चाहिए तो जनाब वो पानी भी बिना टुल्लू लगाए आपको नहीं मिल सकेगा |

गोमती नदी जौनपुर में खासी चौड़ी और सुंदर हो जाती है लेकिन तेज़ बहाव के बाद भी इसका पानी साफ़ नहीं बल्कि दुनिया भर की गंदगी और प्रदुषण आपको इसमें मिलेगा | गोमती को साफ़ करने के ना जाने कितने अभियान चले कुछ कामयाब भी हुए लेकिन बस थोड़े समय के लिए |

प्रशासन का  जौनपुर की खारा पानी , प्रदूषित पानी और गोमती की सफाई की तरफ ध्यान आकर्षित करवाना आज जौनपुर के हर निवासी का धर्म है क्यूँ की साफ़ पानी मिलेगा तो आपकी सेहत भी रहेगी और आपकी आयु भी बढ़ेगी |


मशहूर शायर जनाब डॉ बर्की अहमद आज़मी साहब का तोहफा जौनपुर सिटी वेसाईट को |

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डॉ अहमद बर्की साहब उर्दू के मशहूर शायर हैं जिनका जन्म २५ दिसम्बर १९५४ को आजमगढ़ शहर में हुआ |इनकी प्रारंभिक शिक्षा शिबली नॅशनल कॉलेज आजमगढ़ से हुयी और मास्टर डिग्री उर्दू /फ़ारसी से करते हुए पी एच डी दिल्ली की जवाहरलाल यूनिवर्सिटी से पूरी की | डॉ साहब के बारे में अधिक जानकारी इनकी वेबसाईट www.drbarqiazmi.com , से मालूम की जा सकती है | जौनपुर सिटी की पूरी टीम डॉ साहब की आभारी है की इन्होने वेबसाईट को देखा और सराहा |








डॉ साहब का भेजा तोहफा आप सभी के सामने पेश ऐ खिदमत है |

है यह बर्की यादगार जौनपुर

दिलनशीं हैं शाहकार ऐ जौनपुर

था कभी यह मर्ज ऐ अहले नज़र

क्या हुई अब वो बहार ऐ जौनपुर

है निहायत कार अहमद यह ब्लॉग

बाइस ऐ इज्जो वेकार ऐ जौनपुर

मुस्तहक हैं दाद के इस के मुदीर

रूह परवर है दयार ऐ जौनपुर

थे शाफिक ओ कामिल औ मोहसिन रजा

अहद ऐ हाज़िर में वेकार ऐ जौनपुर

कहते थे इस शहर को शिराज़ ऐ हिन्द

है माता ऐ फन निसार ऐ जौनपुर

है मेरी ससुराल भी बर्की यहाँ

खूब हैं गर्द औ गुबार ऐ जौनपुर |

जौनपुर और आज़ादी की लड़ाई |

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 शहीदो की चिताओं पर लगेंगें हर बरस मेले,

वतन पर मरने वालो का यही बाकी निशां होगा।

ब्रिटिश कालीन जौनपुर राज्यक सत्ता। के विरूद्ध विद्रोह का गवाह रहा है, इसके चप्पेे - चप्पेो से भारत को स्वाटधीन कराने तथा 1857 की क्रान्ति में बढ़ चढ़ कर हिस्सा  लेने की छटपटाहट देखी गयी। सन् 1857 ई0 में क्रान्ति के लिए 31 मई को चारो ओर पोस्ट र लगा दिये गये थे। देशी सिपाहियों से हथियार जमा करने का निर्देश दे दिया गया था। 5 जून 1857 ई0 को बनारस से विद्रोह का समाचार जौनपुर पहुचा, 8 सितम्बार को आजमगढ़ के गोरखा फौजे जौनपुर में आ गयीं। इससे इस जनपद से बनारस भागे हुए सभी सिविल अधिकारी जौनपुर में आ गये जौनपुर का उत्त री पश्चिमी भाग विद्रोह की आग में जल रहा था। माता बदल चौहान के नेतृत्वआ में 5 जून 1857 ई0 में अंग्रेजी सेना से स्व तंत्रता संग्राम सेनानियों का मुकाबला हुआ। परन्तुे भाग्ये ने उनका साथ नही दिया। माता बदल चौहान और उनके साथियों को अंग्रेजो ने फासी दे दी। इस संघर्ष में एक विधि अधिकारी सारजेन्ट  विग्रेड की इन बहादुरो ने हत्याा कर दी। नेवढिया गांव के ठाकुर संग्राम सिंह बागी हो गये उन्होटने अंग्रेजो को अनेक बार परास्ता किया। बदलापुर के जमींदार बाबू सल्तानत बहादुर सिंह को अंग्रेज झुका न सकें। सल्त्नत बहादुर सिंह के पुत्र संग्राम सिंह ने अनेक बार अंग्रेजों से लोहा लिया। बाद में अंग्रेजो ने उन्हेस पेड़ में बांध कर गोली मार दी। अमर सिंह ने अपने चार पुत्रों के साथ करंजा के नील गोदाम पर धावा बोल कर उसको लूट लिया। अंग्रेजों ने उनके गांव आदमपुरपर चढ़ाई की लिमसें वे छल पूर्वक मारे गये। वाराणसी, डोभी, आजमगढ़ मार्ग पर डोभी के रघुवंशी राजपूतों ने कभी किसी की आधीनता स्वीवकार नही की। उन्हो ने अपने निकटवर्ती क्षेत्रो पर 1857 ई0 की क्रान्ति में अधिकार कर लिया और तिरंगा झण्डाक भी फहरा दिया। बनारस की ओर बढते समय उनका सामना टेलर की सिख सेना से हो गया, डोभी के राजपूतों ने पेशवा के नील गोदाम के अंग्रेजो को मौत के घाट उतार दिया। सेनापुर नामक गांव को अर्ध रात्रि को सोते समय अंग्रेजो ने घेर कर 23 लोगों को आम के पेड़ में लटका कर फासी दे दी। हरिपाल सिंह, भीखा सिंह और जगत सिंह आदि पर अंग्रेजो ने मुकदमा चलाने का नाटक करके फासी की सजा दे दी। रामसुन्दिर पाठक स्वंतंत्रता संग्राम सेनानियों में बहादुरी के लिए जाने जाते है। ऐसा माना जाता है कि 1857 के विप्लहव में जौनपुर के लगभग दस हजार लोगों ने प्राणोत्सजर्ग किया।



