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दाढ़ी रखें और रहे रोगमुक्त |

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आमतौर पर बढ़ी हुई दाढ़ी को लोग बेहतर नहीं मानते इसलिए वो क्लीन शेव रहना पसंद करते हैं, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जो लोग अपने चेहरे पर घनी दाढ़ी रखते हैं वो कई बीमारियों से खुद को दूर कर लेते हैं। कम से कम ताजा अध्ययन तो यही कहता है।


अमेरिका के एक अस्पताल में किया गया शोध जर्नल्स ऑफ हास्पिटल इन्फेक्शन के अनुसार शेव्ड चेहरे पर ऐसी सूक्ष्म खरोचें होती हैं जो बैक्टीरिया को पनपने का पर्याप्त स्थान दे देती हैं। लेकिन दाढ़ी ऐसे बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमण से रोकती है।




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जौनपुर जैसी ऐतिहासिक धरोहर को सही पहचान दिलाना है |

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जौनपुर एक ऐतिहासिक शहर है लेकिन दुनिया इसके बारे में कम जानती है | जो शहर एक शतक तक शार्की राज्य की राजधानी रहा हो उस शहर के बारे में दुनिया ना जाने ये इन्साफ नहीं |मैं जौनपुर के इतिहास, यहाँ की प्रतिभाओं, यहाँ के समाज और संस्कृति को दुनिया से जोड़ने का काम पांच वर्ष पहले शुरू किया और इसके लिए अंतरजाल और सोशल मीडिया का सहारा लेते हुए जौनपुर की दो वेबसाईट हिंदी और अंग्रेजी में बनायी और साथ ही साथ जौनपुर के हिंदी लेखको को जोड़ने के लिए जौनपुर ब्लॉगर अस्सोसिअशन का गठन किया और आज २७ लेखक इस से जुड़े हुए हैं |

इस काम में जौनपुर के पत्रकारों का सहयोग सराहनीय है जिन्होंने मेरी बात को समझा और अपने क़दम सोशल मीडिया के सही उपयोग की तरफ बढाते हुए अपनी वेबसाईट और ब्लॉग की शुरुआत की | आज उनके इस काम को दुनिया सराह रही है और उनसे संपर्क करने की कोशिश कर रही है क्यूँ की दुनिया इस जौनपुर के बारे में अधिक से अधिक जान ना चाहती है | 



मेरा सपना था की मैं इस शहर के इतिहास, यहाँ की प्रतिभाओं और समाज के बारे में दुनिया भर के लोगों को बताना जो अब होने लगा है साकार | लेकिन अभी भी बहुत से कोशिशें करने हैं लोगों को जागरूक करना है | उम्मीद करता हूँ जौनपुर को जल्द ही वो पहचान हासिल होगी जो उसे वर्षों पहले मिल जानी चाहिए थी |

मैं जौनपुर के पत्रकारों आरिफ हुसैनी, राजेश श्रीवास्तव का, कमर हसनैन दीपू , डॉ मनोज मिश्र का, कुलपति वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविधालय का, माननीय दिनेश टंडन जी का,जज  डॉ दिलीप जी का ,पंजाब नेशनल बैंक मेनेजर  ज्ञान कुमार , शोला जौनपुरी, चित्रसारी के कैसर भाई का, डॉ पवन मिश्र और डॉ किरण मिश्र , इत्यादि बहुत से मित्रों और सहयोगियों का आभारी हूँ जिन्होंने सहयोग दिया | ऐसे बहुत से मित्र और सहयोगी हैं जिनका मैंने नाम यहाँ नहीं लिया उनके बारे में जल्द ही आपको अलग से बताऊंगा |

जौनपुर के लोगों से सहयोग मिला है और आशा करता हूँ आगे भी मिलता रहेगा |

जौनपूर के एक मदरसे में हो रहा है सौ साल पुराने भारत को निर्माण

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न हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा । जी हा कुछ ऐसा ही पाठ पढाया जाता है , जौनपुर के एक मदरसे में । यहा  करीब आधे बच्चे हिन्दू पढ़ने आते है जो पढ़ते है अरबी , फारसी , व उर्दू और नाथ शरीफ  वही मुसलिम बच्चे फर्राटे है संस्कृत व गणेश श्लोक , एक छत के नीचे हिन्दू , मुसलिम संस्कृति का संगम देखकर एैसा लगता मानो यहा सौ साल पुराना मानव का निर्माण हो रहा है।
जिला मुख्यालय से 25 किमी0 दूर जलालपुर थाना क्षेत्र के चवरी बाजार में वर्ष 1998 में मदरसा अनवारूल इस्लाम की नींव रखी गयाी तब किसी न भी नहीं सोचा था कि एक दिन यह मदरसा न सिर्फ क्षेत्र का बल्कि शीराजे हिन्द जौनपुर का नाम पूरे देश में रौशन करेगा। करीब 25 मुस्लिम बच्चों के साथ इस मदरसो की शुरूआत करने वाली कमेटी ने जो सोच रख कर यहाॅ बच्चों को तालीम देना शुरू किया तो इसकी चर्चा फैलने लगी। कमेटी का मकसद था कि यहा का पढ़ने वाला बच्चा जब बाहर जाये तो वह न हिन्दू बने ना मुसलमान बल्कि एक अच्छा हिन्दुस्तानी बने और देश का नाम रौशन करें। फिर क्या था यहाॅ धीरे-धीरे आस पास के ग्रामीणों ने अपने बच्चों का दाखिला यहाॅ कराना शुरू कर दिया आज यहाॅ करीब आधे बच्चों हिन्दू न सिर्फ उर्दू, अरबी, फारसी की तालीम ले रहे है बल्कि कलमा, नाथ शरीफ व तराने ऐसे पढ़ते है मानो यह उनकी जबान हो दूसरी और मुस्लिम बच्चे जब संस्कृत व गणेश श्लोक पढ़ते है तो अच्छे-अच्छे लोग दांतो तले अगुॅलिया दबा लेते है।
मदरसा अनवारूल के प्रधानाचार्य, मोहम्मद सियाकत ने बताया कि करीब 500 छात्र-छात्राओं को तालीम दे रहे इस मदरसे में 16 शिक्षक पढ़ाते है जिनमें 6 हिन्दू है। शिक्षक यहां छात्र-छात्राओं को एक अच्छा देश का नागरिक बनाने में दिन रात मेहनत करते है। उनका कहना है कि यहांॅ कोई भेद-भाव नहीं किया जाता है।
इस मदरसे की जमीन एक ब्राहम्ण परिवार से मदरसे की कमेटी ने खरीदी थी कमेटी का मकसद साफ था, उनके मदरसे से पढ़ कर जब बच्चा बाहर जाये तो न सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल बने बल्कि पूरी मानवता की सेवा करें शायद यही वजह है कि आस-पास तीन और विद्यालय चलते है बावजूद इसके उन विद्य़ालयों में छात्रों की संख्या नाम मात्र है। जबकि इस आधुनिक व सौ साल पहले भारत की तस्वीर पेश कर रहे हैं, मदरसें में छात्रों की संख्या में इजाफा ही होता जा रहा है।

सदात मसौंडा का नाम कजगांव तेढ़वान कैसे पड़ा |

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सय्यिद नसीरुद्दीन ने जो चिराग़ ऐ दिल्ली के नाम से भी जाने जाते हैं एक ख्वाब देखा की हजरत मुहम्मद (स.अ.व) आये हैं और उनसे कह रहे है कि सय्यिद बरे नाम के शख्स को अपनी शागिर्दी में ले लो और उसे अपने ज्ञान से मालामाल करो |सय्यिद नसीरुद्दीन ने अपने दिल्ली में तलाशा तो उन्हें तीन व्यक्ति इस नाम के मिले और वो तय नहीं कर पाए की यह इशारा किसकी तरफ है |दुसरे दिन फिर उन्होंने ख्वाब देखा जिसमे इशारा किया गया था की स्येद बरे जिनके बारे में ख्वाब है वो एकहरा कपडा पहनते हैं |सय्यिद बरे हजरत मुहम्मद (स.अ.व) की ३२वीन नस्ल थे और ७७० हिजरी १३६८ इस्स्वी में वो दिल्ली से जाफराबाद के करीन एक इलाके सुसौन्दा (अब मसौन्दा) में आकर बस गए और एक तालाब के किनारे छप्पर डाल के रहने लगे | सय्यिद बरे ने वहाँ के गांवालों को गुमराही से बचाया और एक ऐसे संत जो हर अमावस्या को गाँव के लोगों से सोना चांदी ,धन दौलत की मांग करता था उसके ज़ुल्म से बचाया |
तालाब जहां सय्यिद बरे  आज के कजगांव में बसे थे |

गाँव वाले सय्यिद बरे को मानने लगे उसी समय इस गाँव सुसौन्दा का नाम बदल में सादात मसौन्दा किया गया | बरे मीर के दो बच्चे थे जिनका नाम सय्यिद हसन और सय्यिद हुसैन था जो आपस में एक दुसरे से बहुत प्रेम करते थे | जब एक भाई की म्रत्यु हो गयी तो उसे गाव के पाहनपुर कब्रिस्तान में दफन किया गया | दुसरे भाई की म्रत्यु के बाद उसे भी अपने भाई के पास ही दफन कर दिया गया | सुबह लोगों ने देखा की दोनों भाइयों की कब्र सर की तरफ से एक दुसरे से मिल गयी है | लोगों से सोंचा मिटटी गीली होने की वजह से ऐसा हुआ होगा और ठीक कर दिया | लेकिन दुसरी रात फिर से ऐसा ही हुआ तो लोगों को समझ में आ गया की यह कोई चमत्कार है |आज भी दो भाइयों की कब्रें वहाँ मौजूद हैं जिसके कारण सदात मसौंडा का को लोग कजगांव तेढ़वान के नाम से जाना जाने लगा |
दो भाइयों की कब्र जो आज भी कजगांव में देखि जा सकती है |