 सन् 1885 ई0 में भारतीय राष्टीरय काग्रेस की स्थाापना हुई। उसके एक दशक बाद नगर के उर्दू मुहल्लेम में काग्रेस की पहली बैठक हुई। 1909 में वाराणसी में काग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में जौनपुर से भी कई लोगों ने भाग लिया। प्रथम विश्वज युद्ध के समय जौनपुर के एक आन्दोरलनकारी मुज्तपबा हुसैन अमेरिका में बम बनाने की कला सीखने के लिए गये। बाद में उन्हेक धोखे से अंग्रेजो ने गिरफतार कर लिया। होम रूल लीग की सन् 1916 में स्थाापना के बाद इस संस्था  ने जौनपुर में काम करना प्रारम्भे किया। 1920 में महात्माल गांधी के असहयोग आन्दो लन में जौनपुर ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। इस दौरान मोती लाल नेहरू, श्रीमती सरोजनी नायडू, जवाहर लाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय, शौकत अली ने भी जनपद का भ्रमण किया तथा सभाएं की। अक्टू बर 1929 में महात्माच गांधी ने भी जौनपुर का भ्रमण किया। 1932 में मुनिस्प0ल बोर्ड तथा जिला परिषद भवन पर काग्रेस का झण्डान फहराया गया। इसके तहत 72 लोगो पर मुकदमा चला तथा उन्हे1 सजा दी गयी। उनसे 1370-00 रूपये जुर्माना के रूप में भी वसूला गया। 10 अगस्त् 1942 को भारत छोड़ो आन्दोीलन के तहत जनपद में आन्दोफलन प्रारम्भ  हुआ। 11 अगस्ता 1942 को काग्रेस के तमाम नेता छात्र नौजवान तथा दुकानदारो ने जौनपुर नगर में एक रैली निकाली। दोपहर को एक विशाल भीड़ ने कलेक्टे ट परिसर में प्रवेश करके तिरंगा फरहाने का प्रयास किया। भीड़ को तितर बितर करने के लिए पुलिस ने गोली चलाई। जनपद के विभिन्न  क्षेत्रों में आन्दोालनकारियों ने विभिन्नल माध्यदमों से अपने क्रोध की अभिव्याक्ति की। सुजानगंज का पुलिस स्टेगशन जला दिया गया। शाहगंज, सरायख्वा्जा, जलालगंज के टेलीफोन तार काट दिये गये। मडियहू, विलवाई, बादशाहपुर तथा डोभी के रेलवे स्टेवशन क्षतिग्रस्तक कर दिये गये। धनियामउ को पुल तोडते समय पुलिस और क्रांतिकारियों में संघर्ष हुआ जिसमें सिंगरामउ के दो विद्यार्थी जमींदार सिंह, रामअधार सिंह सहित राम पदारथ चौहान तथा रामनिहोर कहार पुलिस की गोली के शिकार हुए। 15 अगस्ति 1942 को जिले का प्रशासन सेना को सौप दिया गया। मछलीशहर तथा उचौरा में सेना की गोली से 11 आदमी मारे गये तथा 17 घायल हुए। हर गोविन्दी सिंह, दीप नारायण वर्मा, मुज्त9बा हुसैन एवं अन्यप प्रमुख नेताओं सहित 196 लोगों को गिरफतार कर जेल भेज दिया गया। रामानन्द  एवं रघुराई को पुलिस ने बरबरता पूर्वक पीटा अगरौरा गांव में उन्हे  पेडों से लटका कर 23 अगस्तक 1942 को गोली मार दी गयी और तीन दिन तक उनकी लाश लटकती रही।



 शहीदो की चिताओं पर लगेंगें हर बरस मेले, वतन पर मरने वालो का यही बाकी निशां होगा। शहीद राम प्रसाद बिस्मिचल की उक्तह पंक्ति,यां  सटीक बैठती हैं जब  किसी शहीद स्मारक पे वहाँ के लोग अमर सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करने आते है |

दुःख कि बात यह है कि आज इन शहीद स्मारकों का इस्तेमाल राजनीती के लिए हों रहा है | एक बार बनवा तो दिया जाता है लेकिन उसकी देख भाल सही तरीके से नहीं की जाती |

जाफराबाद जाते समय रास्ते में पड़े ग्राम हौज जौनपुर के इस शहीद स्मारक  का  यह विडियो आप के सामने है | 


तेरे खुशबू से भरे खत मैं जलाता कैसे ?

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ग्रीटिंग कार्ड वाला जमाना भी क्या ज़माना था।

 तेरे खुशबू से भरे खत मैं जलाता कैसे
मन किशन सरोज हुआ जा रहा.....
कर दिए लो आज गंगा में प्रवाहित
सब तुम्हारे पत्र, सारे चित्र, तुम निश्चिन्त रहना


धुंध डूबी घाटियों के इंद्रधनु तुम

छू गए नत भाल पर्वत हो गया मन
बूंद भर जल बन गया पूरा समंदर
पा तुम्हारा दुख तथागत हो गया मन
अश्रुजन्मा गीत कमलों से सुवासित
यह नदी होगी नहीं अपवित्र, तुम निश्चिन्त रहना


दूर हूँ तुमसे न अब बातें उठेंगी

मैं स्वयं रंगीन दर्पण तोड़ आया
वह नगर, वह राजपथ, वे चौंक-गलियाँ
हाथ अंतिम बार सबको जोड़ आया
थे हमारे प्यार से जो-जो सुपरिचित
छोड़ आया वे पुराने मित्र, तुम निश्चिंत रहना


लो विसर्जन आज बासंती छुअन का

साथ बीने सीप-शंखों का विसर्जन
गुँथ न पाए कनुप्रिया के कुंतलों में
उन अभागे मोरपंखों का विसर्जन
उस कथा का जो न हो पाई प्रकाशित
मर चुका है एक-एक चरित्र, तुम निश्चिंत रहना

.............पवन विजय 


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जौनपुर में फैली ये मजारें ,क़ब्रें और उनपे लगते ये उर्स और चढ़ती चादरें इतिहास के आईने में ।

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जो लोग जौनपुर और आसपास के इलाक़े में आया जाया करते हैं उन्होंने यह अवश्य देखा होगा की   यहाँ जगह जगह  क़ब्रें और रौज़े बने हैं जिनपे हरी चादरें पडी रहती है या उनपे उर्स साल में एक बार लगता है या फिर ऐसी मजारें हैं जहाँ  गाँव वाले मुरादें मांगने जाया करते हैं ।

हर इंसान एक बार ऐसे नज़ारे देख के यह सोंचने पे मजबूर  एक बार अवश्य हो जाएगा की  ये किसकी मज़ारे हैं जिनके इतने मुरीद आज भी हैं ?  जब मैंने इसके बारे में शोध किया तो मुझे महसूस हुआ की ये मजारें और क़ब्रें तीन तरह के लोगों की है । सबसे पहले जो  बड़ी मजारें मिलती है  सय्यद संत थे जो शर्क़ी समय में जौनपुर में आ के बस गए थे । दुसरे वो सय्यद थे जो शाही घराने में उच्च पदो में थे और जंग में मारे गए । तीसरे वो सूफी या संत हैं जो जौनपुर में  रह के ज्ञान अर्जित किया करते थे और दूर गाँव इत्यादि में बसे  हुए थे ।


इन संतो और सूफियों की जौनपुर में आमद शर्क़ी काल  में १४०१ इ० के आस पास शुरू हुयी तब तैमूर लंग ने दिल्ली पे आक्रमण किया और   सब तरफ मारकाट शुरू हो  गयी और  दौर में अगर कहीं शान्ति थी  तो वो केवल जौनपुर और शर्क़ी राज्य में थी । इब्राहिम  शाह  उस समय जौनपुर का बादशाह था और सभी धर्मो के लोगो को और ज्ञानी ,संतो  को इज्जत दिया करता था ।