यह कहानी कजगांव बुजुर्गों ने सुनायी है जिसका ज़िक्र उन्होंने अपनी कुछ किताबों में भी किया है | इसमें कितनी सत्यता है यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन दो भाइयों की टेढ़ी कब्र आज भी मौजूद है और गवाही दे रही हैं किसी चमत्कार की |

जौनपुर से आज़मगढ़ के मेरी बस यात्रा - अनुराग मिश्रा

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लेखक अनुराग मिश्रा
गृहजनपद आजमगढ़ स्थित मित्तूपुर क्षेत्र के लोगो का हाल खबर लेने के लिए आज जौनपुर डिपो पर सिपाह से सवार हुआ, पचहटिया मोड़ सेँ शाहगंज की तरफ जब बस रवाना हुयी तो पूरी बस भंयकर आवाज मेँ कड़कड़ाने लगी मानो बस सेँ ठक ठक कड़ ड़ पट पिट आदि आवाजे बस मेँ होने लगी हमने बस मेँ देखा तो पूरी बस भरी हुयी थी बस मेँ जितने सीटे थी अधिकांश उखड़ चुकी थी पीछे के खाली सीट देखकर जाकर बैठ गया तभी कंडकटर साहब आए और 57 रुपये लेकर टिकट काट दिए टिकट कटने के बाद आराम की मुद्रा मेँ बैठ गया |



तभी मेरा शरीर ना चाहते हुए बस के उपरी बाडी पे जाकर टकरायी आह पुरा शरीर हिल गया किसी तरह अपने आप को सम्हाला यात्रा बृतान्त लिखते समय मेरी मोबाईल तीन बार गिर चुकी है पुरी यात्रा के समय यही ऊठापटक होती रही बस का एक एक पुर्जा हिल रहा है मेरी ही नही सभी यात्रियो का बुरा हाल है पुरे बस मेँ धुल गर्दा होने के कारण चेहरे को मफलर सेँ बाधना पड़ा आप लोग सोचिए इस बस मेँ जो हमारे बुजुर्ग लोग बैठे होगे उनकी क्या हालत हो रही होगी सोचने की बात है ऐसे रोड पर एम्बुलेश मेँ जो गर्भवती महिलाएँ व मरीज बैठते होगे उनकी क्या हालत होती होगी मेरा तो मानना है कि जौनपुर की सड़को पर मरीज एम्बुलेंश पर बैठने से पहले हार्डाअटैक हो जाता होगा जौनपुर की सभी सड़के पुरी तरह सेँ गड्ढो मेँ तब्दील हो गयी है कोई इसका हालखबर नही लेने वाला ना शासन ना प्रशासन वाह रे देश की सरकारेँ प्रदेश की सरकार नचनियो को ठुमके लगवाने मेँ ब्यस्त है तो बड़की सरकार ओबामा को बुलाकर बिकाश की भोंपू बजवा रही है देश की हालत कितनी खराब है इससे किसी का कोई मतलब नही देश को खजाने को लुटना और जनता को चुसना सत्ता का कर्तब्य बन गया है किसी तरह बचते बचाते शाहगंज पहुचा आगे वाली सीट किसी महोदय ने खाली की तो मैँ जाकर बैठ गया आगे बढ़ने पर देखा तो एक बारात बीच सड़क पर जा रही थी जहां डीजे के फुहड़ गानो के धुन पर नाच रहे थे बस के हार्न बजाने पर कुछ नौजवान बस के बाडी को ठोकने लगे क्यूकि उनके नाचने मेँ बिघ्न जो पड़ गया फिर कुछ जागरुक साथियो ने हाथ दिखाकर बस को आगे बढ़वाया आखिर बाजार आ गया बस सेँ बाहर निकला तो मित्र गाड़ी लेकर खड़ा था कुशल क्षेम पुछा और गाड़ी पर बैठ गया |
 

चिठिया जाली न समझल सईया हाली आय ना |

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ला भईया लोगे एक्दाम्मई चउचक नाच देखावत बाटी अगर  मजा न आवई ता पैसा वापिस ई नाच बड़े सुभ अवसर पे नाऊ ठाकुर लोग करथें. ई नाऊ ठाकुर क नाम "चनिका "अहई . यही गाना में एक्खी मेहरारू  अपने मंसेधू के चिट्ठी भेजे बा अऊर कहत बा की हमार चिट्ठी जाली जिन समुझ बलमू  हाली परदेस से चला आया .
हम तोहार सभे के टाइम एम्मे न ख़राब करब अब चनिका जी के नाच देखा और कमेन्ट लिखी जिन भूला.

जानिये जौनपुर की मशहूर इमरती का इतिहास और साथ में लीजिये इसका स्वाद |

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जौनपुर की मशहूर इमारती के बारे में यह जानकारी मैंने दो वर्ष पहले अपनी वेबसाइट जौनपुर सिटी डॉन इन के द्वारा आप सभी से बांटी थी जिसे लोगों ने बहुत पसंद भी किया और बार बार अनुरोध भी किया की इस जानकारी को आगे बढाया जाए | इस जानकारी को बहुत से लोगों ने मेरे द्वारा खींची तस्वीर के साथ औरों तक पहुँचाया भी लेकिन अपने नाम से जो उचित नहीं लेकिन मेरा मकसद नाम कमाना नहीं बल्कि जौनपुर को विश्व से जोड़ना रहा है इसलिए मैं उनका भी आभारी हूँ की उन्होंने इस जानकारी को औरों तक पहुँचाया | 

मैं मुंबई से जब भी जौनपुर आता हूँ तो मेरी कोशिश यह हुआ करती है की मैं जौनपुर के बारे में अधिक से अधिक जानकारी खुद इकठ्ठा करूँ और लोगों तक पहुँचाऊँ | इसी प्रयास में जा पहुंचा बेनीराम की दूकान पे जहां मुझे उनका सहयोग भी मिला और मुफ्त में इमारती भी खाने को मिली | यही हैं जौनपुर की खासियत आने वाले मेहमान की इज्ज़त करते हैं |


एक बार फिर से आप सभी के सामने पेश हैं जौनपुर की इमारती क्यूँ की इसे जितनी बार खाया जाए मज़ा कम नहीं होता |


जौनपुर जो "शिराज़-ए-हिंद"के नाम से भी मशहूर हैं, भारत के उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर एवं लोकसभा क्षेत्र है। मध्यकाल में शर्की शासकों की राजधानी रहा जौनपुर  गोमती नदी के दोनों तरफ़ फैला हुआ है। कभी यह  अपने इत्र और सुगंधित चमेली के तेलों के लिए मशहूर था लेकिन आज वहाँ इत्र तो कभी कभार दिख जाता है लेकिन चमेली का  तेल तलाशना मुश्किल हो जाता है.



लेकिन जौनपुर शहर की हरे उड़द, देशी चीनी और देशी घी से लकड़ी की आंच पर बनी लजीज ‘इमरती’ अब भी देश-विदेश में धूम मचा रही है. शहर के ओलन्दगंज के नक्खास मुहल्ले मैं  बेनीराम कि दूकान वाली इमरती कि बात हे और है. बेनीराम देवी प्रसाद ने सन 1855 से अपनी दुकान पर देशी घी की ‘इमरती’ बनाना शुरू किया था||


उस गुलामी के दौर मैं भी  बेनीराम देवीप्रसाद कि  इमरती सर्वश्रेष्ट मणि जाती थी. उसके बाद बेनी राम देवी प्रसाद के  उनके लड़के बैजनाथ प्रसाद, सीताराम व पुरषोत्तम दास ने  जौनपुर की प्रसिद्ध इमरती की महक तक बनाए रखी .अब जौनपुर की प्रसिद्ध इमरती को बेनीराम देवी प्रसाद की चौथी पीढ़ी के वंशजों रवीन्द्रनाथ, गोविन्, धर्मवीर एवं विशाल ने पूरी तरह से संभाल लिया है और इसे विदेश भी भेजा जाने लगा है.  जौनपुर की प्रसिद्ध इमरती आज तकरीबन 159 वर्ष पुरानी हो चुकी है और उसका स्वाद और गुणवत्ता अभी भी बरकरार है|




जब कभी आप जौनपुर आयें तो ओलन्दगंज से ताज़ी इमारती का स्वाद चखना ना भूले | इमरती के लिए देशी चीनी आज भी बलिया से मंगाई जाती है। देशी चीनी और देशी घी में बनने के कारण इमरती गरम होने और ठंडी रहने पर भी मुलायम रहती है। बिना फ्रिज के इस इमरती को कम से कम दस दिन तक सही हालत में रखा जा सकता है।

राजा इदारत जहां १८५७ जनक्रांति का प्रथम शहीद ?

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राजा इदारत जहां १८५७ जनक्रांति का प्रथम शहीद किस परिवार से थे ?