जब यह महान संत जिनकी  तादात १४०० से अधिक बातायी जाती है जौनपुर मे बसे तो इनके मुरीद  हिंदू और मुसलमान दोनो हो गये इसीकारण से आज भी उनकी मजारो  पे दोनो धर्म के लोग जाते, चादर चढाते और उरस मे  शरीक हुआ  करते है  ।

ये वही  संत और ज्ञानी है जिनके कारण  जौनपुर को शिराज ए हिंद कहा गया ।

लेकिन इन सबसे हट  के ऐसी क़ब्रों की तादात भी बहुत है जो कौन लोग थे  नहीं लेकिन गाँव वालों ने उनको अपनी मुरादें मांगने का ज़रिया बना लिया और उनके बारे में तरह तरह  किवदंतियां मशहूर हो गयी जिनकी सत्यता प्रमाणित नहीं ।


शार्क़ी समय मे आये १४०० संतो मे से  से ४-५ क़ब्रें तो हमारे ही पूर्वजो की हैं जो सय्यद भी थे ज्ञानी  भी थे लेकिन हम में   से कोई उन मज़ारों  मांगने नहीं जाता हाँ रौशनी करने कभी कभी जाय करते हैं । उनपे उर्स आस पास के  गाँव वाले लगाते हैं जहा वो दफन हैं और चांदरें भी वही लोग  चढ़ाया करते हैं ।

बहुत मशहूर है कि इब्राहिम शाह के दौर में ईद और बकरईद पे नौ सौ चौरासी विद्वानो की पालकियां निकला करती थी ।

कुछ महान संतो के नाम इस प्रकार है ।



शेख वजीहुद्दीन अशरफ ,उस्मान शीराज़ी ,सदर जहा अजमल,क़ाज़ी नसीरुद्दीन अजमल, क़ाज़ी शहाबुद्दीन मलिकुल उलेमा क़ाज़ी निजामुद्दीन कैक्लानी, मालिक अमदुल मुल्क बख्त्यार खान, दबीरुल मुल्क कैटलॉग खान, मालिक शुजाउल मुल्क मखदू ईसा ताज,शेख शम्सुल हक़ ,मखदूम शेख रुक्नुद्दीन, सुहरवर्दी, शेख जहांगीर, शेख हसन ताहिर,मखदूम सैय्यद अली दाऊद कुतुबुद्दीन, मखदूम शेख मुहम्मद इस्माइल ,शाह अजमेरी,ख्वाजा क़ुतुबुद्दीन ,ख्वाजा शेख अबु सईद चिस्ती ,मखदूम सैयद सदरुद्दीन, शाह सैय्यद ज़ाहिदी, मखदूम बंदगी शाह,साबित मदारी।, शेख सुलतान महमूद इत्यादि


सबको तो पेश करना यहा आसान नही लेकिन कुछ को पेश कर रहा हू ।

दानियाल खिजरी पुरानी बाजार जौनपुर 



ये हमारे ७०० वर्ष पुराने पूर्वज सय्यद अली दाऊद की क़ब्र है जो सदल्ली पूर  इलाक़े में  है और आस पास हिन्दू घर बसे है जो इन्हे सय्यद बाबा कहते हैं और चादरें चंढाते है ।लाल दरवाज़ा १४४७  लाला दरवाज़ा मस्जिद का निर्माण १४४७ में सुलतान महमूद शार्की के दौर में उनकी पत्नी बीबी राजे ने करवाया और उसे उस दौर के एक सैय्यद आलिम जनाब सयेद अली दाउद कुतुब्बुद्दीन को समर्पित कर दिया |
लाल दरवाज़ा का निर्माण बीबीराजे ने एक सैयद संत की शान में करवाया|

सय्येद  बडे और उनके भाई  
सय्यिद बरे हजरत मुहम्मद (स.अ.व) की ३२ वीन नस्ल थे और ७७० हिजरी १३६८ इस्स्वी में वो दिल्ली से जाफराबाद के करीन एक इलाके सरसौन्दा (अब मसौन्दा) में आकर बस गए और एक तालाब के किनारे छप्पर डाल के रहने लगे | सय्यिद बरे ने वहाँ के गांव वालों को गुमराही से बचाया और एक ऐसे संत जो हर अमावस्या को गाँव के लोगों से सोना चांदी ,धन दौलत की मांग करता था उसके ज़ुल्म से बचाया |

जानिये कजगांव तेढ़वान की दो भाइयों की टेढ़ी कब्र का रहस्य

सय्येद उस्मान शिराजी 
पुराने जौनपुर के दरिया किनारे के कुछ इलाके शर्की लोगों की ख़ास पसंद रहे थे | पानदरीबा रोड पे आपको पुराने समय की बहुत सी इमारतें मिलेंगी जिनमे से बहुत से इमामबारगाह जो इमाम हुसैन (अ.स) की याद में बनाए गए थे ,मिलेंगे | यहाँ पान दरीबा रोड पे मकबरा सयेद काजिम अली से सटी हुई एक मस्जिद मौजूद है जिसे खालिस मुखलिस या चार ऊँगली मस्जिद कहते हैं | शर्की सुलतान इब्राहिम शाह के दो सरदार इस इलाके में आया जाया करते थे कि एक दिन उनकी मुलाक़ात जनाब सैयेद उस्मान शिराज़ी साहब से हुई जो की एक सूफी थे और इरान से जौनपुर तैमूर के आक्रमण से बचते दिल्ली होते हुए आये थे और यहाँ की सुन्दरता देख यहीं बस गए | सयेद उस्मान शिराज़ी साहब से यह दोनों सरदार खालिस मुखलिस इतना खुश हुए की उनकी शान में इस मस्जिद  की  तामील  करवायी | जनाब उस्मान शिराज़ी की कब्र वहीं चार ऊँगली मस्जिद के सामने बनी हुई है जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं |जनाब उस्मान शिराज़ी के घराने वाले आज भी पानदरीबा इलाके में रहते हैं जिनके घर को अब मोहल्ले वाले “मीर घर “ के नाम से जानते हैं |
खालिस मुखलिस मस्जिद जिसे चार ऊँगली मस्जिद भी कहते हैं |

जौनपुर के इस इलाके में कहाँ से आया यह तेंदुआ ?

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जिला मुख्यालय से करीब 5 किलोमीटर दूर सराय ख्वाजा थाना क्षेत्र के रामपुर डेरवा गाँव शुक्रवार से ही न सिर्फ जनपद में बल्कि प्रदेश में भी चर्चा का केंद्र उस समय बन गया जब कही से एक तेंदुआ खेत में पहुच गया और वहा काम कर रहे किसानो पर जानलेवा हमला कर दिया | ग्रामीणों ने एक जुटता दिखाते हुए किसी तरह तेंदुए को काबू में करने का प्रयास किया तो वो रिहायशी मकान की तरफ भागा और दिलीप  मौर्या के पक्के मकान में घुस गया जहा महिलाये और बच्चे मौजूद थे | आनन फानन में थाने की पहुची पुलिस के जाबांज थानाध्यक्ष केके मिश्रा ने घर में घुस कर पहले तो महिलाओ को सुरक्षित बाहर निकाला और फिर मकान में बने चैनल को बंद कर उसे काबू में करने का प्रयास शुरू कर दिया | उधर वन विभाग की टीम भी पहुची पर संसाधनों के मौजूद न रहने के कारण वे मूक दर्शक बने रहे | आखिर कार 24 घंटे बाद लखनऊ , कानपूर व् वाराणसी से आई वन विभाग की टीम ने विशेष आपरेशन चलाया और बेहोश कर उसे एक घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद उसे अपने कब्ज़े में ले  लिया|
जौनपुर  के इस इलाके में कहाँ से  आया यह तेंदुआ यह अभी तक राज़ बना  हुआ है ।





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कैफ़ी आज़मी के जन्म दिन पर

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'इतना तो जिंदगी मे किसी की खलल पड़े 
हंसने से हो सुकून ना रोने से कल पड़े।'

14 जनवरी 1919 को उत्तर प्रदेश मे आजमगढ़ जिले के मिजवां गांव मे जन्मे सैयद अतहर हुसैन रिजवी उर्फ कैफी आजमी के पिता जमींदार थे। पिता हुसैन उन्हें ऊंची से ऊंची तालीम देना चाहते थे और इसी उद्देश्य से उन्होंने उनका दाखिला लखनउ के प्रसिद्ध सेमिनरी सुल्तान उल मदारिस में कराया था।
1- एक बार पुत्र की परीक्षा लेने के लिये पिता ने उन्हें गाने की एक पंक्ति दी और उसपर उन्हें गजल लिखने को कहा। कैफी आजमी ने इसे एक चुनौती के रूप मे स्वीकार किया और उस पंक्ति पर एक गजल की रचना की। उनकी यह गजल काफी लोकप्रिय हुई और बाद मे सप्रसिद्ध पाश्र्व गायिका बेगम अख्तर ने उसे अपना स्वर दिया। गजल के बोल कुछ इस तरह से थे 'इतना तो जिंदगी मे किसी की खलल पड़े ना हंसने से हो सुकून ना रोने से कल पड़े।'
2- कैफी आजमी महफिलों में शिरकत करते वक्त नज्मों को बड़े प्यार से सुनाया करते थे। इसके लिये उन्हें कई बार डांट भी सुननी पड़ती थी जिसके बाद वह रोते हुये अपनी वालिदा के पास जाते और कहते ‘अम्मा देखना एक दिन मै बहुत बड़ा शायर बनकर दिखाउंगा।’
3- कैफी आजमी कभी भी उच्च शिक्षा की ख्वाहिश नही रखते थे। सेमिनरी मे अपनी शिक्षा यात्रा के दौरान वहां की कुव्यवस्था को देखकर कैफी आजमी ने छात्र संघ का गठित किया और अपनी मांगों की पूर्ति नहीं होने पर छात्रो से हड़ताल पर जाने की अपील की। कैफी आजमी की अपील पर छात्र हड़ताल पर चले गये और इस दौरान उनका धरना करीब डेढ़ साल तक चला। लेकिन इस हड़ता-ल के कारण कैफी आजमी सेमिनरी प्रशासन के कोपभाजन बने और धरने की समाप्ति के बाद उन्हें सेमिनरी से निकाल दिया गया। इस हड़ताल से कैफी आजमी को फायदा भी पहुंचा और इस दौरान कुछ प्रगतिशील लेखको की नजर उनपर पड़ी जो उनके नेतृत्व को देखकर काफी प्रभावित हुये थे । उन्हें कैफी आजमी के अंदर एक उभरता हुआ कवि दिखाई दिया और उन्होंने उनको प्रोत्साहित करने एवं हर संभव सहायता देने की पेशकश की।
4- 1942 मे कैफी आजमी उर्दू और फारसी की उच्च शिक्षा के लिये लखनऊ और इलाहाबाद भेजे गये लेकिन कैफी ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया
की सदस्यता ग्रहण करके पार्टी कार्यकर्ता के रूप मे कार्य करना शुरू कर दिया और फिर भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हो गये। इस बीच मुशायरो मे कैफी आजमी की शिरकत जारी रही। इसी दौरान 1947 मे एक मुशायरे मे भाग लेने के लिये वह हैदराबाद पहुंचे जहां उनकी मुलाकात शौकत आजमी से हुई और उनकी यह मुलाकात जल्दी ही शादी मे तब्दील हो गई। आजादी के बाद उनके पिता और भाई पाकिस्तान चले गये लेकिन कैफी आजमी ने हिंदुस्तान में ही रहने का निर्णय लिया।
5- शादी के बाद बढ़ते खर्चो को देखकर कैफी ने एक उर्दू अखबार के लिए लिखना शुरू कर दिया जहां से उन्हें 150 रुपए माहवार वेतन मिला करता था। उनकी पहली नज्म ‘सरफराज’ लखनऊ में छपी ।शादी के बाद उनके घर का खर्च बहुत मुश्किल से चल पाता था। उन्होंने एक अन्य रोजाना अखबार मे हास्य व्यंग्य भी लिखना शुरू किया। इसके बाद अपने घर के बढ़ते खर्चो को देख कैफी आजमी ने फिल्मी गीत लिखने का निश्चय किया ।
6- कैफी ने सबसे पहले शाहिद लतीफ की फिल्म 'बुजदिल'के लिए दो गीत लिखे जिसके एवज मे उन्हें 1000 रुपये मिले। इसके बाद वर्ष 1959 में प्रदर्शित फिल्म फिल्म कागज के फूल के लिए कैफी आजमी ने 'वक्त ने किया क्या हसीं सितम तुम रहे ना तुम हम रहे ना हम'जैसा सदाबहार गीत लिखा। वर्ष 1965 में प्रदर्शित फिल्म 'हकीकत'में उनके रचित गीत 'कर चले हम फिदा जानों तन साथियो अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों'की कामयाबी के बाद कैफी
आजमी सफलता के शिखर पर जा पहुंचे ।
7- बहुमुखी प्रतिभा के धनी कैफी आजमी ने फिल्म गर्म हवा की कहानी संवाद और स्क्रीन प्ले भी लिखे जिनके लिये उन्हे फिल्म फेयर के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। फिल्म हीर-रांझा के संवाद के साथ-साथ कैफी आजमी ने श्याम बेनेगल की फिल्म 'मंथन'की पटकथा भी लिखी।

8- लगभग 75 वर्ष की आयु के बाद कैफी आजमी ने अपने गांव मिजवां में ही रहने का निर्णय किया। अपने रचित गीतों से श्रोताओं को भावविभोर करने वाले महान शायर और गीतकार कैफी आजमी 10 मई 2002 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।

लेखक हसन इमाम 

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हमारा जौनपुर डॉट कॉम ने विश्व स्तर पर जिले का नाम किया रौशन -राजेश श्रीवास्तव