राजा इदारत जहां के पूर्वज सैयद आख्वंद मीर थे जो हुमायूँ के साथ ईरान से भारत आये थे । आख्वंद मीर की औलाद में  सैयदजान अली थे जो खान ज़मा अली कुलीच खान के  लिए जौनपुर सेना के साथ  भेजे गए  । उन्होंने राजा माहुल, राजा अंगुली और राजा सहावी को गिरफ्तार कर के शान्ति स्थापित की थी । अकबर बादशाह ने उन्हें "जान"की पदवी से सम्मानित किया ।

 इस तरह उन्हें सैयेद जान अली सैयेद जान कहा जाने लगा  । बादशाह अकबर ने उन्हे माहूल की जागीर का पुरा इलाक़ा दे दिया और राजा की पदवी से सम्मानित किया ।

माहुल दीदार गंज

माहुल शमसाबाद

माहुल खुरासा

 सैयेद जान अली सैयेद जान ने अपने रहने के लिये खुरासा को आबाद किया जिसका नाम अब खुरासो हो गया है । राजा शमशाद जहा ने शम्साबाद और राजा दीदार जहा ने दीदार गंज आबाद किया और इसी प्रकार बशारत पूर और इदारात नगर भी आबाद किये गये ।


राजा इदारत जहां के बारे में और लेख ।

१. आज़ादी की लड़ाई का पहला शहीद एक हुसैनी था
२. आज जानिये जौनपुर शाही क़िले की दो क़ब्रो का राज़ क्या है ?


जौनपुर के फौजदार जमाल खान का मकबरा |

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जौनपुर तो वैसे भी  मकबरों और क़ब्रों का शहर है | जिधर देखिये मकबरे और कब्रें बनी पड़ी हैं जिनका इतिहास अब  बहुत की कम लोगों को मालूम है | हाँ यह अवश्य यहाँ के लोग जानते हैं की यह कब्रें ,मकबरें शार्क़ि  समय की या तुगलक और लोधी परिवार की होती है| जौनपुर के सिपाह मोहल्ले के पास  एक इलाका है बल्लोच टोला जहां आपको अनगिनत कब्रें और मकबरे मिल जायेंगे | जिनके बारे में आप अगले लेख में बताया जाएगा |

इनमे से एक मकबरा है लोधी समय के जौनपुर के फौजदार जमाल  खान का  जो अफगानिस्तान से हिन्दुस्तान आया और सिकंदर लोधी के बेटे जलाल के टीचर बने बाद में सुलतान बर्बख्श ने शाज़दा जलाल को जौनपुर का हाकिम बना दिया और उसके अपने टीचर जमाल खान को जौनपुर का फौजदार बनाया और बाद में वज़ीरों में शामिल कर लिया |

जमाल खान इब्राहीम लोधी के समय में मारे गए और शहजादा जलाल फरार हो गया | जमल खान का मकबरा आज भी जौनपुर के बल्लोच टोला में हैं जिसकी हालत बदहाल है और कभी भी खंडहर में बदल सकता है |

जौनपुर के फौजदार जमाल  खान का मकबरा सिपाह-बल्लोच टोला






जानिये पूर्व राज्यपाल माता प्रसाद के बारे में |

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खुदी को कर बुलंद इतना कि खुदा बंदे से पुछे बता तेरी रजा क्या है किसी शायर की इस लाईन को सच कर चुके है जौनपुर जिले के माता प्रसाद ने। माता प्रसाद अपनी इच्छा शक्ति और कठोर परिश्रम के बल पर झोपड़ी से लेकर राजभवन तक का सफर तय कर चुके है। 90 बंसत पार कर चुके माता प्रसाद अभी भी साहित्य और लेखन क्षेत्र में अपना सफर जारी रखा है।
माता प्रसाद सन् 1957 से लेकर 1977 तक शाहगंज विधान सभा सीट से विधायक चुने गये थे और 1980 से लेकर 1992 तक विधान परिषद के सदस्य रहे। सन् 1988 में उन्हे उत्तर प्रदेश सरकार में राजस्व मंत्री बनाया गया उसके बाद 21 अक्टुबर 1993 में अरूणांचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया था। वे अपने कार्यकाल में कई ऐतिहासिक कार्य किये है जिसका लाभ आज भी वहा की जनता को मिल रहा है।

पूर्व राज्यपाल माता प्रसाद का जन्म 11 अक्टुबर 1925 को मछलीशहर कस्बे के काजियाना मोहल्ले में हुआ था। उस समय उनके पिता जगरूप और माता रज्जी देवी खेतिहर मजदूर हुआ करती थी। माता प्रसाद बचपन से ही पढ़ने लिखने में होनहार थे। उस समय समाज में व्याप्त छुआछूत प्रथा के कारण उनको गांव के स्कूल में पढ़ने नही दिया गया। इसके बाद माता प्रसाद को दूसरे स्कूल में दाखिला लेना पड़ा था। उन्होने अपनी मजबूत इच्छा शक्ति के कारण सन् 1942 में जूनियर हाई स्कूल मछलीशहर से हिन्दी मिडिल प्रथम श्रेेणी से पास किया उसके बाद 1943 में उर्दू की शिक्षा प्राप्त किया।
काविद: प्रथम भाग 1945 में और दूसरा भाग 1946 में प्राप्त किया।
विशारद: हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से सन् 1948  से प्राप्त किया।
1952 में हाई स्कूल प्रथम श्रेणी में पास किया और नार्मल स्कूल गोरखपुर से एचटीसी द्वितीय श्रेणी में पास किया।
साहित्यरत्नः राजनीति विषय पर सन् 1949-1950 व 1950-1951 में पास किया।
साहित्य विषय से सन् 1953-1954 व 1954-1955 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से प्राप्त किया।
शिक्षा के साथ साथ माता प्रसाद ने अध्यापन का कार्य शुरू कर दिया था वे 1946 से लेकर 1954 तक जौनपुर जिले के विभिन्न प्राईमरी जूनियर हाईस्कूलो में सहायक अध्यापक और जूनियर स्कूलो में प्रधानाध्यापक पद पर रहकर बच्चो को तालिम दिया।

माता प्रसाद ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरूवाआत 1957 विधान सभा चुनाव से शुरू किया तो वे कभी पिछे मुड़कर नही देखे। इस चुनाव में काग्रेस पार्टी ने शाहगंज सुरक्षित सीट पर अपना प्रत्याशी बनाया तो जनता ने उन्हे भारी बहुमत से जिताकर अपना विधायक चुन लिया। उसके बाद उनके जीत का कारवा लगातार बढ़ता ही रहा। वे इस सीट पर 1957 से लेकर 1977 तक लगातार विधायक चुने जाते रहे।
उसके बाद 1980 से लेकर 1992 तक लगातार एमएलसी रहे।
सन् 1988 में नारायण दत्त तिवारी के मुख्यमंत्री काल में माता प्रसाद को राजस्व विभाग का मंत्री बनाया गया हलांकि उनका कार्यकाल मात्र एक वर्ष ही रहा।

े केन्द्र सरकार ने माता प्रसाद को 21 अक्टुबर 1993 में अरूणांचल प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया। 13 मई 1999 के कार्यकाल में माता प्रसाद को प्रधानमंत्री नरसिंह राव अटल बिहारी बाजपेयी एचडी देवेगैड़ा और इंद्र कुमार गुजराल के साथ विचार विमर्श का अवसर मिला।

माता प्रसाद जहां कुशल राजनीतिक व्यक्तित्व के धनी है वही एक उच्चकोटि के साहित्यकार भी है। उन्होने अब तक दो दर्जन से अधिक किताबे लिखी है और पांच किताबे प्रेस में छपने के लिए पड़ी है।
माता प्रसाद जी ने अपने कलम से पहली पुस्तक दलित समाज संबन्धि लोकगीत दूसरी एकलब्ध खण्ड काव्य 1981 में लिखा। तीसरा भीमशतक प्रबंधकाव्य 1986 में लिखा। चैथा किताब राजनीत की अध्र्द सतसई 1992 में लिखा। पांचवी पुस्तक परिचय सतसई 1996 में और 6 वीं पुस्तक दिग्विजवी रावण प्रबंध काव्य 1998 में लिखा।

नाटक
1.अछूत का बेटा 1973 में
2. धर्म के नाम पर धोखा 1977 में
3. वीरागना झलकारी बाई 1997 में
4. विरागना उदादेवी पासी 1997 में
5. तड़प मुक्ति की 1999 में
6. प्रतिशोध 2000 में
7. अंतहीन बेइियां 2000 में
8. धर्म परिवर्तन 2001 में
9. रैदास से संत हिरोमणि गुरू रविदास 2001 में
10. हम सब एक है 2005 में
11. जातियों का जंजाल 2006 में
12.दिल्ली की गद्दी पर खुसरो भंगी 2008 में
13. राजनीतिक दलो में दलित एजेण्डा 2011 में
14. दलितो का दर्द 2011 में
15. घुटन 2012 में
16 महादानी राजा बलि 2013 में लिखा हैै।
इसके अलावा दो दर्जन से अधिक छोटी बड़ी रचनाएं माता प्रसाद द्वारा की गयी है।










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जौनपुर में बहती गोमती की दुखद कहानी |

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जौनपुर शहर गोमती नदी के किनारे बसा एक सुंदर शहर है जो अपना एक वि‍शि‍ष्‍ट ऐति‍हासि‍क, धार्मिक  एवं राजनैति‍क अस्‍ति‍त्‍व रखता है| यहाँ पे गोमती नदी की सुन्दरता आज भी देखते ही बनती है और आज भी इसके शांतिमय  तट लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं |कभी यह तट तपस्‍वी, ऋषि‍यों एवं महाऋषि‍यों के चि‍न्‍तन व मनन का एक प्रमुख  स्‍थल हुआ करता था था। इसी कारण से आज भी गोमती किनारे यहाँ बहुत से मंदिर देखे जा सकते हैं जहां जा के शांति का एहसास हुआ करता है | यहीं महर्षि‍ यमदग्‍नि‍ अपने पुत्र परशुराम के साथ रहा करते थे |बौध सभ्यता से ले कर रघुवंशी क्षत्रि‍यों वत्‍सगोत्री, दुर्गवंशी तथा व्‍यास क्षत्रि‍य,भरो एवं सोइरि‍यों का यहाँ राज रहा है | कन्नौज से राजा  जयचंद जब यहाँ आया तो गोमती नदी की सुन्दरता से मोहित हो के उसने यहाँ अपना एक महल जाफराबाद जौनपुर में नदी किनारे बनाया जिसके खंडहर आज भी मौजूद हैं |
Beauty of Gomti  and view of Mandirs

गोमती नदी का उद्गम पीलीभीत जनपद के माधोटान्डा कसबे में होता है| "पन्गैली फुल्हर ताल"या "गोमत ताल" इस नदी का स्रोत्र है | इस ताल से यह नदी मात्र एक पतली धारा की तरह बहती है। इसके उपरान्त लगभग २० कि.मी. के सफ़र के बाद इससे एक सहायक नदी "गैहाई"मिलती है। लगभग १०० कि. मी. के सफ़र के पश्चात यह लखीमपुर खीरी जनपद की मोहम्मदी खीरी तहसील पहुँचती है जहां इसमें सहायक नदियाँ जैसे सुखेता, छोहा तथा आंध्र छोहा मिलती हैं और इसके बाद यह एक पूर्ण नदी का रूप ले लेती है। गोमती नदी की लंबाई उद्गम से लेकर गंगा में समावेश तक लगभग ९०० कि.मी. है। इसके जलग्रहण क्षेत्र में स्थित 15 शहर में से सबसे प्रमुख हैं लखनऊ, सुल्तानपुर तथा जौनपुर प्रमुख हैं। नदी जौनपुर शहर को दो बराबर भागों मे विभाजित करती है और जौनपुर में व्यापक हो जाती है।
Beauty of Gomti at Jaunpur

जौनपुर में तो गोमती नदी बेहद प्रदूषित है। इसका पानी तो सई नदी से भी खराब है।जौनपुर जिले के 80 किलोमीटर इलाके में गोमती अपना सफर तय करती है। इस दौरान यहां पर ये नदी इतनी गंदी हो जाती है कि वाराणसी के सैदपुर में गंगा में मिलने से पहले ये गंगा के लिए ही खतरा बनते जा रही है। जौनपुर में मौजूद रबड़ और बैटरी की कई छोटी-बड़ी कंपनियों का कचरा हो या शहर से निकलने वाले गंदे नाले सभी गोमती में मिलते हैं।
Gomti ki Sundarta aur aas paas ka pradushan

वर्षो से सुनता आ रहा हूँ की गोमती का पानी प्रदूषित है और इसी के साथ साथ  ना जाने कितनी संस्थाएं आयी ना जाने कितने शोध हुए , सरकार की तरफ से आश्वासन दिया गया लेकिन वर्षों से इसे प्रदूषित किया जा रहा है जिसपे आज तक कोई रोक नहीं लग सकी है और ना ही इसके प्रदूषण को ख़त्म करने का कोई सार्थक प्रयास ही हो रहा है |

आज भी जौनपुर में गोमती नदी का प्रवाह बहुत अधिक है और सुन्दरता देखते ही बनती  है बस आवश्यकता है किसी इमानदार प्रयास की और इसके किनारे घाट बनवा के पर्यटकों को आकर्षित करने की और तब देखिये कैसे यह गोमती आपकी प्यास के साथ साथ मानसिक शांति प्रदान करती है |

इस वीडियो में देखिये कैसे यह सुंदर गोमती प्रदूषित हुयी ?




वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय में मेधावी छात्रो को स्वर्ण पदक देने की तैयारी |

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एक सपना जादू से हकीकत नहीं बन सकता, इसमें पसीना, दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत लगती है यही उद्देश्य लिये कुछ विद्यार्थियों ने अपनी मेहनत के दम पर स्वर्ण पदक हासिल करेंगे। जिसे आगामी 13 फरवरी को होने वाले दीक्षांत समारोह में श्री राज्यपाल के हाथों उन्हें दिया जाएगा। पूर्वांचल विश्वविद्यालय के स्नातक और स्नातकोत्तर में कुल 61 मेधावी ही ऐसे है जिन्हें प्रथम प्रयास में यह सफलता मिली है। इस सफलता से न सिर्फ वह ही बल्कि उनके अभिभावक, मित्र शुभचिंतक भी खुश है। बस अब उन्हें इंतजार है तो दीक्षांत समारोह का जहां मुख्य अतिथि और कुलाधिपति उन्हें सम्मानित कर उन्हें यह पदक प्रदान करेंगे। 

विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर मेधावियों की सूची जारी कर दी गयी है और उसमें यह स्पष्ट अंकित कर दिया गया है कि जिसे कोई भी आपत्ति हो वह 30 जनवरी तक विश्वविद्यालय में आपत्ति दर्ज करा सकता है। 


गौरतलब हो कि वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय में आगामी 13 फरवरी को होने वाले दीक्षांत समारोह की तैयारियां तेजी से चल रही है। इसी क्रम में यह सूची भी विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर जारी कर दी गयी है। इसी सूची में 17 मेधावी स्नातक और 44 विद्यार्थी स्नातकोत्तर स्तर के है जिन्हें स्वर्ण पदक दिया जाएगा। इस उपलब्धि को प्राप्त करने वालों में स्नातक स्तर पर 13 छात्राएं और 4 छात्र शामिल है जिनमें (बी.टेक.) कम्प्यूटर सांइस एण्ड इन्जीनियरिंग से सायमा बानो, (बी.टेक.) इलेक्ट्रानिक्स एण्ड कम्यूनिकेशन इन्जीनियरिंग में पियूष कुमार मिश्रा, (बी.टेक.) इन्फारमेशन टेक्नोलॉजी में रिधीमा नन्द श्रीवास्तव, (बी.टेक.) इलेक्ट्रिकल इन्जीनियरिंग में रिचा पाल, (बी.टेक.) मैकेनिकल इन्जीनियरिंग में बलवन्त साहनी, (बी.टेक.) इलेक्ट्रानिक्स एण्ड इन्स्ट्रूमेंटेशन इन्जीनियरिंग में युवराज सिंह, बी.फार्मा में अनम बेग, बी.सी.ए. में सौरभ सिंह, बी.बी.ए. में सोनाली राय, कला वर्ग में उत्तरा यादव, विज्ञान वर्ग में दिव्या सिंह, वाणिज्य वर्ग में रिचा सिंह, कृषि वर्ग में अंजली सिंह, बी.एस.सी. इन बी.पी.ई. में चेतना सिंह, एल.एल.बी. में धर्मदेव मिश्रा, एल.एल.बी. में प्रतिभा वर्मा, बी.एड. में निवेदिता सिंह है।


 स्नातकोत्तर स्तर पर 22 छात्राएं और 22 छात्र शामिल है जिनमें 1 एम.सी.ए. में तृप्ती उपाध्याय, 2 एम.एस.सी. (पर्यावरण विज्ञान) में आकांक्षा उपाध्याय, 3 एम.एस.सी. (बायोटेक्नोलाजी) में मेघा श्री, 4 एम.एस.सी (बायोकेमेस्ट्री) में पायल सिंह, 5 एम.एस.सी. (माइक्रोबायोलाजी) में नितीश कुमार सिंह, 6 एम.ए. (अप्लाइड साइकोलाजी) में सुशील कुमार, 7 एम.बी.ए. में शाहिद जमाल, 8 एम.बी.ए. (एग्री-बिजनेस) में जामवन्त गौड़, 9 एम.बी.ए. (ई-कामर्स) में बरकत अली, 10 एम.बी.ए. (बिजनेस इकोनॉमिक्स) में अभिषेक कुमार सिंह, 11 एम.बी.ए. (फाइनेन्स एण्ड कन्ट्रोल) में आशुतोष कुमार अग्रवाल, 12 एम.बी.ए. (एच.आर.डी.) में ऐमान रहमान, 13 एम.ए. (मास कम्युनिकेशन) में अंकुर सिंह, 14 एम.एच.आर.डी. में नेहा सिंह, 15 वाणिज्य संकाय में फराह अमजद, 16 एम.एड. में मीनाक्षी सिंह, 17 विज्ञान संकाय (गणित) में गरिमा, 18 विज्ञान संकाय (प्राणी विज्ञान) में चारूल यादव, 19 विज्ञान संकाय (भौतिकी विज्ञान) में जया श्रीवास्तव, 20 विज्ञान संकाय (रसायन विज्ञान) में शिवानी सिंह, 21 विज्ञान संकाय (वनस्पति विज्ञान) में आकांक्षा सिंह, 22 विज्ञान संकाय (सैन्य विज्ञान) में फरहाना यास्मीन, 23 कृषि संकाय (प्लांट पैथोलॉजी) में धीरज कुमार त्रिपाठी, 24 कृषि संकाय (हार्टिकल्चर) में अनुपम राय, 25 कृषि संकाय (जेर्नेटिक्स एण्ड प्लांट व्रीडिंग) में दिव्यांशी यादव, 26 कृषि संकाय (एग्रोनॉमी) में विपिन सिंह, 27 कृषि संकाय (एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स) में सीतेन्द्र गौतम, 28 कृषि संकाय (एग्रीकल्चर केमेस्ट्री एण्ड स्वायल साईंस) में अमित कुमार चन्देल, 29 कला संकाय (प्राचीन इतिहास) में अरूनेन्द्र मौर्य, 30 कला संकाय (राजनीति शास्त्र) में प्रिया मिश्रा, 31 कला संकाय (हिन्दी) में शिखा तिवारी, 32 कला संकाय (अर्थशास्त्र) में ज्योति चौरसिया, 33 कला संकाय (अंग्रेजी) में नसेहा फिरदौस, 34 कला संकाय (संस्कृत) में अन्नू कुशवाहा, 35 कला संकाय (शिक्षाशास्त्र) में ज्योति तिवारी, 36 कला संकाय (गृह विज्ञान) में अन्जू यादव, 37 कला संकाय (म. कालीन और आधुनिक इतिहास) में पुष्पेन्द्र कुमार सिंह, 38 कला संकाय (उर्दू) में मारिया बानो, 39 कला संकाय (मनोविज्ञान) में शालिनी श्रीवास्तव, 40 कला संकाय (दर्शन शास्त्र) में शुभम पाण्डेय, 41 कला संकाय (भूगोल) में पूजा सिंह, 42 कला संकाय (समाजशास्त्र) में शिवा सिंह, 43 विधि संकाय (एल-एल.एम.) (2013) में सुदक्षिणा यादव, 44 विधि संकाय (एल-एल.एम.) (2014) में प्रिया दूबे है।