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हमारा जौनपुर डॉट कॉम ने अपने सफलता के पांच वर्ष पूरा करते हुए जौनपुर जिले का नाम विश्व पटल पर पहुंचाया है। हम तहे दिल से इस पोटल के संचालक मासूम भाई को सलाम करते है क्यों कि वो रोजी रोटी के सिलसिले से कई वर्षो से वो अपना वतन छोड़कर माया नगरी मुंबई में रहते हुए अपनी जन्म स्थली शिराज़ ए हिन्द से जौनपुर से जुड़े रहे साथ ही यहां की खासियत और ऐतिहासिकता को पूरी दुनियां में पहुंचने के लिए दिन रात मेहनत करते रहे। आज जौनपुर के बारे में विश्व के किसी कोने में बैठा व्यक्ति माउस की एक क्लिक करके जान  है। 
अपनी मिट्टी की सुगंध पूरी दुनियां में पहुँचने के लिए एक बार फिर से मासूम भाई को हार्दिक बधाई और धन्यवाद।  
आप का छोटा भाई 
राजेश श्रीवास्तव 
संचालक - शिराज़ ए हिन्द डॉट कॉम 

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क्या आप व्हाट्स अप्प पे तस्वीर फॉरवर्ड और फेसबुक पे टैग करने वालों से परेशान हैं?

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फेसबुक पे टैग करने वालों की हकीकत |

भाई आप हर मेसेज को टैग क्यूँ किया करते हैं क्या आप यह बताना चाह रहे हैं कि आपमें खुद ऐसी कोई प्रतिभा नहीं की लोग आपको पढने खुद याद रख के आया करें?

टैग करके अपनी कमजोरी का एलान मत करें टैग केवल उसी को करें जिससे सम्बंधित फोटो या पोस्ट हो|


व्हाट्स अप्प ,फेसबुक इत्यादि सोशल वेबसाइट्स में मेसेज फॉरवर्ड करने वालों से एक सवाल|


भाई क्या आपके पास खुद लोगों से कहने के लिए कुछ भी नहीं जो दूसरों की तस्वीरों को इधर उधर भेजते रहते हैं| ऐसा करने से आपकी अपनी कोई पहचान नहीं बनती इसलिए कम कहो लेकिन जो कहो अपनी बात कहो जिस से समाज में आपके विचारों से आप पहचाने जाओ|

लेखक  एस एम् मासूम

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इतिहास बनता जा रहा है जौनपुर का पुस्तैनी बीड़ी उधोग |

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इतिहास बनता जा रहा है जौनपुर का पुश्तैनी  बीड़ी उधोग |


बीडी व्यापार
जौनपुर का पुस्तैनी बीड़ी उधोग 
  शिराजे हिन्द के नाम से अपनी पहचान रखने वाले उ0प्र0 के जनपद जौनपुर में निर्मित बीड़ी उधोग का अपना काफी पुराना इतिहास है। स्वर्णिम काल में बीड़ी उधोग के जरिए देश में इस जनपद की एक पहचान बनी थी, जो आज भी मुसलसल  कायम है। आज के एक दशक पूर्व बीड़ी उधोग की तूती बोलती रही यह उधोग कुटीर उधोग का स्वरूप लेकर घर घर में अपनी दत्तक दे दिया था, और रोटी रोजी का मुख्य जरिया बन गया था। लकिन वर्तमान समय में यह उधोग तमाम कारणो के चलते चरमरा गया है।इस पुस्तैनी कारोबार की चरमराहट से हजारो परिवारो के समक्ष रोटी का एक बड़ा संकट उत्तपन्न हो गया है। इस घरेलू उधोग की साख इस कदर टूट गयी कि अब यह कारोबार महज महिलाओं के बीच ही सिमट कर रह गया है।इससे जुड़े लाखो पुरूष अब इससे तोबाकर अपनी जीविका के लिए दूसरे पेशे से जुड़गये है। आज घरेलू उधोग के नाम पर इस उधोग का परम्परा एवं साख को महिलायें तथा बच्चे ही अपने श्रम के जरिये बचाये हुए है।

इस जनपद में बीड़ी के उधेाग का लगभग सौ वर्षो पुराना एक बिस्मयकारी इतिहास है। इसकी शुरूआत जिले के दो ब्यवसायियो ने किया था। जिनके द्वारासर्व प्रथम  भारत एवं अटाला नामक ट्रेड मार्क के नाम से बीड़ी का उम्पादन शुरू किया गया था। भारत बीड़ी के मालिक  को मुनीब तथा अटाला बीड़ी के मालिक को खलील के नाम से जाना जाता था। लेकिन जैसे जैसे समाज का बिस्तार होता गया  इस उधोग का भी विकास तेजी से आगे बढ़ने लगा। धीरे धीरे जिले तमाम पूंजी पतियो ने अपने को इस उधोग से जोड़ लिया। परिणम हुआ कि दो दशक बीतते बीतते यह उधोग कुटीर उधोग का स्वरूप ले लिया जन जन के रोटी रोजी का एक मात्र जरिया बन गया था। लेकिन कुछ अर्सा बाद ही भारत व अटाला दोनो ब्राण्ड बीड़ी बन्द हो गयी क्योकि इनके वारिसान दूसरे अन्य कारोबार से स्वयं को जोड़ लिये थे।

    बीड़ी का उधोग अपने शुरूवात काल से लगभग 50 वर्षेा तक अनवरत बढ़ता ही रहा है। रोटी रोजी के दृष्टिगत लोगो का झुकाव भी इस धन्ध्े की तरफ बढ़ा तो यह कारोबार कुटीर उधोग का स्वरूप ले लिया। उत्पादन इतना बढ़ गया कि जनपद के साथ साथ आस पास के जनपदो हीनही देश के तमाम शहरो में जौनपुर से निर्मित बीड़ी की आपूर्ति होने लगी। बाद में बीड़ी मालिकानो की घटिया नीयति एवं उनके द्वारा श्रमिको का शोषण माल की गुणवत्ता के साथ लापरवाही इस पुस्तैनी कारोबार को पतन की राह पर ढकेल दिया। धीरे धीरे यह उधोग इतिहास का हिस्सा बनने लगा और पुरूष प्रधान यह उधोग अब महिलाओ सहारे अपनी अस्मिता को बचा रहा है। इसके जन्म काल में जो इसकी शाख थी उसी की बदौलत आज यह उधोग थोड़ा बहुत चल रहा है। अन्यथा पूरी तरह से समाप्त हो जाता। भले ही बीड़ी का कारोबार अपनी अस्मिता को खो दिया है लेकिन आज भी प्रदेश के तमाम जिलो में जौनपुर से निर्मित बीड़ी का निर्यात किया जाता है।