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विद्यापति का कीर्तिलता में जौनपुर कर रमणीक दृश्यों का वर्णन एक बार अवश्य पढ़ें ।

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विद्यापति का कीर्तिलता में जौनपुर कर रमणीक दृश्यों का वर्णन एक बार अवश्य पढ़ें ।चौदहवीं शताब्दी के जौनपुर को विद्यापति कुछ इस प्रकार देखते है ।


 "जूनापुर नामक यह नगर आँखों का प्यारा तथा धन दौलत का भण्डार था । देखने में सुन्दर तथा प्रत्येक दृष्टिकोण से सुसज्जित था । कुओं और तालाबों का बाहुल्य था । पथ्थरों का फर्श ,पानी निकलने की भीतरी नालिया ,कृषि , फल  फूल और पत्तों से हरी भरी लहलहाती हुयी आम और जामुन के पेड़ों की अवलियाँ ,भौंरो की गूँज मन को मोह लेती थीं । 

गगनचुम्बी और मज़बूत भवन थे । रास्ते में ऐसी ऐसी गालियां थीं की बड़े बड़े लोग रुक जाते थे । चमकदार लम्बे लम्बे स्वर्ण कलश मूर्तियों से सुसज्जित सैकड़ो शिवाले दिखते थे । कँवल के पत्तों जैसे बड़ी बड़ी आँखों वाली स्त्रियां जिन्हे पवन स्पर्श कर रहा था मौजूद थी ,जिनके लम्बे केश उत्तरी ध्रुव से बातें कर रहे थे । उनके नेत्रों में लगा हुआ काजल ऐसा दीख पड़ता था मानो चन्द्रमा के अंदर एक दाग़ है ।


पान का बाजार ,नान बाई की दूकान ,मछली बाजार ,और व्यवसाय में व्यस्त लोग ऐसा लगता था हर समय एक जान समूह उमड़ा रहता था । "……।  कीर्तिलता 

इस नगर की आबादी बहुत घनी थी । लाखों घोड़े और सहस्त्रो हाथी हर समाज मजूद रहते थे । दोनों ओर सोने ,चांदी की दुकाने थी । उस समय सम्पूर्ण आबादी सिपाह, चचकपुर ,पुरानी बाजार ,लाल दरवाज़ा,  पान दरीबा,
तथा प्रेमराज पूर आदि मुहल्लों में सिमटी हुयी थॆ। व्यावसायी लोग जौनपुर की ख्याति और इब्राहिम शाह के स्वागत से इतने अधिक प्रभावित  थे की अपना सामान यहां बेचने आया करते थे ।



अटाला मस्जिद से क़िला होते हुए सिपाह तक सेनाएं रहती थी । अटाला मस्जिद के क़रीब ढाल तथा तलवारें बनती थी जो दुनिया भर में प्रसिद्ध थी । इसी लिए यह मोहल्ला ढालघर टोले के नाम से प्रसिद्ध हो गया ।

कीर्तिलता में विद्यापति  ने बाजार और खरीददारी का वर्णन भी इस प्रकार   किया है ।

"दोपहर की भीड़ को देख कर यही ज्ञात होता था की यहां सम्पूर्ण दुनिया की वस्तुएं यहां बिकने के लिए आ गयीं हैं । मनुष्यों का सर परस्पर टकराता था और एक का तिलक छूट दुसरे के  लग जाता था । रास्ता चलने में महिलाओं की चूड़ियाँ टूट जाती थीं ।लोगों की भीड़   देख ऐसा आभास होता था जैसे समुन्दर उमड़  पड़ा हो । बेचने वाले जो  भी सामान लाते सेकंडो में बिक जाता था । 
ब्राह्मण , कायस्थ , राजपूत, तथा अन्य बहुत सी जातियां ठसा ठस भरी रहती और सभी सज्जन और धनी  थे । 

इब्राहिम शाह अपने महल के ऊपरी भाग में रहता था ।अपने घर आये हुए अथितियों के देख प्रसन्न होता था । "……।  कीर्तिलता


इसी  प्रकार बहुत  से बाजार थे । शाही महल, खास हौज़, के समीप अमीरो के विराट गगन चुम्बी भवन थे । उस काल में सभी प्रसन्न और संपन्न थे । इब्राहिम शाह के समय में यह सब देख के लोग सुख का आभास करते थे । जौनपुर में प्रत्येक स्थान  पे लोगो के ठहरने और खाने का इंतज़ाम था ।

 कीर्तिलता में विद्यापति इब्राहिम शाह की सेना का सुंदर चित्रण किया है । 

"सेना की संख्या कौन जाने । सैनिक पृथ्वी पे इस तरह बिखरे हुए थे जैसे कमल का फूल तालाब में बिखरा हुआ हो । सारांश ये की बादशाही फ़ौज ने प्रस्थान का नक्कारा बजा दिया । सुलतान इब्राहिम शाह की सेना बादशाह के साथ रवाना हुयी । भय के कारण पर्वत अपना स्थान छोड़ने लगे ,पृथ्वी में कम्पन होने लगा ,सूर्या धुल कणो  में चुप गया । प्रत्येक ओर से युद्ध के नगाड़े बजने लगे ,ऐसा लगता था मानो प्रलय आ गयी हो । सेना ने पैदल चल के नदी का पानी सुखा दितथा या । "……।  कीर्तिलता 

 शार्की सेना में   ब्राहम्मण और राजपूत बहुत थे और बादशाह के न्याय से सभी प्रसन्न थे । 

शार्की बादशाह ने संगीत का भी संरछण किया । उनका दरबार कवियों और कलाकारों से सदैव भरा रहता था । हुसैन शाह के समय में जौनपुर संगीत का केंद्र बन गया जिसका नायक स्वम बादशाह था । हुसैन शाह ने अनेक राग तथा ख्याल का आविष्कार किया । शर्क़ी काल में काव्य साहित्य ,संगीत तथा सुलेख कला में जौनपुर का अपना एक महत्व था । 

शाजहाँ इसे बड़े गौरव से शीराज़ ऐ हिन्द कहा करता था लेकिन आज इस जौनपुर का प्राचीन वैभव बिलकुल नष्ट को के रह गया है । इसमें कोई संदेह नहीं की जौनपुर अपने विद्या भंडारों को, अपनी धरोहरो को बचाने में नाकाम  रहा है । आज  आवश्यकता है इस  धरोहरों को संरछित करनी की और इसे प्रयटको के आने योग्य   बनाने की  । 

लेखक और  सर्वाधिकार सुरछित ---एस .एम मासूम

चाईना मंझे के विरुद्ध अभियान के अन्तर्गत पतंग प्रतियोगिता

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जौनपुर | जौनपुर क्षेत्र में पतंग के महत्व को देखते हुए एवं चाईना मंझे के विरुद्ध अभियान के अन्तर्गत पतंग प्रतियोगिता स्थान शिया कालेज के मैदान मे सम्पन्न हुई। जिलाधिकारी भानुचन्द्र गोस्वामी ने पतंग उडा कर प्रतियोगिता का उद्घाटन किया।  जिलाधिकारी व अतिथियों का शिया इन्टर कालेज के प्रबन्धक नजमुल हसन नज्मी, मीना रिजवी गर्ल्स इ0 का0 के प्रबन्धक शमसीर हसन, डिग्री कालेज के प्राचार्य डा असद अली काजमी, शिया इ0 का0 के प्रधानाचार्य जफर सईद आरिज व मीना रिजवी की प्रधानाचार्य तसनीम फात्मा ने बुके देकर अतिथियों का स्वागत किया। विद्यालय की छात्राओं ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। प्रतियोगिता मे लोग पतंगो पर मतदाता जागरुकता स्टीकर लगी पतंगे उडा रहे थे। मंच को पतंगों से सुन्दर ढंग से सजाया गया था।
खर्रम ने चमगादड़ के आकार की इन्टरनेशनल पतंग उडाई जो आकर्षण का केन्द्र रही। प्रतियोगिता में सबसे अधिक पेच काटने में शकील अहमद प्रथम, मीसम द्वितीय, पप्पू रिलायन्य तृतीय, फैन्सी पतंग उड़ाने में खुर्रम प्रथम, पंकज द्वितीय, लाल मोहम्मद तृतीय, फैन्सी व आकर्षक पतंग सजाने में सुरेन्द्र मोहन वर्मा प्रथम, इश्तेयाक गुलाब द्वितीय, दिनेश सेठ तृतीय तथा एक डोर से कई पतंग उड़ाने में 64 पतंग उड़ाकर जंगबहादुर प्रथम, 40 पतंग उड़ाकर सोनू द्वितीय, 23 पतंग उड़ाकर रूपेश तृतीय स्थान पर रहे।
निर्णायक मण्डल में मो0 उबैदुल्ला, धीरज सिंह, बेलाल अब्बास रहे। इस अवसर पर जिलाधिकारी भानुचन्द्र गोस्वामी, मुख्य विकास अधिकारी पी0सी0श्रीवास्तव, अपर जिलाधिकारी रजनीश चन्द, नगर मजिस्टेªट उमाकान्त त्रिपाठी, उप जिलाधिकारी सदर आर.के.पटेल ने भी पतंगे उड़ाई जो कि आकर्षण का केन्द्र रहे।
इस अवसर पर गणतंत्र दिवस पर नगर में भव्य तोरण द्वार स्थापित करने वालों में डा0 लालबहादुर सिद्धार्थ प्रथम, गहना कोठी द्वितीय, प्रदीप सिंह तृतीय, लायन्स क्लब जौनपुर चतुर्थ व आर.डी.एम. शिया ट्रस्टी कमेटी पंचम स्थान पर रहे जिन्हे जिलाधिकारी ने प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। संचालन सै0मो0 मुस्तफा ने किया। इस अवसर पर सत्यप्रिय सिंह डिप्टी कलेक्टर, सहायक जिला निर्वाचन अधिकारी रमाकान्त राम, सूचना अधिकारी के.के.़ित्रपाठी, पड़ित रजनीश द्विवेदी, डा0 अवधेश कुमार, डा0 क्षितिज शर्मा, सलमान  शेख, संजय श्रीवास्तव, आरिफ हुसैनी, तहसीन जावेद, लायंस, रोटरी, जेसीज क्लब, काइट क्लब के पदाधिकारी आदि उपस्थित रहे।





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जौनपुर के मुहल्लों के नए और पुराने नाम और उनका इतिहास

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जौनपुर के मुहल्लों के नए और पुराने नाम और उनका इतिहास
 जौनपुर शहर के मुहल्ले तो लगभग ७६ है जिनका जिक्र  पुराने इतिहासकारो ने अपनी किताबो में किया है लेकिन बहुत से मुहल्ले अब आपस मे मिल गये है और कुछ का नाम बिगड गया है | जैसे फतेहपुर अब फत्तुपूर हो गया है और राजघाट अब झंझेरी मस्जिद के इलाक़े मे मिल गया है |

मुहल्ला सिपाह :-इब्राहीम शाह शार्क़ी शासन काल मे इसे काजी अब्दुल मुक़्तदिर ने आबाद किया था | इस मुहल्ले मे शार्क़ी सेना के रिसालदार यहां आबाद थे |इतिहासकारो ने लिखा कि इब्राहीम शाह शार्क़ी ने इसका नाम सिपाह खुद रखा और सेनापातियो, उलमा ने अपना अपना निवास स्थान इसे बनाया |आज आस पास के १० मुहल्ले मिला के सिपाह मुहल्ला बना है |

मुहल्ला शेख्वाडा :-इस मुहल्ले मे इब्राहीम शाह शार्क़ी के समय मे शेख रहा करते थे इसलिये इसका नाम शेख वाडा पड गया लेकिन आज यहा सभी धर्म के लोग रहा करते है |

मुहल्ला शाह चूप या बल्लोच टोला :-यहा प्राचीन काल मे एक महान महात्मा रहते थे जो अधिकतर चूप रहा करते थे और यहा दस बल्लोची रहा करते थे जिंके कारण इसका नाम मुहल्ला शाह चूप या बल्लोच टोला पड गया |

बाग ए हाशिम या दाढी यांना टोला :- ये आज के पुरानी बाजार इलाक़े मे मौजूद है | सिकंदर लोधी के समय मे ये एक मशहूर मुहल्ला था |

ख्वाजा दोस्त ;- अकबर बादशाह के जमाने मे ख्वाजा दोस्त प्रख्यातविध्वान थे जिंके नाम पे ये नाम पडा |

नंद मुहल्ला ;- नंद लाल हुसैन शाह शार्क़ी के समय के दिवानके पद पे असीन थे जिंके नाम पे नंद मुहल्ला नाम पडा |

मुहल्ला सोनी टोला;- इस मुहल्ले मे सोने चांदी के दलाल रहा करते थे इसलिये इसका नाम सोनी टोला पड गया |

मुहल्ला रास मंडळ :- रास मंडळ वास्तव मे एक बडे चबुतरे को कहते थे जहां ब्रह्मणो के लडके दशहर के अवसर पे राम लीला किया करते थे |

मुहल्ला फत्तुपुरा:- ये मुहल्ला रोज जमाल खान के पास है जो अब खेत मे बदल गया है |

मानिक चोक :-इस चौक को बादशाह अकबर के शासन काल मे मानिक चंद दिवाण खान खाना ने ९७२ हिजरी मे बनवाया | पुराने समय मे यहा जौहरी  और अत्तार की दुकाने थी |

ढाल घर टोला :-यहा के कारीगर तलवार और ढाल बनाया करते थे |

खान खाना मुहल्ला :- इसे अब नख्खास कहा जाता है यहा जानवरो का बाजार लगा करता था  |

खुसरो मुहल्ला या गुलर घाट :- यहा नौका से गल्ला लाया जाता था और यहा पठान रहा करते थे जो बहादुरी मे बहूत मशहूर थे |


मुंगेरी मुहल्ला या करार कोट ;-पुराने समय मे यहा स्नानग्रहो मे आने वालो को नहलाने वाले रहा करते थे |


बशीर गंज मुहल्ला :-बशीर खां कोतवाल ने नवाबो के समय मे इसे आबाद किया |

आदम खां मुहल्ला :- ये मुहल्ला फिरोज शाह तुग्लक के समय मे आदम खा ने आबाद किया |

मुहल्ला अर्जन :- ये मुहल्ला नैमुल्ला तथा अजीजुल्ला जो कक़्दूम ख्वाजा के पुत्र थे उनका आबाद किया हुआ है |

मुस्तफाबाद या भंडारी :-इसे काजी गुलाम मुहम्मद मुस्तफा उर्फ मझले मिया ने आबाद किया था | काजी गुलाम मुहम्मद मुस्तफा गरीबो को भंडारा देते थे इसलिये इसका नाम भंडारी पड गया |

बाजार अलफ खा या अबीर गढ टोला या काजीयांना :-अलफ खा जाति के पठान थे और उनकी हवेली भी यही पे थी जिनके नाम पे इसका नाम मुहल्ला अलफ खा पड गया |

निजाम टोला या मीर मस्त :- ये मुहल्ला सुलतान अशरफ काआबाद किया हुआ है |

मुहल्ला रिजवी खा :- मिर्झा मिरक रिजवी ने इसे आबाद किया जो अकबर के समय मे प्रबंधक के पद पे आसीन थे |

मुहल्ला अटाला :-ये मुहल्ला रिजवी खा  मे ही आता है लेकिन इस स्थान पे फौज इब्राहीम शाह के समय मे रहती थी इसलिये इसका नाम अटाला पड गया और बाद मे इसी के पास मस्जिद बनी जिसे अटाला मस्जिद कहां गया |

अल्फीस्तन गंज :-ये अंग्रेजो के एक जज अल्फीस्तान के नाम पे पडा है |

वेलंद गंज या ओलंद गंज  :-ये भी एक जज थे जिनके  नाम पे इसका नाम पडा |

मियां पूर :- यह पुराना मुहल्ला है जिसका नाम मिया मुहम्मद नूह के नाम पे पडा है |

जोगिया पूर :-शर्क़ी काल मे जेल और आसपास का इलाक़ मुहल्ला अल्लानपूर मे आता था | ये मुहल्ला कुतुब बीनाय दिल का आबाद किया हुआ है |

दीवान  शाह कबीर या ताड तला :- ये मुहल्ला दिवाण शाह कबीर का आबाद किया हुआ है और सन ९९२ से पहले का मुहल्ला है |


तूतीपूर :-काजी मुहम्मदयुसुफ के एक गुलाम ने इस मुहल्ले को आबाद किया उसका नाम तूती था |

मुफ्ती मुहल्ला :-ये मुहल्ला सैयद अबुल बक़ा का आबाद किया हुआ है जिंका देहान्त सन १०४० मे हुआ |

खाआलीस पूर :- इस मुहल्ले को खालिस मुखलीस ने आबाद किया जो शर्क़ी समय मे सूबेदार के पद पे असीन थे |