 बीड़ी उधोग के मालिको (सेवायोजको) द्वारा बीड़ी श्रमिको के शोषण की गाथा बहुत पुरानी व दर्दनाक भी है। इसके मकड़ जाल में फंसा मजदूर तरह तरह की यातनाये झेलने को मजबूर था बीड़ी श्रमिको की स्थित पूर्णतः बधुआ मजदूरो की तरह थी ।  अपने दर्द की दांस्ता किसी को बताने में भी खासा असमर्थ था। स्थिति यह रही कि  बीड़ी बनाते बनाते समय से पहले ही अपने मासूम बच्चो का जीवन सजाये संवारे बगैर ही तमाम तरह के गम्भीर संक्रामक रोगो का शिकार होकर उससे जूझते-जूझते ही इस दुनियंा  को अलविदा कह देता था।तत्पस्चात उसके मासूम बच्चे भी बीड़ी बनाने को मजबूर हो जाते रहे है। इस तरह बच्चे भी उसी जाल में फंस जाते रहे।यह क्रम कल भी था और आज भी जारी है। जो एक बार इस धन्ध्े मे श्रमिक के रूप में प्रवेश करलेता है।उसकी अगली पीढ़ी भी इससे उबर नही पाती है। उधमी इसका भरपूर लाभ उठाते हुए  ब्यापक स्तर पर इनका शोषण किया जाता है। बीड़ी श्रमिक  मालिको की यातनाओ से परेशान होकर जब संगठन बनाकर मालिकानो पर दबाव बनाने का प्रयास किये तब सेवायोजक भी श्रम बिभाग से मिलकर ऐसे नियम बना लिये कि मजदूरों की आवाज  मालिको के कानो से टकरा कर वापस लौट जाती थी। श्रम बिभाग के मुताबिक जनपद में शहरी व ग्रामीण सभी क्षेत्रो में कुल 325 बीड़ी के कारखाने है जिसमें 10 बड़े कारखाने बड़े उधमियो के है। इसमे हादीरजा, बाबूराम, 501,मुर्तजा,जोखूराम,अब्दुल अव्वल, चन्द्रिका प्रसाद, मो0 इश्तेयाक, इस्माईल केराकत अदि का नाम प्रमुख है। इसके अलावां 15 से 20 मध्यम दर्जे के उधोगपति है।300 के आसपास छोटी पूंजी के कारोबारी है जो 10से 15 मजदूर रखकर बीड़ी बनवाते है। लगभग एक हजार से अधिक मजदूर तपके के लोग छोटी मोटी गुमटियेां में डेस्क रखकर बीड़ी बनाने के धन्धे से जुड़े है।

    श्रम बिभाग के रिपोट के अनुसार कोई भी बड़ा कारोबारी फैक्ट्री एक्ट की श्रेणी में नही आते है। फैक्ट्री की श्रेणी मे आने के लिए एक सेवायोजक के पास कमसे कम 25 मजदूर होने चाहिए। परन्तु प्रत्येक सेवायोजक के पास अधिकतम 15 मजदूर सरकारी एवं उधमी के रजिस्टर में दर्ज है।इसलिए सेवायोजक इस ऐक्ट से मुक्त है। मालिकान अपने सगे सम्बन्धियो के नाम से लाईसेन्स लेकर उसमें 10से 15 श्रमिको का नाम दर्ज कराके बीड़ी बनवा रहे है। साथ ही मजदूरो का खुले आम शोषण कर रहे है। उनके इस कुकृत्य में श्रम बिभाग के अधिकारियो की भूमिका खासी महत्वपूर्ण रहती है। अभिलेखो के अलग प्रत्येक मालिक के पास 500 से 1000 हजार तक श्रमिक बीड़ी की रालिंग बनाने का काम कर रहे है। इन अब्यवस्थाओ के चलते पुरूष अब इससे किनारा कर लिया है। अब महिलाओ के भरोसे यह कारोबार संचालित हो रहा है। सरकारी आंकड़े के अनुसार इस समय ग्रामीण क्षेत्र से लेकर शहरी इलाके में लगभग 12 से 15 हजार श्रमिक बीड़ी की रोलिंग के काम लगे हुए है। इनमे  लगभग 7से8 हजार महिलायें एव बच्चे इस उधोग से जुड़े हुए है। एक दशक पूर्व पुरूषो की संख्या 90 प्रतिशत रही जो इब घट कर40 प्रति0 के आसपास हो गयी है।


       बीड़ी श्रमिको को संक्रामक रोगो से बचाव एवं उपचार के लिए शासन द्वारा शहर के अन्दर श्रमिक कल्याण केन्द्र के नाम से एक अस्पताल  तो खोला गया लेकिन उससे आज तक एक भी बीड़ी श्रमिक का उपचार संभव नही हो सका है। इनके इलाज के नाम पर लाखो रू0 का खेल प्रति वर्ष हो रहा है। जिम्मेदार जन इससे बेखबर है। भारत सरकार ने बीड़ी सिगार सेवा शर्त अधिनियम 1966के तहत श्रमिको के कल्यान हेतु कुछ नियम बनाये गये थे उसकी एक भी धारा का अनुपालन इस जनपद में नही किया जा रहा है। मानक के तहत मजदरी भी नही दी जाती है। चूकि विगत 15 वर्षो से पुरूष इस धन्धे अलग हो गया है। इसलिए अब यह कारोबार पूर्ण रूप से महिलाओ के उपर आश्रित हो गया है।साथ ही साथ पतन की राह पर भी अग्रसर हो गया है। आने वाले एकसे डेढ़ दशक  बीतते बीतते यह कारोबार इतिहास काहिस्सा बन कर रह जाने की प्रबल संभावना नजर आ रही है।
  इस उधोग मे सबसे महत्व पूर्ण तेदू का पत्ता एवं सुर्ती होती है। जो इस जिले में नही मिलता है। इसे मध्यप्रदेश के जंगलो से लाया जाता हैं। जिसका ठेका एम पी सरकार देती है। उधमी ठेका लेकर तेदू पत्ते को तोड़कर इकठ्ठा करने के बाद उसे सुखा कर बंडल बना कर लाते है। इसकाम में भी श्रमिको की जरूरत होती हैंसुर्ती भी यही पर पैदा की जाती है। इस तरह बीड़ी बन7ाने से लेकर कच्चे माल को तैयार करने तक हर जगह श्रमिक का ही सहारा होता है। और श्रमिको का इससे पलायन होना इस धन्धे को बन्द कराने में सहायक है। इस प्रकार यह कारोबार भले ही पुस्तैनी हो और जिले की पहचान में यहायक बना हो लेकिन भ्रष्टाचार एवं शोषण की एक दर्दनाक कहानी भी इस कारोबार में नजर आती है। जो आज तक लाइलाज बनी है।

लेखक :   कपिलदेव मौर्य, वरिष्ट पत्रकार -जौनपुर 
मो0 न0 9415281787

शिया ट्रस्टी कमेटी का चुनाव संपन्न, 6 नवनिर्वाचित सदस्यों को SDM ने दिया प्रमाणपत्र