पान दरीबा :-नसीर खा फिरोज शाह तुग्लक़ के पुत्र शाह इस्माईल ने इसे आबाद किया |

मुहाल गाजी :-अकबर के जमाने के एक प्रतिष्ठित व्यक्ती गाजी खा ने इसे आबाद किया था |

शेख यहिया या बाजार भूआ :- अकबरी दरबार के एक कवि शेख यहिया थे उन्ही के नाम पे ये मुहल्ला आबाद हुआ | बाजार भूआं इलाक़े मे पहले भूप तिवारी रहते थे जिनके  नाम पे बजार भूआ नाम पडा |

अबीर गड टोला :-यहा अबीर बनती थी |

रुहत्ता अजमेरी :- शर्क़ी काल मे यहा एक अजमेरी शाह रहते थे |

हम्माम दरवाजा :-यहा एक स्नानगृह  था जिसे तुर्क़ी क़ौम ने बनवाया था इसी वजह से इसे हम्माम दरवाजा कहा गया |

कोठीया बीर :-यहा पहले एक मठ था जिसके कारण इसे कोठीयाबीर कहा गया |कोठीयाबीर एक रिशी ऋषि थे |

बाग हाशीम :-शेख बुरहानुद्दीन एक सुफी थे सन ९४७ हिजरी मे इनका देहांत हो गया |

सदल्ली पूर :-मुहम्मद हसन कालेज के पीछे और चित्रसारी  के क़ब्रिस्तान के पहले एक मुहल्ला है सदल्ली पूर जिसका सही नाम सैयेद अली पूर है | जिनकी शान मे लाल दरवाजा बीबी राजे ने बनवाय था |


जौनपुर के आस पास बलात्कार की घटनाएं और उसका कारण |

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बलात्कार की समस्याअब विकराल रूप लेती जा रही है | जौनपुर और आस पास के गाँव से ऐसे खबरें हर दिन आती रहती हैं जिनमे अधिकतर मामले प्रेम  प्रकरण के या बदले की भावना से हुआ करते हैं | जवानी के आते ही युवा मन एक नयी दुनिया को देखने लगता है | ऐसे में उनकी इच्छा विपरीत लिंग के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने की होने लगती है और चलने लगता है प्यार व्यार का चक्कर } यह हकीकत में ना तो कोई प्यार होता है और ना कोई लगाव आपस में बल्कि सब कुछ शरीरिक संबंधों के आस पास  ही घूमता रहता है |


ऐसे में बहुत बार  शारीरिक संबंध बना लेने के बाद लड़का कहीं और लग जाता है या  बहुत बार लड़की को कोई और पसंद आ जाता है और शुरू हो जाता है आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला | बहुत बार दोस्तों में आपसी रजिश हो जाती है या माता पिता के सामने प्यार का मामला कुल जाने पे लड़की की शादी कहीं और करने की कोशिश बलात्कार, हत्या या तेज़ाब फेंकने जैसे गुनाहों को जन्म देती है |
ये सब जवानी के जाते या परिपक्व होते ही ख़त्म हो जाता है और यदि युवाओं को अच्छे संस्कार और समय रहते उनको शारीरिक परिवर्तन का ज्ञान दिया जाए तो इस समस्या का हल संभव है | ये हकीकत में बलात्कारी या व्यभिचारी नहीं होते बल्कि सही परवरिश और अच्छे संस्कारों के अभाव में ग़लत रास्ते पे चले जाते हैं |

बलात्कार के विषय मेंडॉ रीताका मानना है की टीवी ,मोबाइल इत्यादि का चलन गाँवो में यदि सुविधा बन के आया है तो युवाओं को गुमराह भी करने में इसका हाथ है | बलात्कार की शिकार महिलाओं में आज भी समाज में बदनामी के डर से उसे छुपा जाना आम बात है और यह एक बड़ा कारण है ऐसी घटनाओं के बार बार होने का |लेकिन जितने केस रिपोर्ट होते हैं और उनकी जांच सदर अस्पताल में होती है उनके अनुसार अक्सर महिलाएं अपने ही घर ,पड़ोस या रिश्तेदारों की वासना का शिकरा होती है |अनजान व्यक्ति द्वारा बलात्कार की घटनाएं कम ही देखने को जिला करती हैं |


डॉ रीता की बातोंसे यह बात भी सामने आयी की टीवी, इन्टरनेट और मोबाइल पे अश्लील फिल्मो का देखना और इसका आदान प्रदान एस समस्या बन के उभरा है |चीन की तरह हिन्दुस्तान में भी अश्लील फिल्मो (पोर्न) पे प्रतिबन्ध लगना चाहिए | इन पोर्न विडियो में औरतों के साथ क्रूर, हिंसक व्यवहार , बलात्कार ,कौटुम्बिक व्यभिचार ,बच्चों के साथ यौन सम्बन्ध इत्यादि दिखाए जाते हैं | युवामन उन अश्लील फिल्मो को देखकर विचलित होता है उसको व्यवहारिक रूप देने का अवसर तलाशता है, जिसका दुष्परिणाम आज रेप, गैंग रेप और कौटुम्बिक व्यभिचार में वृधि के रूप मे सामने आ रहा है |


ख़बरों  की मानेंतो अब जौनपुर जैसे छोटे  शहरों से और गाँव से भी  कौटुम्बिक व्यभिचार, और पतियों द्वारा अपनी पत्नियों पे  दुसरे व्यक्तियों के साथ सेक्स का दबाव बनाने जैसी खबरें भी अब सुनने में आने लगी है है जो हमारे हिन्दुस्तानी समाज के संस्कारों का हिस्सा नहीं बल्कि पोर्न फिल्मो की देन नज़र आता है | 

अपने बच्चों को जवानी की दहलीज पे क़दम रखते ही अच्छे संस्कार और उनमे आ रहे परिवर्तन के बारे में जागरूक करें और सरकार पे दबाव बनाएं की पोर्न फिल्मो पे मुकम्मल बैन लगाया जाए |

डॉ रीता दुबे (सी एम् एस सदर अस्पताल) से एक मुलाक़ात

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जौनपुर सदर महिला जिला अस्पताल की सी एम् एस डॉ दुबे से जानिए जौनपुर और आस पास के गाँव में भ्रूण हत्या और महिलाओ के साथ बलात्कार के क्या कारण हैं और इन पे कैसे रोक लगाई जा सकती है ?

डॉ रीता दुबे वैसे तो इलाहबाद की रहने वाली हैं लेकिन जौनपुर महिला सदर अस्पताल में सी एम् एस के पद पे कार्यरत हैं | डॉ रीता बताती हैं की जौनपुर के आस पास के गाँव में अभी भी शिक्षा की कमी होने के कारण परिवार नियोजन के बारे में नहीं सोंचा जाता है जिससे महिलाओं की सेहत खराब होती जाती है और अबोर्शन की नौबत आने लगती है | गाँव की महिलाएं पुरुषों पे निर्भर होने के कारण कुछ अधिक उनके खिलाफ नहीं कह सकती हैं | भ्रूण हत्या के आंकड़ों में तो कमी अवश्य आयी है लेकिन अभी भी इस विषय पे लोगों को जागरूक करना आवश्यक है |

डॉ रीता जी का कहना है की सरकार ने सदर अस्पताल में महिलाओं को बहुत सी सुविधाएं दी हैं जिनमे मुफ्त डेलिवरी ,दवाएं इत्यादि शामिल है | यह और बात है कि सदर अस्पताल से मरीजों की शिकायतें अक्सर आया करी हैं | डॉ रीता जी का कहना है की यह संभव भी है क्यूंकि मरीजों की संख्या अधिक है और डाक्टरों की कमी है |सदर महिला अस्पताल में डॉ रीता के अनुसार 21 डॉ होने चाहिए लेकिन हैं केवल तीन | ऐसे में एक डॉ यदि एक दिन में २-३ सौ मरीज़ देखेगा तो वो मरीजों के समय कैसे दे सकेगा |

बलात्कार के विषय में डॉ रीता का मानना है की टीवी ,मोबाइल इत्यादि का चलन गाँवो में यदि सुविधा बन के आया है तो युवाओं को गुमराह भी करने में इसका हाथ है | बलात्कार की शिकार महिलाओं में आज भी समाज में बदनामी के डर से उसे छुपा जाना आम बात है और यह एक बड़ा कारण है ऐसी घटनाओं के बार बार होने का |लेकिन जितने केस रिपोर्ट होते हैं और उनकी जांच सदर अस्पताल में होती है उनके अनुसार अक्सर महिलाएं अपने ही घर ,पड़ोस या रिश्तेदारों की वासना का शिकरा होती है |अनजान व्यक्ति द्वारा बलात्कार की घटनाएं कम ही देखने को जिला करती हैं |

डॉ रीता का कहना है यदि बलात्कारी को सजा दिलवाना है तो बलात्कार के २४ घंटे के अंदर ही इसकी रिपोर्ट करवानी चाहिए जिस से २४ घंटे से पहले ही इसकी जांच हो सके|

आशा है की डॉ रीता दुबे जिनके पति भी जौनपुर में डॉ हैं आप सभी उनके विचारों से लाभ उठाएंगे |

एस एम् मासूम

सावधान महिलाओं शॉपिंग स्टोर्स के ट्रायल रूम्स , या लेडीज वॉशरूम लगा में हो सकता हैं खुफिया कैमरा |

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आज कल शौपिंग मॉल या लेडीज वाश रूम का इस्तेमाल भी खतरनाक होता जा रहा है | हर दिन इस तरह की खबरें आती रहती हैं की शौपिंग मॉल के ट्रायल  रूम में या लेडीज वाश रूम कैमरा  पकड़ा गया | अब सवाल यह उठता  है की कैमरा किसी शौपिंग मॉल के ट्रायल  रूम में या लेडीज वाश रूम  में लगा  है ये कैसे  पता किया जाय ?

आप जब भी किसी  ट्रायल  रूम में या लेडीज वाश रूम  में जाएँ तो एक बार  देख लें की क्या आप अपने फ़ोन से कॉल कर पा रहीं है ? यदि नहीं तो कमरा लगा हो सकता है |

यदि वहाँ कोई मिरर लगा है तो सावधान ये टू वे  मिरर भी हो सकता है जिसके पीछे  कमरा लगा हो| ट्रायल रूम के शीशे को उंगली से हल्का से ठोंके अगर उसमें से किसी खाली डिब्बे सी आवाज आए तो समझ जाइए कि यह शीशा नकली है.

आप इन विडीओ को अवश्य  देखें जो बहुत जानकारी आपको इस विषय की देगा |


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हर समय समाज के लिए कुछ करने की चाह श्री लालजीत चौहान जी की पहचान है|

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इस वर्ष जुलाई के महीने में जौनपुर पहुँचने पे मैं अपनी आदत अनुसार यहाँ की प्रतिभाओं की तलाश में लग गया और इसी तलाश में मेरी मुलाक़ात एक ऐसे समाज सेवक से हुई जो राजनीति से भी जुड़े हुए हैं और अपनी इस ताक़त का इस्तेमाल समाज की सेवा में किया करते हैं  | नेता जी लालजीत चौहान जी से मुलाक़ात के बाद ऐसा महसूस हुआ की राजनीति से जुड़े सभी लोग भ्रष्ट हुआ करते हैं यह सत्य नहीं है |सादगी भरा जीवन ना घमंड ना दिखावा और हर समय समाज के लिए कुछ करने की चाह श्री लालजीत चौहान जी की पहचान है |



श्री लालजीत चौहान जौनपुर जिले के सैदपुर गडऊर के रहने वाले हैं और अपनी प्राथमिक शिक्षा अपने गाँव से ही प्राप्त की | बचपन में जब नेता जी अपने स्कूल जाते थे जो की एक डेढ़ किलोमीटर उनके घर से दूर था | उस स्कूल के रास्ते में एक नाला पड़ता था जिसे पार करवाने के लिए उनके घरवाले उनको अपने कंधे पे ले जाया करते थे | नेता जी को समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा वंही से मिली और उन्होंने सोंचा यदि मैं बड़ा हो कर कुछ करने लायक बन सका तो सबसे पहले तो इस नाले पे पुल बनवाऊंगा और जैसा उन्होंने प्रण किया था वैसा किया भी | वो नाला और वो उनका गाँव के लोगों के सहयोग से उनके श्रमदान से बनवाया पुल आज भी मौजूद है जिसे उनके गाँव सैदपुर गडऊर जा के मैंने खुद देखा |श्रमदान से बनी इस पुलिया को बाद में एक किलोमीटर की सड़क से जोड़ा गया जो गाँव ने अंदरूनी छोर तक को जोडती है |



श्री लालजीत जी को स्वंत्रता सेनानियों और समाजसेवकों की जीवनी पढने का शौक बचपन से ही था जिससे समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा उन्हें मिली |उनका गाँव सैदपुर गडऊर जौनपुर शहर से केवल 7 -8 किलोमीटर दूर है लेकिन १८७२ में पहले ग्रेजुएट श्री लालजीत जी ही थे | गाँव के विधुतीकरण से ले के गाँव में राजकीय विद्यालय की शुरुआत , शासकीय सहायता प्राप्त जयकरण पूर्व माध्यमिक विद्यालय का संचालन ,गाँव पे पोस्ट आफिस स्थापना का प्रयास इत्यादि श्री लालजीत जी की उपलभदियां हैं | आज भी उनकी समाजसेवा जैसे ४ जनवरी को विधवाओं और गरीबों को कम्बल का वितरण ,छात्रों में प्रतिस्पर्धात्मक शिछा हेतु शिछा समिति का गठन और मेघावी छात्रों को छात्रवृति देना | उनकी इस शिछा समिति की विशेषता यह है की इसमें सहयोग करने वाले लोगों के धन के ब्याज से ही छात्रवृति दे जाते हैं और कुछ वर्षों बाद जिसने जोया पैसा दिया था वो उन्हें वापस कर दिया जाता है | इसमें इतनी पारदर्शिता रखी जाती है कि धन जमा करवाने वाले को यह बताया दिया जाता है कि उनके धन से किसी ब्याज पढ़ाई के लिए दिया जा रहा है और वैसे ही छात्र को भी बता दिया जाता है की धन दे के उसके पढने में किसने सहयोग किया |



 देश की आजादी के शहीदों की जीवनी पढना उसके बारे में दूसरों से चर्चा करके उसे दूसरों तक पहुंचाना उनका शौक आज भी है | उनकी कोशिशों के चलते जौनपुर जनपद के धनियामौऊ ,अगरौरा गाँव में शहीद स्मारक बना जहां १९४२ में वहाँ का पुल तोड़ते समय गाँव के कई लोगों को अंग्रेजों ने मार दिया था जिनकी लाश ३ दिन तक पड़ी रही थी | जौनपुर हौज़पुर गाँव में शहीद स्मारक बना जहाँ १८५७ में 16 लोगों को अंग्रेजों द्वारा सरे आम फांसी दे दी गयी थी | श्री लालजीत जी का यह कहना एक मायने रखता है की उन्हें उनकी राजनितिक ताक़त का , पढ़ाई का इस्तेमाल समाज सेवा में करने में बड़ा सुकून मिलता है |श्री लालजीत चौहान शुरू से ही कांग्रेस से जुड़े रहे और समय समय में अहम् पदों को संभाला | आज भी जौनपुर से कांग्रेस जिलाध्यक्ष के पद को संभाल रहे हैं |



आप सब भी उनके इस विडियो में उनके बारे में जाने और तस्वीरों से उनको पहचाने | समाजसेवक नेता जी श्री लालजीत चौहान से एक बात चीत










किशन हरलालका जौनपुर का सच्चा समाज सेवक

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अपने लिए तो सभी जीते है दूसरो के लिए जो जीता है वही एक सच्चा इन्सान होता है लेकिन जो बे जुबा जानवर के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगता है वह निः संदेह इन्सान से ऊपर होता ही साथ ही उन पशुओ के लिए भगवान भी होता है। जी हाँ आज हम जौनपुर के उस सामाजिक संत से रु ब रु कराने जा रहे है जिसे जानते तो बहुत लोग है लेकिन उनकी सच्ची समाज सेवा के बारे में काफी कम ही लोग जानते है। इसका मुख्य कारण है जो भी करते है वह गुप्त रूप से करते है।


 ये कलयुग के महर्षि है किशन लाल हरलालका। किशन हरलालका 30 नवम्बर 1960 को जौनपुर नगर अल्फ़सटीनगंज मोहल्ले के निवासी व  जिले के प्रतिष्ठित व्यापारी स्व० घनश्याम दास हरलालका के बड़े पुत्र के रूप में जन्म लिया।  किशन अभी पढाई कर ही रहे थे इसी बीच उनके पिता की असमायिक निधन हो गया । पिता की मौत के बाद जहाँ पुश्तैनी व्यापार चौपट हो गया वही इनके कंधो पर पूरे परिवार का बोझ पड़ गया । इसके बाद भी किशन ने हार नही मानी अपनी मेहनत के बल पर पूरे परिवार का पालन पोषण किया ही वही समाज सेवा भी करते रहे। छुट्टा और आवारा पशुओं को पानी की किल्लत को देखते हुए अपने दुकान के सामने एक नाद रखकर उसमे पानी भरने लगे इस पानी से छुट्टा जानवर अपनी प्यास बुझाने लगे। उसके बाद किशन बाबू ने राहगीरों को पानी पिलाने के लिए अपनी दुकान में घड़े में पानी और गुड की व्यवस्था कराया। पशुओं के प्रति इनकी सेवा को देखते हुए गौशाला कमेटी ने गौशाले की पूरी जिम्मेदारी किशन के ऊपर सौप दिया।  किशन संस्था के अध्यक्ष यदवेद्र चतुर्वेदी , गोपाल हरलालका और  दिनेश कपूर के साथ मिलकर 250 से अधिक बेजुबां जानवरों का पालन पोषण कर रहे है।


किशन हर वर्ष 30 से 40 लोगो को धर्मिक यात्रा पर भी ले जाते है. अब तक वे एक हजार से अधिक लोगो को माँ वैष्णो , बाबा अमरनाथ , तिरुपति बालाजी , केदारनाथ और बद्रीनाथ का दर्शन करा चुके है। कड़के की ठण्ड में रात के अँधेरे में रेलवे स्टेशन , रोडवेज , और अस्पतालों में जाकर ठंड से कांप रहे लोगो को गोपनीय तरीके से कम्बल देने का काम  करना इनकी आदत में शुमार है।  इसके अलवा पंडितजी की एतेहासिक रामलीला , भरत मिलाप और दुर्गा पूंजा समेत तमाम धार्मिक और सामाजिक कार्यो में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते रहते है।

राजेश श्रीवास्तव 
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