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जौनपुर | आर0डी0एम0 शिया ट्रस्टी कमेटी के साधारण सदस्यों के लिए उच्च न्यायालय के आदेशानुसार सदस्यों के 60 की संख्या पूर्ति हेतु पूर्व निर्धारित तिथि के अनुसार गुरुवार को  शिया डिग्री कालेज के प्रांगण में रिक्त 6 सदस्यों की पूर्ति हेतु चुनाव उप जिलाधिकारी राकेश कुमार पटेल की देख-रेख में समपन्न हुआ। जिसमें सदस्यों के निर्धारित चुनाव कार्यक्रम के अनुसार प्रातः 11 बजे से 11ः30 बजे तक सदस्य के चयन हेतु नामांकन दाखिल किया गया जिसमें सै0 सुल्तान हैदर रिज़वी, सै0 बाक़र हसनैन रिज़वी, सै0 मोहम्मद लियाक़त अली ज़ैदी, सै0 मोहम्मद मुस्तफा, सै0 हसन मेंहदी, सै0 इफ्तेख़ार हैदर निर्विरोध निर्वाचित हुए जिन्हें उप जिलाधिकारी ने प्रमाण-पत्र देकर आर0डी0एम0 शिया ट्रस्टी कमेटी का सदस्य घोषित किया इस अवसर पर पूर्व विधान परिषद सदस्य हाजी सिराज मेंहदी ,मौलाना सै0 सफ़दर हुसैन ज़ैदी, सै0 नजमुल हसन ‘नजमी’, शमशीर हसन, सै0 अब्बास हैदर , मौलाना सै0 तहजीबुल हसन, मौलाना सै0 हसन मेहदी, जावेद सुल्तान, मो0 हसन ‘तनवीर’, हैदर अब्बास ‘नौशू’, जफर अब्बास ‘बिक्कू’, फैसल हसन ‘तबरेज’, गुलाम मेहदी, अजीज हैदर ‘हेलाल’, हसीन असगर जैदी आदि सदस्यों ने नव निर्वाचित सदस्यों को बधाई दी।





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पाठको की पहली पसंद अब अखबार नहीं वेबपोर्टल और और ई न्यूज़ पेपर है |

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यह बात साबित हो चुकी है कि आज का दौर वेबपोर्टल और ई न्यूज़ पेपर का युग है | हमारा जौनपुर डॉट कॉम और जौनपुर सिटी डॉट इन ने अपने पांच वर्षो में इस बात को साबित कर दिया है की आज जनता की आवाज़ बन सकने की सही मायने में छमता अगर किसी में है तो वो वेबपोर्टल में ही है |

हमारा जौनपुर वेबपोर्टल ने इन पांच वर्षों में सामाजिक सरोकारों से जुड़ते हुए यहाँ की जनता की आवाज़ को उनकी समस्याओं को दुनिया तक शासन और प्रशासन तक पहुंचाया और उसका असर जौनपुर में यह दिख रहा है की आज जौनपुर का सौन्दरीयाकरण हो रहा है |

जौनपुर के इतिहास को जिसे दुनिया अब भुलाने लगी थी पूरे विश्व में फिर से पहुंचाया और इसका नतीजा यह हुआ की प्रशासन को भी महसूस होने लगा की अब जौनपुर को पर्यटक छेत्र घोषित किया जाना चाहिए |

जौनपुर में प्रतिभाओं की कमी नहीं लेकिन उन प्रतिभाओं का अंत इसी जौनपुर में हो जाया करता था लेकिन हमारा जौनपुर डॉट कॉम ने उन प्रतिभाओं का परिचय पूरे विश्व से करवाया और जौनपुर की छुपी  हुयी प्रतिभाओं को सामने लाने का प्रयास हर दिन किया जाता रहा है |

इसी कारण से हमारा जौनपुर  डाॅट काम कम समय  में जौनपुर वासियों और पूरे विश्व के इतिहासकारो  की पहली पंसद बन चुका है।

जब मैंने अपने इन वेबपोर्टल के पांच वर्ष पूरे होने की बात लोगों को बतायी तो केवल जौनपुर या भारतवर्ष से नहीं बल्कि पूरी दुनिया से मुबारकबाद के फ़ोन आने लगे और हर एक की ज़बान पे एक ही बात इस मिशन को जौनपुर की आवाज़ को कभी बंद ना होने दीजेगा बल्कि आगे बढाते रहे |

संचालक एस एम् मासूम


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मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दिए जौनपुर के ऐतिहासिक भवनों का संरक्षण कराने के निर्देश

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जौनपुर के इतिहास को जिसे दुनिया अब भुलाने लगी थी पूरे विश्व में हमारा जौनपुर डॉट कॉम ने फिर से पहुंचाया और इसका नतीजा यह हुआ की प्रशासन को भी महसूस होने लगा की अब जौनपुर को पर्यटक छेत्र घोषित किया जाना चाहिए |



लखनऊ, 16 जनवरी (वार्ता) उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जौनपुर के ऐतिहासिक भवनों का संरक्षण कराए जाने के निर्देश दिए हैं।

श्री यादव ने कहा कि अटाला मस्जिद, मस्जिद लाल दरवाजा, जामा मस्जिद, शाही किला सहित अन्य ऐतिहासिक भवनों के संरक्षण एवं रख-रखाव के लिए जरूरी कदम उठाए जाएं |इस कार्य में पुरातत्व विभाग सहित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का भी सहयोग प्राप्त किया जाए। उन्होंने पर्यटन विभाग को एक कार्य योजना बनाकर उसका समयबद्ध क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं।

मुख्यमंत्री आज यहां अपने सरकारी आवास पर पर्यटन विभाग के कार्याें की समीक्षा कर रहे थे। इस अवसर पर प्रमुख सचिव पर्यटन श्री नवनीत सहगल सहित अन्य अधिकारी मौजूद थे।

श्री यादव ने कहा कि जौनपुर का गौरवशाली इतिहास रहा है। भावी पीढि़यों के लिए अतीत से जुड़ी इमारतों का संरक्षण जरूरी है। ऐतिहासिक महत्व के भवनों तथा स्मारकों आदि के संरक्षण एवं उचित रख-रखाव से पर्यटन को भी बढ़ावा मिलता है, जिसके परिणाम स्वरूप स्थानीय स्तर पर रोजगार के नये अवसर सृजित होते हैं। इन तमाम बातों के मद्देनजर प्रदेश सरकार प्रदेश में पर्यटन से जुड़ी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए गम्भीरता से प्रयास कर रही है।

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जौनपुर में एक ऐसा ग्राम जहां अब तक डेढ दर्जन से अधिक आईएएस आईपीएस व पीसीएस पीपीएस बन चुके है।

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माधोपट्टी
 माधोपट्टी
शिक्षा में आज भी अग्रणी है जौनपुर-महज एक गांव से दो दर्जन अधिकारी बने|...कपिलदेव मौर्य
  
  सुफी-संतो की सरजमी जनपद जौनपुर शिक्षा के क्षेत्र में कल भी प्रथम पंक्ति में दृष्टिगोचर था और आज भी पहली ही कतार में है। इसके एक नही कई उदाहरण है जो इस जनपद के शिक्षा की एतिहासिकता को बड़े ही करीने से बयां कर रहे है। इस जिले मे शिक्षा ग्रहण करने वालो में शासक से लेकर देश के राजदूत एवं आईएएस आईपीएस पीसीएस पीपीएस तक का नाम शामिल है। तभी तो जिले एक ऐसा ग्राम जहां अब तक डेढ दर्जन से अधिक आईएएस आईपीएस व पीसीएस पीपीएस बन चुके है। जिसे माधोपट्टी ग्राम के नाम से जाना जाता है। हां इतना जरूर हें कि इतने अधिकारियों वाले इस गांव का विकास आज तक अपेक्षा के अनुरूप नही हो सका है। जो यहां के अधिकारियों के प्रति सवालिया निशाऩ  लगा रहा है।


    इस जनपद के बाबत इतिहास पर नजर डाले तो स्पष्ट रूप से पता चलता है कि मुगल शासक काल के समय में शेरशाह शूरी यहां पर सुफी संतो से शिक्षा ग्रहण करने आये थे और अटाला मस्जिद में वर्षो शिक्षा प्राप्त किये जिसके चलते जौनपुर का नाम पूरी दुनियां में चर्चए खास हो गया। बाद में जब वे इस देश के शासक भी बने तब उन्होने यहां के शिक्षा का विस्तारी करण कराया था। शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी स्थान रखने वाले इस जनपद को शिराजएहिन्द की उपाधि से मुगल शासक ने नवाजा था। तब आज तक यह जनपद शिक्षा के क्षेत्र में अपना एक महत्व पूर्ण स्थान बनाये हुए है।

    जहां तक माधोपट्टी गांव का प्रश्न है। जिला मुख्यालय से लगभग 05 किमी दूर स्थित इस गांव सभा की कुल आवादी 3000के आस-पास होगी इसमें कुल 400 परिवार है।गांव मौर्य,क्षत्रिय, ब्राम्हण यादव प्रजापति, आदि जतियो के लोग बड़ी संख्या में है। इस ग्राम में ब्रिटिश शासन आईएएस पीसीएस बनने का जो शिलशिला शुरू हुआ वह अज भी मुसल्सल जारी है।इस गांव के राम मूर्ति सिह सबसे पहले पीसीएस अधिकारी  ब्रिटिश शासन काल में बने और वही प्रेरणा श्रोत बन गये। इनको देखकर इस ग्राम के बच्चो में शिक्षा ग्रहण करने की एक ऐसी लगन जागी की लोग तरक्की की नित नयी इबारत लिखने लगे और जिले का नाम बुलन्दी पर पहुंचा दिये है। इस ग्राम के आईपी सिंह सन् 1956 आईएएस बने  फिर आईएफएस हुए और बिदेश में राजदूत बन कर जिला एवं देश दोनो का नाम रोशन किया।

        इसके बाद वीके सिंह 1962 में आईएएस बनकर देश के गृह सचिव तक बने, छत्रसाल सिह 1967 में आईएएस बनकर मद्रास कैडर की सेवा किये।इसी क्रम में अजयकुमार सिंह, मानस्वी सिंह,चन्द्रमौलीसिंह, जनमेय सिह,अमिताभ सिह शैलेस सिह मनीष कुमार सिह कु0 उषा सिह पीसी सिह  श्री प्रकाश सिह डा0दीनानाथ सिह  आईएएस बने  तो शशी कुमार सिह जूडिशियरी मे डीजे तक रहे है। पीसीएस सर्विस में वैशाली सिह प्रवीन सिह अलका सिह जय सिह नीरज सिह शशिकेश सिह पुष्पा सिह विशाल सिह एवं अशोक प्रजापति व अशोक यादव 2011 में पीसीएस बने 2015 में माधोपट्टी गांव की शिवानी सिह ने महिला कैडर में प्रथम स्थान प्राप्त कर जिला एवं गांव दोनो को एक बार फिर चर्चा मे ला दिया है।

जहां तक गांव के विकास सवाल है।जिस गांव में इतने अधिकारी हो उस गांव का विकास अपेक्षा के अनुरूप न हो सके एक बड़ा एवं गम्भीर सवाल है। इसके पीछे की जो कहानी सामने आयी है। वह है कि इस गांव जो भी ब्यक्ति अधिकारी बना वह गांव को छोड़ दिया फिर मुड़कर इस गांव की ओर देखना भूल गया जिस माटी में खेला खयाउससे अलग होकर जहां पर नौकरी किया वही पर अपना आशियाना बना लिया। जिसका परिणाम है कि इस गांव में आज तक कोई कल कारखाना नही लग सका है। आज भी यहां के लोगो के जीविका एक मात्र साधन कृषि ही है। हां इस गांव में कोई मुकदमा नहीं है। नही आपस में किसी तरह का बिवाद ही है। शिक्षापर जोर ज्यादा है  यहां बतान जरूरी है कि इस ग्राम से पहली बार अधिकारी बने राममूर्ति सिह की प्रेरणा से एक इन्टर कालेज की स्थापना की गया जो शिक्षा के विस्तार में खासा सहायक है।

   गांव में स्टेशन तो है लेकिन नाली खड़नजा पानी अदि का गम्भीर संकट विधमान है। गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालो की एक बड़ी फेहरिस्त है। आज भी इस गांव मे लोग मड़ई अदि में जीवन जीने को मजबूर है। मात्र ग्राम प्रधान के भरोसे इस गांव का विकास होता है गांव के जा लोग अधिकारी बने उनके द्वारा इसे विकसित करने कोई प्रयास आज तक तो नही किया गया है

लेखक
कपिलदेव मौर्य
जौनपुर
मो0 9415281787
         

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महामना एक्सप्रेस में जौनपुर को याद किया लोग हैं खुश |

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आज प्रधानमंत्री मोदी अपने लोकसभा क्षेत्र वाराणसी पहुंचे। प्रधानमंत्री ने यहाँ आज ''महामना एक्सप्रेस''को हरी झंडी दिखाई।महामना एक्सप्रेस का जौनपुर में भी ठहराव होने से जनपद वासियों में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी। लोगों ने हर्ष व्यक्त किया कि आधुनिक सुविधायुक्त इस ट्रेन के संचालन में पी ऍम ने जौनपुर को याद रखा।

पी ऍम मोदी ने जौनपुर की भावनाओं का सम्मान किया ये बड़ी बात है।हफ्ते में तीन दिन मंगल, गुरुवार,शनिवार को चलने वाली ये ट्रेन वाराणसी से 6-35 बजे शाम में चलकर 7-39 पर जौनपुर पहुंचेगी और दूसरे दिन सुबह 8.25 पर दिल्ली पहुंचेगी। बायो टॉयलेट , एल इ डी टी वी, म्यूज़िक सिस्टम, सहित ढेरों सुविधाओं से लैस ये ट्रेन सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को दिल्ली से 8-25 बजे सुबह चलकर दूसरे दिन सुबह 8.25 पर वाराणसी पहुंचेगी। ऑटो विण्डो हर बर्थ पर मोबाइल लैपटॉप चार्जिंग सुविधा बटन दबाकर कोच अटेंडेंट को बुलाने की सुविधा तथा फायर प्रूफ कोच सहित सपनो सरीखी सुविधाएँ हैं इसमें।

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